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________________ (४८) सिवाय के शेष भाग मेंसर्वत्र यथा संभव आवास है। आवास का अर्थ लघु संग्रहणी' की टीका में तथा तत्वार्थ भाष्य में काया के अनुसार महा मंडप होता है ऐसा कहा है तथा वहां इस तरह भी कहा है कि - यह 'भवन' है, वह रत्नप्रभा पृथ्वी में इसकी आधी मोटाई अवगाही के मध्य में रहा है ।' ऐसा जानना चाहिए। चतुस्त्रिंशत्क्रमास्त्रिंशल्लक्षाः स्युर्दक्षिणोत्तराः । . . भवना असुराणां ते चतुःषष्टिश्च मीलिताः ॥५॥.. असुरों के भवन चौसठ लाख है उसमें चौतीस लाख दक्षिण दिशा और तीस लाख उत्तर दिशा में होते हैं । (५) लक्षाश्चतुश्चत्वारिंशच्चत्वारिंशद्वयोर्दिशोः । . नागालयानां चतुर शीतिर्लक्षाश्च मीलिताः ॥६॥ .. नाग कुमार के चौरासी लाख भवन होते हैं । दक्षिण में चौवालीस लाख और उत्तर में चालीस लाख होते हैं । (६) अष्टात्रिंशच्चतुस्त्रिंशलक्षाः क्रमात् द्वयोंशिोः। सर्वाग्रेण सुपर्णानां गृहलक्षा द्विसप्ततिः ॥७॥ सुवर्ण कुमारों के दोनों ओर दिशाओं में अनुक्रम से अड़तीस लाख तथा चौंतीस लाख मिलकर कुल बहत्तर लाख भवन होते हैं । (७) चत्वारिंशच्च षट्त्रिंशदक्षिणोत्तरयों: क्रमात् । वैद्यतावासलक्षाः स्युः षट्सप्ततिश्च मीलिताः ॥८॥ विद्युत कुमारों के दोनों दिशा में अनुक्रम से चालीस लाख और छत्तीस लाख मिलाकर कुल छहत्तर लाख भवन होते है । (८). एवमग्नि कुमाराणां द्वीपवार्धि दिशां तथा । . विद्युतकुमारवत् संख्या भवनानां प्रकीर्तिता ॥६॥ अग्नि कुमार, द्वीप कुमार, समुद्र कुमार और दिक् कुमारों के भवनों की संख्या अनुसार कही है । (६) पंचाशदथ षट्चत्वारिंशद्दिशोर्द्वयोः क्रमात् । लक्षा वायु सुरावासाः सर्वे षण्णवतिश्च ते ॥१०॥ वायु कुमार के भवन दक्षिण दिशा में पचास लाख और उत्तर दिशा में छियालीस लाख मिलाकर कुल छियानवे लाख होते हैं (१०).
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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