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________________ (६७) पहले कच्छ में चौसठ हजार देव है उसके बाद छ: कच्छों में अनुक्रम से उत्तरोत्तर दोगुणा करते जायं इतने देव हैं । (१३५) इन्द्राणामपरेषामप्येवं पत्तिचमूपतेः । वाच्याः सप्त सप्त कच्छाः स्थानाद्विगुणितामिथः ॥१३६॥ चतुः षष्टिः सहस्राणि प्रत्याशमात्मरक्षकाः । लक्षद्वयं षट्पंचाशत्सहस्राणीति तेऽखिलाः ॥१३७॥ इसी तरह अन्य इन्द्रों के पैदल सेनापति के हाथ नीचे सात-सात कच्छ और इसमें भी उत्तरोत्तर एक दूसरों से दो गुने देव होते हैं । चमरेन्द्र के प्रत्येक दिशा के चौसठ-चौसठ हजार मिलाकर समग्र दो लाख छप्पन हजार आत्म रक्षक देव है । (१३६-१३७) एवमुक्त परीवार सुरैराराधितक्रमः । धनश्यामस्निगधवर्णः किंचिदारक्तलोचनः ॥१३८॥ विद्रु मोष्टः श्वेतदन्तः शरलोत्तुंग नासिकः । दीप्ररक्ताम्बरो मेघ इव सन्ध्याभ्रसंभृतः ॥१३६॥ मुकुटेनांकितो मौलौ सच्चुडामणिलक्ष्मणा । पूर्वाद्भिरिव तिग्मांशु बिम्बेनोदित्वरश्रिया ॥१४०॥ चतुस्त्रिंशल्लक्षमान भवनानामधीश्वरः । सर्वेषां दाक्षिणात्यानामसुराणां सयोषिताम् ॥१४१॥ साम्राज्यं शास्ति दिव्यस्त्री नाटक दिषु दत्तदृक् । एकार्पा वायुश्च्युत्वेतो भवे भाविनिसेत्स्यति ॥ १४२॥ कुलकम् । इस प्रकार के देव और उनके परिवार उनकी हमेशा सेवा करते रहे हैं उस चमरेन्द्र का अतिश्याम और स्निग्ध वर्ण है, लाली भरी आँखे है, मूंगे समान होठ है, उज्जवल दंतपंक्ति है और शरभ पक्षी समान उत्तुंग नासिका तथा ये देदीप्यमान और रक्त वर्ण अम्बर रूपी वस्त्राकाश के कारण, संध्याकाल के बादल का भ्रम उत्पन्न करने वाला मेघ हो इस तरह दिखता है तथा उसके मस्तक पर उत्तम चुडामणि वाला मुकुट चमक रहा है, वह मानो उदय हुए सूर्यबिम्ब युक्त पूर्वाचल हो इस तरह दिखता है । तथा चौतीस लाख भवनों का तथा सर्व दक्षिण्त्य असुरों का और इनकी स्त्रियों का स्वामी है तथा हमेशा देवांगनाओं का नाटक आदि देखने में
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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