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( XV )
तप गच्छनायक मुक्ति दायक श्री विजय देव सूरीश्वरो । तस पट्टदीपक मोहजिपक, श्री विजय प्रभसूरी गणधरो ॥ श्री कीर्ति विजय उवज्झाय सेवक, विनय विजय वाचक कहे । षडावश्यक जे आराधे तेह शिव संपद लहे ॥
(२२) चैत्य वन्दनः - श्री सीमन्धर स्वामी की' श्री सीमन्धर वीत राग' इस चैत्य वन्दन की तीन गाथायें है।
(२३) उपधान स्तवन :- इस स्तवन में दो ढ़ाल और कलश को मिलाकर कुल २४ गाथा है । उपधान कराने का क्या कारण है? और विशेष माला पहराने संम्बंधी खूब विवेचना की है। इसकी पिछली ढ़ाल ' भाई हये माला पहिरावो' यह बहुत ही प्रसिद्ध है।
(२४) श्रीपाल राजानो रासः - उपाध्याय ' श्री विनय विजय जी' महाराज साहब की . यह संस्कृत में रचित अद्भुत कृति हैं। भावनाओं की सजावट, संस्कृत का गेय काव्य और शान्त सुधा रस का मुख्य स्थान है। वर्ष में दो बार चैत्र तथा अश्विन मास में नव पद की आराधना करते समय ओली में सुदि सप्तमी से सुदि पंदरमी तक विद्वानों द्वारा नौ दिन तक प्रत्येक गाँव-नगर के सभा व कुटंब के समक्ष वाँचा जाता है।' श्री पाल रास' का प्रारंम्भ संवत् १७३८ के रांदेर के चातुर्मास
श्री संघ की विनती पर किया गया था। इसके प्रथम खंड़ की पाँचवी ढ़ाल की रचना करते-करते २० की गाथा के लिखने तक जैन शासन के महान प्रभावक इस ग्रन्थ के रचियता परम पूज्य उपाध्याय श्री विनय विजय जी गणि का देवलोक गमन हो गया था। इसके अधूरे कार्य को पूरा करने के लिये उपाध्याय श्री के सहअध्यायी उपाध्याय श्री यशो विजय जी मं०सा० ने आगे आकर कार्य को संभाल लिया। कुल चार खंड़ युक्त १२५० गाथा वाले महाकाव्य को पूरा . किया। इस प्रकार ७४८ गाथा में पूज्य विनय विजय कृत तथा शेष ५०२ गाथाये पूज्य यशोविजय कृत है I
(२५) श्री कल्प सूत्र की सुबोधिका टीका:- श्री उपाध्याय जी कृत कल्प सूत्र की सुबोधका टीका भी प्रसिद्ध ग्रन्थ है । यह ६०० श्लोक प्रमाण ग्रन्थ पयुषण पर्व के दिनों में तप गच्छ समुदायों में बड़े ही सम्मान, श्रद्धा व उल्लास के साथ सर्वत्र वाँचने के काम आता है।
(२६) लोक प्रकाश :- 'लोक प्रकाश' जैन दर्शन का एक अद्भुत एवं विशालकाय ग्रन्थ है। इसमें विवेच्य विषय द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव को ३७ सर्गों के रूप में लगभग १८००० श्लोकों में आबद्ध किया गया है। इसमें जैन दर्शन के सभी