SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७४) . . . भवेत् । करते हैं और चूड़ामणि से अंकित मुकुट को धारण करते हैं । कुमारावस्था उल्लंघन करने के बाद भी यौवनावस्था प्राप्त न होने से उनका यौवन अति मधुर और मृदु हो ऐसा बहुत शोभायमान होता है। शरीर पर केयूर, अंगद, मुक्ताहार आदि आभूषण परिधान करते है और दस अंगुलियों में मणिरत्न की अंगूठियां धारण करके वे वहां सदा विलास करके रहते हैं । (१८२-१८४) देव्योऽप्येवं विधाः काम क्रीडा विधि विचक्षणाः ।। घनस्तना युवजनोन्मादि लावण्ययौवनाः ॥१८५॥ ... इसी तरह इनकी देवियां भी काम क्रीड़ा विधि में चतुर, कठिन स्तन युगल से शोभती और युवानों को उन्माद उत्पन्न कराने वाली लावण्यमय यौवन से युक्त होती हैं । (१८५) सप्तहस्ताः देहमानमेषामुत्कर्षतो भवेत् । अंगुलासंख्यांशमानमुत्पत्तौ तज्जधन्यतः ॥१८६॥ इन देवों का देह प्रमाण उत्कृष्ट सात हाथ का होता है और जघन्य उत्पत्ति समय में अंगुल के असंख्यावे अंश सद्दश होता है । (१८६) लक्ष योजनमानं चोत्कर्षादुत्तरवैकि यम् । प्रारम्भेऽङ्गुलसंख्येयभागमानं जघन्यतः ॥१८७॥ उनका उत्तर वैक्रिय शरीर उत्कृष्ट लाख योजन हो सकता है और जघन्य प्रारंभ समय अंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण होता है । (१८७) एषां च दाक्षिणात्यानां स्थितिरुत्कर्षतो भवेत् । सागरोपममेकं तदुदीच्यानां च साधिकम् ॥१८॥ इनमें जो दक्षिण दिशा के है उनकी उत्कृष्ट आयु स्थिति एक सागरोपम की और जो उत्तर दिशा के हैं उनकी स्थिति कुछ अधिक है । (१८८) देवीनां दाक्षिणात्यानां सार्धं पल्यत्रयं स्थितिः । ज्येष्टोत्तराहदेवीनां सार्ध पल्यचतुष्टयम् ॥१८६॥ दक्षिण दिशा की देवियों की आयुष्य स्थिति उत्कृष्ट साढे तीन पल्योपम की है और उत्तर दिशा की साढे चार पल्योपम की होती है । (१८६) . जघन्या तु वत्सराणां सहस्राणि दश स्थितिः । सर्वेषां मध्यमा ज्येष्टाकनिष्टन्तरनेकधा ॥१६०॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy