________________
(६२) . .
इनको चार लेश्या होती है कृष्ण लेश्या, नील लेश्या तेजो लेश्या और कापोत लेश्या । अन्तिम दो लेश्या नहीं होती, क्योंकि संसार स्वभाव में उनको नहीं होती है । (३०२)
किंचिन्यूनार्धपाथोधिजीविनोऽवधिचक्षुषा । संख्येयानि योजनानि पश्यन्ति भवनाधिपाः ॥३०३॥ परे पुनरसंख्यानि तान्येवं तत्र भावना । . यथा यथायुषो वृद्धिः क्षेत्र वृद्धिस्तथा तथा ॥३०४॥
इन भवन पति निकाय के देवों में जिनका आयुष्य आधे सागरोपम से कम होता है, वह अवधिज्ञान द्वारा संख्यात योजन तक देख सकता है । जबकि अन्य असंख्य योजन तक देख सकता है । इस कारण से जैसा जैसा आयुष्य अधिक होगा उतना-उतना देखने का क्षेत्र प्रदेश भी अधिक होता है । (३०३-३०४) .
एवं च अवधेर्विषयो नागादिषु संख्येय योजनः। असुरेषुत्वसंख्येय द्वीप वार्द्धिमितो गुरुः ॥३०५॥
और इस कारण से असुर कुमार जाति वाले उत्कृष्ट से असंख्य द्वीप समुद्र तक देख सकते हैं । जबकि अन्य नौ जाति के देव उत्कृष्ट संख्यात योजन तक देख सकते हैं । (३०५) .
सर्वेष्वपि लघुः पंचविंशत्या योजनैर्मितः । ... विषयः स्यात् स च दशसहस्रवर्षजीविषु ॥३०६॥
सबसे कम में कम पच्चीस योजन तक देख सकते हैं, और इतना देखने वाले की दस हजार वर्ष की आयुष्य होती है । (३०६)
भवनेशा व्यन्तराश्च पश्यन्त्यवधिना बहु । ऊर्ध्वं यथासौ चमरोऽद्राक्षीत्सौधर्मवासवम् ॥३०७॥ . अधस्तिर्यक् चाल्यवेवमाकृतिर्जायतेऽवधेः । ..
तप्रस्येवायतत्र्यस्रस्तप्रः स विदितो जने ॥३०८॥
भवनपति देव और व्यन्तरदेव अपने अवधिज्ञान के बल-से ऊँचे बहुत दूर तक देख सकते है । जैसे कि चमरेन्द्र सौधर्म इन्द्र को देख सकता है । परन्तु तिरछे और नीचे तो बहुत अल्प क्षेत्र प्रदेश देख सकते है और इस तरह होने से इस