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(१११)
पणधणु अंगुल वीसं वारसधणु दुन्नि हन्थ सवा य । वासढि घणुह सट्टा बीया इसु पयर बुडि कम्मा ॥१०६॥
यहां आम्नाय इस प्रकार से है - प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी में देहमान उत्तरोत्तर प्रत्येक प्रतर में पूर्व पूर्व से साढ़े छप्पन अंगुल बढता है । यह हम लोग पहले देख गये है । अब दूसरे में के प्रत्येक प्रतर में इसी ही तरह से तीन हाथ और तीन अंगुल बढ़ता है, तीसरे में प्रत्येक के सात हाथ साढ़े उन्नीस अंगुल, चौथे में प्रत्येक के पांच धनुष्य वीस अंगुल, पांचवें में प्रत्येक बारह धनुष्य अढ़ाई हाथ और छटे में प्रत्येक के उत्तरोत्तर में साढ़े बासठ धनुष्य वढता है । (१०५-१०६)
यह देहमान कहा है अब देह स्थिति के विषय में कहते हैं :सहस्राणि दशाब्दानां प्रथम प्रतरे स्थितिः । जघन्या पुररूत्कृष्टा सहस्रानवतिः स्मृताः ॥१०७॥
पहले प्रतर में नारकी की स्थिति जघन्यतः दस हजार वर्ष की है और उत्कर्षतः नब्बे हजार वर्ष की है । (१०७) ।
दस लक्षाश्च वर्षाणा लक्षाणां नवति स्तथा । __क्रमाज्जघन्योत्कृष्टा च द्वितीय प्रतरेस्थिति ॥१०॥
: दूसरे प्रतर में स्थिति इसी तरह से अनुक्रम से दस लाख वर्ष की है और नब्बे लाख वर्ष की उत्कृष्ट से है । (१०८)
एवं च - नवत्यब्द सहस्रेभ्यः समयाद्यधिकस्थितिः। . .... दशाब्द लक्षोनायुश्च न संभवति नारकः ॥१०॥
इस कारण यह सिद्ध होता है कि किसी भी नारक की आयु स्थिति नब्बै हजार वर्ष से अधिक हो तो वह जघन्य दस लाख वर्ष की तो समझ ही लेना चाहिए दस लाख से कम तो नहीं होता । (१०६)
वर्षाणां नवतिर्लक्षाः पूर्व कोटिस्तथैव च ।
तृतीय प्रतरे ज्ञेया जघन्योत्कर्षतः स्थितिः ॥११०॥
तीसरे प्रतर में जघन्यतः नव्वे लाख वर्ष का है और उत्कर्षतः करोड़ पूर्व की स्थिति होती है । (११०)
जघन्या पूर्व कोटयेकां चतुर्थ प्रतरे स्थितिः । दशभागीकृतस्यैको भागोऽब्धेः परमा पुनः ॥१११॥