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अर्थात् धम्मा नरक में सर्व मिलाकर तीस लाख नरकावास होते हैं । यह नरकवास अन्दर से गोलाकार और बाहर से चतुष्कोण है । (२१)
यदुक्त प्रज्ञापनायां - 'तेण णरगा अन्तोवट्टा वाहिंचउरंसा । इति ॥
प्रज्ञापना सूत्र में भी कहा है कि - नरकावास अन्दर से गोलाकार तथा बाह्य के भाग से चतुष्कोन आकृति का होता है।
पीठादि सर्वं चापेक्ष्य वृत्ताः स्युः केऽपि केऽपि च । त्र्यस्रश्च चतुरस्राश्च पांक्तेया नरकालयाः ॥२२॥
पीठ आदिक सर्व की अपेक्षा से तो कितने गोलाकार कितने त्रिकोण और कितने चतुष्कोण होते हैं । (२२)
वृत्ता एवं भवन्त्यत्र सर्वेऽपि नरकेन्द्रकाः । ततश्चानन्तरं त्र्यस्त्रा नूनमष्टासु पंक्तिषु ॥२३॥ चतुरस्रस्ततो वृत्ताः त्र्यस्त्राश्चेति यथाक्रमम् । ज्ञेयाः पुष्पावकीर्णास्तु नाना संस्थान संस्थिताः ॥२४॥
सर्व नरकेन्द्र तो गोलाकार ही है उसके बाद आठ पंक्तियों के आवास त्रिकोण है .उसके बाद के चतुष्कोण है, और उसके बाद वापिस गोलाकार, त्रिकोण आदि अनुक्रम से है जबकि पुष्पावकीर्ण आवास तो विविध आकृति वाले हैं । (२३-२४) .
योज़नानां सहस्राणि त्रीणि सर्वेऽपि चोच्छ्रिताः । अधोमुखन्यस्त कुंडाकाराः कारागृहोपमाः ॥२५॥
इन सर्व आवासों की ऊँचाई तीन हजार योजन है, अधोमुख में कुंड रहा हो, इस तरह वे रहे है और मानो बन्दी खाने में हो इस तरह रहते हैं । (२५)
योजनानां सहस्रं च पीठे बाहल्यमीरितम् ।। सहस्रमेकं शुधिरं स्तुपिकैक सहस्त्रिका ॥२६॥
पीठिका के भाग में उनकी एक हजार योजन मोटाई है बीच में एक हजार योजन खाली भाग है और एक हजार योजन का स्तूप है । (२६)
यदुक्तम् - हेट्टा घणा सहस्सं उप्पिं संकोयओ सहस्सं तु ।
___मझझे सहस्स छुसिरा तिन्नि सहस्सूसिया निरया ॥२७॥ अन्य स्थान पर भी इस विषय में कहा है कि नीचे एक हजार योजन