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________________ (५२) . . . वप्रश्चास्या योजनानामध्यर्थं शतमुन्नतः । पंचाशद्विस्तृतो मूले मौलौ द्वादश सार्द्धकाः ॥३२॥ इसका एक सौ पचास योजन ऊँचा किला है । इस किले के नीव नीचे पचास योजन और ऊपर साढ़े बारह योजन चौड़ाई है । (३२) आयतैर्योजनस्यार्ध न्यूनाईयोजनोच्छूितैः । क्रोशं विस्तीर्णेश्च रम्यो रत्नजैः कपिशीर्षकैः ॥३३॥ इस कोट के मनोहर, मणिमय कांगरे (किल्ला कलाप) हैं । उसकी लम्बाई आधे योजन है तथा ऊँचाई आधे योजन से कुछ कम है और चौड़ाई में. एक कोश जितना है । (३३) एकैकस्यां स बाहायां पंचद्वारशतांचितः । सार्धे द्वे योजनशते द्वारं चैकैकमुच्छ्रितम् ॥३४॥ सपादशतविस्तीर्णतोरणाद्युपशोभितम् । मध्येऽथ वप्रस्यैतस्य पीठ बन्धो विराजते ॥३५॥ युग्मं । और इसके प्रत्येक दिशा में पांच सौ पांच सौ सुन्दर दरवाजे बने हैं प्रत्येक दरवाजे अढाई सौ योजन ऊँचे है, सवा सौ योजन चौड़े है और सब तोरण आदि से अलंकृत है । इस कोट के मध्य भाग में एक पीठ बंध शोभ रही है । (३४-३५) योजनानां षोडशेष सहस्रान्विस्तृतायतः ।' पद्मवरवेदिकया परीतः काननेन च ॥३६॥ वह सोलह हजार योजन विस्तार वाली है और चारों दिशाओं से सुन्दर पद्मवेदिका युक्त है, उसके चारों ओर बगीचा है । (३६) तस्य मध्ये रम्य भूमावस्ति प्रासाद शेखरः । साधे द्वे योजन शते तुंगस्तदर्धविस्तृतः ॥३७॥ इस प्रकार रमणीय भूमि पर एक उत्तम प्रासाद है जो कि अढाई योजन ऊँचा और सवा सौ योजन चौड़ा है । (३७) चतुर्भिरेष प्रासादैश्चतुर्दिशमलंकृतः । शतं सपादमुत्तुंगैः सार्धद्विषष्टि विस्तृतैः ॥३८॥ इस प्रासाद के चारों तरफ सवा सौ योजन ऊँचे और साढ़े बासठ योजन चौड़े अन्य चार प्रसाद स्थित हैं । (३८)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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