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श्री पार्श्वस्तोत्रंमंत्राख्यास्मरणात्तुष्ट मानसः । अद्यापि शमयन् कष्टमिष्टानि वितरत्यसौ ॥२१०॥
आज भी यदि हम लोग श्री पार्श्वनाथ भगवान का स्तोत्र या मंत्र अथवा नाम मात्र का भी स्मरण करें तो यह धरणेन्द्र संतुष्ट होकर अपने कष्ट शान्त कर देते हैं और अपना इच्छित पूर्ण करते हैं । (२१०)
षष्टिश्च सप्ततिश्चैवाशीतिः क्रमात् सहस्रकाः। ..... पर्षत्रये स्युदेर्वानां स्थितिश्चैवा यथा क्रमम् ॥२११॥ पल्यस्यार्ध सातिरेकमधू देशोनितं च तत् । .... सपंचसप्तति शतं पंचाशं पंचविंशकम् ॥२१२॥ देव्यः पर्षत्सु देशोनं पल्यस्यामिह स्थितिः ।। साधिकः पल्यतुर्यांशः तुर्यांश एव च क्रमात् ॥२१३॥ विशेषकं ।
इन धरणेन्द्र की तीन पर्षदा है । उसमेंअनुक़म से साठ हजार; सत्तर हजार और अस्सी हजार देव है। तीनों पर्षदा के देवों की आयुष्य स्थिति अनुक्रम से १आधा पल्योपम से कुछ अधिक,२- ठीक आधा पल्योपम और ३- आधा पल्योपम से कुछ कम है। तीनों पर्षदा की देवियां अनुक्रम से पौने दो सौ, ढेड़ सौ, और सवा सौ है । इनकी आयुष्य स्थिति अनुक्रम से १- आधा पल्योपम से कम २- एक चतुर्थांश पल्योपम से सहज अधिक और ३- एक चतुर्थांश पल्योपम होता है । (२११-२१३)
समिता चंडा जयाख्याः स्युः सभाः धरणेशितुः।
अपि सामानिकत्रायस्त्रिंशानामेतदाह्वयाः ॥२१४॥
धरणेन्द्र की जो तीन पर्षदा है उनका नाम १- समिता, २- चंडा और ३- जया है और इसके सामानिक देव की और त्रायस्त्रिंशक देवों की भी इन्हीं नामों की तीन, तीन पर्षदा है । (२१४)
लोकपालानां तथाग्रमहिषीणां भवन्ति ताः । ईषा तथान्या त्रुटिता ततो दृढरथभिधा ॥२१५॥
इसके लोकपाल देवों की तथा इसकी अग्रमहिषियों की भी इषा, त्रुटियां और दृढरथा नाम की तीन-तीन पर्षदाएं हैं । (२१५) .
शेषाणां भवनेन्द्राणां पर्षदामभिधाः किल । . तृतीय मंगलमालोक्य विज्ञेया धरणेन्द्रवत् ॥२१६॥