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(८६) एवं सामानिकास्त्रायस्त्रिंशकाः लोकपालकाः । एषामग्रमहिष्योऽपि कर्तु विकुर्वणा क्षमाः ॥२८४॥ अल्पाल्पकान् किन्तु तिर्यक् द्विपाब्धीन् पूरयन्त्यमी।। प्राच्यपुण्यप्रकर्षाप्त स्वस्वलब्ध्यनुसारतः ॥२८॥
इन अठारह इन्द्रों के समान सामानिक लोकपाल त्रायस्त्रिंशक और पटरानियां भी नये नये रूप धारण करने में समर्थ होते हैं । परन्तु ये सभी पूर्वजन्म के पुण्य प्रकर्ष से प्राप्त हुई लब्धि के अनुसार तिर्छा लोक में थोड़े ही द्वीप समुद्र भर सकती है विशेष नहीं । (२८४-२८५)
तथाहुः धरणेणं भंते नाग कुमारिन्दे नाग कुमार राया।इत्यादि भगवती सूत्रे।
अर्थात यह बात श्री भगती सूत्र में कहा है। जम्बूद्वीपं मेरूमूर्ध्नि धृत्वा छत्राकृतिं क्षणात् । कर्तुमेषामन्यतमः क्षमः स्वबललीलाया ॥२८६॥
तथा इन अठारह में प्रत्येक इन्द्र में बल इतना सारा है कि वह चाहे तो जम्बूद्वीप को उठाकर मेरूपर्वत के शिखर पर छत्राकार रूप में रख सकता है । (२८६)
इत्यं प्रत्येकं प्रागुक्ता चैषा शक्तिः देवेन्द्र स्तवे । अर्थात् ऐसी शक्ति की बात 'देवेन्द्र स्तव' में कही गई है। शक्तेविषय एवायं नाकारोन्न करिष्यति । न चैवं कुरूते कश्चिद्विकुर्वाणादिशक्तिवत् ॥२८७॥
इतना सारा इन में करने का सामर्थ्य होता है । इस तरह कहने का सामर्थ्य है। वह कभी ऐसा उन्होंने नहीं किया है, ऐसा करना भी नहीं है तथा ऐसा करने वाले नहीं है । (२८७)
उत्पद्यन्ते परे ऽप्येवं निकायेषु नवस्विह ।। सुखानि भुंजते देवाः प्राच्य पुण्यानुसारतः । २८८॥
इन नौ निकाय में अन्य भी देव उत्पन्न होते है वे भी पूर्व पुण्य के अनुसार वहां सुख भोगते है । (२८८)
दशानामसुरादीनां भवनाधिपनाकिनाम् । अश्वत्थाद्याश्चैत्यवृक्षा दश प्रोक्ता यथाक्रमम् ॥२८६॥