Book Title: Varruchi Prakrit Prakash Part 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) डॉ. कमलचन्द सोगाणी श्रीमती सीमा ढींगरा जैन विद्या संल्यान श्री महावीरजी अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वररुचि-प्राकृतप्रकाश (क्रिया व कृदन्त सूत्र विश्लेषण) (भाग - 2) डॉ. कमलचन्द सोगाणी (निदेशक) श्रीमती सीमा ढींगरा (सहायक निदेशक) अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैनविद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, श्री महावीरजी - 322220 (राजस्थान) प्राप्ति-स्थान : 1. जैनविद्या संस्थान, श्री महावीरजी 2. अपभ्रंश साहित्य अकादमी दिगम्बर जैन नसियां भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड, जयपुर - 302004 प्रथम बार, 2010 मूल्य : 100 रु. मात्र मुद्रक : जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. एम. आई. रोड, जयपुर - 302001 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पाठ संख्या पृष्ठ संख्या (v) विषय आरम्भिक व प्रकाशकीय क्रिया-सूत्र विवेचन (भूमिका) क्रिया-कृदन्त सूत्र शौरसेनी प्राकृत के सूत्र 1-7 8-25 25 प्राकृत के क्रियारूप 26-32 परिशिष्ट - 1 परिशिष्ट - 2 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि-नियम सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण · सहायक पुस्तकें एवं कोश 33-35 36-51 52 For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आरम्भिक व प्रकाशकीय 'वररुचि- प्राकृतप्रकाश' (भाग - 2) प्राकृत अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित कर हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। प्राकृत भाषा भारत के साहित्य - संवर्धन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। प्राकृत का सम्बन्ध भारतीय आर्यभाषा के सभी कालों से रहा है, इसके अध्ययन के बिना आर्यभाषाओं की चर्चा पूर्ण नहीं हो सकती । प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश भाषा के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी की स्रोत बनी। महाकवि वाक्पतिराज ने प्राकृत को ही सब भाषाओं की उद्भवस्थली माना है, इसी से सब भाषाएँ निकलती हैं। जिस प्रकार जल समुद्र में ही प्रवेश करता है और समुद्र से ही बाहर निकलता है। इस प्रकार प्राकृत ही सब भाषाओं की मूल आधार है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए उसे अपने मन के भावों या विचारों को समझना होता है। भाषा ही वह सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों या विचारों को दूसरों तक पहुँचाता है या दूसरों के भावों या विचारों को ग्रहण करता है। भाषा जहाँ सामाजिक व्यवहार के लिए आवश्यक है वहाँ ही वह साहित्य - निर्माण के लिए अनिवार्य है। इस प्रकार जगत के व्यवहार के लिए भाषा अप्रतिम माध्यम है। . भाषा निरन्तर परिवर्तनशील है, उसमें अपने आप परिवर्तन होते रहते हैं। भाषा में होते रहनेवाले इन परिवर्तनों के बाद भी उसका जो साहित्यिक रूप बनता है उसको सही रूप में लिखने, पढ़ने और बोलने - सीखने के लिए उसके (v) For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याकरण की आवश्यकता होती है। व्याकरण वह शास्त्र है जो भाषा का विश्लेषण करके उसके स्वरूप को प्रकट करता है और भाषा को स्व-रूप में लिखने, पढ़ने, बोलने, समझने की विधि सिखाता है। किसी भी भाषा को सीखने-समझने के लिए उसके व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। प्राकृत व्याकरण के उपलब्ध ग्रंथों में वररुचि का प्राकृतप्रकाश' असंदिग्ध रूप से प्राचीन है। ईसा की तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में रचित इस ग्रंथ का प्राकृत अध्ययन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है। इसमें प्राकृत व्याकरण के सूत्र संस्कृत भाषा में रचित हैं। प्राकृत के विविध नियमों का विस्तृत विवेचन होने के कारण इस ग्रन्थ का विद्वत् जगत में काफी प्रचार एवं प्रसार हुआ है। प्राकृत भाषा के अध्ययन के लिए इस ग्रंथ का महत्त्व असंदिग्ध है। इसके महत्त्व और आवश्यकता को देखते हुए ही विभिन्न कालों में इसकी टीकाएँ लिखी गईं। इसमें बारह परिच्छेद हैं। सातवें परिच्छेद में क्रिया-कृदन्तों के सूत्र हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्राकृत व्याकरण के इन्हीं क्रिया-कृदन्तों के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के अति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सकेंगे। ___ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। वर्तमान में इसके माध्यम से प्राकृत व अपभ्रंश का अध्यापन पत्राचार के माध्यम से किया जाता है। प्राकृत भाषा को भली प्रकार सिखानेसमझाने को ध्यान में रखकर ही प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत अभ्यास सौरभ', 'प्रौढ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ', 'वररुचिप्राकृतप्रकाश' (भाग - 1) आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में वररुचि-प्राकृतप्रकाश' (भाग - 2) प्रकाशित है। प्रस्तुत पुस्तक भी प्राकृत अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा हमारा विश्वास है। (vi) For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक प्रकाशन के लिए अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती सीमा ढींगरा के आभारी हैं जिन्होंने सूत्र-विश्लेषण के कार्य में अत्यन्त रुचिपूर्वक सहयोग दिया। मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स, जयपुर धन्यवादाह है। अध्यक्ष मंत्री नरेशकुमार सेठी प्रकाशचन्द जैन प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी . संयोजक डॉ. कमलचन्द सोगाणी जैनविद्या संस्थान तीर्थंकर अरहनाथ जन्म-तप कल्याणक दिवस मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी वीर निर्वाण संवत् 2537 20 अक्टूबर 2010 (vii) For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-1 क्रिया-सूत्र विवेचन भूमिका - वररुचि ने तृतीय-चतुर्थ शताब्दी में प्राकृतप्रकाश की रचना की जो प्राकृत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण-ग्रन्थ है। उन्होंने इसकी रचना संस्कृत भाषा के माध्यम से की। प्राकृत-व्याकरण को समझाने के लिए संस्कृत-व्याकरण की पद्धति के अनुरूप संस्कृत भाषा में सूत्र लिखे गये। किन्तु सूत्रों का आधार संस्कृत भाषा होने के कारण यह नहीं समझा जाना चाहिए कि प्राकृत व्याकरण को समझने के लिए संस्कृत के विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता है। संस्कृत के बहुत ही सामान्यज्ञान से सूत्र समझे जा सकते हैं। हिन्दी, अंग्रेजी आदि किसी भी भाषा का व्याकरणात्मक ज्ञान भी प्राकृत-व्याकरण को समझने में सहायक हो सकता है। अगले पृष्ठों में हम प्राकृत-व्याकरण के क्रिया-कृदन्त के सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं। सूत्रों को समझने के लिए स्वरसन्धि, व्यंजनसन्धि तथा विसर्गसन्धि के सामान्यज्ञान की आवश्यकता है। साथ ही संस्कृत-प्रत्यय-संकेतों का ज्ञान भी होना चाहिए तथा उनके विभिन्न कालों, पुरुषों व वचनों के प्रत्ययसंकेतों को समझना चाहिए। इन्हीं के साथ ही संस्कृत-कृदन्तों के प्रत्यय-संकेतों को भी जानना चाहिए। काल-रचना की दृष्टि से प्राकृत में वर्तमानकाल, भूतकाल, भविष्यत्काल तथा विधि एवं आज्ञासूचक प्रयोग मिलते हैं। तीन पुरुष व दो वचन होते हैं। पुरुष-अन्य पुरुष (प्रथम पुरुष), मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष। वचन - एकवचन व बहुवचन। सूत्रों में विवेचित कृदन्त पाँच प्रकार के हैं - सम्बन्धक कृदन्त (पूर्वकालिक क्रिया), हेत्वर्थक कृदन्त, वर्तमानकालिक कृदन्त, भूतकालिक * सन्धि के नियमों के लिए परिशिष्ट देखें। वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्त एवं विधि कृदन्त । क्रिया का प्रयोग तीन प्रकार से होता है - 1. कर्तृवाच्य, 2. कर्मवाच्य और 3. भाववाच्य। इनके भी प्रत्यय संकेत समझे जाने चाहिए। साथ ही प्रेरणार्थक क्रिया के प्रत्यय-संकेतों को जानना चाहिए । इसप्रकार क्रिया- सूत्रों को समझने के लिए निम्नलिखित प्रत्यय-ज्ञान आवश्यक है - प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष प्रथम पुरुष मध्यम पुरुष उत्तम पुरुष संस्कृत में क्रियाओं के प्रत्यय वर्तमानकाल लट् (क) तिप् सिप् मिप् त क्त (तअ) वर्तमानकालिक थास् इट् भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय कृदन्त के प्रत्यय 1. शतृ (अत्) 2. शानच् (आन्, मान ) सम्बन्धक कृदन्त के प्रत्यय क्त्वा (त्वा) त्वर्थक कृदन्त के प्रत्यय लट् (ख) तस् थस् वस् आताम् आथाम् वहि तुमुन् (तुम्) विधि कृदन्त के प्रत्यय तव्य, अनीयर (अनीय) कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय क्य = य थ मस् For Personal & Private Use Only 쐬 ध्वम् महिङ् वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेरणार्थक धातु बनाने के लिए प्रयुक्त प्रत्यय णिच् (अय्) इनमें से हलन्त शब्दों के रूप ‘भूभृत्'- की तरह, अकारान्त शब्दों के रूप 'राम' की तरह, इकारान्त के ‘हरि'' की तरह, उकारान्त के 'गुरु' की तरह, आकारान्त के 'गोपा' की तरह, ईकारान्त के स्त्री की तरह चलेंगे। इसी प्रकार शेष शब्दों के रूपों को संस्कृत व्याकरण' से समझ लेना चाहिए। सूत्रों को पाँच सोपानों में समझाया गया है - 1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धि-विच्छेद किया गया है। 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियाँ लिखी गई हैं। 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है। 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं। अगले पृष्ठों में क्रिया, कृदन्तों से सम्बन्धित सूत्र दिये गये हैं। इन सूत्रों से निम्न प्रकार के क्रियाशब्दों के रूप निर्मित हो सकेंगे - (क) अकारान्त क्रिया - हस आदि। (ख) आकारान्त क्रिया - ठा आदि। (ग) ओकारान्त क्रिया - हो आदि। सूत्रों के आधार से समस्त अकारान्त क्रियाओं के रूप ‘हस' की भाँति, आकारान्त क्रियाओं के रूप 'ठा' की भाँति व ओकारान्त क्रियाओं के रूप 'हो' की भाँति बना लेने चाहिए। सूत्रों को समझाते समय कुछ गणितीय चिह्नों का प्रयोग किया गया है, जिन्हें संकेत सूची में समझाया गया है। वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. हरि शब्द प्रथमा एकवचन हरिः हरिम् हरिणा हरये हरीन् द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन द्विवचन बहुवचन हरी हरयः .. हरी हरिभ्याम् हरिभिः हरिभ्याम् हरिभ्यः हरिभ्याम् हरिभ्यः होः .... हरीणाम् होः .. हरिषु हे हरी हे हरयः hers 2. भूभृत् शब्द एकवचन भूभृत् भूभृतम् द्विवचन भूभृतौ भूभृतौ भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् भूभृद्भ्याम् प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन भूभृता भूभृते भूभृतः भूभृतः भूभृति हे भूभृत् बहुवचन . भूभृतः भूभृतः भूभृद्भिः भूभृद्भ्यः भूभृद्भ्यः भूभृताम् भूभृत्सु हे भूभृतः भूभृतोः भूभृतोः हे भूभृतौ 3. गोपा शब्द एकवचन प्रथमा गोपाः गोपाम् द्वितीया द्विवचन गोपौ गोपौ गोपाभ्याम् गोपाभ्याम् बहुवचन गोपाः गोपः गोपाभिः तृतीया गोपा गोपे चतुर्थी पाम् गोपाभ्यः वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोपः गोपाभ्यः गोपाभ्याम् गोपोः गोपाम् पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन गोपः गोपि हे गोपाः गोपोः गोपासु हे गोपौ हे गोपाः 4. राम शब्द बहवचन रामाः प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन एकवचन रामः रामम् रामेण रामाय रामात् रामस्य रामे हे राम द्विवचन रामौ रामौ रामाभ्याम् रामाभ्याम् रामाभ्याम् रामयोः रामयोः रामान् रामैः रामेभ्यः रामेभ्यः रामाणाम् रामेषु हे रामाः हे रामौ 5. स्त्री शब्द : प्रथमा द्वितीया एकवचन स्त्री स्त्रियम स्त्रिया स्त्रियै स्त्रियाः द्विवचन स्त्रियौ स्त्रियौ स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् स्त्रीभ्याम् बहवचन स्त्रियः स्त्रियः स्त्रीभिः स्त्रीभ्यः तृतीया चतुर्थी पंचमी स्त्रीभ्यः स्त्रियाः स्त्रियोः षष्ठी . सप्तमी संबोधन स्त्रियाम् स्त्रियोः हे स्त्रियौ स्त्रीणाम् स्त्रीषु हे स्त्रियः हे स्त्रि वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. गुरु शब्द एकवचन द्विवचन गुरू बहुवचन गुरवः प्रथमा द्वितीया तृतीया गुरू गुरुन् गुरुम् गुरुणा गुरुभिः चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी संबोधन गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुरुभ्याम् गुर्वोः . . . गुर्वोः हे गुरू गुरुभ्यः गुरुभ्यः गुरूणाम् गुरुषु हे गुरवः E हे गुरो 7. प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी, डॉ. कपिलदेव द्विवेदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी। वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत सूची अ = अव्यय ( ) - इस प्रकार के कोष्ठक में मूल शब्द रखा गया है। { () + ( ) + ( )..........} इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर + चिह्न शब्दों में संधि का द्योतक है। यहाँ अन्दर के कोष्ठकों में मूल शब्द ही रखे गए हैं। {() - () - ( ) .......... इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' चिह्न समास का द्योतक है। जहाँ कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/1,2/1... आदि) ही लिखी है वहाँ उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द संज्ञा' है - 1/1 - प्रथमा/एकवचन 5/1 - पंचमी/एकवचन 1/2 - प्रथमा/द्विवचन । 5/2 - पंचमी/द्विवचन 1/3 - प्रथमा/बहुवचन · 5/3 - पंचमी/बहुवचन 2/1 - द्वितीया/एकवचन 6/1 - षष्ठी/एकवचन 2/2 - द्वितीया/द्विवचन 6/2 - षष्ठी/द्विवचन 2/3 - द्वितीया/बहुवचन 6/3 - षष्ठी/बहुवचन 3/1 - तृतीया/एकवचन 7/1 - सप्तमी/एकवचन 3/2 - तृतीया/द्विवचन 7/2 - सप्तमी/द्विवचन 3/3 - तृतीया/बहुवचन 7/3 - सप्तमी/बहुवचन 4/1 - चतुर्थी/एकवचन 8/1 - संबोधन/एकवचन 4/2 - चतुर्थी/द्विवचन 8/2 - संबोधन/द्विवचन 4/3 - चतुर्थी/बहुवचन 8/3 - संबोधन/बहुवचन वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रिया सूत्र 1. ततिपोरिदेतौ 7/1 ततिपोरिदेतौ {(त) + (तिपोः) + (इत्) + (एतौ)}.. {(त) - (तिप्) 6/2} { (इत) - (एत्) 1/2 } . त और तिप् के स्थान पर इत् → 'इ' और एत् → 'ए' (होते हैं)। वर्तमानकाल के त और तिप् (अन्य पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर इत् → 'ई' और एत् → 'ए' होते हैं। (हस + त, तिप्) = (हस + इ, ए) = हसइ, हसए.. (वर्तमानकाल, अन्यपुरुष, एकवचन) 2. थास्सिपोः सि से 7/2 थास्सिपोः सि से { (थास्) + (सिपोः)} {(थास्) - (सिप्) 6/2} सि (सि) 1/1 से (से) 1/1 थास् और सिप् के स्थान पर 'सि' और 'से' (होते हैं)। वर्तमानकाल के थास् और सिप् (मध्यम पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'सि' और 'से' होते हैं। (हस + थास्, सिप्) = (हस + सि, से) = हससि, हससे (वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, एकवचन) 3. इट् - मिर्पोमिः 7/3 इट् - मिर्पोमिः { (इट्) - (मिपोः) + (मिः)} { (इट्) - (मिप्) 6/2 } मिः (मि) 1/1 इट् और मिप् के स्थान पर 'मि' (होता है)। वर्तमानकाल के इट् और मिप् (उत्तम पुरुष एकवचन के प्रत्यय) के स्थान पर 'मि' होता है। (हस + इट्, मिप्) = (हस + मि) = हसमि (वर्तमानकाल, उत्तमपुरुष, एकवचन) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. न्ति – हेत्था - मोमुमा बहुषु 7/4 न्ति-हेत्था-मोमुमा बहुषु { (न्ति) - (ह) + (इत्था) - (मो) - (मु) - (माः) + (बहुषु)} { (न्ति) - (ह) - (इत्था) - (मो) - (मु) - (म) 1/3 } बहुषु (बहु) 7/3 (वर्तमानकाल के अन्यपुरुष, मध्यमपुरुष, उत्तमपुरुष के) बहुवचन में (क्रमशः) 'न्ति', 'ह और इत्था', 'मो, मु और म' (होते हैं)। वर्तमानकाल के अन्यपुरुष बहुवचन में 'न्ति', मध्यमपुरुष बहुवचन में 'ह, इत्था' तथा उत्तमपुरुष बहुवचन में 'मो, मु, म' होते हैं। हस (वर्तमानकाल) (हस + न्ति) = हसन्ति (अन्यपुरुष, बहुवचन) (हस + ह, इत्था) = हसह, हसित्था (मध्यमपुरुष, बहुवचन) (हस + मो, मु, म) = हसमो, हसमु, हसम (उत्तमपुरुष, बहुवचन) अत ए से 7/5 . अत ए से { (अतः) + (ए) } से अतः (अत्) 5/1 ए (ए) 1/1 से (से) 1/1 अकारान्त से परे (ही) 'ए' और 'से' (होते हैं)। वर्तमानकाल में अकारान्त क्रियाओं से परे ही ए (अन्यपुरुष, एकवचन का प्रत्यय) और से (मध्यमपुरुष, एकवचन का प्रत्यय) होते हैं। आकारान्त, ओकारान्त आदि से परे 'ए' और 'से' प्रत्यय नहीं लगते। (हस + ए) = हसए (वर्तमानकाल, अन्यपुरुष, एकवचन) (हस + से) = हससे (वर्तमानकाल, मध्यमपुरुष, एकवचन) - किन्तु (ठा + ए) = ठाए नहीं बनेगा। (ठा + से) = ठासे नहीं बनेगा। 5. वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्तेर्लोपः 7/6 अस्तेर्लोपः { (अस्तेः) + (लोपः) } अस्तेः (अस्ति) 6/1 लोपः (लोप) 1/1 अस्ति → अस का लोप (होता है)। 'सि' (मध्यमपुरुष एकवचन का प्रत्यय) होने पर अस का लोप हो जाता है। (अस + सि) = सि (मध्यमपुरुष एकवचन) . __ मिमोमुमानामधो हश्च 7/7 मिमोमुमानामधो हश्च { (मि)-(मो)-(मु)-(मानाम्) + (अधः) + (हः) + (च)} { (मि)-(मो)-(मु)-(म) 6/3 } अधः = बाद में हः (ह) 1/1 च = और मि, मो, मु, म के बाद में ह (होता है) और (अस का लोप होता है)। मि (उत्तम पुरुष एकवचन का प्रत्यय), मो, मु, म (उत्तम पुरुष बहुवचन के प्रत्यय) के बाद में ह होता है और अस का लोप होता है। आदेशस्वरूप क्रमशः 'म्हि, म्हो, म्हु, म्ह' रूप बनते हैं। अस (वर्तमानकाल) (अस + मि) = म्हि (उत्तम पुरुष, एकवचन) (अस + मो) = म्हो (उत्तम पुरुष, बहुवचन) (अस + मु) = म्हु (उत्तम पुरुष, बहुवचन) (अस + म) = म्ह (उत्तम पुरुष, बहुवचन) 8. यक ईअ - इज्जौ 7/8 यक ईअ - इज्जौ { (यकः) + (ईअ) - (इज्जौ)} यकः (यक्) 6/1 { (ईअ) - (इज्ज) 1/2 } यक् के स्थान पर 'ईअ, इज्ज' (होते हैं)। यक् (भाववाच्य तथा कर्मवाच्य के प्रत्यय) के स्थान पर 'ईअ' और 10 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10. 'इज्ज' होते हैं। ये प्रत्यय क्रिया व कालबोधक प्रत्यय के बीच में लगाये जाते हैं। (हस + इज्ज, 9. नान्त्यद्वित्वे 7/9 11. ईअ) (कर + इज्ज, ईअ) - नान्त्यद्वित्वे { (न) + (अन्त्य) - (द्वित्वे ) } न = नहीं { (अन्त्य) (द्वित्व) 7/1 } अन्त्य द्वित्व होने पर (ईअ, इज्ज) नहीं होते । धातु का अन्तिम वर्ण द्वित्व हो तो यक् (भाववाच्य और कर्मवाच्य के प्रत्यय) के स्थान पर ईअ, इज्ज नहीं होते । यदि गम्म धातु हो तो इज्ज, ईअ प्रत्यय नहीं लगेंगे। ( हस + न्त) = हसन्त ( हस + माण ) = हसमाण वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग हसिज्जइ / हसीअइ (वर्तमानकाल का भाववाच्य ) = न्तमाणौ शतृशानचो: 7 / 10 शतृ { (न्त ) - ( माण ) 1/2} { ( शतृ) - (शानच् ) 6 / 2 } और शानच् के स्थान पर 'न्त' और 'माण' (होते हैं) । और शानच् (वर्तमान 'माण' होते हैं। शतृ करिज्जइ / करीअइ (वर्तमानकाल का कर्मवाच्य ) 2) = ई च स्त्रियाम् 7 / 11 ई (ई) 1/1 च = और स्त्रियाम् (स्त्री) 7/1 स्त्रीलिंग में 'ई' और (न्त, माण होते हैं) । शतृ और शानच् (वर्तमान कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर स्त्रीलिंग में 'ई' और 'न्त' और 'माण' होते हैं। कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर 'न्त' और For Personal & Private Use Only 11 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12. 13. (हस + ई) हसई ( हस + न्त) = हसन्ता, हसन्ती (सूत्र 5/24 से) 1 = हसमाणा, माणी (सूत्र 5 / 24 से) 1 ( हस + माण ) (सूत्र 5/24 के अनुसार स्त्रीलिंग बनाने के लिए 'ई' और 'आ' प्रत्ययों का प्रयोग होता है इसीलिए हसन्ता, हसन्ती, हसमाणा, हसमाणी रूप बने हैं।) 12 धातोर्भविष्यति हि: 7/12 धातोर्भविष्यति हिः { (धातोः) + (भविष्यति) } हिः धातोः (धातु) 5 / 1 भविष्यति ( भविष्यत्) 7 / 1 हि: (हि) 1 / 1. भविष्यत्काल में धातु से परे 'हि' (प्रत्यय लगता है)। भविष्यत्काल में धातु से परे 'हि' प्रत्यय लगता है, हि प्रत्यय लगाने के पश्चात् • वर्तमानकाल के पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। = उत्तमे स्सा हा च 7 / 13 उत्तमे (उत्तम) 7/1 स्सा (स्सा) 1 / 1 हा (हा ) 1 / 1 च = और उत्तमपुरुष में स्सा, हा और ( हि होते हैं) । भविष्यत्काल में उत्तमपुरुष एकवचन और बहुवचन में स्सा, हा और हि होते हैं। 'स्सा', 'हा' और 'हि' प्रत्यय लगाने के पश्चात् वर्तमानकाल के पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय तो जुड़ेंगे ही। भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, एकवचन 1. वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 1) = ( हो + स्सा + मि ) होस्सामि ( हो + हा + मि) = होहामि ( हो + हि + मि) = होहिमि वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, बहुवचन (हो + स्सा, हा, हि + मो) = होस्सामो, होहामो, होहिमो (हो + स्सा, हा, हि + मु) = होस्सामु, होहामु, होहिमु (हो + स्सा, हा, हि + म) = होस्साम, होहाम, होहिम मिना स्सं वा 7/14 मिना (मि) 3/1 स्सं (स्स) 1/1 वा = विकल्प से 'मि' सहित विकल्प से स्सं (भी होता है)। भविष्यत्काल में उत्तमपुरुष एकवचन में मि प्रत्यय और भविष्यत्कालबोधक प्रत्यय 'हि' सहित विकल्प से 'स्सं' का प्रयोग भी होता है। (हो + स्सं) = होस्सं (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, एकवचन) 15. मोमुमैहिस्सा हित्था 7/15 मोमुमैहिस्सा हित्था { (मो) – (मु) - (मैः) + (हिस्सा) } हित्था { (मो) - (मु) - (म) 3/3 } हिस्सा (हिस्सा) 1/1 हित्था (हित्था)1/1. मो, मु, म सहित 'हिस्सा', 'हित्था' (होते हैं)। भविष्यत्काल में उत्तमपुरुष बहुवचन में मो, मु, म प्रत्यय और • भविष्यत्कालबोधक प्रत्यय 'हि' सहित 'हिस्सा' और 'हित्था' होते (हो + हिस्सा) = होहिस्सा (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, बहुवचन) (हो + हित्था) = होहित्था (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, बहुवचन) 16. कृ-दां-श्रु-वचि-गमि-रुदि-दृशि-विदि-रूपाणां काहं दाहं सोच्छं वोच्छं गच्छं रोच्छं दच्छं वेच्छं 7/16 कृ-दा-श्रु-वचि-गमि-रुदि-दृशि-विदि { (रूपाणाम्) + (काह)} दाहं सोच्छं वोच्छं गच्छं रोच्छं दच्छं वेच्छं { (कृ)-(दा)-(श्रु)-(वचि)-(गमि)-(रुदि)-(दृशि)-(विदि)(रूप) 6/3 } वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 13 For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17. काहं (का) 1 / 1 दाहं (दाहं) 1 / 1 सोच्छं ( सोच्छं) 1 / 1 वोच्छं (वोच्छं) 1/1 गच्छं (गच्छं ) 1/1 रोच्छं (रोच्छं) 1/1 दच्छं (दच्छं) 1/1 वेच्छं (वेच्छं ) 1/1 14 कृ, दा. श्रु, वचि वच्, गमि गम्, रुदि रुद् दृशिदृश, विदि विद् के रूपों के स्थान पर काहं, दाहं, सोच्छं, वोच्छं, गच्छं, दच्छं, वेच्छं ( आदेश होते हैं) । कृ, दा, श्रु, वचि वच्, गमि गम्, रुदि रुद् दृशि दृश्, विदि विद् के ( उत्तमपुरुष एकवचन के) रूपों के स्थान पर ( क्रमशः) 'काह', 'दाहं', 'सोच्छं', 'वोच्छं', 'रोच्छं', 'दच्छं', 'वेच्छं ' आदेश होते हैं। कृ काहं, दादाहं, श्रु सोच्छं, वच् वोच्छं, गम् गच्छं, रुद्रोच्छं, दृशदच्छं, विद्वेच्छं (भविष्यत्काल, उत्तमपुरुष, एकवचन ) श्रवादीनां त्रिष्वनुस्वारवर्जं हिलोपश्च वा 7/17 { (श्रु) + (आदीनाम्) + (त्रिषु) + (अनुस्वार) + (वर्जं) }. { (हि) + (लोपः) + (च) } वा { (श्रु) - (आदि) 6 / 3 } त्रिषु (त्रि) 7/3 { (अनुस्वार) - (वर्जं = सिवाय या रहित ) }1 { (हि) - ( लोपः) 1 / 1 } च = और विकल्प से वा = श्रु आदि (धातुओं) के तीनों पुरुषों में अनुस्वार रहित (आदेश होता है) और विकल्प से हि का लोप (होता है)। श्रु आदि (श्रु, वचि, गमि, रुदि और दृश इन पाँच धातुओं) के तीनों पुरुषों में अनुस्वार रहित (आदेश होता है) और विकल्प से हि का लोप होता है)। 1. समास के अन्त में वर्जं 'सिवाय' के अर्थ में प्रयुक्त होता है । देखें - संस्कृत हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे । वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्यत्काल सोच्छिइ, सोच्छिहिइ, सोच्छेइ, (अन्य पुरुष, एकवचन) सोच्छेहिइ सोच्छिन्ति, सोच्छिहिन्ति, (अन्य पुरुष, बहुवचन) सोच्छन्ति, सोच्छेहिन्ति. सोच्छिसि, सोच्छिहिसि, (मध्यम पुरुष, एकवचन) सोच्छेसि, सोच्छेहिसि सोच्छिह, सोच्छिहिह, (मध्यम पुरुष, बहुवचन) सोच्छेह, सोच्छेहिह सोच्छिमि, सोच्छिहिमि, (उत्तम पुरुष, एकवचन) सोच्छेमि, सोच्छेहिमि सोच्छिमो, सोच्छिहिमो, (उत्तम पुरुष, बहुवचन) सोच्छेमो, सोच्छेहिमो नोट - सूत्र 7/33 से अकासन्त धातु के अन्तिम 'अ' को 'ई' और 'ए' हुआ है। .. 18. उसु मु विध्यादिष्वेकवचने 7/18 उ सु मु विध्यादिष्वेकवचने { (विधि) + (आदिषु) + (एकवचने)} . उ (उ) 1/1 सु (सु) 1/1 मु (मु) 1/1 { (विधि)- (आदि) 7/3 } एकवचने (एकवचन) 7/1 विधि आदि (अर्थ) में एकवचन में 'उ', 'सु', 'मु' (होते हैं)। विधि आदि अर्थ में (तीनों पुरुषों - अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष के) एकवचन में क्रमशः 'उ', 'सु', 'मु' होते हैं। वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 1 . For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19. .. विधि एवं आज्ञा (हस + उ) = हसउ (अन्य पुरुष, एकवचन) (हस + सु) = हससु (मध्यम पुरुष, एकवचन) (हस + मु) = हसमु (उत्तम पुरुष, एकवचन) न्तु ह मो बहुषु 7/19 न्तु (न्तु) 1/1 ह (ह) 1/1 मो (मो) 1/1 बहुषु (बहु) 7/3 बहुवचन में 'न्तु', 'ह', 'मो' (होते हैं)। विधि आदि अर्थ में (तीनों पुरुषों - अन्य पुरुष, मध्यम पुरुष व उत्तम पुरुष के) बहुवचन में क्रमशः 'न्तु', 'ह', 'मो' होते हैं। विधि एवं आज्ञा . (हस + न्तु) = हसन्तु (अन्य पुरुष, बहुवचन) (हस + ह) = हसह (मध्यम पुरुष, बहुवचन) (हस + मो) = हसमो (उत्तम पुरुष, बहुवचन) 20. वर्तमानभविष्यदनद्यतनयोश्च ज्ज ज्जा वा 7/20 {(वर्तमान) + (भविष्यत्) + (अनद्यतनयोः) + (च) } ज्ज ज्जा वा { (वर्तमान) - (भविष्यत्) - (अनद्यतन) 7/2) } च = और ज्ज (ज्ज) 1/1 ज्जा (ज्जा) 1/1 वा = विकल्प से वर्तमान, अनद्यतन भविष्यत्काल (भविष्यत्काल) और (विधि आदि) में विकल्प से 'ज्ज', 'ज्जा' (होते हैं)। वर्तमान, अनद्यतन भविष्यत्काल (भविष्यत्काल) और विधि आदि में तीनों पुरुषों व दोनों वचनों के प्रत्यय के स्थान पर विकल्प से 'ज्ज', 'ज्जा' होते हैं। 16 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - हस (वर्तमानकाल)* एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्य पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हस (भविष्यत्काल)* एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्य पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा हस (विधि आदि)* एकवचन बहवचन उत्तम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा मध्यम पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा अन्य पुरुष हसेज्ज, हसेज्जा हसेज्ज, हसेज्जा * सूत्र 7/34 से अकारान्त क्रिया 'हस' के अन्त्य अ का ए हुआ है। 21.. मध्ये च 7/21 मध्ये (मध्य) 7/1 च = और और मध्य में (भी लगते हैं)। . वर्तमानकाल, भविष्यत्काल और विधि आदि में मध्य में अर्थात् क्रिया एवं पुरुषबोधक प्रत्यय के मध्य में भी विकल्प से 'ज्ज', 'ज्जा' प्रत्यय लगते हैं। वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो (वर्तमानकाल) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष होज्जमि, होज्जामि होज्जमो, होज्जामो, होज्जमु, होज्जामु, होज्जम, होज्जाम मध्यम पुरुष होज्जसि, होज्जासि होज्जह, होज्जाह, होज्जइत्था, होज्जसे, होज्जासे होज्जाइत्था अन्य पुरुष होज्जइ, होज्जाइ होज्जन्ति, होज्जान्ति होज्जए, होज्जाए ___ हो (भविष्यत्काल) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष होज्जहिमि, होज्जाहिमि होज्जहिमो, होज्जाहिमो होज्जस्सामि, होज्जास्सामि होज्जहिमु, होज्जाहिमु होज्जहामि, होज्जाहामि होज्जहिम, होज्जाहिम होज्जस्सामो, होज्जास्सामो, होज्जस्सामु, होज्जास्सामु, होज्जस्साम, होज्जास्साम, होज्जहामो, होज्जाहामो, होज्जहामु, होज्जाहामु, होज्जहाम, होज्जाहाम मध्यम पुरुष होज्जहिसि, होज्जाहिसि होज्जहिह, होज्जाहिह होज्जहिसे, होज्जाहिसे होज्जहित्था, होज्जाहित्था अन्य पुरुष होज्जहिइ, होज्जाहिइ होज्जहिन्ति, होज्जाहिन्ति होज्जहिए, होज्जाहिए वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22. नाकाच: 7/22 23. एकवचन उत्तम पुरुष होज्जमु, होज्जामु मध्यम पुरुष होज्जसु, होज्जासु अन्य पुरुष होज्जउ, होज्जाउ नानेकाचः { (न) + (अनेक ) + (अचः ) } न = नहीं { (अनेक) - (अच्) 6/1 } अनेक अच्वाली (धातुओं) के (मध्य में ज्ज, ज्जा प्रत्यय) नहीं ( लगते ) । वर्तमानकाल, भविष्यत्काल और विधि आदि में अनेक अच् अर्थात् अनेक स्वरवाली धातुओं के मध्य में ज्ज, ज्जा प्रत्यय नहीं लगते। अर्थात् ज्ज और ज्जा प्रत्यय आकारान्त और ओकारान्त क्रिया व पुरुषबोधक प्रत्ययों के बीच में लगेंगे। देखें उक्त रूपावली। ईअ भूते 7/23 अ (ईअ) 1/1 भूते (भूत) 7/1 भूतकाल में 'अ' (प्रत्यय होता है)। भूतकाल में तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में (अनेक अच् अर्थात् अनेक स्वरवाली धातु के प्रत्यय के स्थान पर) 'ईअ' प्रत्यय होता है। हस (भूतकाल ) एकवचन उत्तम पुरुष हसीअ मध्यम पुरुष हसीअ अन्य पुरुष हसीअ हो ( विधि आदि) वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भाग बहुवचन होज्जमो, होज्जामो होज्जह, होज्जाह होज्जन्तु, होज्जान्तु - 2) बहुवचन हसीअ हसीअ हसीअ For Personal & Private Use Only 19 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . होहीअ. 25. भोर 24. एकाचो हीअ 7/24 एकाचो हीअ { (एक) + (अचोः) + (हीअ) } { (एक) - (अच्) 6/2 } हीअ (हीअ) 1/1 एकाच् (धातुओं) के स्थान पर हीअ' (होता है)। भूतकाल में एक अच् (स्वरवाली) धातुओं के प्रत्यय के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में 'हीअ' प्रत्यय होता है। हो (भूतकाल) एकवचन - बहुवचन .. उत्तम पुरुष होहीअ होहीअ मध्यम पुरुष होहीअ . . अन्य पुरुष होहीअ होहीअ. अस्तेरासिः 7/25 अस्तेरासिः { (अस्तेः) + (आसिः) } अस्तेः (अस्ति) 6/1 आसिः (आसि) 1/1 अस्ति के स्थान पर 'आसि' (होता है)। भूतकाल में अस्ति →. अस के स्थान पर तीनों पुरुषों व दोनों वचनों में 'आसि' आदेश होता है। अस (भूतकाल) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष आसि आसि मध्यम पुरुष आसि आसि अन्य पुरुष आसि आसि 26. णिच एदादेरत आत् 7/26 णिच एदादेरत आत् { (णिचः) (एत्) + (आदेः) (अतः)+(आत्) } 201 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णिचः (णिच्) 6/1 एत् (एत्) 1/1 आदेः (आदि) 6/1 अतः (अत्) 6/1 आत् (आत्) 1/1 णिच् के स्थान पर एत्→ 'ए' (होता है) (और) (धातु के) आदि 'अ' के स्थान पर आत्→ ‘आ' (होता है।) णिच् (प्रेरणार्थक प्रत्यय) के स्थान पर 'ए' आदेश होता है और साथ ही धातु के आदि (अथवा पूर्व) 'अ' के स्थान पर 'आ' होता है। (हस + ए) = हासे (प्रेरणार्थक रूप) इसमें कालबोधक, पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय लग जाएँगे। जैसे - वर्तमानकाल में हासेइ, हासेहि, हासेमि आदि रूप बनेंगे। 27. आवे च 7/27 आवे (आवे) 1/1 च = और और ‘आवे' (भी होता है)। . और णिच् (प्रेरणार्थक प्रत्यय) के स्थान पर ‘आवे' (भी होता है)। (हस + आवे) = हसावे (प्रेरणार्थक रूप) इसमें कालबोधक, पुरुषबोधक व वचनबोधक प्रत्यय लग जाएँगे। जैसे :- वर्तमानकाल में हसावेइ, हसावेहि, हसावेमि आदि रूप . बनेंगे। 28. आविः क्तकर्मभावेषु वा 7/28 आविः (आवि) 1/1 {(क्त) - (कर्म) - (भाव) 7/3} वा = विकल्प से क्त, कर्म, भाव (के प्रत्यय) परे होने पर विकल्प से 'आवि' (होता है)। धातु के पश्चात् क्त:त→अ (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय परे होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर . विकल्प से 'आवि' होता है। प्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्त (हस + आवि + अ) = हसाविअ वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 29. नैदावे 7/29 30. 31. प्रेरणार्थक कर्मवाच्य (कर + आवि + इज्ज / ईअ) = कराविज्ज/करावीअ ( सूत्र 7 / 8 से इज्ज / ईअ) प्रेरणार्थक भाववाच्य (हस + आवि + इज्ज / ईअ) = हसाविज्ज / हसावीअ (सूत्र 7 / 8 से इज्ज / ईअ) 22 नैदावे { (न) + (एत्) + (आवे ) } न = नहीं एत् (एत्) 1 / 1 एत्→ए, आवे नहीं (होते.) । क्त (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय), कर्मवाच्य और भाववाच्य के प्रत्यय परे होने पर प्रेरणार्थक प्रत्यय के स्थान पर एत् ए, आवे नहीं होते । आवे (आवे ) 1/1 अत आ मिपि वा 7/30 अत आ मिपि वा { (अतः) + (आ) } मिपि वा अतः (अत्) 5/1 आ (आ) 1 / 1 मिपि (मिप्) 7/1 वा = विकल्प से अकारान्त धातुओं से परे मिप् होने पर विकल्प से 'आ' (होता है)। वर्तमानकाल में अकारान्त धातुओं से परे मिप् ( उत्तमपुरुष एकवचन का प्रत्यय) होने पर विकल्प से अन्त्य अ का 'आ' होता है। ( हस + मि) = हसमि, हसामि ( उत्तमपुरुष एकवचन ) इच्च बहुषु 7/31 इच्च बहुषु { (इत्) + (च) } बहुषु इत् (इत्) 1 / 1 च = और बहुषु (बहु) 7/3 बहुवचन में इत् → 'ई' और (आ होते हैं)। वररुचि - प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32. वर्तमानकाल में अकारान्त धातुओं से परे उत्तमपुरुष बहुवचन होने पर विकल्प से अन्त्य अ का इत्→'ई' और 'आ' होते हैं। वर्तमानकाल (हस + मो) = हसमो, हसामो, हसिमो (उत्तमपुरुष, बहुवचन) (हस + मु) = हसमु, हसामु, हसिमु (उत्तमपुरुष, बहुवचन) (हस + म) = हसम, हसाम, हसिम (उत्तमपुरुष, बहुवचन) ते 7/32 क्ते (क्त) 7/1 क्त →त→अ परे होने पर ('इ' होता है)। अकारान्त धातुओं से परे क्त (भूतकालिक कृदन्त का प्रत्यय) होने पर अन्त्य 'अ' का 'ई' हो जाता है। (हस + अ) = हसिअ (भूतकालिक कृदन्त) 33. ए च क्त्वातुमुन्तव्यभविष्यत्सु 7/33 ए (ए) 1/1 च = और { (क्त्वा)-(तुमुन्)-(तव्य)-(भविष्यत्) 7/3)} क्त्वा → ऊण (संबंधक कृदन्त का प्रत्यय), तुमुन् → उं (हेत्वर्थक कृदन्त का प्रत्यय), तव्य → अव्व (विधि कृदन्त का प्रत्यय) और भविष्यत्काल बोधक प्रत्यय परे होने पर अकारान्त धातुओं के अन्तिम 'अ' के स्थान पर 'ए' और 'इ' होते हैं। (हस + ऊण) . = हसिऊण/हसेऊण (संबंधक कृदन्त) (हस + तुमुन्-उं) = हसिउं/हसेउं (हेत्वर्थक कृदन्त) - (हस + तव्य-अव्व) = हसिअव्व/हसेअव्व (विधि कृदन्त) . . हस (भविष्यत्काल) एकवचन बहवचन उत्तम पुरुष हसिहिमि, हसेहिमि हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु, हसिस्सामि, हसेस्सामि हसेहिमु, हसिहिम, हसेहिम, ... हसिहामि, हसेहामि हसिस्सामो, हसेस्सामो, हसिस्सामु, वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 23 For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हसिस्सं, हसेस्सं हसेस्सामु, हसिस्साम, हसेस्साम, हसिहामो, हसेहामो, हसिहामु, हसेहामु, हसिहाम, हसेहाम, हसिहिस्सा, हसेहिस्सा, हसिहित्था, हसेहित्था, हसिहिह, हसेहिह, हसिहित्था, हसेहित्था | हसिहिन्ति, हसेहिन्ति मध्यम पुरुष हसिहिसि, हसेहिसि हसिहिसे, हसेहिसे अन्य पुरुष हसिहिइ, हसेहिइ हसिहिए, हसेहिए 34. लादेशे वा 7/34 लादेशे वो { (ल) + (आदेशे) } वा {(ल) - (आदेश) 7/1} वा = विकल्प से.. ल आदेश होने पर विकल्प से ('ए' होता है)। ल आदेश (वर्तमानकाल और विधि के प्रत्यय) परे होने पर अकारान्त धातुओं के अन्तिम 'अ' के स्थान पर विकल्प से 'ए' होता है। हस (वर्तमानकाल) . एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसमि, हसेमि - हसमो, हसेमो, हसमु, हसेमु, हसम, हसेम मध्यम पुरुष हससि, हसेसि हसह, हसेह, हसित्था, हसेइत्था हससे, हसेसे अन्य पुरुष हसइ, हसेइ, हसन्ति, हसेन्ति हसए, हसेए __हस (विधि आदि) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसमु, हसेमु हसमो, हसेमो मध्यम पुरुष हससु, हसेसु हसह, हसेह अन्य पुरुष हसउ, हसेउ हसन्तु, हसेन्तु 24 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35. 37. शौरसेनी सूत्र 36. क्त्व इअ: 12/9 38. क्त्व ऊण: 4/23 क्त्व ऊणः { (क्त्वः) + (ऊणः) } क्त्वः (deal) 6/1 क्त्वा के स्थान पर 'ऊण' (होता है ) । क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर 'ऊण' होता है। हसिऊण / हसेऊण (संबंधक कृदन्त ) (सूत्र 7/33 से अकारान्त क्रिया के अन्त्य अ का इ और ए हुआ है) वररुचि-1 क्त्व इअः { ( क्त्वः) + (इअ ) } क्व: ( क्त्वा ) 6/1 इअः (इअ) 1/1 क्त्वा के स्थान पर 'इअ' (होता है ) । क्त्वा (संबंधक कृदन्त के प्रत्यय) के स्थान पर 'इअ' होता है। हंसिअ (संबंधक कृदन्त ) तिपात्थि 12/20 तिपा (तिप्) 3/1 त्थि (त्थि) 1/1 तिप् सहित 'त्थि' (होता है ) । अस धातु को तिप् (अन्य पुरुष एकवचन का प्रत्यय) सहित 'त्थि' आदेश होता है। (अस + तिप्) ऊणः (ऊण) 1/1 = शेषं महाराष्ट्रीवत् 12 / 32 शेषं महाराष्ट्रीवत् { (शेषम् ) + (महाराष्ट्रीवत् ) } = महाराष्ट्री की तरह शेषम् (शेष) 2 / 1 महाराष्ट्रीवत् शेष रूपों को महाराष्ट्री की तरह ( समझना चाहिए ) । शेष रूपों को महाराष्ट्री की तरह समझना चाहिए। - प्राकृतप्रकाश (भाग अत्थि (वर्तमानकाल, अन्यपुरुष, एकवचन) - 2) For Personal & Private Use Only 25 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-2 प्राकृत के क्रियारूप वर्तमानकाल अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसमि (7/3), हसमो, हसमु, हसम (7/4), हसामि (7/30), हसिमो, हसिमु, हसिम (7/31), हसेमि (7/34), हसामो, हसामु, 'हसाम (7/31), हसेमो, हसेमु, हसेम (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) हसेन्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) मध्यम पुरुष हससि, हससे (7/2), हसह, हसित्था (7/4), . हसेसि, हसेसे (7/34), हसेह, हसेइत्था (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) अन्य पुरुष हसइ, हसए (7/1), हसन्ति (7/4), हसेइ, हसेए (7/34), . हसेन्ति (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुवचन होमो, होमु, होम (7/4), होज्जमो, होज्जामो, होज्जमु, होज्जामु, होज्जम, होज्जाम (7/21), (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20), होज्ज, होज्जा (7/20) वर्तमानकाल ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन उत्तम पुरुष होमि (7/3), होज्जमि, होज्जामि मध्यम पुरुष होसि (7/2, 7/5), होज्जसि, होज्जासि, होज्जसे, होज्जासे (7/21 ), होज्जाइत्था ( 7 / 21), होज्ज, होज्जा (7/20) होज्ज, होज्जा (7/20) वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भाग अन्य पुरुष होइ (7/1, 7/5), होज्जइ, होज्जाइ, होज्जए, होज्जाए (7 / 21 ), होज्ज, होज्जा (7/20) होज्ज, होज्जा (7/20) हो, होइत्था (7/4), होज्जह, होज्जाह, होज्जइत्था, - 2) होन्ति (7/4), होज्जन्ति, होज्जान्ति (7/21), For Personal & Private Use Only 27 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवचन उत्तम पुरुष हसमु ( 7 / 18), हसेमु (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) विधि आदि अकारान्त क्रिया (हस ) मध्यम पुरुष हससु (7/18), हसेसु (7/34), 28 हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) बहुवचन समो (7/19), हमो (7/34 ), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) अन्य पुरुष हसउ (7/18), हसन्तु ( 7 / 19 ), हसेन्तु ( 7/34 ), हसेउ (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34 ) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) हसह (7/19), हसेह (7/34), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/34) वररुचि-प्र - प्राकृतप्रकाश ( भाग - 2 ) For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि आदि ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन बहुवचन होमु (7/18), होमो (7/19), होज्जमु, होज्जामु (7/21), होज्जमो, होज्जामो (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) होज्ज, होज्जा (7/20) उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष होसु (718), होह (7/19), होज्जसु, होज्जासु (7/21), होज्जह, होज्जाह (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) . होज्ज, होज्जा (7/20) अन्य पुरुष होउ (7/18), होन्तु (7/19), होज्जउ, होज्जाउ (7/21), होज्जन्तु, होज्जान्तु (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) होज्ज, होज्जा (7/20) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष भूतकाल अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन बहुवचन हसीअ (7/23) हसीअ (7/23). हसीअ (7/23) हसीअ (7/23) हसीअ (7/23) हसीअ. (7/23) भूतकाल ... ओकारान्त क्रिया (हो) . एकवचन बहुवचन होहीअ (7/24) होहीअ (7/24) होहीअ (7/24) होहीअ (7/24). होहीअ (7/24) होहीअ (7/24) उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष अन्य पुरुष 20 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्यत्काल अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष हसिहिमि हसेहिमि, हसिहिमो, हसेहिमो, हसिहिमु, (7/12, 7/3, 7/33), हसेहिमु, हसिहिम, हसेहिम, हसिस्सामि, हसेस्सामि, (7/12, 7/4, 7/33) हसिहामि, हसेहामि, हसिस्सामो, हसेस्सामो, हसिस्सामु, (7/13, 7/3, 7/33), हसेस्सामु, हसिस्साम, हसेस्साम, हसिस्सं, हसेस्सं, हसिहामो, हसेहामो, हसिहामु, (7/14, 7/33) . हसेहामु, हसिहाम, हसेहामु, हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/33) (7/13, 7/4, 7/33) हसिहिस्सा, हसेहिस्सा, हसिहित्था, हसेहित्था, (7/15, 7/33) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/33) मध्यम पुरुष हसिहिसि, हसेहिसि, हसिहिह, हसेहिह, हसिहित्था, हसिंहिसे, हसेहिसे, हसेहित्था (7/12, 7/2, 7/33), ___(7/12, 7/4, 7/33), हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/33) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/33) अन्य पुरुष हसिहिइ, हसेहिइ, हसिहिन्ति, हसेहिन्ति हसिहिए, हसेहिए । (7/12, 7/4, 7/33), (7/12, 7/1, 7/33), हसेज्ज, हसेज्जा. (7/20,7/33) हसेज्ज, हसेज्जा (7/20,7/33) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष होहिमि (7/12, 7/3), होहिमो, होहिमु, होहिम. होहामि, होस्सामि भविष्यत्काल ओकारान्त क्रिया (हो) 32 मध्यम पुरुष होहिसि (7/12, 7 / 2), होज्जहिसि, होज्जाहिसि, होज्जहसे, होज्जाहिसे (7/13, 7/3), होस्सामो, होस्सामु, होस्साम होस्सं (7/14), होज्जहिमि, होज्जाहिमि, होज्जस्सामि, होज्जास्सामि, होज्जहिमो, होज्जाहिमो (7/13, 7 / 3 ), होज्जहामि, होज्जाहामि होज्जहिमु, होज्जाहिमु, होज्जहिम, होज्जाहिम, (7/12, 7/4), होहामो, होहामु, होहाम, (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20 ) होज्जस्सामो, होज्जास्सामो, होज्जस्सामु, होज्जास्सामु, होज्जस्साम, होज्जास्साम, होज्जहामो, होज्जाहामो, अन्य पुरुष होहिइ (7/12, 7 / 1 ), होज्जहिइ, होज्जाहिइ, होज्जहिए, होज्जाहिए (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) होज्जहामु, होज्जाहामु, होज्जहाम होज्जाहाम (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) होहिह, होहित्था (7/12, 7/4), जहि होज्जाहिह होज्जहित्था होज्जाहित्था (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20 ) (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) होहिन्ति (7/12, 7/4), होज्जहिन्ति, होज्जाहिन्ति (7/21), होज्ज, होज्जा (7/20) वररुचि व - प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-1 सूत्रों में प्रयुक्त सन्धि - नियम स्वर सन्धि 1. यदि इ, ई, उ, ऊ के बाद भिन्न स्वर अ, आ, ए आदि आवे तो इ, ई के स्थान पर य और उ, ऊ के स्थान पर व् हो जाता है ह्र श्रु + आदीनां = थ्रवादीनां (सूत्र - 7/17) त्रिषु + अनुस्वार = त्रिष्वनुस्वार (सूत्र - 7/17) विधि + आदिषु = विध्यादिषु (सूत्र - 7/18) 2. यदि अ, आ के बाद में ए आवे तो दोनों के स्थान पर ऐ जाता है - न + एदावे = नैदावे (सूत्र - 7/29) 3. यदि अ, आ के बाद अ या आ आवे तो उसके स्थान पर आ हो जाता है - न + अन्त्य = नान्त्य (सूत्र - 7/9) न + अनेक = नानेक (सूत्र - 7/22) एक + अचो = एकाचो (सूत्र - 7/24) ल + आदेशे = लादेशे (सूत्र - 7/34) व्यंजन सन्धि 4. यदि त् के आगे अ, आ आदि स्वर तथा द्, व्, भ् आदि आवे तो त् के स्थान पर न जाता है त - इत् + एतौ = इदेतौ (सूत्र - 7/1) एत् + आदेः = एदादेः (सूत्र - 7/26) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 33 For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एत् + आवे = एदावे (सूत्र - 7/29) भविष्यत् + अनद्यतनयोः = भविष्यदनद्यतनयोः (सूत्र - 7/20) 5. यदि त् के आगे च् हो तो पूर्ववाला त् भी च् हो जाता है - इत् + च = इच्च (सूत्र - 7/31) 6. पदान्त म् के आगे कोई व्यंजन हो तो म् का अनुस्वार हो जाता है - रूपाणाम् + काहं = रूपाणां काहं (7/16). . आदीनाम् + त्रिषु = आदीनां त्रिषु (7/17). . विसर्ग सन्धि 7. यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अतिरिक्त इ, ए, ओ आदि स्वर हों और विसर्ग के बाद अ आदि स्वर अथवा म्, ल् आदि व्यंजन हों तो विसर्ग का र हो जाता है ह्र तिपोः + इत् = तिपोरित् (सूत्र - 7/1), मिपोः + मिः = मिर्पोमिः (सूत्र - 7/3) अस्तेः + लोपः = अस्तेर्लोपः (सूत्र - 7/6) आदेः + अत = आदेरत (सूत्र - 7/26) 8. यदि विसर्ग से पहले अ या आ और बाद में कोई स्वर अथवा ङ्, म् आदि हों तो विसर्ग का लोप हो जाता है ह्र मोमुमाः + बहुषु = मोमुमा बहुषु (सूत्र - 7/4) अतः + ए = अत ए (सूत्र - 7/5) यकः + ईअ = यक ईअ (सूत्र - 7/8) एकाचोः + हीअ = एकाचो हीअ (सूत्र - 7/24) णिचः + एत् = णिच एत् (सूत्र - 7/26) 34 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद दू, ह् आदि हों तो अ और विसर्ग मिलकर ओ हो जाता है। - अधः + हः = अधो हः (सूत्र - 7 / 7 ) 10. यदि विसर्ग के बाद च् हो तो विसर्ग के स्थान पर श् हो जाता है . - हः + च = हश्च ( सूत्र - 7/7) लोपः + च = लोपश्च ( सूत्र - 7 / 17 ) अनद्यतनयोः + च = अनद्यतनयोश्च (सूत्र - 7 /20) वररुचि - प्राकृतप्रकाश (भाग · 2) For Personal & Private Use Only 35 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ परिशिष्ट-2 सूत्रों का व्याकरणिक विश्लेषण सन्धि-नियम क्र.सं. सूत्र-संख्या सूत्र (1) (2) 1. 7/1 ततिपोरिदेतो {(त) + (तिपोः) + (इत्) + (एतौ)} 7,4 2. 7/2 थास्सिपोः सि से [ (थास्) + (सिपोः)] 3. 7/3 इट् - मिर्पोमिः { (इट्) - (मिपोः) + (मिः)} 4. 7/4 न्ति-हेत्था-मोमुमा बहुषु 2,8 { (न्ति)-(ह) + (इत्था)-(मोमुमाः)+ (बहुषु) } 5. 7/5 अत ए से [ (अतः) + (ए) ] से वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र - शब्द (5) त् तिपोः इत् एतौ थास् सिपोः सि इट् मिपोः मिः CE न्ति ह rc इत्था मोमुमाः बहुषु अतः वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भांग मूलशब्द, विभक्ति (6) (त) (तिप्) 6/2 (इत्) ( एत्) 1/2 (थास्) (सिप्) 6/2 (सि) 1 / 1. (से) 1/1 (इट्) . (मिप्) 6/2 (fa) 1/1 (न्ति) (ह) (इत्था) ( मोमुम) 1 / 3 (बहु) 7/3 (अत्) 5 / 1 (ए) 1/1 (से) 1/1 2) For Personal & Private Use Only परम्परानुसरण (7) भूभृत् भूभृत् भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण भूभृत् हरि राम गुरु भूभृत् परम्परानुसरण परम्परानुसरण 37 Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) सूत्र (3) सन्धि-नियम ___ (4) 6. 7/6 अस्तेर्लोपः { (अस्तेः) + (लोपः)} 7. 7/7 मिमोमुमानामधो हश्च 9, 10 { (मि) - (मो) - (मु)- (मानाम्) . . + (अधः) + (हः) + (च)} 8. 7/8 यक ईअ-इज्जौ { (यकः) + (ईअ)- (इजौ) } 9. 7/9 नान्त्यद्वित्वे { (न) + (अन्त्य) - (द्वित्वे)} 10. 7/10 न्तमाणौ शतृशानचोः 38 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र - शब्द (5) अस्तेः लोपः मो मु मानाम् अधः rc p हः च यकः ईअ इज्जौ न अन्त्य द्वित्वे न्त माणौ शतृ शानचो:: वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भांग मूलशब्द, विभक्ति (6) ( अस्ति) 6 / 1 (लोप) 1 / 1 (मि) (मो) (मु) (म) 6/3 (अधः ) (ह) 1/1 (च) ( यक् ) 6 / 1 (ईअ) ( इज्ज) 1/2 (न) ( अन्त्य ) (fara) 7/1 (न्त) (माण) 1 / 2 (शतृ) ( शानच् ) 6/2 - 2) For Personal & Private Use Only शब्दानुसरण (7) हरि राम राम राम भूभृत् राम राम राम भूभृत् 39 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " सध्या क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) सूत्र सन्धि-नियम (3) 11. 7/11 ई च स्त्रियाम् 12. 7/12 धातोर्भविष्यति हिः { (धातोः) + (भविष्यति) } हिः... 13. . 7/13 उत्तमे स्सा हा च 14. 7/14 मिना स्सं वा 15. 7/15 मोमुमैहिस्सा हित्था { (मो) + (मु) + (मैः) + (हिस्सा)} हित्था 401 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुसरण सूत्र-शब्द (5) मूलशब्द, विभक्ति (6) ur परम्परानुसरण P (ई) 1/1 (च) (स्त्री) 7/1 स्त्रियाम् धातोः भविष्यति हिः (धातु) 5/1 (भविष्यत्) 7/1 (हि) 1/1 भूभृत् उत्तमे (उत्तम) 7/1 (स्सा) 1/1 (हा) 1/1 राम परम्परानुसरण परम्परानुसरण (च) . (मि) 3/1 (स्स) 1/1 (वा) परम्परानुसरण (मो) मु .. राम हिस्सा. हित्था (म) 3/3 (हिस्सा) 1/1 (हित्था) 1/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धि-नियम क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) 16. 7/16 कृ-दा-श्रु-वचि-गमि-रुदिदृशि-विदि-रूपाणां काहं दाहं सोच्छं वोच्छं गच्छं रोच्छं दच्छं वेच्छं {(रूपाणाम्) + (काह)} 17. 7/17 1,6,1,10 थ्रवादीनां त्रिष्वनुस्वारवर्ज हिलोपश्च वा {(श्रु) + (आदीनाम्) + (त्रिषु) + (अनुस्वार) + (वर्ज)} { (हि) + (लोपः) + (च) } वा वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशब्द, विभक्ति शब्दानुसरण सूत्र-शब्द (5) For REE राम विदि रूपाणाम् काहं दाहं सोच्छं वोच्छं गच्छं रोच्छं. (श्रु) (वचि) (गमि) (रुदि) (दृशि) (विदि) (रूप) 6/3 (काह) 1/1. (दाह) 1/1 (सोच्छं) 1/1 (वोच्छं) 1/1 (गच्छं) 1/1 (रोच्छं) 1/1 (दच्छ) 1/1 (वेच्छं) 1/1 परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण वेच्छं आदीनाम् (आदि) 6/3 (त्रि) 7/3 (अनुस्वार) (वर्ज) हरि अनुस्वार वर्जं हि .. . (हि) लोपः राम (लोप) 1/1 (च) (वा) वा . . . वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 43 For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) . सूत्र - सन्धि-नियम (3) - विध्याटिष्वेकवचने उ सु मु विध्यादिष्वेकवचने 1.1 { (विधि) + (आदिषु) + (एकवचने)} . 18. 7/18 __19. 7/19 न्तु ह मो बहुषु । 20. 7/20 4,10 वर्तमानभविष्यदनद्यतनयोश्च ज्ज ज्जा वा { (वर्तमान) + (भविष्यत्) + (अनद्यतनयोः) + (च)} ज्ज ज्जा वा 21. 7/21 मध्ये च 22. 7/22 3.3 नानेकाचः {(न) + (अनेक) + (अचः)} 44 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र - शब्द (5) उ सु मु विधि आदिषु एकवचने Prc E न्तु ह मो बहुषु वर्तमान भविष्यत् . अनद्यतन च IP 3 ज्ज ज्जा वा मध्ये च न अनेक अचः वररुचि मूलशब्द, विभक्ति (6) (उ) 1/1 (सु) 1/1 () 1/1 (विधि) (आदि) 7/3 ( एकवचन) 7/1 (ह) 1 / 1 (मो) 1 / 1 (बहु) 7/3 (वर्तमान) (भविष्यत्) ( अनद्यतन) 7/2 (च) 1/1 (ज्जा) 1 / 1 (वा) (मध्य) 7/1 (च) (न) (अनेक) (अच्) 6/1 - प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only शब्दानुसरण (7) परम्परानुसरण 'परम्परानुसरण परम्परानुसरण हरि राम परम्परानुसरण परम्परानुसरण परम्परानुसरण गुरु राम परम्परानुसरण परम्परानुसरण राम भूभृत् 45 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. (1) 23. 24. 25. 26. 27. 28. 46 सूत्र - संख्या (2) 7/23 7/24 7/25 7/26 7/27 7/28 सूत्र (3) ईअ भूते एकाचो हीअ { (एक) + (अचो :) + (हीअ ) } अस्तेरासिः { (अस्तेः) + (आसि) } णिच एदादेरत आत् { ( णिचः) + (एत्) + (आदेः) + (अतः) + (आत्) } आवे च आविः क्तकर्मभावेषु वा सन्धि-नियम (4) For Personal & Private Use Only 3,8 8,4,7,8 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलशब्द, विभक्ति सूत्र-शब्द (5) शब्दानुसरण (7) (ईअ) 1/1 (भूत) 7/1 परम्परानुसरण । राम (एक) (अच्) 6/2 (हीअ) 1/1 भूभृत् परम्परानुसरण हीअ हरि (अस्ति ) 6/1 (आसि) 1/1 परम्परानुसरण . एत .. आदेःअतः (णिच्) 6/1 (एत्) 1/1 (आदि) 6/1 (अत्) 6/1 (आत्) 1/1 भूभृत् हरि भूभृत् भूभृत् आवे परम्परानुसरण (आवे) 1/1 .(च) आविः (आवि) 1/1 (क्त) (कर्म) कर्म . भावेषु - (भाव) 7/3 (वा) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) वा For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) सूत्र सन्धि-नियम 29. 7/29 नैदावे { (न) + (एत्) + (आवे)} — 30. 7/30 अत आ मिपि वा । { (अतः) + (आ) } मिपि वा । 31. 7/31 5 . इच्च बहुषु { (इत्) + (च) } बहुषु 32. 7/32 ते 33. 7/33 ए च क्त्वातुमुन्तव्यभविष्यत्सु 48 वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दानुसरण सूत्र-शब्द (5) मूलशब्द, विभक्ति (6) (न) (एत्) 1/1 (आवे) 1/1 । परम्परानुसरण परम्परानुसरण अतः आ भूभृत् लता भूभृत् मिपि (अत्) 5/1 (आ) 1/1 (मिप्) 7/1. (वा) (इत्) 1/1 (च) (बहु) 7/3 (क्त) 7/1 च (ए) 1/1 परम्परानुसरण (च). च क्त्वा तुमुन् . . (क्त्वा ) (तुमुन्) • (तव्य) (भविष्यत्) 7/3 तव्य भविष्यत्सु भूभृत् वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) 49 . For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सन्धि-नियम क्र.सं. सूत्र-संख्या (1) (2) सूत्र (3) 34. 7/34 लादेशे वा { (ल) + (आदेशे) } वा 35. 7/23 क्त्व ऊणः { (क्त्वः) + (ऊणः) } . शौरसेनी सूत्र 36. 12/9 क्त्व इअः { (क्त्वः) + (इअः)} 37. 12/20 तिपा त्थि 38. 12/32 शेषं महाराष्ट्रीवत् { (शेषम्) + (महाराष्ट्रीवत्) } वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र - शब्द (5) ल आदेशे वा क्त्वः ऊणः क्त्वः इअः तिपा . त्थि शेषम् महाराष्ट्रीवत् मूलशब्द, विभक्ति (6) (ल) (आदेश) 7/1 (वा) (arall) 6/1 (ऊण) 1 / 1 (arall) 6/1 (इअ ) 1/1 (fay) 3/1 (त्थि ) 1 / 1 (शेष) 2/1 (महाराष्ट्रीवत्) वररुचि- प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only शब्दानुसरण (7) राम गोपा राम गोपा राम भूभृत् परम्परानुसरण राम 51 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक पुस्तकें एवं कोश 1. प्राकृतप्रकाशः : सम्पादक - आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय (सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) 2. प्राकृतप्रकाशः : सम्पादक - डॉ. श्रीकान्त पाण्डेय (साहित्य. भण्डार, सुभाष बाजार, मेरठ-2) : E. B. Cowell (Punthi Pustak, Calcutta) 3. The Prākstaprakāśa 4. प्रौढ रचनानुवाद कौमुदी : डॉ. कपिलदेव द्विवेदी (विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी) 5. पाइअ-सद्द-महण्णवो : पं. हरगोविन्ददास त्रिकमचन्द सेठ - (प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी) 6. कातन्त्र व्याकरण 7. वृहद् अनुवाद-चन्द्रिका : गणिनी आर्यिका ज्ञानमती (दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान) : चक्रधर नौटियाल 'हंस' (मोतीलाल बनारसीदास नारायणा, फेज 1, दिल्ली) 8. आचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन एक अध्ययन : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी-1) वररुचि-प्राकृतप्रकाश (भाग - 2) For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only