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________________ (७५) और इन सब की जघन्य आयु स्थिति दस हजार वर्ष की है और मध्यम स्थिति तो उत्कृष्ट और जघन्य के बीच अनेक प्रकार की है । (१६०) ज्येष्ठायुषों दाक्षिणात्या मासार्धेनोच्छ्वसन्तयथ । आहारकांक्षिणो वर्षसहस्रेणभवन्ति च ॥१६१॥ उत्कृष्ट आयुष्य वाले दक्षिण दिशा के देव आर्ध मास (पंद्रह दिन) में श्वासोच्छ्वास लेते है और इनको एक हजार वर्ष में आहार की इच्छा होती है । (१६१) उदीच्या सातिरेकेण मासार्धेनोच्छसन्ति वै । साधिकाब्द सहस्त्रेण भवन्त्याहारकांक्षिणः ॥१६२॥ इसी तरह उत्तर दिशा के देव पंद्रह दिन होने के बाद श्वासोच्छ्वास लेते है और इनको एक हजार वर्ष से अधिक होने पर आहार की इच्छा होती है । (१६२) माध्यमस्थितयस्त्येते स्वस्वस्थित्यनुसारतः । मुहूर्ताहः पृथक्त्वैः स्युरूच्छ्वासाहार कांक्षिणः ॥१६॥ मध्य आयुष्य स्थिति वाले देव अपनी-अपनी स्थिति के अनुसार चार मुहूर्त में श्वासोच्छवास लेते है इनको आहार की अभिलाषा भी चार दिन में होती है । (१६३) : जघन्य जीविनः स्तैकैः सप्तभिः प्रोच्छ्वसन्त्यमी । एकाहान्तरमाहारं समीहंते च चेतसा ॥१६४॥ जघन्य आयुष्य वाले देव सात स्तोक में श्वासोच्छ्वास लेते है और इनको एकांतर में आहार लेने की भी इच्छा होती है। ततः संकल्प मात्रेणोपस्थितैः सारपुदगलैः । ते तृप्येयुः कालिकाहारानपेक्षिणः सदा ॥१६॥ उसके बाद उनकी इच्छा होते ही प्राप्त हुए उत्तम पुर्दगलों द्वारा तृप्त होते है उनको कभी कवलाहार की अपेक्षा नहीं होती । (१६५) विषयः स्यात् गतेरेषामधस्तमस्तमावंधि । तृतीयां पुनरवनीं गता यास्यन्ति च स्वयम् ॥१६॥ प्रयोजनं तत्र पूर्वरिपोः पीडाप्रवर्धनम् । प्राग्वजन्मसुहृदस्तावत्कालं पीडानिवर्तनम् ॥१६७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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