SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०३) सारे समुद्र जल का पान करने पर भी शान्त न हो इस तरह इनकी तालु, कंठ तथा जीभ आदि की प्यास-शेष वाली तृषा होती है । (६०) क्षुरिकाद्यैरप्यजय्याकुण्डू देहेऽति दुःखदा । अनन्त गुणितोऽत्रत्याद्यावज्जीवं ज्वरस्तथा ॥१॥ चाकू आदि से खुजलाने पर भी शान्त न हो इस तरह इनके शरीर पर अत्यंत दु:खदायी खुजली होती है और बुखार भी इनको अपने से अनन्त गुणा और वह भी जीवन तक होता है। . अनन्तघ्नं पारवश्यं दाह शोकभया द्यपि । कष्टं विभंगमप्येषां वैरिशस्त्रादि दर्शनात् ॥६२॥ और इनको पराधीनता, दाह-जलन शोक तथा भय भी अनंत गुणा होता है । इस तरह इनकी दस प्रकार वेदना का वर्णन किया । तथा वैरी शस्त्र आदि देखकर इनको विभंगज्ञान होता है वह भी उनको कष्टदायक होता है । (६२) तत्रत्यक्ष्माम्भोऽग्नि मरूत् द्रुम स्पर्शोऽति दुःखदः। अग्निस्त्वत्रोप चरितः क्ष्मादि कायास्तु वास्तवाः ॥६३॥ तथा वहां पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा वनस्पति का स्पर्श भी अति दुःखदायक होता है । यहां अग्नि उपचरित तथा पृथ्वी आदिक वास्तविक रूप जानना । (६३) तथोक्तम् - रयणप्प भापुढ विनेरइ आणं भन्ते केरिसयं पुढविकासं पच्चणुष्भव माणा विहरन्ति । गोयम अणिट्ठजाव अमणामं एवं जाव अहो सत्तमा पुढविणेरइ आ एवं वाउफांस जाव वणस्सइफांस । इति भगवत्याम् शतक १३ उद्देश ॥ इस सम्बन्ध में श्री भगवती सूत्र के तेरहवें शतक के चौथे उद्देश में उल्लेख मिलता है वह इस प्रकार है - हे भगवन्त ! रत्नप्रभा नरक की पृथ्वी का स्पर्श कैसा लगता है ? गौतम के प्रश्न का उत्तर वीर परमात्मा ने कहा- हे गोतम ! वह अनिष्ट से वह अन्तिम अमनोज्ञ तक इस तरह नीचे अन्तिम सातवी नरक के नारकी जीव को भी वायु के स्पर्श से लेकर अन्तिम वनस्पति स्पर्श तक भयंकर दुःख अनुभव होता है।
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy