SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८३) सप्त सेनान्योऽस्य दक्षः सुग्रीवश्च सुविक्रमः । श्वेतकंठः क्रमानंदोत्तरो रतिश्च मानसः ॥२४३॥ सैन्य क्रमस्तु प्रागुक्त एव। और इनकी सात सैना पूर्व के समान है, इनके अनुक्रम से १- दक्ष २- सुग्रीव ३- सुविक्रम, ४- श्वेतकंठ ५- नन्दोत्तर, ६- रति और ७- मानस इन नाम के सात अधिपति है । (२४३) षड्भिः सहस्त्रैरिन्द्रोऽयं सामानिकरूपासितः । त्रायस्त्रिंशः लोकपालै पार्षदैः सैन्यसैन्यषैः ॥२४॥ सहस्रः षड्भिरेकैकदिश्यात्मरक्षकैः श्रितः । चतुर्विंशत्या सहस्तैरित्येवं सर्व संख्यया ॥२४५॥ चत्वारिंशच्च भवनलक्षाणि परिपालयन् । साम्राज्यं शास्ति नागानां न्यूनद्विपल्य जीवितः ॥२४६॥ त्रिभिर्विशेषकम् । इसके अनुसार छः हजार सामानिक देव तथा लोकपाल और त्रायस्त्रिंशक देव, सभा सदस्य, सैन्य और सेनाधिपति इसकी हमेशा सेवा करते रहते हैं और प्रत्येक दिशाओं में छः हजार इस तरह चारों दिशाओं में कुल चौबीस हजार देव व अंगरक्षक रहते हैं । इस तरह साहिबी वाला, लगभग दो पल्योपम के आयुष्य वाला नागेन्द्र चालीस लाख भवनों का परिपालन करते हुए नागनिकाय पर साम्राज्य भोग रहा है । (२४६) देहवर्ण वस्त्र चिन्होत्कृष्ट स्थित्यादिकं भवेत् । सर्वेषां भवनेशानां स्वजातीय सुरेन्द्रवत् ॥२४७॥ सर्व भवनपति देवों का शरीर, वर्ण, वस्त्र, चिन्ह तथा उत्कृष्ट आयुष्य स्थिति आदि अपने-अपने जाति के इन्द्रों के समान होती है । (२४७) इन्द्राणां वक्ष्यमाणेषु निकायेष्वष्टसु स्थितिः । तिसृणां पर्षदां देवदेवीसंख्याथ तत्स्थितिः ॥२४८॥ लोकपाल प्रिया भिख्याः सामानिकात्मरक्षिणाम् । संख्याग्रमहिषीणां च संख्यानाम परिच्छदाः ॥२४६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy