________________
(५४)
२- सिद्धायतन, ३- उपपात सभा, ४- द्रह, ५- अभिषेक सभा, ६- अलंकार सभा और ७- व्यवसाय सभा आई हुई है । ये सभी छत्तीस योजन ऊंची, पचास योजन लम्बी और पच्चीस योजन चौडी होती है अत: वैमानिक देवो की सभा से प्रमाण में आधी है । (४४-४६)
इत्यर्थतो भगवती द्वितीय शतकाष्टमोद्देशके ॥ अनायं विशेषः ॥ चमरस्सणं सभा सुहम्मा एकावन्न खंभसय सन्निविठ्ठायं । एवं बलीयस्सवि इति तुल्गे॥
इसका भावार्थ भगवती सूत्र के दूसरे शतक के आठवें उद्देश में कहा है। यहां विशेष इतना है कि चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा एकावन स्तंभ पर स्थिर है ऐसा कहा है । बलीन्द्र की भी इसी प्रकार की कही है । इस तरह से चौथे अंग में है ।
अर्थतस्यामुपपातसभायां सुकृती जनः । . . देव दृष्यच्छन्न शय्योत्संग उत्पद्यतेक्षणात ॥४७॥ :
जो कोई पुण्यशाली जीव महा चमरेन्द्र रूप में उत्पन्न होता है वह उक्त उपपात सभा में देव दूष्य वस्त्रों से आच्छादित शय्या में क्षण भर में उत्पन्न होता है । (४७)
चमरेन्द्र तयाथासावुत्थाय शयनीयतः । गत्वा हृदे कृतस्त्रानस्ततोऽभिषेकपर्षदि ॥४८॥ कृताभिषेक सोत्साहैरसुरैः समहोत्सवम् । अलंकार सभायां च गत्वालंकृत भूधनः ॥४६॥ व्यवसाय सभां गत्वा पुस्तकावसित स्थितिः । स्नात्वा नन्दा पुष्करिण्यां भक्त्या कृत जिनार्चनः ॥५०॥ समागत्य सुधर्मायां सभायां सपरिच्छदः । दिव्या सिंहासनासीनो भोगान् भक्ते यथा रूचि ॥५१॥ पंचभि कुलकम्।
वहां उत्पन्न होने के बाद शय्या में से उठता है फिर वह चमरेन्द्र 'द्रह' - सरोवर में जाकर स्नान करके अभिषेक सभा में आता है । वहां उत्साही असुरों से अभिषेक किया जाता है उसके बाद महोत्सव पूर्वक अलंकार सभा में जाकर शरीर पर आभूषण धारण करता है, फिर व्यवसाय सभा में जाता है । वहां पुस्तक देख-पढ़कर परम्परागत रिवाज से जानकार बनता है फिर नन्दा बावड़ी में जाकर पवित्र होकर भक्तिपूर्वक जिन पूजा करता है उसके बाद वहां से परिवार सहित