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वह इस प्रकार है - जम्बूदीप में सुदर्शनीय मेरूपर्वत से तिरछी दक्षिण दिशा में असंख्य द्वीप, समुद्रों के पीछे अरूण वर नामक द्वीप आता है । (१७) .
तस्य बाह्य वेदिकान्तात् मध्येऽरूण वराम्बुधेः । योजनानां द्विचत्वारिंशत्सहस्राण्यतीत्य वै ॥१८॥ चमरस्यासुरेन्द्रस्य महानुत्पात पर्वतः । तिगिछिकूटनामास्ति प्रशस्त श्रीभरोध्युरः ॥१६॥ ... योजनानां सप्तदश शतान्यथैकविंशतिः । उच्छ्रितस्तस्य तुर्यांशो निमग्नो वसुधान्तरे ॥२०॥ विशेषकं । .
इसकी बाह्य वेदिका के अन्त भाग से बियालीस हजार योजन छोड़कर अरूण वर समुद्र के मध्य भाग में 'चमर' नामक असुरेन्द्र का 'तिगिछि कूट' नाम का मनोहर, लक्ष्मी से शोभित महान उत्पात पर्वत आया है। यह एक हजार सात सौ इक्कीस योजन ऊँचा है और ऊँचाई के चौथे अंशं से पृथ्वी में घुसा हुआ है। (१८-२०)
मूले सहस्रं द्वाविंशं योजनानां स विस्तृतः । मध्ये शतानि चत्वारि चतुविंशानि विस्तृतः ॥२१॥ शतानि सप्त विस्तीर्णस्त्रयोविंशानि चोपरि । ऊर्ध्वाधो विस्तृतो मध्ये क्षामो महामुकुन्दवत् ॥२२॥
मुकुन्दः वाद्य विशेष इति ॥ इसका विस्तार मूल आगे एक हजार बाईस योजन है, मध्य में चार सौ चौबीस योजन है और शिखर के आगे सात सौ तेईस योजन है । अर्थात् जैसे एक बड़ा मुकुंद होता है, वह नीचे ऊपर विस्तार वाला होता है और मध्य में क्षाम अर्थात् पतला होता है । (२१-२२)
'मुकुंद' नाम का एक वाजिंत्र (वाजा) होता है ।
सर्वरत्नमयस्यास्य वेदिका वनशालिनः । शिरस्तले मध्यदेशे स्यात्प्रासादावतसंकः ॥२३॥ साढे द्वे योजनशते तुंगः सपंचविंशतिः । ततः शतंः योजनानि रम्योल्लोचमहीतलः ॥२४॥ पद्मवेदिका और वनखंड के कारण शोभायमान इस सर्वरत्नमय पर्वत के