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________________ (८४) अष्टानां दाक्षिणत्यानां विज्ञेया धरणेन्द्रवत् । . अष्टानामौत्तराहाणां भूतानन्द सुरेन्द्रवत् ॥२५०॥ विशेषकं । जिसका वर्णन अब करना है उन आठ निकाय के दक्षिण दिशा के इन्द्रो की स्थिति, पर्षदा, देव देवियों की संख्या और स्थिति, लोक पाल और उनकी स्त्रियों के नाम, सामानिक तथा आत्मरक्षकों की संख्या, पटरानियों की संख्या, इनके नाम और परिवार ये सब धरणेन्द्र के समान जानना। और इसी तरह उत्तर दिशा के आठ इन्द्रों की सर्व बातें भूतानंद नाम के इन्द्र तुल्य समझना । (२४८-२५०) केवलं लोकपालानां सुरेन्द्राणां च नामसु । विशेषोऽस्ति स एवाथ लाघवाय प्रतन्यते ॥२५१॥ दक्षिणोत्तरयोलोकपालानां किन्तु नामस । . सर्वत्रापि व्यतीहारः स्यात्तृतीय तुरीययोः ॥२५२॥ दक्षिणस्यां तृतीयो यः तुरीयः स भव्युदक् । दाक्षिणात्यतुरीयस्तु स्यादुदीच्यां तृतीयकः ॥२५३॥ केवल लोकपाल और इन्द्र के नाम में अन्तर है । वह संक्षेप में कहते है - दक्षिण और उत्तर दिशा के लोकपाल के नाम में सर्वत्र तीसरे और चौथे में फेरफार है। दक्षिण दिशा का जो तीसरा है, वह उत्तर दिशा का चौथा है और दक्षिण को जो चौथा है, वह उत्तर का तीसरा है । (२५१-२५३) वेणुदेवो वेणुदारी स्वर्णाभौ श्वेतवाससौ । द्वौ सुपर्णकुमारेन्द्रौ गरुडांकित भूषणौ ॥२५४॥ चित्रो विचित्रश्च चित्रपक्षो विचित्रपक्षकः । . एतयोरिन्द्रयोर्लोकपालाः स्युरीति नामतः ॥२५५॥ जम्बूद्वीपं वेणुदेवः पक्षणावरितुक्षमः । एनमेव सातिरेके वेणुदारी सुपर्णराट् ॥२५६॥ सुपर्ण कुंमार जाति के देवो का दोनों दिशा के वेणुदेव और वेणुदारी नाम के दो इन्द्र है । इनका पीला वर्ण है श्वेतवस्त्रधारी और गरुड के चिन्ह से अंकित मुकुट को धारण करने वाले होते हैं । इनके चित्र, विचित्र चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष नाम के चार लोकपाल है । वेणुदेव में अपनी एक पंख से सम्पूर्ण जम्बूदीप को आच्छादित (ढक) कर देने का सामर्थ्य है और वेणुदारी में इससे अधिक सामर्थ्य होता है । (२५४-२५६)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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