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(७३) इत्येवमस्त्रिन्नसुरनिकाये प्रभवो दश । चमरेन्द्रो बलीन्द्रश्च लोकपालास्तथाष्ट च ॥
१८॥ इसी तरह से इस असुर निकाय में दस अधिकारी हैं चमरेन्द्र, बलीन्द्र और । आठ लोकपाल होते हैं । (१७८) ।
लक्षेष्वेवं चतुः षष्टौ भवनेष्वपरेऽपि हि । उत्पद्यन्तेऽसुनवराः स्वस्वपुण्यानुसारतः ॥१७६॥
इसी तरह चौसठ लाख भवनो में अपने-अपने पुण्य के अनुसार से अन्य भी असुरवर उत्पन्न होते हैं । (१७६)
उत्पत्ति काले शय्यायां भूषणाम्बर वर्जिताः । ततश्चालंकृतास्तेन वपुषा नूतनेन वा ॥१८०॥
शय्या में उत्पन्न होते है तब वे वस्त्र आभूषण रहित होते है परन्तु फिर वे वहीं अथवा नूतन शरीर पर वस्त्रालंकार धारण करते हैं । (१८०)
सर्वेऽप्यमी श्यामवर्णा बिम्बोष्टाः कृष्णमूर्द्धजाः। शुभ्रदन्ता वामकर्णावसक्तदीप्रकुंडलाः ॥१८१॥
सर्व का वर्ण श्याम, होठ लाल, केश.काले और दाँत सफेद होते है तथा उनके दाहिने कान में चमकते कुंडल होते हैं । (१८१)
दन्ताः केशाश्च अमीषां वैक्रिया दृष्टव्या न स्वाभाविकाः । 'वैक्रिय शरीरस्वात् । इति जीवाभिगम वृत्तौ ॥
यहां इनके दांत और केश कहे है वे स्वभाविक नहीं समझना परन्तु वैक्रिय समझना, क्योंकि उनका शरीर वैक्रिय शरीर होता है । इस तरह जीवाभिगम सूत्र की टीका में कहा है। .
आर्द्रचन्दनलिप्तांगा अरूणाम्बरधारिणः । चिह्नन चूडामणिना सदालंकृतमौलयः ॥१८२॥ कुमारत्वमतिक्रान्ता असंप्राप्ताश्च यौवनम् । ततोऽतिमुग्ध मधुर मृदु यौवन शालिनः ॥१८३॥
केयूरांगदहाराधैर्भूषिता विलसन्ति ते । . दीपा दशस्वंगुलीषु मणिरलांगुलीयकैः ॥१८४॥ विशेषकं । .
ये सभी शरीर पर हमेशा आर्द्र चन्दन का विलेपन करते है लाल वस्त्र धारण