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________________ (६५) बलि इन्द्र की पटरानियों का वृत्तान्त भी इस चमरेन्द्र की पटरानियों के समान समझना। अन्तर इतना है कि इनकी नगरी श्रावस्ती है और इनका आयुष्य साढ़े तीन पल्योपम का है । (१२२) एकै काग्र महिष्यष्ट सहस्रपरिवारयुक् । सहस्राण्यष्ट देवीनां नव्यानां रचितुं क्षमा ॥१२३॥ चमरेन्द्र की प्रत्येक पटरानियों का आठ हजार परिवार कहलाता है क्योंकि उनमें आठ हजार नयी देवियां उत्पन्न करने का सामर्थ्य होता है (१२३) चत्वारिंशत् सहस्राणि स्युर्देव्यः सर्व संख्यया । भुंक्तेऽसुरेन्द्रश्चैताभिः कृतैतावत्तनुः सुखम् ॥१२४॥ इस गिनती से चमरेन्द्र को चालीस हजार देवियां कहलाती है, उनके साथ में इतने ही शरीर धारण कर सुख भोगता है । (१२४) सोमोयमश्च वरूणस्तथा वैश्रमणाभिधः । चत्वारोऽस्य लोकपालाश्चतुर्दिगधिकारिणः ॥१२५॥ और चमरेन्द्र के सोम, यम वरूण और कुबेर नाम के लोकपाल चार दिशाओं के चार अधिकारी कहलाते हैं । (१२५) ... चतुर्णामप्यथै तेषां चतस्रः प्राण बल्लभाः । कनका कनकलता चित्रगुप्ता वसुन्धरा ॥१२६॥ इस चारों में प्रत्येक को कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुंधरा चारचार प्राणं बल्लभा अर्थात् देवियां होती है । (१२६) एकैके यं च साहस्रपरिवारविराजिता । देवी सहस्रयेकैकं नव्यं विकुर्वितुं क्षमा ॥१२७॥ और ये प्रत्येक हजार-हजार परिवार वाली हैं, क्योंकि इनको हजार-हजार नयी देवियां उत्पन्न करने का सामर्थ्य होता है । (१२७) स्वस्वनाम राजधान्यां स्वस्वसिंहासने स्थिताः । चत्वारोऽमी लोकपाला भुंजते दिव्य सम्पदम् ॥१२८॥ चारों लोक पाल को अपने-अपने नामानुसार राजधानी है वहां ये अपनेअपने सिंहासन पर रहकर दिव्य सुख सम्पदा भोगते हैं । (१२८)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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