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________________ __ (६३) शतान्यर्द्ध तृतीयानि सार्द्धपल्योपमायुषाम् । देवीना मध्यमायां चाष्टाविंशतिः सहस्रकाः ॥११०॥ द्विपल्यायुर्निर्जराणां देवीनां त्विहपर्षदिं । शतानि त्रीण्येकपल्यायुषामथान्त्यपर्षदि ॥१११॥ स्यु द्वात्रिंशत्सहस्राणि सार्द्ध पल्यायुषः सुराः । शतान्यर्द्ध चतुर्थानि देव्योर्द्धपल्यजीविताः ॥११२॥ पहले में अढाई पल्योपम की स्थिति वाले चौबीस हजार देव होते हैं और ढेड पल्योपम की स्थिति वाली अढाई सौ देवियां होती है । दूसरी मध्य सभा में दो पल्योपम के आयुष्य वाले अढाईस हजार देव और एक पल्योपम के आयुष्य वाली तीन सौ देवियां है तीसरी अन्तिम पर्षदा में ढेड पल्योपम के आयुष्य वाले बत्तीस हजार देव और आधे पल्योपम के आयुष्य वाली साढ़े तीन सौ देवियां है । (१०६-११२) यथैव पर्षदः तिस्त्रौ वर्णिताश्चमरेशितुः । एवं सामानिकत्रायस्त्रिंशकानां तदा ह्वयाः ॥११३॥ पर्षदो लोक पालानां पुनस्तिस्रो भवन्ति ताः । ... तपाथ त्रुटिता पर्वा इत्येतैर्नामभिर्युताः ॥११४॥ चमरेन्द्र की इस तरह तीन सभाओं का वर्णन किया है। इस तरह इसी नाम की सामानिक तथा त्राय स्त्रिंशक देवों की भी सभाएं है तथा लोकपाल देवों की भी- १- तपा २- त्रुटिता और ३- पर्वानाम की तीन सभा होती है । (११३-११४) इदमर्थतः स्थानांग सूत्रे। यह वृत्तान्त स्थानांग सूत्र में है। 'काली राजी च रन्ती च विद्युत् मेघाभिधा परा । पंचास्याग्रमहिष्यः स्युः रूपलावण्यबन्धुराः ॥११५॥ इस चमरेन्द्र को १- काली २- राजी ३-रंती ४- विद्युत और ५- मेघा नाम वाली पांच मनोहर रूप - लावण्य युक्त अग्रमहिषी अर्थात् पट्टरानियां है । (११५) कालीयं प्राग्भवे जम्बूद्वीपे दक्षिणभारते । पुर्यामामलकल्पायां कालाख्यस्य गृहेशितुः ॥११६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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