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________________ खावा सूर्यना घोडा रोकाता होवाथी दिवस लांबो थाय छे' आवी कवित्वशक्तिथी प्रसन्न थइ राजाए तेमने 'कविकटारमल्ल' बिरुद आप्यु. 3 सिद्धराजे भाइ तरीके स्वीकारेल भने श्री हेमचन्द्रसूरीयद्विसंधान महाकाव्यना संशोधक महाकवि श्रीपाले सिद्धराजे बनावेल सहस्रलिंग सरोवरनी प्रशस्ति लखी ते सिद्धराजे कोतरावी हती. राजाए ते प्रशस्तिनुं संशोधन करवा सर्वदर्शनना पंडितो बोलाव्या. श्री हेमचन्द्रसू महाराजे 'सर्वपंडितमान्य प्रशस्तिमाँ तमारे कंइ पांडित्य रजु न करबु तेम कहीने पं रामचन्द्र गणिने मोकल्या. श्रीपाल कविनी शरमथी कोइए कंड भूल के शंका बतावी नहि. प्रसंशा करो. सिद्धराजे श्री रामचंद्र गणिने आग्रहथी पूछयं तेणे का ं 'विचारवा योग्य छे.' बधाए संमति आपी त्यारे गणिवरे का 'आ प्रशस्तिमां सैन्यवाचक दल शब्द छे तथा कमल शब्द नित्यनपुंसकलिंग छे. ते बे दूषण छे' ते वखते बधा पंडितोए राजसैन्य अर्थमां दल शब्द नक्की कर्यो अने 'कमलशब्दनु लिंगानुशासनमा नित्यक्लीबत्व का छे. तेनों कोण निर्णय करे ? माटे पुलिंग थाय अथवा न थाय' तेम अक्षरभेव कराव्यो. आवा : जब्बर विद्वान पं. रामचन्द्र गणि हता. ७ ७ तेओ शब्द, प्रमाण अने काव्यना लक्षणना पारंगत हता. तेमने श्री हेमचन्द्रसू. म. ए आचार्यपदथी अलंकृत करी पोतानी पाटे स्थाप्या हता. तेमणे अंक सो प्रबन्ध रच्यानो उल्लेख तेमना कौमुदी मित्राणन्द तथा निर्भय भीमव्यायोग-ग्रंथोमां 'प्रबन्धशतविधान निष्णात बुद्धिना' 'प्रबन्धशतकर्तृ : ए विशेषणो वडे कर्यो छे. रोगथी तेमनी जमणी आंख गइ हती. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001891
Book TitleNalvilasnatakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
AuthorVijayendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1984
Total Pages154
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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