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तथास्य चमरेन्द्रस्य सप्त सैन्यानि तत्र च ।
पादात्याश्वे भयहिषरथ संज्ञानि पंच वै ॥ १२६ ॥
चमरेन्द्र की सात सैना होती है उसमें पांच इस प्रकार है १ - पैदल २ - अश्व ३ - हस्ती ४ - महिष और ५- रथ इस तरह नाम है । (१२६)
एते सुरा अपि स्वामि शासनात् कार्यहेतवे । तांद्र्प्यं प्रतिपद्यन्ते नायकोक्तेः नटा इव ॥१३०॥.
इनका भी देव रूप है, परन्तु कार्य की आवश्यकता पड़ने पर स्वामी का आदेश होने पर ऐसा रूप धारण कर सकते है । जैसे नायक के कहने अनसार नट नया-नया वेष धारण करता है । (१३०)
एतानि पंच सैन्यानि युद्धसज्जान्यहर्निशम् ।
गन्धर्वनट सैन्ये ये ते भोगायेति सप्तकम् ॥१३१॥ .
ये पांचो सेना हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहती है और दूसरी दो सेना, एक गन्धर्व और दूसरी नट की है इस तरह सब मिलाकर सात होती है । (१३१) सप्त सेनान्योऽप्यमीषां सर्वदा वशवर्तिनः ।
सेवन्ते सुरनेतारं चमरं विनयानताः ॥ १३२॥
इन सात सेनाओं के सात सेनाधिपति हैं जो हमेश चमरेन्द्र के आधीन होकर विनयपूर्वक सेवा करते हैं । (१३२)
द्रुमः सौदामश्च कुंथुः लोहिताक्षश्च किंन्नरः ।
रिष्टो गीतरतिश्चेति सेनान्याममिधाः क्रमात् ॥१३३॥
इन सेनापतियों के नाम इस प्रकार है - १ द्रुम २- सौदाम ३ - कुंथु ४लोहिताक्ष ५ - किन्नर ६- रिष्ट ७ - गीतरति । (१३३)
द्रुमस्य तत्र पादात्याधिपस्य चमरेशितुः ।
स्युः सप्त कच्छा: कच्छा च स्ववशो नाकिनां गणः ॥१३४॥
इस सात में पैदल सेना का अधिपति द्रुम है इसके हाथ के नीचे सात ‘“कच्छा” है । अर्थात् हाथ नीचे देवों का समूह है । (१३४)
आद्यकच्छयां सुराणां चतुःरूाष्टि सहस्रकाः ।
ततो यथोत्तर कच्छा: षडपि द्विगुणाः क्रमात् ॥१३५॥