________________
(xvi)
पहलुओं का सुन्दर दिग्दर्शन कराया गया है। लगभग १४०० साक्षी पाठ एवं ७०० अन्य प्रामाणिक ग्रन्थों के उद्धरणों से ग्रन्थ की उपादेयता और भी बढ़ जाती है। विषय महान है, ग्रन्थ भी महान है और उद्देश्य भी महान है। ग्रन्थ आपके हाथों में है। सुधार कर पढ़ेगें तो निश्चय कल्याण होगा ग्रन्थ की रचना काल तिथि सर्ग ३७ की प्रशस्ति श्लोक ३६ के अनुसार निम्नवत् है । वसुरवाश्वेन्दु( १७०८) प्रमिते वर्षे जीर्ण दुर्ग पुरे। ... . राघोऽजवल पंचम्या ग्रन्थः पूर्णेऽयमजनिष्ट ॥सर्ग ३७ श्लोक ३६॥ .. इस प्रकार संवत्१७०८ वैशाख सुदि ५ (ईस्वी सन् १६५२) के दिन जीर्ण पुरे. (जूनागढ़) में यह महान ग्रन्थ पूर्ण किया गया। जैन जगत के पूज्य, महान शासन प्रभावक, आध्यात्म ज्ञानी, महान लेखक एवं पर उपकारी उपाध्याय श्री विनय विजय जी महाराज साहब संवत् १७३८ में रांदोर नगर के चार्तुमासिक प्रवास काल में काल धर्म को अपनाकर गोलोकं वासी बने। उपाध्याय श्री जी के जीवन चरित्र के सम्बंध में कोई प्रामाणिक ग्रन्थ मिलता नहीं। कुछ छुट-पुट घटनायें- लोक कथन या उनके द्वारा लिखे गये 'लोक प्रकाश''नयकर्णिका' 'शान्त सुधारस' आदि के बिखरे हुए सन्दर्भो को जोड़ कर ही कुछ समझने व जानने का प्रयत्न किया गया है।
- मुनियुग चन्द्र विजय