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देवों की आयुष्य स्थिति अनुक्रम से साढ़े तीन, तीन और अढाई पल्योपम की है और देवियों की अनुक्रम से अढाई, दो और ढेड पल्योपम की है (१६३)
तिस्त्रस्तिस्त्रः पर्षदोऽस्य भवन्ति प्राग्वदेव च । सामानिकत्रायस्त्रिंशलोकपालाग्रयोषिताम् ॥१६४॥ .
तथा इस बलीन्द्र के सामानिक, त्रायस्त्रिंशक और लोकपाल, देव और पटरानियों की भी तीन पर्षदा और सभा है । (१६४)
शुभानि शुभा रम्भा च निरम्भा मदनेति च । स्युः पंचाग्रमहिष्योऽस्य प्राग्वदासां परिच्छदः ॥१६५।।
इसके शुभा, निशुभा, रंभा, निरंभा और मदना नाम की पांच अग्रमहिषियां होती है । उनका परिवार पूर्व अनुसार है । (१६५) .
एवं सहस्रैः चत्वारिंशतान्त:पुरिकाजनैः । सुधर्मायाः बहिः भुंक्ते कृतैतावद्वपुः सुखम् ॥१६६॥
इसी तरह से बलीन्द्र भी चालीस हजार देवियों के साथ में इतने ही शरीर बनाकर सुधर्मा सभा के बाहर भोग भोगता है । (१६६)
चत्वारोऽस्य लोकपालश्चतुर्दिगधिकारिणः । . सोमो यमश्च वरूणस्तुर्यो वैश्रमणाभिधः ॥१६७॥
इसके भी सोम, यम, वरुण, और वैश्रमण (कुबेर) नाम के चार दिशाओं के चार लोक पाल देव है । (१६७)
एषां चतस्रं प्रत्येकं दयिताः नामतस्तु ताः । मीनका च सुभद्रा च विद्युदाख्या तथाशनिः ॥१६८॥ स्वस्व नाम राजधान्यां सिंहासने स्वनामनि । उपष्टिाः सुखं दिव्यं मुदा तेऽप्युपभुंजते ॥१६६॥
और इन प्रत्येक को मेनका, सुभद्रा, विद्युत और अशनि नाम की चार-चार स्त्रियां होती हैं, इनके साथ में वे अपने-अपने नाम सदृश नाम वाली राजधानी में अपने नाम वाले सिंहासन पर हर्षपूर्वक दिव्य सुखभोगता है । (१६८-१६६)
महाद्रुमो महासौदासाह्वयः परिकीर्तितः । मालंकारोऽपि च महालोहिताक्षाभिधः सुरः ॥१७॥