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तथाहि - सीमन्तकः स्यात्प्रथमे द्वितीये रोरकाभिधः ।
• भ्रान्तस्तृतीये उद्भ्रान्तश्चतुर्थे प्रस्तटे भवेत् ॥६॥ संभ्रान्तः पंचमेज्ञेयः षष्टेऽसंभ्रान्त संज्ञकः । विभ्रान्तः सप्तमें तप्तसंज्ञितः पुनरष्टमे ॥७॥ नवमे शीतनामा स्याद्वक्रान्तो दशमे भवेत् ।। एकादशे त्ववक्रान्तो विक्रान्तो द्वादशे भवेत् ॥८॥ त्रयोदशे रोरूकः स्यादेवमेते त्रयोदश । प्रति प्रतरमेभ्यश्च निर्गता नरकालयाः ॥६॥
प्रत्येक प्रस्तर पर एक नरकेन्द्र है । उनके प्रत्येक के नाम इस तरह है - प्रथम प्रस्तर में सीमन्तक, दूसरे में रोरक, तीसरे में भ्रान्त, चौथे में उद्भ्रान्त, पांचवे में संभ्रान्त, छठे में असंभ्रान्त, सातवें में विभ्रान्त, आठवें में तप्त, नौवे में शीत, दसवें में वक्रान्त, ग्यारहवें में अवक्रान्त, बारहवें में विक्रान्त और तेरहवें में रोरूक, इस तरह तेरह है । इससे प्रत्येक प्रतरप्रति नरकवास निकला है । (५ से ६)
प्रथम प्रतरे तत्र सीमन्त नरके न्द्रकात् । निर्गता नरकावासावल्योदिक्षु विदिक्षु. च ॥१०॥ एकोनपंचासशद्वासा दिशां नरकपंक्तिषु । अष्ट चत्वारिंशदेते विदिक् नरकपंक्तिषु ॥११॥ त्रिशत्येकोननवतिः प्रथमे सर्वपंक्तिगाः । प्रतिप्रतर मे कै कन्यूना अष्टापि पंक्तयः ॥१२॥
इसमें प्रथम प्रस्तर या प्रतर में सीमन्तक नरकेन्द्र से नरकावास की आठ पंक्तियां निकलती हैं । चार प्रत्येक दिशा में और चार प्रत्येक विदिशा में । तथा चार दिशाओं की प्रत्येक पंक्ति में उनचास आवास है और चार विदिशाओं की प्रत्येक पंक्ति में अड़तालीस आवास है । अत: इस प्रथम प्रस्तर में सर्व आठ पंक्तियों में सब मिलाकर तीनसौ नवासी (३८६) आवास होते हैं । और उसके बाद अन्य प्रस्तरों की आठ पंक्तियों में क्रमशः एक एक आवास कम होते जाते हैं । (१०-१२)
सैंकाशीतिस्त्रिशती च त्रिशती च त्रिसप्ततिः । त्रिशती पंचषष्ठिश्च स्यात् द्वितीयादिषु त्रिषु ॥१३॥