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________________ (११३) इस नरक में कापोत लेश्या होती है तथा अवधि ज्ञान के विषय में जघन्य साढे तीन कोश का और उत्कृष्ट चार कोश का होता है । (११८) उत्पद्यन्ते च्यवनते च सर्वदा नारका इह । कदाचित विरहोऽपि स्याज्जघन्यः समयं स च ॥११६॥ उत्कर्षतो मुहूर्तानां चर्तुविंशतिराहिता । सर्वांसां समुदाये च मुहूर्ता द्वादशान्तरम् ॥१२०॥ यहां नारकी सदा उत्पन्न होते हैं और च्यवन हुआ करते हैं । कभी अंतर हो तो कम से कम एक समय का होता है और अधिक से अधिक चौबीस मुहूर्त का अंतर रहता है जबकि सर्व नरक में पृथ्वी के समुदाय की अपेक्षा से तो बारह मुहूर्त का अंतर रहता है । (११६-१२०) एके न समयनैकादयोऽसंख्याव सानकाः । उत्पद्यन्ते च्यवन्तेऽस्यामेवं सर्वक्षितिष्वपि ॥१२१॥ ___ इति रत्नप्रभा पृथिवी ॥१॥ । इस नरक पृथ्वी में एक समय में एक से असंख्यात तक नरक में उत्पन्न होते हैं और च्यवन होता है । सर्व नरक पृथ्वी में इसी तरह ही होता है । (१२१) इस तरह रत्नप्रभा पृथ्वी का स्वरूप कहा (१) अथ वंशामिधा पृथ्वी द्वितीया परिकीर्त्यते । या शर्कराणां बाहुल्यात् गोत्रेण शर्करा प्रभा ॥१२२॥ अब दूसरी वंशा नाम की नरक पृथ्वी का वर्णन करता हूँ, वहां शर्करा बहुत होने के कारण इसका गोत्र नाम शर्करा प्रभा कहलाता है । (१२२) घमोदध्यादिकं सर्वं ज्ञेयमत्रापि पूर्ववत् । घनोंदघ्यादिवलयविष्कम्भस्तु विशिष्यते ॥१२३॥ यहां घनोदधि आदि सब बाते पूर्व के समान समझना, केवल घनोदधि आदि के वलयो का विष्कंभ में अन्तर है (१२३) स चैवम- योजनैकतृतीयांशयुतानि योजनानि षट् । वंशायामाद्यवलये विष्कम्भः परिकीर्तितः ॥१२४॥ पादौनानि योजनानि पंच मानं द्वितीयके । योजनं योजनस्य द्वादशांशाः सप्त चान्तिमे ॥१२५॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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