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(७०) इस बलि चंचा नगरी का समस्त स्वरूप अर्थात् इसका किला इसका प्रासाद, इसका प्रमाण आदि अनुक्रम से चमर चंचा के समान समझना । (१५६)
अत्रोपपादसदसि देवदूष्यपरिष्कृते । इन्द्रत्वे नोत्पधतेऽङ्गी शय्योत्संगे महातपाः ॥१५७॥
जो कोई महा तपस्वी होता है वह यहां उपपाद सभा में देवदूष्य से . आच्छादित शय्या में इन्द्र रूप में उत्वन्न होता है । (१५७) .
अस्य षष्टिः सहस्राणि सामानिक सुधा भुजाम् । ... त्रायस्त्रिंशकदेवाश्च त्रयस्त्रिंशदुदीरिताः ॥१५॥
इस बलीन्द्र को साठ हजार सामानिक देव और तेतीस त्रायस्त्रिंशक देव होते है । (१५८)
साम्प्रतीनास्त्वमी बेभेलकग्रामनिवासिनः । । श्रद्धालवस्त्रयस्त्रिंशत् सुहृदश्च परम्परम् ॥१५६॥ . प्रागेते दृढधर्माणः पश्चाद्विश्लथचेतसः । ... उत्पन्ना अत्र चमर त्रायस्त्रिंशकदेववत् ॥१६०॥
अभी वर्तमान काल में जो त्राय स्त्रिंशक देव वहां है वे पूर्व जन्म में बेभलक गांव के निवासी थे, श्रद्धालु और परस्पर प्रीति रखने वाले तैंतीस मित्र थे। पहले तो वे धर्म के विषय में दृढ़ थे परन्तु बाद में शिथिल हो जाने से चमरेन्द्र के त्राय स्त्रिंशक देवो समान यहां उत्पन्न हुए हैं । (१५६-१६०) ,
प्राग्वत्तिस्त्रः पर्षदोऽस्य तिसृष्वपि सुराः क्रमात् ।
सहस्राणं विशतिः स्युः चतुरष्टाधिका च सा ॥१६१॥
पहले के समान इनकी भी तीन सभा होती है, जिसमें अनुक्रम से बीस हजार, चौबीस हजार और अट्ठाईस हजार देव है। .
साढे द्वे च शते द्वे च सार्द्ध शतमनुक्रमात् ।। देव्यः पर्षत्सु तिसृषु देवानां क्रमतः स्थितिः ॥१६२॥
और उस तीन सभाओं के अन्दर अनुक्रम से अढाई सौ, दो सौ, तथा ढेड़ सौ देवियां होती है । (१६२)
पल्यानां त्रितयं सार्धं त्रयं द्वयं क्रमात् । देवीनां तु स्थितिः सार्धे द्वे ते द्वे सार्धमेव च १६३॥ युग्मं ॥