SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११६ ) सहस्राः सप्तनवतिश्चतुर्विंशतिलक्षकाः । त्रिशती पंच भिर्युक्ता प्राग्वत् पुष्पावकीर्ण काः ॥ १४१ ॥ और वहां चौबीस लाख सतासी हजार तीन सौ पांच पूर्वोक्त पुष्पा वकीर्ण आवास होते हैं । (१४१ ) सर्वे च नरकावासा लक्षाः स्युः पंचविंशतिः । वंशाया ज्ञानिर्भिदृष्टा ज्ञानेन सर्वगामिना ॥१४२॥ अतः सब मिलाकर नरक पृथ्वी में पच्चीस लाख सम्पूर्ण नरकावास होते. हैं । इस तरह केवल ज्ञानियों ने अपने सर्व व्यापक ज्ञान द्वारा देखकर कहा है। (१४२) एषां संस्थानमुच्चत्वं स्वरूपं वेदनादिकम् । रत्नप्रभावद्विज्ञेयं त्र्यस्त्राद्यनुक्रमोऽपि च ॥१४३॥ इन नरकावास के संस्थान, उंचाई, वेदना स्वरूप तथा त्रिकोणादि का अनुक्रम यह रत्नप्रभा के अनुसार जानना । (१४३). षडंगुलाधिकाः एकत्रिंशत्कराः वपुर्भवेत् । प्रथम प्रस्तटे वंशापृथिव्यां नारकांगिनाम् ॥ १४४ ॥ द्वितीये च चतुस्त्रिंशत् कराः नवांगुलाधिकाः । द्वादशांगुलयुक् सप्तत्रिंशत्क रास्तृतीयके ॥ १४५ ॥ चत्वारिंशत्क रास्तुर्ये ऽधिक पंचदशांगुलाः । पंचमे ते त्रिचत्वारिंशत् सहाष्टादशांगुलाः ॥ १४६॥ कराणां सप्तचत्वारिंशद्विहीनांगुलैस्त्रिभिः । षष्टेऽथ सप्तमे पूर्णाः करा: पंचाशदाहिताः ॥ १४७॥ अष्टमे च त्रिपंचाशत् करा: त्र्यंगुलशालिनः । नवमेऽङ्गुलषट्काढयाः षट्पंचापंचाशत् कराः मताः ॥ १४८ ॥ एकोनषष्टिः हस्तानां दशमे सनवाङ्गुलाः । एकादशे च द्वाषष्टिः कराः सद्वादशाङ्गुला : 11१४६ ॥ इन नरकावासो के पहले प्रतर में नारको का शरीर मान एक इक्कतीस हाथ और छ: अंगुल का है, दूसरे में चौबीस हाथ नौ अंगुल का है। तीसरे में साढ़े तीस हाथ बारह अंगुल का है, चौथे में चालीस हाथ पंद्रह अंगुल का है। पांचवे में तैतीस
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy