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________________ (८२) इस तरह दक्षिण दिशा के नाग कुमार के इन्द्र की बात की। . इन्द्रो नागनिकायस्योदीच्योऽथ परीकीर्त्यते । भूतनन्दोऽस्य पर्षत्सु तिसृष्वपि सुराः कमात् ॥२३६॥ पंचाश दथ षष्टिश्च सप्ततिश्च सहस्रकाः । पल्यं देशोनमर्धं च पल्यस्य साधिकं तथा ॥२३७॥ अर्धं पल्योपमं चैषां स्थितिः क्रमात् शतद्वयम। ... पंचविशं द्वे शते च शतं द्वेव्यः क्रमादिह ॥२३८॥ विशेषकं ॥ अब उत्तर दिशा के नाग कुमारों का इन्द्र भूतानंद है, उसके विषय में कहते हैं । इस भूतानंद की भी तीन पर्षदा है । प्रत्येक पर्षदा में अनुक्रम से पचास हजार, साठ हजार और सत्तर हजार देव है, जिनकी आयुष्य स्थिति क्रमशः एक पल्योपम से कुछ कम, आधा पल्योपम से कुछ अधिक तथा सम्पूर्ण आधा पल्योपम है । इन तीनों पर्षदाओं में अनुक्रम से दो सौ पच्चीस दो सौ और एक सौ देवियां है । (२३६-२३८) आसां पल्योपमस्याई देशोनमर्धमेव च । सातिरेकश्च तुर्यांशः स्थिति ज्ञेयायथाक्रमम् ॥२३६॥ उसकी आयुष्य स्थिति अनुक्रम से आधा पल्योपम, आधे पल्योपम से कुछ कम, तथा एक चतुर्थांश पल्योपम से कुछ अधिक होती है । (२३६) रूपा रूपांशा सुरूपा प्रेयस्यो रूपकावती । रूपकान्ता तथा. रूपप्रभास्य नागचक्रिणः ॥२४०॥ और इसकी १- रूपा २- रूपांशा ३- सुरूपा ४- रूपकावती ५- रूपकान्ता और ६- रूपप्रभा नाम की छह पटरानियां होती है । (२४०) आसां परिच्छदः प्राग्वल्लोकपालास्तथास्य च । ... काल कौल शंखशैलाः स्यु पालोपषदा अमी ॥२४१॥ सुनन्दा च सुभद्रा च सुजाता सुमना इति । एषां चतुर्णी प्रत्येकं चतस्रो दयिता स्मृताः ॥२४२॥ - इनका परिवार पूर्वोक्तवत् होता है और इनके काल पाल, कौलपाल, शंखपाल, और शैलपाल नाम के चार लोकपाल होते हैं । इनके प्रत्येक को सुनन्दा, सुभद्रा, सुजाता और सुमना इस तरह चार-चार पटरानियां होती है । (२४१-२४२)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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