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(११२) चौथे प्रतर में जघन्य से एक करोड़ पूर्व की है और उत्कर्षतः एक दशांश सागरोपम की स्थिति होती है । (१११)
एको भागः पंचमे च जघन्योत्कर्षतः पुनः । स्यातां द्वौ दशमौ भागौ तौ षष्टे च जघन्यतः ॥११२॥ उत्कर्षतश्च षष्टे स्युस्त्रयो भागास्त एव च ।
जघन्यतः सप्तमे स्युरूत्कर्षात्तच्चतुष्टयम् ॥११३॥ युग्मं ।।
पांचवे प्रतर में सागरोपम के एक दशांश जघन्य स्थिति है । और इसकी दो दशांश उत्कृष्ट स्थिति है, छट्टे में इतनी ही दो दशांशा सागरोपम जघन्य स्थिति है
और तीन दशांश सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । सातवें प्रतर में तीन दशांश सागरोपम जघन्य और चार दशांश सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति होती है । (११२-११३)
जघन्यतोष्टमे भागाश्चत्वार एव तादृशाः । .. उत्कर्षतश्चाष्टमे स्युर्भागा. पंच पयोनिधेः ॥११४॥..
आठवें प्रतर में नारक की आयु स्थिति जघन्यतः वही चार दशांश सागरोपम की है और उत्कर्षतः पांच दशांश सागरोपम की है । (११४)
पंचैव भागास्तादृक्षा नवमे तु जघन्यतः । उत्कर्षान्नवमे षट् ते दशमे षड् जघन्यतः ॥१५॥ उत्कर्षाद्दशमे सप्तैकादशे ते जघन्यतः ।। एकादशेऽष्ट चोत्कर्षात् द्वादशेऽष्ट जघन्यतः ॥११६॥ द्वादशे पुनरुत्कर्षान्नव भागास्त्रयोदशे । नव भागा जघन्येनोत्कर्षतः सागरोपमम् ॥१७७॥ विशेषकं ।
नौवें प्रतर में यह जघन्य स्थिति, अर्थात् पांच दशांश सागरोपम की है और उत्कृष्ट छह दशांश सागरोपम की है । दसवें में जघन्य छह दशांश सागरोपम की और उत्कृष्ट सात दशांश सागरोपम की है । ग्यारहवें प्रतर में सात दशांश सागरोपम की जघन्यं स्थिति है और आठ दशांश सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । बारहवें प्रतर में यही आठ दशांश की जघन्य और नौ दशांश की उत्कृष्ट स्थिति है । अन्तिम तेरहवें प्रतर में नौ दशांश सागरोपम की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति सम्पूर्ण एक सागरोपम की है । (११५-११७)
अस्यां लेश्या च कापोती जघन्योऽवधि गोचरः। . गव्यूतानां त्रयं सार्द्ध परस्तेषां चतुष्टयम् ॥११८॥