SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८०) . भूतानंदादिक उत्तर दिशा के इन्दु हैं उनकी भी छ:-छ: पटरानियां है। इनके रूपा आदि नाम है वह आगे कहा जायेगा । (२२३) चतुष्पंचाशतोऽप्यूनपल्योपमयुगायुषाम् । प्रागासां नगरी चम्पा बाच्चा शेषमिहोक्तवत् ॥२२४॥ उन चव्वन का आयुष्य दो पल्योपम से कुछ कम है और ये पूर्वजन्म में चम्पापुरी की रहने वाली थीं । शेष वृत्तान्त पूर्व के समान है । (२२४) कालपाल: कोलपालः शैलपालोऽस्य च क्रमात् । शंखपालश्च चत्वारो लोकपालः सुरेशितुः ॥२२५॥ . अशोका विमला चैव सुप्रभा च सुदर्शना । .' एषां चतस्रो दयिताः प्रत्येकमेतद्वाह्वयाः ॥२२६॥ इस इन्द्र के १- काल पाल २- कोलपाल ३- शैलपाल और ४- शंखपाल इन नाम वाले चार लोकपाल हैं । इन प्रत्येक को अशोका, विमला, सुप्रभा और सुदर्शना नाम की चार-चार पटरानियां है । (२२५-२२६) भद्रसेनोऽस्य च यशोधरः सुदर्शनः क्रमात् । नीलकंठस्तथानन्दो नन्दनस्तेतलीति च ॥२२७॥ पंत्तिबाजीभमहिषरथांख्यानां यथाक्रमम् । . नट गन्धर्वयोश्चापि सैन्यानामधिपाः स्मृताः ॥२२८॥ युग्मं । तथा इस धरणेन्द्र की १- पैदल, २- अश्व, ३- हस्ती, ४- महिष, ५- रथ, ६- नट और ७- गंधर्व - ये सात प्रकार की सेना है और इसके अनुसार क्रम से भद्रसैन, यशोधर, सुदर्शन, नीलकंठ, आनंद, नंदन और तेतली बरन नाम के सेनाधिपति है । (२२७-२२८) अस्याद्य कच्छायां पत्तिनेतुर्देवसहस्रकाः । स्युरष्टाविंशतिः कच्छाः षडन्या द्विगुणाः क्रमात् ॥२२६॥ पैदल सेना के अधिपति के हाथ के नीचे पहली कच्छा में अट्ठाईस हजार देव है और शेष छ: कच्छा में अनुक्रम से उत्तरोत्तर दुगने-दुगने देव होते हैं । (२२६) एतदेव च सप्तानां कच्छानां मानमूह्यताम् । . उक्तान्यभवनेशेन्द्रपत्तिसैन्याधिकारिणाम् ॥२३०॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy