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________________ (७६) शेष सब भवनेन्द्रों की पर्षदा आदि नाम धरणेन्द्र के समान जानना । इस तरह दूसरे अंग में कहा है । (२१६) स्युः षडग्रमहिष्योऽस्य अला मक्का शतेरिका । सौदामिनीन्द्रा च धनविद्युतेति च नामतः ॥२१७॥ और धरणेन्द्र को छह अग्रमहिषी - पटरानियां है १- अला २- मक्का ३तेरिका ४ - सौदामिनी ५- इन्द्रा और ६- धनविद्युता नाम है । (२१७) षड्भिः सहस्त्रैः देवीनां प्रत्येकं परिवारिताः । षट् सहस्राणि देवीनां विकुर्वितुमपि क्षमाः ॥२१८॥ I प्रत्येक पटरानी के छः-छः हजार देवियों का परिवार है । क्योंकि ये प्रत्येक इतनी ही देवियां बना सकती है । (२१८) शेषाणामप्यथेन्द्राणामष्टानां यामम्यदिग्भुवाम् । षड् षडग्रमहिष्यः स्युरेतैरेव च नामभिः ॥२१६॥ ये शेष और आठ दक्षिणात्य इन्द्रों की भी इसी ही नाम की छः-छः पटरानियां होती है । (२१६) काशीनगर वास्तव्याश्चतुष्पंचाशदप्यम्ः । वृहत्कन्याः स्वाभिधानुरूपाख्यपितरोऽभवन् ॥२२०॥ पार्श्व पाश्र्वदत्त दीक्षाः शिक्षिता, पुष्प चूलया । विराद्धसंयमाः पक्षं संलिख्य च मृतास्ततः ॥ २२१ ॥ स्वाख्यावतंसभवने स्वाख्यसिंहासन स्पृशि । देवीत्वेन समुत्पन्नाः सार्धपल्यमितायुषः ॥ २२२॥ युग्मं । ये सारी पूर्वजन्म में काशी नगरी में अपने नाम सद्दश नाम वाले माता-पिता की बड़ी उम्र कुमारिका थी । इन्होंने श्री पार्श्वनाथ भगवान केपास व्रत अंगीकार करके पुष्पचूला आर्या के पास में अभ्यास किया था परंतु संयम की विराधना कर वे आधे मास की संलेखनापूर्वक मृत्यु प्राप्त कर वहां से अपने-अपने नाम समान नाम युक्त सिंहासनवाली अवतंस भवन में ढेड पल्योपम की आयुष्य वाली देवियां हुई है । (२२०-२२२) भूतानंदाद्योत्तराहे न्द्राणामपि मनः प्रियाः । सन्ति षड् षड् वक्ष्यमाणै रूपाद्यैः षड्भिराह्नयैः ॥२२३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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