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(८५) इन्द्रौ विद्युत्कुमारेषु हरिकान्तहरिस्सहौ । तप्त स्वर्णारूणौं नीलाम्बरौ वज्रांकभूषणौ ॥२५७॥ प्रभस्तथा सुप्रभश्च प्रभाकान्तस्तथापरः । सुप्रभाकान्त इत्येते लोकपालाः स्युरेतयोः ॥२५८॥ एकया विद्युता जम्बूद्वीपं हरिः प्रकाशयेत् । विद्युत्कुमाराधिपतिः साधिकं तं हरिस्सहः ॥२५६॥
विद्युत कुमार जाति के देवों के दोनों दिशा के हरिकान्त और हरिस्सह नाम के इन्द्र है इनका तपाया हुआ सुवर्ण सद्दश लालवर्ण है, नीले वस्त्र है और वज्र के चिन्ह से अंकित मुकुट है इनको प्रभु सुप्रभु प्रभाकांत और सुप्रभाकांत इन नाम के चार लोकपाल हैं दोनों विद्युत कुमार इन्द्रों में जो हरिकान्त है वह विद्युत के एक बार ही चमकाने से सारे जंबूद्वीप में प्रकाश ही प्रकाश कर सकता है, और हरिस्सह इससे भी अधिक विभाग को प्रकाशमय कर सकता है । (२५७-२५६)
स्यातामग्निकुमारेन्द्रावग्निशिखग्निमाणवौ । तप्तस्वर्णतन् नीलवस्त्रौ कुम्भांकम् भूषणौ ॥२६०॥ तेजस्तेजः शिखस्तेजः कान्त स्तेजः प्रभोऽपि च । एतयोः स्युर्लोकपाला विशिष्टोत्कृष्ट बुद्धयः ॥२६१॥ एकाग्निज्वालया जम्बूद्वीपं प्लोषयितुं क्षमः । सुरेन्द्रोऽग्निशिखस्तं सातिरेकमग्निमाणवः ॥२६२॥
अग्निकुमार जाति के देवों के दोनों दिशा के दो इन्द्र, अग्नि शिख और अग्नि माणव नाम के हैं। इनका तप्त सुवर्ण समान वर्ण है, इनके नीले वस्त्र हैं और कुम्भ के चिन्ह से अंकित मुकुट है । इनके तेज, तेजः शिख, तेज:कान्त और तेजःप्रभ नाम के चार महा बुद्धिशाली लोकपाल है । अग्नि शिख में एक ही ज्वाला द्वारा समस्त जम्बूद्वीप को जला देने का सामर्थ्य होता है जबकि अग्नि माणव में इससे भी विशेष सामर्थ्य होता है । (२६०-२६२)
इन्द्रौ द्वीप कुमाराणां पूर्णो वसिष्ट इत्युभौ । तप्त स्वर्ण प्रभौ नीलक्षोमौ सिंहाकभूषणौ ॥२६३॥ रूपो रूपांशश्च रूपकान्ते रूप प्रभोऽपि च । लोकपाला अमी द्वीपकुमार चक्रवर्तिनोः ॥२६४॥