Book Title: Jain Stotra Ratnamala
Author(s): Kothari Kasalchand Nimji
Publisher: Kothari Kasalchand Nimji
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ < & . r . ....**** NI Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन स्तोत्र रत्नमाला. (जेनी अंदर नवस्मरण उपरांत वीजा व स्तोत्रो .) REEResteESCREASESSIONS उपावी प्रसिध्द करनार कोगरी कसलचंद नीमजी. अमदावादमा राजनगर मिन्टींग प्रेसमां गपी. वीर संवत २४३३ संवत १९६३ ) 5 . मूल्य चार आना. KOSHISHISHIGHAISHA Page #6 --------------------------------------------------------------------------  Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका. विषय. १ नवकार, २ नवसग्गहर, ३ संतिकर स्तोत्र. तिजयपहुत्त स्तोत्र. ५ नमिकण स्तोत्र., ६ श्रीअजितशांति स्तवन. उजक्तामर स्तोत्र. कल्याणमंदिर स्तोत्र. ए बृहबांति स्तवन, १० जयतिहुश्रण स्तोत्र. ११ जीनपंजर स्तोत्र. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ए६ १२ ग्रहशांति स्तोत्र. १३ मंत्राधिराज स्तोत्र, एए १४ ऋषिमंगल स्तोत्र. १०६ १५ श्री तत्त्वार्थसूत्र स्तोत्र. ११७ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनस्तोत्र संग्रह. ॥अथ श्री नव स्मरणानि प्रारज्यते।। ॥ तत्र प्रथम नवकार ॥ ॥ नमो अरिहंताणं, नमो सि. शगं, नमो आयरियाणं, नमो नवप्रायाणं, नमो लोए सबसाइणं, ए. सो पंच नमुक्कारो, सवपावप्पणासलो ॥ मंगलाणं च सवेसिं, पढर्म हवश्मंगलं॥इति प्रथम स्मरण।।१ ॥ अथ नवसग्गहरं वितीय स्मरणं ॥ . ॥ नवसग्गहरं पासं, पासं वंदा. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) मि कम्मघणमुकं ॥ विसहर विसनिन्नासं, मंगल कल्याण आवासं ॥ १॥विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारे जो सया मगु॥ तस्स गह रोग मारी, ३० जरा जंति नवसासं ॥२ ॥चिन्न दूरे मंतो, तुऊ पणामोवि बहुफलो हो ॥ नर तिरिएसु वि जीवा, पावंति न उरक दोगचं ( दोहग्गं) ॥ ३ ॥ तुह सम्मने लहे, चिंतामणि कप्पपायवनहिए ॥पावंति अविरघेणं, जीवा अयरामरं गणं ॥ ४ ॥ अ संयुन म हायस, नत्तितर निप्ररेणं दिए । ता दे Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ अथ संतिकरस्तोत्रम् तृतीयं स्मरणं ॥ ॥ संतिकरं संतिजिणं, जगस-: र जयसिरी दायारं ॥ समरामि . जत पालग, निवासी गरुम कय से'वं ॥ १ ॥ नँ तनमो विप्पोसहि, पत्ताणं संति सामि पायासं ॥ झो स्वाहा मंते, सच्चासिवरिय दरपाणं ॥ २ ॥ नँ संति नमुक्कारो, खे लोस हिमाइल पित्ताणं ॥ साँ नमो सद्योस हि पत्ताणं च देश सिरिं 1 ( ७ ) व दिऊ बोहिं, नवे नवे पास जिचंद ॥ ५ ॥ इति ॥ २ ॥ . Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३॥वाणी तिहअगसामिणि लि रि देवी जस्कराय गति पिझगा ॥ गह दिसिपाल सुरिंदा, सयावि रकं तु जिगनने ॥ ॥ ररकंतु मम रो हिणी, पन्नत्ती वऊसिंखलाय सया ॥ वकुसि चक्केसरि, नरदत्ता का. लि महाकाली ॥५॥ गोरी तह गं धारी, महजाला मागवी अवश्रुट्टा ॥अछुत्ता मागसिया, महामाणसि या देवीन॥६॥ जरका गोमुह महजरक, तिमुह जरकल तुंवरूं कुसुमो ॥ मायंगो विजयाजिय, वंनो मणुन सुरकुमारो ॥ ॥ उम्मुह Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) पयाल किन्नर, गरुको गंधव तहय जस्किंदो ॥ कुबेर वरुणो निनमी, गोमेदो पास मायंगो ॥ ७॥ देवीन चक्केसरि, अजिया दुरिमारि कालि महाकाली ॥ अच्चुअ संता जाला, सुतारया सोय सिरिवठा ॥ए ॥ चं मा विजयंकुसि प, नति निवाणि अच्चुत्रा धरणी॥ वश्रुट्ट बुत गंधारि, अंब पनमावई सिदा ॥ १० ॥ अतिब रस्कारया, अनेवि सुरा सुरी चकहावि ॥ वंतर जोइणि प. मुहा, कुणंतु रकं सया अम्हं ।।११ ॥ एवं सुदिठिसुरगण, सहिन संघ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) स्स संति जियचंदो ॥मऊवि करेन ररकं, मुगिसुंदरसूरि थुअमहिमा । १२ ॥ अ संति नाह सम्म, दिति ररकं सर तिकालं जो ॥ सबोवद्दव रहिन, स लहसुह संपयं परमं ॥ १३ ॥ तवगड गयण दियर, जुग वर सिरि सोमसुंदर गुरूणं ॥ सुपसाय लाइ गणहर, विद्या सिनिपर सीसो ॥१४॥ इति श्री तृतीय स्मरणं ॥३॥ ॥ यथ तिजयपहत्त चतुर्थ स्मरणं ।। ॥तिजय पहुच पयासय, अ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापाल्हेिर जुत्ता ॥ समय रिकन रियाणं, सरेमि चकं जिणंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीआ, पनरस पन्नास जियवर समूहो। नासेन सयल रिअं, नवित्राणं नत्ति जुत्ताणं ॥ ॥ वीसा परायाला विय, तीसा पनत्तरी जिरावरिंदा ॥ गह नूअरस्क साइणि, घोरुवसग्गं पणासंतु ॥ ३॥ सित्तिरि पणतीसा विय, सही पंचेव जिणगयो एसो॥ वाहि जल जलग हरि करि, चोरारिमहा जयं हरन ॥ ४ ॥ पणपन्ना य दसेव य, पन्नही तहय चेव चा Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लीसा ॥ रत्कंतु मे सरीरं देवा सुर पण मिया सिक्षा ॥५॥ ॐ हरहुंदः सरसुंसः, हरहुंहः तह चेव सरसुं सः || श्रालिदियनाम गणं, चकं किरसबननदं ॥६॥, रोहिणी पन्नती, वञ्जसिंखला तहय वऊं कु सिया ॥ चकेसरि नरदत्ता, कालि महाकालि तह गोरी ॥७॥ गंधारी मदजाला, मागवि वरुह तहय अञ्चुत्ता ॥ माणसि महामाणसिया, विद्यादेवीन ररकंतु ॥॥ पंचदस कम्मन्नमितु, नप्पन्नं सत्चरिं जिणा - एसयं ।। विविद रयणाश्चन्नो, बसो Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिश्र हरन रिपाई॥५॥ चळतील अश्सय जुआ, अध्महापामिहेर कय सोहा । तियरा गयमोहा, काए अवा पयत्तेणं ॥ १०॥ न वर कणय संख विद्यम, मरगय घरा सन्निई विगयमोई॥ सनरिसयं जिणाणं, सबामर पूश्यं वंदे ।। स्वाहा ॥११॥ नवणव वागवंतर, जोइसवाली विमाणवासी अ॥ जे केवि कुछ देवा, ते सधे नवसमंतु मम ॥ स्वा हा ॥१२॥ चंदण कप्पूरेणं, फलए लिहिरा खालिअंपीअं। एगंतरा गह नूत्र साणि मुग्गं पणालेई । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) १३ || इस सत्तरिसयं जंतं, सम्मं मं तं वारि पमिलिहि ॥ डुरियारि विजयवंत, निप्रतं निच्च मच्चेह ॥ १४ ॥ ॥ अथ नमिकण पंचमं स्मरणं ॥ || नमिता पणय सुरगण, खू कामलि किरण रंजिश्रं मुलिलो || चलराजुश्रलं महाजय, पलासणं संवं वृद्धं ॥ १ ॥ समय कर चरण नह मुह, निबुड्डु नासा विवन्न लायन्ना ॥ कुठमहा रोगानल, फुलिंग नि सवंगा ॥ २ ॥ ते तु चलणा राहण, सलिलंजलि सेय वुट्टिया Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या ॥ (बाहा) वण दवदवा गिरि . पा, यव व पत्तापुणो नहीं ॥ ३ ॥ ज्वाय खुनिय जल निहि, नतम कल्लोल नीसणारावे ।। संनंत जय विसंठुल, निधामय मुक्कवावारे ।। ४॥अघि दलिग्रजाणवत्ता, खणे पावंति इजिअं कूलं ॥ पास जिण च लग जुअलं, निचं चित्र जे नमंति नरा ॥ ५॥ खरपवणुप्रवणदव, जाला वतिमिलियसयलदुमगहणे। मप्रंत मुहमयवहु, नीसणरव जी समि वणे ॥६॥ जगगुरुणो क मजुअलं, निवाविध सयस तिहु अ. Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गानोग्रं॥ जे संजरंति मणुप्रा, न कुण जलगो नयं तसिं ॥ ७ ॥ बिलसंत लोग नीसण, फुरिया रुण नपण तरल जीहालं ॥ नग्ग नुअंग नवजल, य सञ्चहं नीसणा यारं ॥ ॥ मन्नति कोम सरिसं, दूर परिचुदविसम विसवेगा ॥ तुद नामरकर फुमति, इमंतगुरुपानरालोए ॥ ॥ अमवासु लिल्ल त कर, पुलिंद सदूल सदनीमासु ॥ नयविहुर वुन कायर, नल्लरिय पनि सवासु ॥ १७ ॥ अविलुत्त विहवसारा, तुद नाह पशाम मत्त Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) वावारी | ववगय विग्यासिग्छ, पत्ता हिय इडियं गणं ॥ ११ ॥ पञ्जलि आनल नयणं, र वियारिय मुई महाकायं ॥ नहकुलिसघाय विध लिअ, गइंद कुंनबलानोयं ॥१२॥ पणयससंन्नमपचिव, नहमतिमा णिक पमित्र पमिमस्त ।। तुह वय गपहरणधरा, सीहं कुपि न गणंति ॥ १३ ॥ ससिधवल दंत मुसतं, दीदकरुल्लाल वहि नबाई ॥ महु पिंग नयगजुअलं, ससलिल नवज सदरारावं ॥ १४ ॥ नीमं महाग:, अच्चासन्नपि ते न विगांति Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) जे तुम्ह चलण जुअलं, मुणिवश तुंगं समल्लीसा ॥१५॥ समरम्मि तिरक खग्गा, निग्धाय पविक्षनध्य कबंधे ।। कुंतविणि निन्न करि कल ह, मुक सिकार पनरंमि ॥१६॥ निझियदप्पुहररिन, नरिंद निवडानमा जसं धवलं ।। पावंति पावपसमिण, पास जिए तुह प्पना वेग ॥ १७ ॥ रोग जल जलण विसहर, चोरारि मद गय रण नयाई ॥ पासजिण नाम संकि तरोण पसमं ति सवाई ॥१७॥ एवं मदा जयदर, पास जिशिंदस्त संभवमुयारं Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ नविय जगाणंदयर, कल्लाण परं पर निहाणं ॥१॥ राय नय जरक रस्कस, कुसुमिण उस्लमण रिस्क पीमासु ॥ संझासु दी सुपंथे, नवसग्गे तहय रयणीसु ॥ २० ॥ जो पढ जो अनिसुगर, ताणं कश्यो य माणतुंगस्त ॥ पासो पावं पसमे न, सयल नुवण चिअ चलणो ॥ ॥ २१ ॥ नवसग्गंते कमग, सुरम्मि कागा जो न संचलिन ॥सुर नर किनरजुवज्ञहिं, संथुन जयनपास. जियो ॥ २२॥ एअस्स मनयारे, अधारस अरकरहिं जो मंतो॥ जो Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) जागर सो कायर, परम पयचं फुल पासं || १३ || पासह समरण जो कुरार, संतुठे हिश्रएण || अत्तर सय वाहि जय, नासर तस्स दूरे ॥ २४ ॥ इति श्री महाजयहरनामकं पंचमं स्मरणं ॥ ५ ॥ ॥ यय श्री अजितशांति स्तवम् पष्ठमस्मरणं ॥ ॥ ग्रयिं जि सब जयं, संतिं च पसंत सद्द् गय पात्रं ॥ जय गुरु संति गुणकरे, दोवि जिावरे पणि वयामि ॥ १ ॥ गाहा ॥ ववगय मंगुल जावे, तेदं विनल तव निम्म Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) ल सदावे ॥ निरुवम महत्पन्नावे, योसामि सुदिन सप्रावे ॥ २ ॥ गादा ॥ सब पुरक पसंतीणं, सब पाव प्पसंतीणं ॥ सया अजिय सं ती, नमो श्रजि संतिां ॥ ३ ॥ सिलोगो ॥ श्रजिअ जिस सुहृप्पव तणं, तव पुरिसुत्तम नाम कित्तणं, ॥ तह य धिइ मइ पवत्तणं तवय जित्तम संतिकित्तां ॥ ४ ॥ माग हिया || किरिया विहि संचित्र कम्म किलेस विमुरकयरं, प्रजिथं नि चित्रं च गुणेहिं महा मुणि सिद्धि गयं । अस्ति य संत्ति महामु Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) गिगोविय संतिकर, सययं मम नि कारणयं च नमसणयं ॥ ५॥ आलिंगरायं ॥ पुरिसा जइ उस्क वार, जर अविमग्गह सुरक कार णं ।। अजिनं संतिंच नावन, अन्नअकरे सरणं पवळाहा ॥६॥ माग हिया ॥ अरइ र तिमिर विरहिअ, मुवरय जर मरणं ॥सुर श्रमुर गरुल तुअग वर, पयय पणि वध ॥ यजिथ महम विध, मु नय नय निनण मन्नयकर, स रण मुवसरिअ नुवि दिविज, मदि सयय मुवरामे ।। 3 ।। सगं Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ययं ॥ तं च जिणुतम मुत्तम नित्तम सत्तधरं, अजव महवखंति विमुत्ति समाहि निहिं ।। संतिकरं पणमामि दमुत्तम तिबयरं, संति मुणी मम संति समाहिवरं दिसन ॥णा सोवा गयं ।। सावधि पुत्व पबिवं च वर दलि मबय पसह विचिन्न संथिय ।। घिर सरिक वडं मयगल लीलाय माग वर गंधदवि पवाय पबियं सं थ वारिहं ।। हलि हब बाहु धंत क गग रुअग निरुवहय पिंजरं, पवर लरकणो वचिय सोम चारुरूवं सुइ सुह मानिराम परम रमणिय Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) वर देव हि निनाय महुरयर सुहगिरं ॥ ५ ॥ वेद्वनं ॥ श्रजिअं जि श्रारिगणं, जि सब जयं नवो दरिनं ॥ पणमामि श्रहं पयन, पावं पसमेन मे जयवं ॥ १० ॥ रासालु6 ॥ युग्मं ॥ कुरु जय वय दत्रिपानर, नरीसरो पढमं तनुं मदा चक्कवहि जोए मदप्पन्नावो ॥ जो वावन्तरि पुरवर सहस्स वर नगर निगम जणवय वर, बत्तीसा राय वर सहसामुयाय मग्गो ॥ चनदस वर रयण नव महानिदि चनसठि सहस्स प्रवर जुवईण सुंदर, Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) चुलसी हय गय रहसय सहस्स सां मी, बलव गाम कोमि सामी आ सिको जारहम्मि नयवं ॥ ११ ॥ वे द्वन ॥ तं संति संतिकरं, संतिणं सब नया ॥ संतिं शुगामि जिणं, सतिं वेदेन मे ॥१२॥ रासानंदियं ॥ यु. ग्मं । काग विदेह नरीसर, नर व' सहा मुणि वसहा ॥ नव सारय स सि सकलागण विगय तम विहुआ रया ॥ अजि नत्तम तेष गुणेहिं, म हा मुणि अमित्र वला विनल कुला ॥ पणमामि ते नव नय मूरण, जग सरणा मम सरणं ॥ १३ ॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) चित्तलेहा || देव दाराविंद चंद सूर वंद हठ तु जिठ परम, लठ रूत्र धंत रूप्प पट्ट सेय सुद्द निद धवल || दंत पंति संति सति कित्ति मुत्ति जुत्ति गुत्ति पवर, दित्त तेय बंद धे सह लोय नाविश्र पञ्जावले पस मे समादिं ॥ १४ ॥ ना रायन || विमल सति कलाइ रे थ मोमं, वितिमर सूर कराइरेय तेयं ॥ तिसवर गलाइरेय रुवं, धरणिधर पवरारेय सारं ॥ १५ ॥ कुसुम लया | सत्तेय तया श्रजियं सा मेरे अब यजियं ॥ तव संजमे Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) श्र प्रजिअं, एस थुलामि जिले जिथं ॥ १६ ॥ जुग परिरंगिां ।। सोम गुणेंहिं पावइ न तं, नव सरय ससी ॥ ते गुणेहिं पावइ न तं, नव सरय रवि ॥ रुवगुणेहिं पावइ न तं, तिसगावइ ॥ सारगुणेहिं पावइ न तं, धरणिधरवइ ॥ १७ ॥ खिप्रिय ॥ चिवर पदत्तयं तम रय रहियं धीर जल शुत्र चित्रं चूत्र कलि कसं ॥ संति सुह प्पत्रतयं तिगरण पयन संति महं महामुलिं सरल मुवलमे ॥ १८ ॥ ललिश्रयं || विमानाय सिरि र5 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) अंजलि रिसिग संयुग्रं श्रिमिश्रं agata घरावर नरवइ थुप म विश्राचियं बहुसो ॥ ग्रश्रुग्गय सरय दिवायर समहिा सप्पनं तवसा ॥ गयांगण वियरण समुश्य चारण वंदियं सिरसा || १५ ॥ किसलयमाला || असुर गरुल परिवंदियं, ॥ देवकोमि किन्नरोरगणमंसि P - सय संयं समणसंघ परिवंदि ॥ २० ॥ सुमुहं ॥ श्रजयं थाई अयं रूपं यजियं श्रजिथं पयन पण मे ॥ २१ ॥ विविलसियं ॥ यागया वरविमाण, दिन काग रद्द Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए) ( त्तुरय पहकर सएहिं हुलियं ॥ ससं नमो अरण, स्कुलिय लुलिअचल कुंमलं गय तिरोम सोहंत मनलि माला ॥ २२॥ वेहन । सुरसंघा सासुरसंघा, वेर विठत्ता नति सुजु ना॥आयर नूसिय संन्नमर्पिमिय, सुसुविलिय सव वलोधा ।। नत्तम कंचण रयण परूविय, नासुर नस गन्नासुरिअंगा ॥ गाय समोणय नति वसागय, पंजलि पेसिय सी. स पणामा ॥२३॥ रयामाला ॥ बंदिनण योनण तो जिणं तिगुण मेवय पुगो पयादिणं ॥ परामि Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३०) नणय जिणं सुरासुरा, पमुश् श्रा सन्नवणाई तो गया ॥ २ ॥ खितयं ॥ तं महामुखि महंपि पंजली, राग दोस जय मोह वझियं ॥ देव दागव नरिंद वंदिध संति मुत्तम महातवं नमे ॥ २५ ॥ खि नयं ।। अंबरंतर विधारणि आदि, ललिय इस बहु गामिणियाहिं ॥ पीए सोलि पण सालिणिमादि, स कल कमलदललोयणि आहि ॥ २६ ॥ दीवयं ॥ पीण निरंतर थानर विणमिय गायलयाहिं ॥ मणि कंच ग पसिदिल मेहल सोदिय सोगि Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' (३१) तमाहिं ॥ वरखिंखिणि नेनर स तिलय वलय विनुतलियाहिं ॥ रक्ष कर चनर मणोहर सुंदर दंसणि आहि ॥ २७॥ चित्तस्करा ॥ देव सुंदरोहिं पाय वंदियाहिं वंदिया य जस्त ते सुविकमाकमा अप्पणो निमालएहिं मंमगोमणपगारएहिं केहि केहिं वि अवंग तिलय पत्तलेह नामएहिं चिल्लएहिं संगयं गयाहिं नत्ति संनिविळं बंदणागयाहि हुति ते वंदिया पुणो पुणो ॥ २७ ॥ नारायन ॥ तमहं जिराचंदं अजिचं जिअ मोहं ॥ धुय सब किलेलं, Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) पयनु पणमामि ॥ २७ ॥ नंदिश्रयं || अ वंदिग्रयस्सा रिसि गणदेव गोदिं, तो देव वहुदिं पयन पल मिश्रस्सा | जस्स जगुत्तम सासल अस्सा, नचि वसामय पिंमिश्र याहिं ॥ देव वरचरसा बहुग्राहिं, सुरवररइ गुण पंमिययादिं ॥ ३० ॥ नासुर यं ॥ वंस सह तंतिताल मेलिए ति नरकरानिराम सद मीसए का, सुरसमापणे श्र सुद सऊ गीय पायजाल घंटियादि ॥ वलय मेद ला कलाव नेनुरानिराम सहमीसए कए थे देव नहियादि हाव नाव Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) विषम पगारएहिं ।। नचिनण अंग हारएहिं वैदिप्राय जस्स ते सुवि कमा कमा तयं तिलोय सब सत्त संति कारयं ॥ पसंत सब पाव दो समेत ई नमामि संति मुत्तमं जि णं ॥ ३१ ॥ नारायन । उत्त चामर पमाग जूव जव मंमिश्रा जय वर मगर तुरय लिरिवह सुलंगगा ॥ दीव समुद्द मंदर दिसागय सोहिया सहि वसद सीहरह चक्क वरंकि या ॥ पागंतर ॥ सिरिवछ सुलंट णा ॥३२॥ ललिययं ॥ सहाव लठा सम प्पश्चा, अदोस उठा गु Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) लेहिं जिता ॥ पसायसिवाण तवे पुठा, सिरीहिं हा रिसोहिं जुधा ॥ ३३ ॥ वाणवासिया ॥ ते तवेण धुय सब पावया, सबलोहिय मूल पावया, ॥ संश्रुया अजिश्र संति पावया, हुतु मे सिव मुहाग दायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिका ॥ एवं तव वल विनलं, शुषं मए अजिअ संति जिण जुअलं ॥ ववगय कम्मरयमलं, गई गयं सा सयं विनलं ॥ ३५ ॥ गाहा ॥ तं बहु गुग्ग प्प सायं, मुरक सुदेश परमेग अविसायं ।। नासेन मे वि m. Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) सायं कुणन अपरिश्तावी अपसायं ।। ३६ ॥ गाहा ॥ तं मोएन धनंदि, पावेन अनंदिलेण मन्ति नंदि ॥ परिसावि य सुह नंदि, समय दिसल संजमे नदि ॥३७ ।। गाहा ।। परिकल चालुम्माले, संवहरिए अवस्स नगिलहो । सो श्रवो सदेहि, नवसग्ग निवारणो एसो।। ३७ ॥ गाहा ॥ जो पढ जो निलुगा, नन्नन कालंपि थजिश्र संति श्रयं ।। नहु हुँति तस्त रोगा, पुचुप्पना विनासंति ॥ ३५॥ गाहा .ज छह परम पयं, श्र Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) सेहिं जिता ॥ पसायसिकारण तवे पुठा, सिरीहिं हा रिसोहिं जुधा ।। ३३ ।। वागवासिया ॥ ते तवेरा धुय सब पावया, सबलोहिय मल पावया, || संधुया अजिब संति पावया, हुतु मे सिव मुहाग दायया ॥ ३४ ॥ अपरांतिका ॥ एवं तव बल विनलं, थुझं मए अजिअ संति जिण जुअलं ॥ ववगय कम्मरयमलं, गई गयं सा सयं विनलं ॥ ३५ ॥ गादा ॥ तं बहु गुण प्प सायं, मुस्क सुदेण परमेण अविसायं ॥ नासेन मे वि Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) सायं कुणन अ परिसावी अपसायं ॥ ३६ ॥ गाहा ॥ तं मोएन थनंदि, पावेन अनंदितेश मनि नंदि ॥ परिसावि य सुह नंदि, समय दिसठ संजमे नदि ॥३७ ।। गाहा ॥ परिका चाउम्माले, संबनरिए अवस्स जणिलहो । सो अवो सोहिं, नवसग्ग निवारणो एसो ॥ ३० ॥ माहा ॥ जो पढ जो नितुणा, उन्नन कालंपि श्रजिश्र संति श्रयं ।। नहु हुँति तस्त रोगा, पुचप्पन्ना विनासंति ॥ ३५ ॥ गाहा ।।.जर छह परम पयं, अ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ) सेहिं जिठा || पसायसिवाल तवें पुछा, सिरीहिं इठा रिसीहिं जुठा || ३३ || वाणवासिया || ते तवेल धुय सच पावया, सालोदिय मूल पावया ॥ संश्रया अजि संति पात्रया, हंतु मे सिव मुहास दायया || ३४ ॥ श्रपरांतिका || एवं तव वल विजलं, थुत्रं मए प्रजिअ संति जिस जुमलं ॥ ववगय कम्मरयमलं, गई गयं सा सयं विज्ञलं ॥ ३५ ॥ गाहा ॥ तं बहु गुण प्प सायं, मुरक सुद्रेा परमेण श्रविसायं ॥ नासेन मे वि Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) - सायं कुपन प्र परिसावी अपसायं || ३६ || गाढ़ा ॥ तं मोएन धनंदि, पावेन अ नंदिसेल मनि नंदि || परिसावि य सुद नंदिं, समय दिसन संजमे नंदिं ॥ ३७ ॥ गादा || परिका चानम्माले, संवहरिए प्रवस्स नसिबो || सो श्रवो सवेहिं, नवसग्ग निवारणो एसो ॥ ३८ ॥ गाहा ॥ जो पढ जो निसुगर, नमन कालंपि श्रजिश्र संति ययं || नहु हुंति तस्स रोगा, पुप्पन्ना विनासंति ॥ ३७ ॥ गाहा ||. जइ इच्छद परम पयं, अ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) हवा किर्ति सुविचम् नुवणे ॥ ता तेलुकुहरणे, जिगवयगे आयरं कुगद ॥४०॥ गाहा ॥ इति ॥ ॥ अथ जक्तामरनामकं सप्तम स्मरणं ॥ ॥नक्तामरप्रणतमौलिमणि प्र नाणा, मुद्योतकं दलितपापतमो वितानम् ।। सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा, वालंबनं नवजले पततां जनानाम् ॥ १॥ यः संस्तुतः सकलवाङ्मयतत्त्ववोधा उद्लूतवु पिटुनिः सुरलोकनायैः ॥ स्तोत्रैर्जगत्रितयचित्तरैरुदारैः, स्तोप्ये Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) किलाइमपि तं प्रथमं जिनम् ॥ ॥ बुध्या विनापि विबुधार्चित, पादपीठ, स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम् ॥ बालं विहाय जल संस्थितमिंउबिंब, मन्यः क बति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥ वक्तुं गुणान् गुणसमुइ शशांककांतान, कस्ते कमःसुरगुरुप्रतिमोपि बुझ्या ॥ कल्पांतकालपवनात नकचक्र, कोवा तरोतुमलमंबुनिधिं नुजा न्याम् ॥४॥ सोऽहं तथापि तव नक्तिवशान्मुनीश, कर्तुं स्तवं विगत शक्तिरपि प्रवृत्तः॥ प्रीत्यात्मवीर्यम Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) विचार्य मृगो मृगें, नान्येति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥ ५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम त्वद्भक्तिरेव मुखरी कुरुते वलान्मां ॥ यत्कोकिलः किल मधो मधुरं वि रौति,तबारुनूतकलिकानिकरैकहेतुः ॥ ६ ॥ त्वत्सं स्तवेन नवसंतति सनिव-ई, पापं क्षणातदयमुपैति द्वारोरनाजाम् ॥ श्राक्रांतलोकमलि नीलमटोपमाशु, सूयाँशनिन्नमिव शविरमंधकारम् ॥॥ मत्वेति नाय तव संस्तयनं मयेदं, मारच्यते तनुधियापि तव प्रस्तावात ॥ चेतो Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) हरिष्यतिसतां नलिनीदलेषु, मुक्ता फलद्युतिमुपैति ननूदबिंः ॥७॥ आस्तांतव स्तवनमस्त्र समस्तदोषं, त्वत्संकथापि, जगतां धरितानि हंति ॥ दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रनैव, पद्माकरेषु जलजानि विकाशनांजि ॥ ए ॥ नात्यद्भुतं नुवननूषणनूत! नाथ, नूतैर्गुणैर्नुवि नवंतमनिष्टुवं तः॥ तुल्यानवंति नवतोननु तेन किं वा, नूत्याश्रितं यह नात्मसमं करोति ॥१०॥ दृष्ट्वा नवंतमनिमे षविलोकनीय, नान्यत्र तोषमुपया तिजनस्य चकुः॥ पीत्वा पयः श Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () शिकारद्युतियुग्धसिंधोः, कारं जलं जलनिधेर शितुं कश्चेत् ॥ ११ ॥ यैः शांतरागरुचिनिः परमाणुनिस्त्वं, निर्मापितस्विन्नुवनैकललामनूत ॥ तावंतएव खलु तेप्यणवः पृथिव्यां, यत्ते समानपरं नदि रूपमस्ति । १॥ वक्र क ते सुरनरोरगनेवहारि, निः शेषनितिजगत्रितयोपमानम ॥ विवं कलंकमलिनं क निशाकरस्य, यहासरे नवति पांमुपलाशकल्पम् ।। १३ ।। संपूर्णमंमल शशां फकलाकलाप, शुत्रा गुणास्त्रि जुवनं तव लंघयंति ॥ ये संश्रितात्रिजग Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) दीश्वर नायमेकं, कस्तानिवारयति संचरतोयथेष्टम् ॥ १४ ॥ चित्रं किमत्र यदि ते त्रिदशांग नांन्नि, नीतं मनागपि मनो न विकारमा. म् ॥ कल्पांतकालमरुता चलिताचलेन, किं मंदरादिशिखरं चलितं कदाचित् ॥१५॥ निमवर्तिरपवतितैलपूरः, कृत्स्नं जगत्रयमिदं प्रकटीकरोषि ॥ गम्योन जातु म. रुता चलताचलानां, दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाशः ॥१६॥ नास्तं कदाचिउपयासि न राहुगम्या, स्पष्टीकरोषि सहसा युगमजा Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) गंति || नांनोधरोदर निरु महाप्रजा वः, सूर्यातिशायिमहिमासि मुनींद लोके ॥ १७ ॥ नित्योदयं दलितमोहमदांधकारं, गम्यं न राहुवदनस्य न वारिदानाम् ॥ विन्राजते तव मु. खाब्जमनल्पकांति, विद्योतयजगद पूर्वशशांक विवम् ॥ १८ ॥ किं शवैरीपु ाशिनाहि विवस्वता वा, युष्मन्मुखेऽदलितेषु तमस्तु नाथ ॥ निष्पन्नगालि वनशालिनि जीव लोके, कार्य कियऊन धरैर्जलनार नत्रैः ॥ ५ ॥ ज्ञानं यथा त्वयि वि जाति कृतावकाशं, नैवं तथा दरि Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरादिषु नायकेषु ॥ तेजः स्फुरन्मगिषु याति यथा महत्वं, नैवंतु काचशकले किरणाकुलेपि ॥२०॥ मन्ये वरं हरिहरादय एव दृष्टा, ह. ष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोपमेति ।। किं वीक्षितेन नवता नुवि येन नान्यः, कश्चिन्मनोहरति नाथ नवां तरेपि ॥ १॥ स्त्रीणां शतानि शत शो जनयंति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वउपमं जननी प्रसूता ॥ सर्वादिशो दधति नानि सहस्ररश्मि, प्रा. व्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम्, ॥२॥ त्वामामनंति मुनयः परम Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) पुमांस, मादित्यवर्णमम तमसः परस्तात् ॥ त्वामेव सम्बगुपलन्य जयंति मृत्यु,नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीं पंथाः ॥२३॥ त्वामव्ययं विनुमचिंत्यमसंख्यमाद्यं,ब्रह्माणमा श्वरंमनंतमनंगकेतुम् ॥ योगीश्वरं विदितयोगमनेकमेकं, झानस्वरूपममलं प्रवदंति संतः॥२४॥ बुइस्त्व मेव विवुवाचितवुधिोधात् ॥ त्वं शं करोसि नुवनत्रयशंकरत्वात् ॥धातासि धीर शिवमार्ग विधेर्विधानात, व्यकं त्वमेव नगवन पुरुषोत्तमोऽग्नि ॥२५॥ तुभ्यं नमस्त्रिभुवनानिद Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) रायनाय, तुभ्यं नमः दितितलामबजूषणाय ।। तुभ्यं नम स्त्रिजगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिननवोद धिशोपणाय ॥ २६ ॥ कोविस्मयो ऽत्र यदि नाम गुणैरशेष, स्त्वंसं श्रि तो निरवकाशतया मुनीश ॥ दोषै. रुपात विविधाश्रय जातगर्वैः, स्वप्नां तरेपि न कदाचिदपीक्षितोसि ॥२॥ नचैरशोकतरुसंश्रितमुन्मयूख, मा नाति रूपममलं नवतोनितांतम् ॥ स्पष्टोल्लसकिरणमस्ततमोवितानं, विवं रवेरिव पयोधरपार्श्ववर्ति ॥ श्॥सिंहासने मणिमयूखशिखा Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) विचित्रे, विवाजते तव वपुः कनकावदातम् ॥ विवं वियहिलसदंश लतावितानं, तुंगोदमाशिशिरतीय सहयग्दः ॥ २५ ॥ कुंदावदात चलचामरचारुशोनं, विवाजते तब वपुः कलौतकांतम् ॥ नयनशा कशुचिनिर्जरवारिधार, मुचैस्तटं सु रगिरेरिव शातकोलम् ॥ ३० ॥ त्र त्रयं नव विनाति शशांककांत, मुचः स्यितं स्यगितनानुकरप्रतापम् ॥ मुक्ताफलप्रकरजालविवृत शोनं, प्रख्यापयनिजगतः परमेश्वरत्वम ॥ ॥ ३१ ॥ ननिहेमनवपंकजपुंजका Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (as) ति, पर्युजतनखमयूख शिखाजिरा मौ॥ पादौ पदानि तव यत्र जिने धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकस्पयंति ॥ ३ ॥ श्वं यथा तव वि नूतिरन्नूजिनेश, धर्मोपदेशनविधौ न तथा परस्य ॥ यादृमना दिन कृतःप्रहतांधकारा, ताहकुतो ग्रहग पस्य विकाशिनोपि ॥ ३३ ॥ श्यो तन्मदाविलविलोलकपोलमूत, मत्त ब्रमद् ब्रमर नादविवृक्षकोपम् ।। ऐरावतानमिन्नमुःतमापतंतं, दृष्ट्वा नयं नवतिनो नवदाश्रितानाम् ।। ॥ ३४ ॥ लिनेन कुंलगतचल Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) शोणिताक्त, मुक्ताफलप्रकरनूषित नूमिनागः ॥ वक्रमः क्रमगतं ह रिणाधिपोऽपि, नाकामति क्रमयुगा चलसंश्रितं ते ॥ ३५ ॥ कल्पांतका लपवनोइतवद्रिकल्पं, दावानलं ज्व लितमुज्ज्लमुत्फुलिंगम् ॥ विश्वं जिघन्सुमिव संमुखमापतंतं, त्वना मकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥ ३६ ॥ रक्तक्षणं समदकोकिलकंपनीलं, क्रोधोनं फणिनमुत्फणमापतंतम् ॥याकामनि क्रमरगेन निरस्तांक, मन्यनामनागदमनी हदि यस्य पुंसः।। .....गायत्गनुरंगगजगजित नीमनाद, Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (धए) माजौ बलं बलवतामपि नूपतीनां। नद्यदिवाकरमयूखशिखापविद, त्वकीर्तनात्तमश्वाशु निदामुपैति॥३७ ।। कुंताग्रनिन्नगजशोणित वारिवाह, वेगावतारतरणातुरयोधनीमे ।। युद्ध जयं विजितउर्जयजेयपक्षा, स्त्वत्पा दपंकजवनाश्रयियो लन्ते ॥३॥ अंनोनिधौ कुजितनीषणनचक्र, पानपीउन्नयदोबसवामवानौ ॥ रंगत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रा, स्वा सं विहाय नवतः स्मरणाबजंति ॥ ४० ॥ उदभूतनीषणजलोदर जारभुनाः, शोच्यां दशामुपगताश्य Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) तजीविताशाः ॥ त्वत्पादपंकजरजो मृतदिग्धदेहा, मां नवंति मकर ध्वजतुल्यरूपाः ॥४१॥ पापादकंग मुरुगंखलवेष्टितांगा, गादं वृह निग मकोटिनिघटजधाः ॥ त्वनाममंत्रम निशं मनुजाः स्मरंतः, सद्यः स्वयं विगतबंधजया नवंति ॥ ४२ ॥ मत्त हिमृगगज दवानलाहि, संग्राम वारिधिमहोदरबंधनोत्रम् ॥ तस्या झ नादामुपयातिनयं नियव, य स्तावकं स्तमिमं मतिमानधीते ।। ॥४३॥ स्तोत्रम तव जिनइ गुणे निवां, नत्या मयारूचिरवर्णधि Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - (५ ) चित्रपुष्पां ॥ धत्ते जनो य इद कंठगतामजस्रं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ॥४४॥ इति नक्तामरनामकस्तोत्रं सप्तमं स्मरणम् ॥ ७॥ won ॥ अथ श्रीकल्याणमंदिरस्वोत्रं यष्टम स्मरणं मारभ्यते ॥ ॥ कल्याणमंदिरमुदारमश्यने दि, नीतान्नयप्रदमनिंदितमंघ्रिप अम् ॥ संसारसागरनिमाइशेष जंतु, पोतायमानमनिनम्य जिने श्वरस्य ॥ १ ॥ यस्य स्वयं सुरगु Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) तजीविताशाः ॥ त्वत्पादपंकजरजो मृतदिग्वदेदा, मर्त्या नवंति मकर ध्वजतुल्यरूपाः ॥ ४१ ॥ श्रपादकंच सुरुjलवेष्टितांगा, गाढं बृहत्रिग रुकोटिनिघृष्टजंघाः ॥ त्वन्नाममंत्रम निशं मनुजाः स्मरतः सद्यः स्वयं विगतबजया जयंति ॥ ४२ ॥ मत्त हिमृगराज दवानलाहि, संग्राम वारिविमदोदरच नोत्रम् ॥ तस्या शुनाशमुपयाति जयं नियेव, य स्तावकं स्तवमिमं मतिमानवीते ॥ ॥४॥ स्तोत्रस्रजं तव जिनं गुणे निवां नत्या मयारुचिरवर्णवि · Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) चित्रपुष्पां ॥ धत्ते जनो य श्द कंठगतामजस्रं, तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः ।। ४ ।। इति लक्तामरनामकस्तोत्रं सप्तमं स्मरणम् ॥ ७॥ ॥ अथ श्रीकल्याणमंदिरस्तोत्रं अष्टम स्परणं मारभ्यते ॥ ॥ कल्याणमंदिरमुदारमवद्यने दि, नीतान्नयप्रदमनिंदितमंघ्रिप मम् ॥ संसारसागरनिमहादशेष जंतु, पोतायमानमजिनम्य जिने श्वरस्य ॥ १ ॥ यस्य स्वयं सुरगु Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) रुर्गरिमांबुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृत मतिर्न विभुर्विवातुम् ॥ तीर्थश्वरस्य कमवस्नयधूमकेतो, स्तस्यादमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥ २ ॥ युग्म म ॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूप, मस्मादृशाः कथमधीश न चंत्यधीशाः ॥ धृष्टोपि कौशिकशि शुर्यदि वा दिवांधो, रूपं प्ररुपयति किं किल घर्मरः ॥ ३ ॥ मोदक यादनुजवन्नपि नाथ मत्यों, नूनं गुलान गणयितुं न तव कमेत ॥ कपतितपयसः प्रकटोऽपि यस्मा, समीयेत केन जलधेर्ननु रत्नगशि Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ॥४॥अभ्युद्यतोस्मि तव नायज माशयोऽपि, कत्तुं स्तवं लसदस ख्यगुणाकरस्य ॥ वालोऽपि किं न निजवाहुयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियांबुराशेः ॥५॥ ये योगिनामपि न यांति गुणास्तवे श, वक्तुं कथं भवति तेषु ममावका शः ॥ जाता तदेवमसमीक्षितका रितेयं, जल्पंति वा निजगिरा ननुप क्षिणोऽपि ॥६॥ प्रास्तामचिंत्यमहि मा जिन संस्तवस्ते, नामापि पाति नवतो नवतोजगंति ॥ तीव्रातपोप हत पांयजनानिदाघे, प्रीणाति पद्म Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) रुर्गरिमांबुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृत मतिर्न विभुर्विधातुम् ॥ तीर्थश्वरस्य कमवस्नयधूमकेतो, स्तस्यादमेप किल संस्तवनं करिष्ये ॥ २ ॥ युग्म म् ॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूप, मस्मादृशाः कथमधीश न वत्यधीशाः ॥ घृष्टोपि कौशिकशि शुर्यदि वा दिवांधो, रूपं प्ररूपयति किं किल घर्मरश्मेः || ३ || मोहक यादनुजवन्नपि नाथ मत्यों, नूनं गुसान् गणयितुं न तव कमेत ॥ कल्पांतवांतपयसः प्रकटोऽपि यस्मा, त्मीयेत केन जलधेर्ननु रत्नराशिः Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३). ॥४॥अभ्युद्यतोस्मि तव नाथ ज़ माशयोऽपि, कत्तुं स्तवं लसदसं ख्यगुणाकरस्य ।। बालोऽपि किं न निजबाहुयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियांबुराशेः ॥५॥ ये योगिनामपि न यांति गुणास्तवे श, वक्तुं कथं नवति तेषु ममावका शः ॥ जाता तदेवमसमीक्षितका रितेयं, जल्पंति वा निजगिरा ननुप क्षिणोऽपि ॥६॥ आस्तामचिंत्यमहि मा जिन संस्तवस्ते, नामापि पाति नवतो नवतोजगंति ॥ तीव्रातपोप हत पांथजनानिदाघे, प्रीणाति पद्म Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) रूगरिमांबुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृत मतिर्न विभुर्विधातुम् ॥ तीर्घश्वरस्य कमस्मयधूमकेतो, स्तस्याइमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥ २॥ युग्म म् ॥ सामान्यतोऽपि तव वर्णयितुं स्वरूप, मस्मादृशाः कपमधीशन वंत्यधीशाः ॥ धृष्टोपि कौशिकशि शुर्यदि वा दिवांधो, रूपं प्ररूपयति किं किल धर्मरश्मेः॥३॥ मोहक यादनुलवन्नपि नाथ मयों, नूनं गु. एगान गणयितुं न तव कमेत ॥ कल्पांतवांतपयसः प्रकटोऽपि यस्मा, स्मीयेत केन जलधेनु रत्नराशिः Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ॥ ४ ॥ अभ्युद्यतोस्मि तव नाथ ज़ माशयोऽपि कर्त्तुं स्तवं लसदसं ख्यगुणाकरस्य || बालोऽपि किं न निजबाहुयुगं वितत्य, विस्तीर्णतां कथयति स्वधियांबुराशेः ॥ ५ ॥ ये योगिनामपि न यांति गुणास्तवे श, वक्तुं कथं भवति तेषु ममावका शः ॥ जाता तदेवमसमीक्षितका रितेयं, जख्यंति वा निजगिरा ननु प किलोऽपि ॥६॥ श्रास्तामचिंत्यमदि मा जिन संस्तवस्ते, नामापि पाति नवतो भवतो जगति ॥ तीव्रातपोप दत पांयजनान्निदाघे, प्रीणाति पद्म , Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) सरसः सरलो निलोऽपि ॥ ७ ॥ हृछ तिनि त्वयि विनो शिथिलीजवंति, जंतोः कणेन निविमा यपि कर्मवं घाः ॥ सद्योनुजंगममया इव मध्य जाग, मत्र्यागते वनशिखंमिनि चं दनस्य ॥ ८ ॥ मुच्यंत एव मनुजाः सहसा जिनेंड़, रुपड्वशतैस्त्व यि वीचितेऽपि ॥ गोस्वामिनि स्फु रिततेजसि छष्टमात्रे, चौरैरिवाशु पशवः प्रपलायमानैः ॥ ए ॥ त्वं ता रको जिनकथं जविनां त एव, त्वामु इदंति हृदयेन यडुत्तरंतः ॥ यक्ष इंतिस्तरति यफलमेषनून, मंतर्ग Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) तस्य मरुतः स किलानुनावः ॥१०॥ यस्मिन् हरप्रभृतयोऽपि दतमना वाः, सोऽपि त्वया रतिपत्तिः -कपि तः कलेन || विध्यापिता हुतभुजः पयसाथ येन, पीतं न किं तदपि ईरवावेन ॥ ११ ॥ स्वामिन्न नल्पगरिमाणमपि प्रपन्ना, स्त्वां जितवः कथमहो हृदये दधानाः ॥ जन्मोदधिं लघु तरंत्यतिलाघवेन, चिंत्यो न दंत महतां यदि वा प्रज्ना चः ॥ १५ ॥ क्रोधस्त्वया यदि विनो प्रथमं निरस्तो, ध्वस्तास्तदा बत कंथ किल कर्मचौराः ॥ प्वोषत्य " } Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) मुत्र यदिवा शिशिरापि लोके, नील द्रुमाणि विपिनानि न किं हिमानी ॥ १३ ॥ त्वां योगिनो जिन सदा परमात्मरूप, मन्वेषयंति हृदयांबुजकोशदेशे॥ पूतस्य निर्मलरुचेर्य दिवा किमन्य, ददस्य संन्नधि पदं ननु कर्णिकायाः ॥ १४॥ ध्याना जिनेश नवतोनविनः करोन, देहं विहाय परमात्मदशां व्रजति ॥ तीवानलाउपलनावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुन्नेदाः।। १५ ।। अंतः सदैव जिन यस्स वि नाव्यसेत्वं, नव्यैः कथं तदपि नाम Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) यसे शरीरम् ॥ एतत्स्वरूपमथ मध्यविवर्तिनो हि, यङ्ग्रिहं प्रशम यति महानुनवाः ॥ १६ ॥ आत्मा मनीषितिरयं त्वदल्नेदबुध्या, ध्यातो जिनें! नवतीह नवत्पन्नावः ॥ पानीयमप्यमृतयत्यनुचित्यमानं,किं नाम नो विषविकारमपाकरोति ।। १७ ॥ त्वामेव वीततमसं परवादि नोपि, नूनं विनो हरिहरादिधियाप्र पन्नाः ॥ किं काचकामलिनिरीश सितोऽपि शंखो, नो गृह्यते विविध वर्णविपर्ययेण ॥१७॥ धर्मोपदेश समये संविधानुन्नावा, दास्तां Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) नवति ते तरुरप्यशोकः ॥ अच्युते दिनपतौ समदीरुदोपि, किंवा विबोधमुपयाति न जीवलोकः ॥ १५ || चित्रं विनो कथमवाङ्मुखवंतमेव, विष्वक पत्तत्य विरला सुरपुष्प, वृष्टिः ॥ त्वद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश, गांति नूनमधएव दि बंधनानि ॥ २० ॥ स्थाने गनीर हृयोदधिसंभवायाः पीयूषतां तव गिरः समुदीरयंति ॥ पीत्वा यतः परमसंमदसंगनाजो, नव्या व्रजंति तरसाध्यजरामरत्वम् ॥ २१ ॥ स्वा मिन सुदूरमवनम्य समुत्पतंतो · Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पए) मन्ये वदति शुचयः सुरचामरौघाः येऽस्मै न तिं विद्यते मुनिपुंगवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुइनावाः ॥ २२ ॥ श्यामं गभीरगिर मुज्वलदेम रत्न, सिंहासनस्थमिह नव्य शिखंमिनस्त्वाम् || आलोकयंति रजसेन नदंतमुचै, वामी करादिशिरसीव नवांबुवादम् ॥ २३ ॥ नद्गन्वता तव शितिद्युतिमंमलेन, लुप्तदच्च विरशो क तरुर्वभूव ॥ सान्निध्यतोऽपि यदि वा तव वीतराग, नीरागतां व्रजति कोन सचेतनोपि ॥ २४ ॥ नोनोः प्रमादमवधूय नजध्वमेन, A Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) निर्वृतिपुरिं प्रतिसार्थवादम् ॥ एत निवेदयति देवजगत्रयाय, मन्ये नदन्ननिननः सुरडु ुनिस्ते || १५ ॥ उद्योतितेषु भवता भुवनेषु नाथ, तारान्वितो विधुरयं विदताधिकारः ॥ मुक्ताकलापक लितो सितातपत्र, व्याजाविधा धृततनुर्ध्रुवमभ्युपेतः ॥ २६ ॥ स्वेन प्रपूरितजगत्रयपिंमितेन, कांतिप्रताप यशसामिव संचयेन || माणिक्यदेमरजतप्रविनिर्मितेन, सालत्रयेण भगवन्न नितो विनासि ॥ २७ ॥ दिव्यसृजोजिन नमत्रिदशाधिपाना, मुत्सृज्य" / J , } Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) रत्नरचितानपि मौलिवधान ॥ पादौ श्रयंति नवतो यदि वा परत्र, त्वत्संगमे सुमनसोन रमंतएव ॥श्नात्वं नाथ ! जन्मजलधेर्विपराङ्मुखोपि यत्तारयस्यसुमतो निजपृष्ठलनान् । युक्तं हि पार्थिव निपस्य सतस्तवैव, चित्रं विन्नो यदसि कर्मविपाकशून्यः ॥ ए॥ विश्वेश्वरोऽपि जनपालक उर्गतस्त्वं, किंवाक्षरप्रकृतिरप्यलिपिस्त्वमीश ॥ अज्ञानवत्यपि सदैव कथंचिदेव,झानं त्वयि स्फुरति विश्व विकाशहेतुः॥३०प्राग्नारसंतृत नत्नांसि रजांसि, शेषाञ्चापिता - Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमरेन शठेन यानि ॥ गयापि ते. स्तव न नाथ हताहताशो, ग्रस्तस्त्व मीनिरयमेव परं पुरात्मा ॥ ३१ ॥ ॥ यदगर्जर्जितघनौघमदनीम, वश्यत्तमिन्मुसलमांसलघोरधारम् ।। दैत्येन मुक्तमय उस्तरवारि दभ्रे, तेनैव तस्य जिन उस्तरवारिकृत्यम् ॥३॥ ध्वस्तोर्ध्वकेशविकृता कुतिमर्त्य मुंम्, पालंबज़दू नयदवक्रविनिर्यदग्निः ॥ प्रेतवजः प्रतिनवंतमपीरितोयः, सोऽस्याऽनवत्पतिनवं नवपुःखहेतुः ॥ ३३ ॥ धन्यास्त पख नुवनाधिप ये त्रिसंध्य, मारा Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) वयंति विधिवधिधुतान्यकृत्याः ॥ नस्योल्लसत्पुलकपदमलदेहदेशाः, पादयं तव विन्नो नुवि जन्म नाजः॥३४॥ अस्मिनपारनववारिनिधौ मुनीश, मन्ये न मे श्रवणगोचरतां गतोऽसि ॥ आकर्णिते तु तव गोत्रपवित्रमंत्रे, किंवा विपक्षि घरी सविध समेति ॥ ३५॥ जन्मांतरेऽपि तव पादयगं न देव, मन्ये मया महितमीहित दानदहम् ॥ते. नह. जन्मनि मुनीश परानवाना, जातो निकेतनमहंमा । = ॥३९॥ ननं न मोहति Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) लोचनेन, पूर्व विनोसकदपि प्रवि. लोकितोऽसि ॥ मर्माविधो विधुर यति हि मामनाः , प्रोद्यत्प्रबंधगतयः कथमन्यथैते ॥३७॥ आकणितोऽपि महितोऽपि निरीक्षितोऽपि, ननं न चेतसि मया विधृतोऽसि न. त्या ॥ जातोऽस्मि तेन जनबांधव मुखपात्रं, यस्माक्रियाः प्रतिफलंति ननावशून्याः ॥ ३० ॥ त्वं नाथ दुःखिजनवत्सल हे शरण्य, कारुण्य पुण्यवसते वशिनां वरेण्य॥ नत्या नते मयि मदेश दयां विधाय, कु:खां सरोदलनतत्परतां विधेहिः ॥ ३ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निःसंख्यसारशरणं शरणं शरएय, मासाद्य सादितरिपुप्रथितावदातम् ॥ त्वत्पादपंकजमपि प्रणिधानवंध्यो, बध्योऽस्मिचेदू नुवनपावन हा इतोऽस्मि ॥ ४० ॥ देवेंशंद्य विदिताखिलवस्तुसार, संसारतारक विनो नुवनाधिनाथ ॥ त्रायस्व देव करुणाहद मां पुनीहि, सीद. तमद्य नयदव्यसनांदुराशेः॥४१॥ यद्यस्ति नाथ नवदंघिसरोरुहाणां, मक्तेः फलं किमपि संतति संचिता याः ॥ तन्मे त्वदेकशरणस्य शरण्य नूयाः, स्वामी त्वमेव नुवनेऽत्र - Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) लांतरेऽपि ॥५॥छ समाहितधियो विधिवजिनेश, सांशेजसत्पुलक कंचुकितांगनागाः। त्वबिंबनिर्मल मुखांबुजबाइलया, ये संस्तवं तव विनो रचयंति नव्याः ॥ ३ ॥ आर्या । जननयनकुमुदचंद, प्रना स्वराः स्वर्गसंपदोनुक्त्वा ॥ते वि. गलितमलनिचया, अचिरान्मोद प्रपद्यते ॥ युग्मम् ॥४॥ इति श्री कल्याणमंदिरनामकं अष्टमं स्मरणं ॥७॥ Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) ॥ अथ बृहन्छांतिस्तवननामक नवम स्मरण पारंजः ॥ नोलो नव्याः श्रृणुत वचनं प्रस्तुतं सर्वमेतत्, ये यात्रायां त्रिन्नुवनगुरोराईतां नक्तिनाजः॥ तेषां शांतिनवतु नवतामहदादिप्रन्नावा, दारोग्यश्रीबृतिमतिकरी क्लेश विध्वं. सहेतुः॥१॥ गद्यं ॥नोलो नव्य लोका ह हि नरतैरावत विदेदसं नवानां समस्ततीर्थकतां जन्मन्यासनप्रकंपानंतरमवधिना विज्ञाय सौ “धर्माधिपतिः सुघोषा घंटाचालनानं तरं सकलसुरासुरैः सह समागत्य Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) सविनयमहनटारकं गृहीत्वा गत्वा कनकाशिंगे विहितजन्मानिषेकः शांतिमूघोषयति यया ततोऽहं कृतानुकारमिति कृत्वा महाजनो येन गतः स पंथाः इति नव्यजनैः सह समेत्य स्नात्र पीछे स्नात्रं विधाय शांतिमुधोशयामि तत्पूजायात्रा स्नात्रादि महोत्सवानंतरमिति कृत्वा कर्ण दत्वा निशम्यतां निशम्यतां स्वाहा ।। ॐ पुण्याहं पुण्याहं प्रीयंतां प्रीयंतां लगवंतोहतः सर्वज्ञाः सर्वदर्शिन स्त्रिलोकनाथा स्त्रिलोकमहिता स्त्रिलोकपूज्या स्त्रिलोकेश्वरा Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थिलोकोद्योतकराः ॥ न झपन्न अजित संनव अन्तिनंदन सुमति पन्नान सुपार्थ चंझन सुविधिशी तल श्रेगांत वासुपूज्य विमल अनंत धर्म शांति कुंयुअर मल्लि सुनितुव्रत नमिनेमि पाच वर्षमानांता जि नाः शांताः शांतिकरा.नवंतु स्वाहा ॥ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय निदकांतारेषु उर्गमार्गेषु रदंतु वोनित्यं स्वाहा ॥ ॐ श्री धुति मति कीर्ति कांति बुद्धि लक्ष्मी मेधा विद्या साधनप्रवेशननिवेशनेषु. सुगृहीतनामानो जयंतुते जिनेश Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (७०) । रोहिणी प्रज्ञप्ति वजश्रृंखला वजांकुशी अप्रतिचक्रा पुरुषदत्ता काली महाकाली गौरी गांधारी सर्वास्त्रा महाज्वाला मानवी वैरुट्या अचुप्ता मानसी महामानसी षो मा विद्यादेव्यो रदंलु वोनित्यं स्वा हा॥ आचार्योपाध्यायप्रन्नति चा तुर्वर्ण्यस्य श्रीश्रमणसंघस्य शांति नवतु तुष्टिनवतु पुष्टिर्नवतु ॥ न ग्रहाचं सूर्यांगारक बुध बृहस्पति शुक्र शनैश्चर राहु केतुसहिताः सलो रुपालाः लोम यम वरुण कुबेरवास दत्य स्कंदविनायकोपताः ये चा Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Į (७१) न्येऽपि ग्रामनगरक्षेत्र देवतादयस्ते सर्वे प्रीयंतां प्रीयंतां अक्षीण कोश कोष्ठागारानरपतयश्च भवंतु स्वादा ॥ हुँ पुत्र मित्र छातू कलत्र सुहृद स्वजन संबंधिबंधुवर्गसहिता नित्यं चामोदप्रमोदकारिणः श्रस्मिँश्व भूमंकलायतननिवालि साधुसाध्वी श्रावकश्राविकाणां रोगोपसर्गव्या विदुःखर्मिक दौर्मनस्योपशमनाय शांतिर्भवतु ॥ तुष्टिपुष्टशदिवृदि मांगल्योत्सवाः सदा प्राडुर्भूतानि पापानि शाम्यंतु दुरितानि ॥ श 'पराङ्मुखा भवंतु स्वाहा || S १३ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) शांतिनाथाय, नमः शांतिविधायिने ॥ त्रैलोक्यस्यामराधीश, मुकुटान्य चितांधये ॥ १ ॥ शांतिः शांतिकरः श्रीमान, शांति दिशतु मे गुरुः ॥ शांतिरेव सदा तेषां, येषां शांतिर्ग हे गृहे ॥२॥ उन्सृष्टरिष्टउट, ग्रह गतिःस्वप्ननिमित्तादि ॥ संपादि तहितसंप, बामग्रहणं जयति शो ॥३॥ श्रीसंघजगजनपद, राजाधिपराज्यसनिनेझानाम् ॥ गोष्टिक पुरस्मुख्यानां,व्याहरगाहरेहांतिम् ॥श्रीश्रमसंघस्य शांतिनवतु, श्रीपौरजनस्य शांतिर्नवतु, श्रीजन Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) पदानांशांतिनवत,श्रीराजाधिपाना शांतिनवतु, श्रीराज्यसनिवेशानी शांतिनवलु, श्रीगोष्टिकानां शांतिर्न वतु, श्रीपुरमुख्यागां शांतिर्नवतु, श्रीब्रह्मलोकस्य शांतिनवतु | 'स्वाहा, स्वादानश्री पार्श्वनाथाय स्वाहा ॥ एषा शांति प्रतिष्ठा यात्रा स्नात्रायवसानेषु शांतिकलशं गृही त्वा कुंकुमचंदनकर्पूरागरुधूपवास कु 'सुमांजलिसमेतः स्नाचतुष्किकायां श्रीसंघसमेतः शुचिंशुचिर्वपुः पुष्प वस्त्र चंदनानरणालंकृतः पुष्पमा. ला कंठे कृत्वा शांतिसुद्घोषयित्वा Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3४) शांति पानीय मस्तके दातव्यमिति। नृत्यंति नित्यं मणिपुष्पवर्ष, मृति गायंति च मंगलानि || स्तोत्राणि गोत्राणि पति मंत्रान, कल्याण जाजोहि जिनानियेके ॥१॥ शिव मस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता जवंतु नूतगणाः ।। दोपाः प्रयांतु नाश, सर्वत्र सुखी नवंतु लोकाः॥ ॥ अहं तिचयरमाया सिवादेवी तुम्ह नयर निवासिनी ॥अम्ह सिवं तुम्ह सिवं, असियोवसमं सिवन्न. वंतु स्वाहा ॥३॥ उपसर्गाः कयं यांति, विद्यते विघ्नवलयः ॥ मनः Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) प्रसन्नतामेति, पुज्यमाने जिनेश्वरे ॥ ४ ॥ सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम् ॥ प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥५ ॥ ॥ इति बृहद्धांतिनामकं नवम स्मरणं समाप्तम् ॥ जय तिहुप्रण स्तोत्र. जय तिहु वर कप्प - रुख जय जिण धन्नंतरि, जय तिहुप्रण कल्लास कोस पुरि करि केसरि तिहुप्र जरा अविलंघि प्राण - वण चय सामित्र, कुरातु सुहाङ्ग QU Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) जिस-पास यंत्रण पुर टिग्या॥१॥ तः समरंत लहंति-जत्ति वर पुच कलश, घएण सुवरण हिरएणपुरण जण चुंज रार; पिरक मुरक असंख-सुरक तुह पास पसा इण, अतिहुश वर कप्प रुरक सुस्कर कुल मह जिण ॥शा जर ज कार परिजुएण-करण नट सु कूविण, चक्खु कुखीण खएणखुण्ण नर सल्लिय सूलिग, तुह जिरा सरपरसाय-रोग लहु हुति पुगणगव, जय धनंतर पालमह ‘वि तुह रोगहरो नव ॥ ३ ॥ विज्ञा Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) जोइस मंत-तंत सिन्नि अपय शिण, नुवरणऽनुनअनविह-सिडि सिज्महि तुह नाजिरा, तुहला मिण अपवित्त-नवि जय होइप विनन, तं तिहुण-कल्लाण-कोस तुह पास निरुत्तल ॥धा खुद्द पनत्त मंत-तंत जंता विसुत्ता, चर थिर गरल गहुग्ग-खग्ग रिन वग्गुं वि गंज; इडिय सब अण-घन नि बार दय करि, रियइ हरउस पास-देन ऽरिय करि केसरि ॥ ५ ॥ . तुद आया अंनेश्-नीम इप्पुदधुर सुरवर रस्कस जरक फणिंद-विंद Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) चोरानल जलहर; जलभर चारि रनब-खुद पसु जोणि-जोश्य, श्य तिहुअरा अविलंधि-बारा जय पास सुसामि य॥६॥पचिय अठ श्रणव-तल नतिब्नर निबन्नर, रोमंचंचिय चारु-काय किनर नर सुर वर; जसु सेवहि कम कमलजुयल परकालिय कलिमलु सो तु वरात्तय सामि-पास मद मदन रिनवलु ॥७॥ जय जोश्य मग कमलनसल नय पंजर कुंजर, तिहुअण जण आणंद-चंद जुवण तय दि. गयर; जय मर मेणि वारि-वाह Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (उए) जयजंतु पियामह, अंजणय ट्रिव्य पास-नाह नाहत्तण कुरा मह ॥७॥ बहु विहु वन्नु अवन्नु-सुन्नु व निन उप्पन्निहि, मुरक धम्म का म-काम नर नियनिय सचिहि जं ज्झायदि बहु दरिस- बहु नाम पसिन, सो जोश्य मणक मल-जसल सह पास पवन ॥ जय विख्नल रण मणिर-दसण घ रहरिय सरीरय, तरलिय नयण विसुन-सुन्न गग्गर गिर करुणय; तर सहसत्ति सरंत-हुति नर नासिय गुरुदर, मह विज्झवि सज्कस Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) पास लय 'पंजर कुंजर ॥ १० ॥ पई पालि वियसंत-मित्त पत्नंत प वित्तिय, वाह पवाह पवूढ-रुढ उह 'दाह सुपुलश्य; मन मन्नु सनन्नु पुन्नु अप्पारणं सुरनर, इय तिहु अंण पाणंद-चंद जय पाल जिणे सर ॥ ११ ॥ तुह कल्लारामहेसु घंटटंकारऽवपिल्लिय वल्लिर मल्ल महल्ल-जत्तिसुरवरगंजुल्लिय, हल्ल प्फलिय पवत्त-यंति जुवणेवि महू सव, श्य तिहुश्रण आणंद-चंद जय पाल मुहुन्नव ॥१॥ नि म्मल केवल किरण-नियर विहुरिय Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) तम पहयर, दतिय सयल पञ्चसब विवरिय पहायर; कलि क लुलिय जग धूय-लोय लोयह अ गोयर, तिमिर निरु हर पालनाह नुवणत्तय दिशयर ॥१३॥ तुह समरण जल वरिस-सित्तमा पव मइ मेशि, प्रवरावर हुम ब-बोह कंदल दल रेहणि; जाय फल नर नरिय-हरिय उह दाह अगोवम, श्य मइ मेणि वारिवाह दिल पास मई मम ॥१४॥ कय अविकल कल्लाग-वल्लि न रिय उह वणु, दाविय सग्ग पवग्ग Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (52) मंग्ग डुग्गर गम वारणु; जय जं तुद जगएस तुल जं जलिय दि यावहु, रम्मु धम्मु सो जयन- पास जय जंतु पियामहु ॥ १५ ॥ जुव पारण्य निवास-दरिय परवरिस देवय जोइलि पूयल खित्त-वाल खुद्दासुर पसुवय; तुह उत्तर सुन टू-सुट्टु बिसंगुलु चिट्ठदि, इय तिहुण वल सीइ-पास पा चाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फलि फरा फार फुरंत रयणकर रंजिय नह यल-फलिसी कंदल हल-तमाल नि मल सामल; कमठासुर नवस Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) गग-बग्ग संलग्ग अगंजिय, जय प चरक जिणेस-पास धनराय पुरष्ट्रि व्य. ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु प माशु-नेय वायावि विसंतुलु, नेय तगुरऽवि अरिणय-सहावु अलस विदलंग्रलु तुद माहप्पु पमाणु. देव कारुण्ण पवितन, इय म मा अवहारि-पास पालिहि विलवं तन.॥ १७॥ किं किं कपिन नेयकलुणु किं किं वन जंपिन, किं वन चिटिग्न किट्ठू-देव दीणय, मावलंबिन, कासु न किय निष्फल ललि अम्हेहि उहत्निहि, तहवि Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6). न पत्तन तागुं-किषि पर पहु परि चतिहि. ॥ १७॥ तुहु सामिन तुहु माह-बप्पु तुहु मित्त पियंकरु, तुहु गश् तुहु मर तुहुजि-ताणु तुहु गुरु स्वेमंकरु, हवं ह मर जा रिन-वराल राड निब्लग्गह, बी एन तुड़ कम कमल-सरणु जिण पालहि चंगह, ॥३०॥ पश् किवि कय नीरोय-लोय किवी पाविय सु हसय, किवि भश्मंत महंत-केवि किवि साहिय सिव पय; किवि गं जिय रिनवग्ग-केवि जसधवलिय नूयल, मइ अवहोरहि केल-पास Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) सरणागयवचल.॥१॥ पच्चुवया र निरीह-नाह निपन्न पयग, तुह जिरा पास परोव-यार करणिक परायण; सत्तु मित्त समचित्त-वि नि नयनिंदय सममण, मा अवही रिय ऽजुग्ग-विमई पास निरंजण ॥श्शा हन बहुविहउह तत्त-गत्तु तु ह उह नालण परु, हन सुयाह करुणिक-गणु तुहु निरु करुणापरु; हन जिण पास असामि-सालु तुहु तिहुअरा सामिय, जं अवही रहि मई-मखत इय पास न सो हिय ॥ २३ ॥ जुग्गाऽजुग्ग विना ग-नाह नहु जोयदि तुह सम, तु, Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८६ ) वणुवयार सहाव-भाव करुणा रस सत्तम, सम सिम किं घणु-निय इ भुवि दाह समंतन, इय दि बंधव पास-नाह मइ पाल थुतन. ॥ २४ ॥ नय दीाह दीपयुं-मुयवि अन्तुवि किवि जुग्गय, जं जोइवि नवयार करहि नवयार समुज्जय; दीपाद दीगु निहीणु-जेल त ना दिस चचल, तो जुग्गन श्रहमेवपास पालहि मइ चंगन ॥ २५ ॥ यह अन्नुवि जुग्गय वि-सेसु किवि मन्नहि दीलह, जंपा सिवि नवयारुकरइ तुह नाद समग्गद; सुच्चिय किल कल्लागु जेा जिस तुम्ह प Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ज) सीयह, किं अनिय तं चेव-देव मां मा अवहीरह. ॥ २६ ॥ तुह पत्थ । न हु होड-विहल जिण जागन किं पुण, हन उरिकय निरुसत्तचच उक्कहु नस्सुयमण; ते मनन निमिलेग-एल एनवि ज लन्न सचं जं तुरिकय व-सेण किं नंवरु पञ्च. ॥ ७॥ तिहुअण सामिय पास-नाद मा अप्पु पयासिन, कि जान जं निय रुव-सरिसु न मुरान वहु जंपिन, थन्न न जिण जग्गि तह समो वि दखिन्तु दयासन, जश अवगनसि तुह जि-अहह कह हो मुहयासन. ॥ ॥ जातहरु Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) वणुक्यार सहाव-नाव करुणा रस सत्तम, सम विसमई किं घणु-निय इनुवि दाह समंतन, श्य उदि बंधव पास-नाह मा पाल युएशंतन. ॥ ३४ ॥ नय दीगह दीपयु-मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय, जं जोवि नवयार-करहि नवयार समुज्जय; दीगह दीगु निहीणु-जेण तइ ना हिण चत्तल, तो जुग्गन अहमेवपास पालहि म चंगन, ॥ २५ ॥ अह अन्नुवि जुग्गय वि-सेसु किवि मन्नहि दीगड, जंपासिवि नवयारुकर तुह नाद समग्गह; सुच्चिय किल कल्लागु-जेश जिण तुम्ह प. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) सीयह, किं अनिण तं चेव-देव मा मा अवहीरह. ॥ २६ ॥ तुह पत्य न हु हो-विहल जिण जागन किं पुरण, हन मुस्किय निरुसत्तचच उकहु नस्तुयम; ते मनन निमिलेग-एन एनदि जलन सञ्चं जं तुरिकय व-सेरा किं नंवरु पचर. ॥ २॥ तिहुअण सामिय पास-नाद मा अप्पु पयासिन, कि जाउ जं दिय रुव-सरिसु न मुगन वहु जंपिन, अन्न न जिरा नन्गि तुह समो वि दखिन्नु दयासन, जश अवगनसि तुद जि-अहह कह हो हयासन. ॥२०॥ जा Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (1) विण किण वि-पेय पाइण वेलविय न, तुवि जाणन जिण पास-तुह्मि हनं अंगीकरिन; श्य मह इस्थिन जं न-होइ सा तुह नहावणु, रक् खंतह नियः कित्ति-गेय जुऊर अव हीरणु ।। श्य॥ए हमहारिय जत्त देव इहु न्हवण महुसन, जं अण लिय गुणगहण-तुम मुणि जण अ शिसिन, एम पसोय सुपास-नाह थंना पुरदिव्य, श्य मुणिवरू सि रिअन्नय-देन विनव अणिदिय, ॥ इति श्री जयतिहुश्रण स्तोत्रं संपूर्ण.। मिति नई नवतु सकलस्य जगतः शान्तिः Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री॥ ॥ जिनपरस्तोत्र.॥ कमलभन्नाचार्यविरचितम्. श्री श्री अँई थईन्यो न मोनमः ।। , श्री अँई सि देन्यो नमोनमः ॥ श्री अँई प्राचार्यन्यो नमोनमः ।। ही श्रीई उपाध्यायेन्यो नमो नमः॥ श्री अँई गौतमप्र मुखसर्वसाधुन्यो नमोनमः ।।१।। एप पञ्चनमस्कारः, सर्व पापक्षयं करः ॥ मगलानां च सर्वेषां, प्रथम Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) नवति मङ्गलम् ॥२॥नी श्री जये विजय, अँई परमात्मने नमः।। कमलप्रत्नसूरीनशे, नाषते जिनप अरम् ॥ ३ ॥ एकन्नक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पदिदम् ॥ मनोऽन्नि लषितं सर्वे, फलं स लन्नते थू वम् ॥ ४॥नूशय्याब्रह्मचर्येण, को घलोन्नविवर्जितः ॥ देवताग्रे पवि त्रात्मा, षण्मासैनते फलम् ॥५॥ अईन्तं स्थाफ्येन्मूर्ध्नि, सिई चदु ललाटके ॥ आचार्य श्रोत्रयोर्मध्य उपाध्यायं तु नासिके ।। ६ ॥ सा धुवृन्दं मुखस्याग्रे, मनःशुहिं वि Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए१) घाय च ।। सूर्यचन्झनिरोधेन, सुधी; सर्वार्थसिध्ये ॥ ७॥ दक्षिणे मद नपी, वामपावें स्थितो जिनः ।। श्रकसंधिषु सर्वज्ञः, परमेष्ठी शिवं करः ॥ ॥ पूर्वाशांच जिनो रके. दाग्नेयी विजितेन्श्यिः ॥ दक्षिणाशां परब्रह्म, नैशी च त्रिकाल वित्॥णा पश्चिमाशां जगन्नायो, वायव्यां प रमेश्वरः ॥ उत्तरां तीर्थकत्सर्वामी, शानेऽपि निरञ्जनः ॥ १०॥ पातालं नगवानहनाकाशं पुरुषोतमः ॥ रोहिणीप्रमुखा देव्यो, रक्षन्तु स कलं कुलम् ।। ११ ।। झपन्नो मस्तकं Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (V0) नवति मङ्गलम् ॥ २ ॥ नँ । श्री जये विजय, अँई परमात्मने नमः ॥ कमलमनसूरीन्शे, नापते जिनप अरम् ॥ ३ ॥ एकनक्तोपवासेन, त्रिकालं यः पठेदिदम् ॥ मनोऽनि लषितं सर्वे, फलं स बनते क्म् ॥ ४ ॥ नूशय्याब्रह्मचर्येण, को धलोन विवर्जितः ॥ देवताग्रे पवि त्रात्मा, षण्मासैर्लभते फलम् ॥५॥ अन्तं स्थापयेन्मूर्ध्नि, सिद्धं चक्षु ललाटके || आचार्य श्रोत्रयोर्मध्य उपाध्यायं सु नासिके ॥ ६ ॥ सा धुवृन्दं मुखस्याये, मनः शुद्धिं वि I 1 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) धाय च ॥ सूर्यचन्झनिरोधेन, सुधी; सर्वार्थसिक्ष्ये ॥ ७॥ दक्षिणे मद नक्षी, वामपाचे स्थितो जिनः ।। अङ्कसंधिषु सर्वज्ञः, परमेष्ठी शिवं करः ॥७॥ पूर्वाशांच जिनो रकेदाग्नेयों विजितेन्श्यिः॥ दक्षिणाशां परब्रह्म, नैऋती च त्रिकाल वित्॥॥ पश्चिमाशां जगन्नायो, वायव्यां प रमेश्वरः। नत्तरां तीर्थकत्सर्वामी, शानेऽपि निरञ्जनः ॥ १०॥ पातालं नगवानहन्नाकाशं पुरुषोतमः ॥ रोहिणीप्रमुखा देव्यो, रकन्तु स कलं कुलम् ॥ ११ ॥ षनो मस्तकं Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए२) रके-दजितोऽपि विलोचनम् ॥ सं जवः कर्णयुगलेऽजिनन्दनस्तु ना सिके ॥ १२ ॥ नष्ठो श्रीसुमती रहे दन्तान्पद्मनो विभुः ॥ जिह्वां सु पार्श्वदेवोऽयं, तालु चन्दनानि धः ॥ १३ ॥ कंठ श्री सुविधी रद, हृदयं श्री सुशीतलः ॥ श्रेयांसो बा हुयुगलं. वासुपूज्यः करछ्यम् ॥१४॥ अङ्गुलीर्विमलो रहेदनन्तोऽसौ न खानपि ॥ श्रीधर्मोऽप्युदरास्थीनि, श्री शान्तिर्नानिर्मलम् ॥ १५ ॥ श्री कुन्युर्गुह्यकं रकेदरो लोमकटी तटम् ॥ मलिरुरुपृष्ठवंशं, जङ्क च 7 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) युनिसुव्रतः ॥ १६ ॥ पादाङ्गुलीनमी रके-बीनमिश्चरणक्ष्यम् ॥ श्रीपार्श्व मायः सर्वाङ्ग, वर्धमानश्चिदात्म कम् ॥ १७ ॥ पृथिवीजलतेजस्कवाय्वाकाशमयं जगत् ॥ रकेदशेष पापेच्यो,वीतरागो निरञ्जनः॥१७॥ राजधारे स्मशाने च, संग्रामे शत्रु संकटे ॥ व्याघ्रचौराग्निसर्पादिनूत प्रेतनयाशिते ॥ १७॥ आकाले म रणे प्राप्ते, दारिड्यापत्समाश्रिते ॥ अपुत्रत्वे *महापुःखे, मूर्खत्वे रोग . * महादोषे. Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एव) पीमिते ॥ २०॥ माकिनीशाकिनी अस्ते, महाग्रहगणार्दिते ॥ नद्युत्ता रेऽध्ववैषम्ये, व्यसने चापदि स्म रेत् ॥ २१ ॥ प्रातरेव समुबाय, यः स्मरे जिनपञ्जरम् ॥ तस्य किशि जय नास्ति,लन्नते सुखसंपदः।।२।। जिनपञ्जरनामेदं, यः स्मरेदनुवास रम् ॥ कमलप्रनराजेन्इ-श्रियं स लनते नरः ॥ २३ ॥ प्रातः समु बाय पठेत्कृतज्ञो, यः स्तोत्रमेतजि नपञ्जरस्य ।। आसादयेजोकमलप्रनाख्यं,लक्ष्मीमनोवाञ्बितपूरणाया। Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) शीरुपल्लीयवरेण्यगछे, देवप्रनाचार्यपदाब्जहंसः॥ वादीन्चूमामा गिरेष जैनो, जीयाजुरुः श्रीकमलप्रत्नाख्यः॥ ॥इति श्रीकमलमनाचार्यविरचित सर्वरक्षाकरं श्रीजिनपरस्तोत्रं समाप्तम् ।। १ आ श्लोक मूल पुस्तकमां नथी, परंतु कमलपनाचार्यना शिष्ये बनावेत । एम लागे के. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥श्री॥ ॥ग्रहशान्तिस्तोत्रम् ॥ जगजुरुं नमस्कृत्य, श्रुत्वा सजु रुनाषितम् ॥ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि, लव्यानां सुखदेतवे ॥१॥ जन्म खग्ने च राशौ च, यदा पीड्यन्ति खे चराः।। तदा संपूजयेहीमान्, खे चरैः सहिताजिनान. ॥२॥ पुष्पै गन्धैधूपदीपैः, फलेनैवेद्यसंयुतैः ॥ वर्णसहशदानैश्च, वस्त्रैश्च दक्षिणा न्वितैः॥ ३ ॥ पद्मप्रन्नश्च मातम अन्श्चन्मनस्य च ॥ वासुपूज्यो Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L (ए) नूसुतश्च, बुधोऽप्यष्टजिनेश्वराः॥धा विमलानन्तधर्माऽराः, शान्तिः कु न्युन मिस्तथा ॥ वर्धमानो जिने न्शणां, पादपद्मे बुधो न्यसेत् ॥५॥ झषलाजितसुपाश्चिानिनन्दन शी तलौ ॥ सुमतिः संन्नवस्वामी, श्रे यांसश्च बृहस्पतिः ॥६॥ सुविधैः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्वरः॥ नेमिनाथस्य राहुः स्यात्, केतुः श्रीमल्लीपार्श्वयोः ॥७॥ जिनाना मग्रतःकृत्वा, ग्रहरणांशान्तिहेतवे। नमस्कारशतं नक्त्या, जपेदृष्टोत्तरं शतम् ॥ ७॥ जनाइरुवाचैवं, प Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ज्वमश्रुतकवलो॥ विद्याप्रवादतः पू र्वाद, ग्रहशान्तिविधि शुनम् ॥५॥ हो श्री महाश्व-सूर्याङ्गा रकबुधबृहस्पति शुकशनैश्वर राह के तुलहिताः खेटा जिनपतिपुरतो व स्तिष्ठन्तु, मम धनधान्यजय विजय सुखलौनाग्यतिकीर्तिकान्ति शांति तुष्टिपुष्टिबुद्धिलक्ष्मी धर्मार्थकामदाः स्युः स्वाहा । ॥ इति श्रीग्रहशान्तिस्तोत्रं समाप्तम् ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (TUTU) अथ श्री पार्श्वनाथस्य || मन्त्राधिराजस्तोत्रम् ॥ || ॐ नमः सिद्धम् ॥ श्रीपार्श्वः पातु वो नित्यं, जिनः परमशंकरः ॥ नाथः परमेशक्तिश्व, शरण्यः सर्वकामदः ॥ १ ॥ सर्व वि नहरः स्वामी, सर्वसिद्धिप्रदायकः ॥ सर्वसत्वहितो योगी, श्रीकरः पर मार्थदः || २ || देवदेवः स्वयंसिद्ध, चिदानन्दमयः शिवः || परमात्मा परब्रह्म, परमः परमेश्वरः ॥ ३ 'जगन्नाथः सुरज्येष्ठो, नूतेशः पुरु पोत्तमः ॥ सुरेन्ड़ो नित्यधर्मश्च, श्री Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) निवासः शुनार्णवः ॥४॥ सर्वज्ञः सर्व देवेशः, सर्वदःसर्वगोत्तमः । सर्वात्मा सर्वदर्शीच, सर्वव्यापी जगद्गुरुः ॥५॥ तत्वमूर्तिः परादित्यः, परब्रह्ममकाशकः ॥ परमेन्दुः परप्राणः, परमामृ तसिद्धिः ||६|| प्रजः सनातनः श मजुरीश्वरश्व सदाशिवः ॥ विश्वेश्वरः प्रमोदात्मा, क्षेत्राधिशः शुभप्रदः ॥ ७ साकारश्च निराकारः, सकलो- निष्क लोऽव्ययः ॥ निर्ममो निर्विकारश्व, निर्विकल्पो निरामयः ॥ ८॥ श्रमरचा जरोऽनन्त, एकोऽनन्तः शिवात्मकः ॥ अलक्यश्चाप्रमेयश्व, ध्यानलक्ष्यो नि " Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A (१०१) रञ्जनः ॥ ए ॥ काराकृतिरव्यक्तो, व्यक्तरूपस्त्रयीमयः ॥ ब्रह्मय प्रका शात्मा, निर्भयः परमाक्षरः ॥१णादि व्यतेजोमयः शान्तः, परामृतमयोऽ च्युतः ॥ श्राद्योऽनाद्यः परेशानः, पर मेष्ठी परः पुमान् ॥ ११ ॥ शुइस्फटि कसंकाश, स्वयंनृः परमाच्युतः ॥ व्योमाकारस्वरूपश्व, लोकालोका वनासकः ||१२|| ज्ञानात्मा परमानन्दः, प्रारूढो मनःस्थितिः ॥ मनःसाध्यो मनोध्येयो, मनोदृश्यः परापरः ||१३|| सर्वतीर्थमयो नित्यः, सर्वदेवमयप्रतुः ॥ नगवान् सर्वत Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) त्त्वेशः, शिवश्रीसौख्यदायकः॥१॥ इति श्रीपार्श्वनाथस्य, सर्वज्ञस्य जगरोः।। दिव्यमष्टोत्तरं नामशतमत्र प्रकीर्तितम् ॥१५॥पवित्रं परमंध्येयं, परमानन्ददायकम् ॥नुक्तिमुक्तिप्रदं नित्यं, परते मङ्गलप्रदम्॥१६॥श्रीम त्परमकल्याण सिद्धिदः श्रेयसेऽस्तु वः॥ पार्श्वनाथजिनः श्रीमान, नग वान् परमः शिवः ॥ १७॥ धरणेन्द फणमन्त्रालंकृतो वः श्रियं प्रन्नुः ॥ दद्यात्पद्मावतीदेव्या, समधिष्ठितशासनः॥१णाध्यायेत्कमलमध्यस्यं,श्री - पार्श्व जगदीश्वरम् ॥ीश्रीजः Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) समायुकं,केवलज्ञानन्नास्करम्।।१ए पद्मावत्यान्वितं वामे, धरणेन्डेण द हिणे ॥ परितोऽष्टदलस्येन, मन्त्ररा जेन संयुतम् ॥२॥ अष्टपत्रस्थितैः पञ्चनमस्कारैस्तथा त्रिन्निः॥झानांथै वेष्टितं नाथ,धर्मार्थकाममोक्षदमा२१ शतषोमशदलारूढं, विद्यादवीन्निर न्वितम् ॥ चतुर्विंशतिपत्रस्यं, जिनं मातृसमावृतम् ॥ ॥ मायावष्टय त्रयाग्रस्थं, कोकारसहितं प्रन्नुम् ॥ नवग्रहावृतं देवं, दिक्पालेर्दशनिर्व तम् ॥ १३ ॥ चतुष्कोणेषु मन्त्राद्य, . चतुर्बीजान्वितौर्जिनैः ॥ चतुरष्टदश . Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) हीति, विधाङ्कसंज्ञकैर्युतम् ॥ २४ ॥ दिकु ककारयुक्तेन, विदिक्षु लादितेन च ॥ चतुरस्त्रेण वजाक्षिति तत्वे प्रतिष्ठितम् ॥ २५ ॥श्रीपार्श्वनाथमित्येवं, यःसमाराधयेजिनम्॥ तं सर्वपाप निर्मुक्तं, लजते श्रीःशु नप्रदा ॥३६॥ जिनेशः पूजितोन त्या, संस्तुतः प्रस्तुतोऽयवा ॥ ध्या तस्त्वं यैः क्षणं वापि, सिभिस्तेषां. महोदया || श्री पार्थमन्त्राराजान्ते, चिन्तामणिगुणास्पदम् ॥ शान्तिपुष्टिकरं नित्यं, कशेपक, ॥ ॥ शहिसिदिमहा. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) बुधितिश्रीकान्तिकीर्तिदम् ॥ मृ त्युंजय शिवात्मानं, जपनान्नन्दितो जनः॥श्या सर्वकल्याणपूर्णः स्या ऊरामृत्युविवर्जितः ॥ अणिमादिम हासिदिलदजापेन चाप्नुयात् ।।३० प्राणायाममनोमन्त्रयोगादमृतमात्म नि॥ त्वामात्मानं शिवं ध्यात्वा,स्वा मिन् सिध्यन्ति जन्तवः ॥३१॥ह षदः कामदश्चेति, रिपुनः सर्वसौख्य दः॥ पातु वः परमानन्दलक्षणः सं स्मृतो जिनः ॥ ३२ ॥ तत्वरूपमिदं स्तोत्रं, सर्वमङ्गल सिध्दिम् ॥ त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं, नित्यं प्राप्नोति स श्रियम् ॥ ३३ ॥. Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (106) ॥अथ ऋषिमंगल स्तोत्र॥ आयंताकरसंलद / मदरंवाप्य यतस्थितं // अग्निज्वाला समंनाद / बिधुरेखा समन्वितं // 1 // अग्निज्वा लासमाक्रांत। मनोमल विशोधकदे दीप्यमानं हृत्पद्मे। तत्पदं नौमि नि मलं // 2 // अई मित्यदरंब्रह्म / जं चक्रपरमेष्टिनासिःचक्रस्य सहीवा ।सर्वतः प्रसिदध्महे // 3 // न मोईदस्यशेयःनि सिन्योनमो नमः॥ननमःसर्वसूरिज्यानपाध्या येत्यः ननमः॥णाननमः सर्वसाधु न्यःनिझानेच्योनमोनमः॥न न म स्तत्वदृष्टिन्य / श्चारित्रेन्यस्तु न Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) नमः॥५॥श्रेयसेस्तु श्रियेस्त्येत । दर्हदाद्यष्टकंशुन्नं ।। स्थानेष्वष्टसुवि न्यस्तं । पृथगबीजसमन्वितं ॥६॥ माद्यपदंशिखांरके । त्परंरकेत्तुमस्त कं ॥ तृतीयं रहनेछ । तुर्यरदेच' नासिकां ॥७॥ पंचमंतु मुखंरकेत् । षष्टंरकेचघंटिकां ॥नान्यंतसप्तमंरके । क्षेत्पादांतमष्टमं ॥७॥ पूर्वप्रण वतः सांत । सरेफोध्यब्धिपंचषान् ॥ सप्ताष्टदशसूर्याकान् । श्रितोबिंड स्वरानपृथक् ॥ए॥ पूज्यनामाकरा श्राद्याः। पंचातोशानदर्शन ॥ श्चारि. वेन्यो नमो मध्ये ही सांतइ सम खंकृतः ॥ १० ॥ * ॥ । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ।३। ।।असि' आठसा ज्ञानदर्शनचारित्रेभ्यो नमः ॥जंबूवृतधरोधीपः।कारोदधिस मावृतः। अहंदाद्यष्टकैरष्ट । काष्टाधि टैरलंकृतः ॥११॥ तन्मध्य संगतो मेरुः। कूटलकैरलंकृतः॥ नच्चैरुचैस्त रस्तार । स्ताराममलमंमितः॥१२॥ तस्योपरिसकारांतं । वीजमध्यास्य सर्वगं ॥नमामि विवमाईत्यं । लला टस्थं निरंजनं ॥ १३ ॥ अक्षयंनिर्म लंशांतं । बहुलं जामयतास्ति । नि री निरहंकारं सारं सारतरंघनं ।। १॥ अनुतं शुन्नं स्फीतं । सात्वि * राजसंमतं । तामसं चिरसंबु। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेजसंशर्वरीसमं ॥१५॥ साकारंच निराकारं । सरसं विरसंपरं । परापरं परातीतं । परंपर परापरं ॥१६॥ ए कवण धिवर्णच । त्रिवर्णतुर्यवर्णकं।। पंचवर्ण महावर्ण। सपरंच परापर ॥१७॥ सकलं निष्कलं तुष्टं । निर्वृतं ब्रांतिवर्जितं ॥ निरंजनं निराकारं । निर्लेपं वीतसंश्रयं ।। १०॥ ईश्वरं ब्र मसंबुई। बु सिई मतंगुरु ॥ज्यो तीरूपं महादेवं । लोकालोक प्रका शकं ॥१॥ अदाख्यस्तु वर्णातः। सरेफोविंऽमंमितः ॥ तुर्यस्वरसमा युक्तो । बहुधानादमालितः॥ ॥ अस्मिनवीजे स्थिताः सर्वे ।ऋषन्ना Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) याजिनोत्नमावर्णेनिजैनिजैर्युक्ता।' ध्यातव्या स्तत्रसंगताः ।। २१॥ नाद चंड्समाकारो। बिर्नीलसमप्रन्नः।। कलारूपसमासांतः । स्वर्णान्नः सर्व तोमुखः ॥श्शा शिरःसंलीन ईका-, रो। विनीलोवर्णतः स्मृतः॥ वर्णानु सारसंलीनं । तीर्थकृन्मंगलंस्तुमः।। २३॥ चंझन्न पुष्पदंतौ । नादस्थि तिसमाश्रितौ ॥बिंमध्यगतौनेमि। सुव्रतौ जिनसत्तमौ ॥३॥ पद्मप्रनु वासुपूज्यौ। कलापदमधिष्ठितौ॥ शि रईस्थितिसंलीनौ । पार्श्वमल्ली जिने श्वरौ ॥ २५ ॥ शेषास्तीर्थकतःसर्वे । हरस्थाने नियोजिताः॥ मायावीजा Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१११) रंप्राप्ता । श्चतुर्विशतिरहतां ॥३॥ गतरागषमोहाः। सर्वपापविवर्जि ताः॥ सर्वदाः सर्वकालेषु । ते लवंतु जिनोत्तमाः।।३७॥ देवदेवस्ययश्च कं । तस्य चक्रस्य या विनातियाबा दित सर्वाङ्गं । मामांहिनस्तु माकि नि॥ श्णा देवदेवस्य । मामांहिन स्तु राकिनी ॥श्णा देवदे। मामां हितस्तु लाकिनी॥३॥ देवदेशमा मांदिनस्तु काकिनी ॥३१॥ देवदे। मामांदिनस्तु शाकिनी ॥३शादेव मामांहिनस्तु दाकिनी ॥३३॥देव मामांहिनस्तु याकिनी ॥३धादेवण मामांहिंसंतु परमगाः ॥३५॥ देवा Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) मामांहिंसंतुं हस्तिनः ॥३६॥देवदेण मामांहिंसंतु राक्षसाः ॥३णादेव। मामांहिंसंतु वएहयः॥३॥ देव मामांदिसंतु सिंहकाः॥३णा देवण मामांहिंसंतु उर्जनाः ॥४०॥ देवा मामांहिंसंतु नूमिपाः॥१॥ श्रीगौ तमस्ययामुज्ञ। तस्यायानुविलब्ध यः॥ तान्नि रच्युद्यतज्योति । रहस वनिधोश्वराः॥शा पातालवासिनो दवा । देवान्नूपीछि वासिनः॥ स्वर्वा सिनोपि ये देवाः। सर्वे रदंतु मामि तः॥४३॥ येऽवधिलब्धयो येतु। प रमावधिलब्धयः॥ ते सर्वे मुनयोदे वाः। मांस रदंतु सर्वदा ॥धा Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११३) जनाज़तवेत्तालाः। पिशाचामुजता स्तथा॥ ते सर्वेप्युपशाम्यतु । देवदेव प्रन्नावतः॥ ४५ ॥ श्री श्रीश्र ध ति लक्ष्मी । गौरी चंमी सरस्वती ।। जयांबा विजयानित्या । क्लिना जिता मदवा ॥४६॥ कामांगा काम वाणाच । सानंदानंदमालिनी ॥मा या मायाक्निी रौदी। कला काली कलि प्रिया ॥४७॥ एताः सर्वा म हादेव्यो । वर्त्ततेयाजगत्त्रये ॥मा सर्वाःप्रयछंतु । कांतिंकीर्तिधृतिमति ॥धमा दिव्यो गोप्यः सः प्राप्यः।' श्रीऋषिमंगलस्तव ॥जाषितस्तीर्थ नायेन । जगत्त्राण कृतनघः॥धया Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) रणराज कुलेवन्हौ । जलेऽर्गे गजे. हरौ।। श्मशाने विषिने घोरे। स्मृतो रक्षति मानवं ॥५०॥ राज्य ब्रष्टा, निजं राज्यं । पद अष्टा निजं पदं ॥ लक्ष्मी ब्रष्टा निजां लक्ष्म। प्राप्नुवंति न संशयः॥५१॥ नार्या ी लनते नायाँ । पुत्रार्थी लनते सुतं ॥ वित्तार्थी खन्नते वित्तं । नरः स्मरण मात्रतः ।। ५२॥ स्वनुरुप्पे पढेकांस्ये । लिखित्वा यस्तुपूजयेत्।। तस्यैवाष्टमहासिदि। देवसति शा श्वती ॥ ५३॥ नूर्यपत्रेलिखित्वेदं । गलके मूईनि वा तुजं ॥धारितं स र्वदा दिव्यं । सर्वनीति विनाशकं ॥ Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४॥ नूतैःप्रेतैहेर्यकैः। पिशाचैर्नु भलैमा वातपित्तकफोकै मुख्य ते नात्रसंशय ॥ ५५ ॥ नूर्जुवः स्व स्वयीपीमः। वर्तिनःशाश्वताजिनः।। तैःस्तुतै वैदित इष्टै । यतफलंतत्फलं श्रुतौ ॥५६॥ एतज्ञोप्यं महास्तोत्रं । नदेयं यस्यकस्यचित् ।। मिथ्यात्ववा सिने दत्ते । बालहत्यापदेपदे ॥५॥ आचाम्लादितपःकृत्वा । पूजयित्वा जिनावलीं ॥अष्टसाहस्निको जापः। कार्यस्त सिद्रिहेतवे ।। ५७॥ शतम ष्ठोत्तरंगात । र्येपरति दिनेदिने । ते पानव्याधयोदेहे । प्रत्नवंतिनचापदः पापा अष्ठमासावधियावत् । प्रातः Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) प्रातंस्तुयः पठेत् ॥ स्तोत्रमेतन्महाते जो | जिनबिंबं स पश्यति ॥ ६० ॥ दृष्ठे सत्यईतोबिंबे । नवे सप्तमके ध्रुवं ॥ पदं प्राप्नोति शुद्धात्मा । परमानंदनंदितः ||६|| विश्ववंद्यवेध्याता | कल्या यानि चसोभुते ॥ गत्वास्थानंपरं सो पि । नूयस्तु न निवर्त्तते ॥ ६२ ॥ इदं स्तोत्रं महास्तोत्रं । स्ततीनामुत्तमंप रं ॥ पठनात्स्मरणा. झापा । लभ्यते पदमुत्तमं ॥ ६३ ॥ इति श्रीऋषिमंगल स्तोत्रं ॥ क्षेपक श्लोका निराकृत्यमूल यं त्रकल्पानुसारेण ॥ लिखितं ॥ ग लिः श्री कमाकल्याणोपाध्यायैः ॥ तस्योपरिमयापि लिखितं स्तोत्रं ॥। , Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) !! श्री वीनरागाय नमः ॥ ॥श्री तत्वार्थसूत्रम् ॥ ॥अथ प्रश्नमोऽध्यायः॥ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः १॥ तत्वार्थक्षानं सम्यग्द र्शनम् ॥ तनिसर्गादधिगमा ३॥ जीवाजीवाश्रववंधसंवर निर्जरामोकास्तत्वमशानामस्थापनाच्यत्नाव तस्तन्न्यासः। प्रमाणनपैरधिगमः ६॥ निर्देशस्वामित्वसाधनाधिकरण स्थितिविधानतः ॥ मतिश्रुतावधि मनःपर्यायकेवलानी ज्ञानम् ॥ ल संख्यातंत्रस्पर्शनकालांतरनावाल्प Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११८) बहुत्वैश्व ९ ॥ तत्प्रमाणे १० ॥ यथै परोक्षम् ११ ॥ प्रत्यक्षमन्यत् १ ||म तिस्मृतिसंज्ञाचिंतानि निबोध इत्यन श्रतिरम् १३ ॥ तदिंडियानिंडियनमित्तम् १४॥ श्रवग्रदेहापायधारणाः १५ ॥ बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासंदि ग्वधृवाणां सेतराणाम् १६ ॥ अर्थस्य १७ ॥ व्यंजनस्यावग्रहः १८॥ न चक्षु रनिंदियाभ्याम् १९ ॥ श्रुतं मतिपूर्व कादम् २० ॥ द्विविधो ऽवधिः २१ ॥ नवप्रत्ययो नारकदेवा नाम् २२ ॥ यथोक्तनिमित्तः परविक ल्पः शेषाणाम् २३ ॥ ऋजु विपुलमती Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) मनः पर्यायः श्वाविशाध्यप्रतिपाता न्यां तहिशेषः २५ ॥ विशक्षिकेत्र स्वामिविषयच्योऽवधिमनःपर्याययोः २६ ॥ मतिश्रुतयोनिबंधःसर्वव्येष्व सर्वपर्यायषु २७॥ रूपिष्ववधेः श्ा तदनंतनागे मनःपर्यायस्य शणासर्व व्यपर्यायेषु केवलस्य ३०॥ एकादी निन्नाज्यानियुगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ३१॥ मतिश्रुतावधयो (मतिश्रुतावि नंगा) विपर्ययश्च ३२॥ सदसतोरवि शेषाद्यहछोपलब्धेरुन्मत्तवत् ३३॥ नै गमसंग्रह व्यवहारर्जुसूत्रशब्दानयाः ३५॥ आद्यशब्दौ दित्रिनेदौ ३५ ।। ॥ इति प्रथमोऽध्यायः ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७ ) ॥ श्रथ द्वितीयोऽध्यायः ॥ श्रपशमिकक्षायिकौ नावौ मि श्रश्व जीवस्य स्वतत्वमौदयिकपारि सामिका च १ ॥ छतवाष्टादशके किं तित्रिनेदा यथाक्रमम् २ ॥ सम्यक्त्व चारित्रे ३ || ज्ञानदर्शनदानलाजनो गोपजोगवीर्याणि च ५|| ज्ञानाज्ञानदर्शनदानादिलव्वयश्चतुस्त्रित्रिपंचने दाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाच ५ ॥ गतिकषायलिंग मिथ्यादर्शनाज्ञा नासयता सिद्धत्वलेश्याश्चतुरु ये कैकेकैकपदाः ६ ॥ जीवनव्यानव्यत्वादीनि च ७ ॥ उपयोगो लक्षणम्, || सद्दविधोऽष्टचतुर्भेदः ॥ संसा ● Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ (११) रिणा मुक्ताश्च १०॥ समनस्का अम नस्काः ११॥ संसारिणत्रसस्थावराः १२ ।। पृथिव्यंदुवनस्पतयः स्थावराः १३ ॥ तेजोवायुझियादयश्च वसाः १५ ॥ पंक्ष्यिाणि १५॥ विविधानि १६॥ निवृत्युपकरणे येश्यिम् १७ । लब्ध्युपयोगी जावेंशियम् १७ ॥न पयोगः स्पर्शादिषु १५॥ स्पर्शनरस नघ्राण चदुःश्रोत्राणि श्जास्पर्शरस गंधरूपशब्दास्तेषामर्थः २१॥ श्रुतम नीशियस्यार्थःश्शा वाय्वंतानामेकम् २३॥ कमिपिपीलिकानमरमनुष्यादी नामेककवृक्षनि श्ा संझिनः सम Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२ ) नस्काः २५ ॥ विग्रहगतौ कर्मयोगः २६ ॥ श्रनुश्रेणिगतिः २७ ॥ अविग्रहा जीवस्य २८ ॥ विग्रहवती च संसारि एः प्राक्चतुर्भ्यः २७ ॥ एकसमयोऽ विग्रहः ३० ॥ एकं हौ चानादारकः ३१ ॥ संमूर्धन गनपपाताजन्मः ३२॥ सचित्तशीतसंवृत्ताः सेतरा मिश्राश्चैक शस्तद्योनयः ३३ || जराय्वंमपोतजा नां गर्भः ३४|| नारकदेवानामुपपातः ३५॥ शेषाणां संमूर्द्धनम् ३६ ॥ श्रदा रिकवैक्रियादारकतै जसकार्मणा निश रीराणि ३७ || परंपरं सूक्ष्मम् ३८ ॥ देशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ३७ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __(१५३) . ॥अनंतगुणेपरे प्रणाअप्रतिघाते ४१ ॥ अनादिसंवझे ४॥ सर्वस्य ३ ।। तदादीनि नाज्यानि युगपदेकस्याच तुर्त्यः ॥ निरूपन्नोगमंत्यम् ।। गर्नसंमूर्द्धनमाद्यम् ४६॥ वैक्रियमौप पातिकम् ॥ लब्धिप्रत्ययं च धजा शुन्नं विशुःक्ष्मव्याघाति चाहारकं च तुर्दशपूर्वधरत्यैव भए ॥ तैजसमपि एणानारकसमर्जिनो नपुंसकानि ५१ ॥न देवाः ५॥ औपपातिकचरमदे होत्तमपुरुषासंख्येयवर्षायुषोऽनपवत्यायुषः ५३ ॥ ॥ इति बिनीयोऽध्यायः ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - . (१५) ॥ अथ तृतीयोऽध्यायः॥ रत्नशर्करावालुकापंमधूमतमोम. हातमः प्रनायूमयोधनांबुवाताकाश प्रधितोः सतयोऽवःगुलराः१॥ तासु नारकाः शानित्याशुलतरलेश्यापरि वामदेहवेदनाविक्रियाः परस्परो बारितनुःखाः ४ ॥ संहिसासुरोदौरि पुतःखाल प्राक्चतुर्थाः तप्क त्रिसप्तदशलक्षज्ञाविंशतित्रय स्त्रिं शत्सागरोपमा सत्वानां परा स्थितिः ६॥ जंबूची लवणादयः शुन्ननामानो हीपसमुशाः ॥ इद्धिविष्कंनाः पू परिक्षेपिलो वलयाकृतयः जतन्म Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) ध्ये मेरुनानिर्वृत्तो योजनशतसहस्रवि कंजो जंबूद्दीपः एए ॥ तवनरत है मवतहरिविदेदरम्यक हैरण्यवतैराव तवर्षाः क्षेत्राणि १७ ॥ तद्विजाजिनः पूर्वापरायता दिसवन्मदा दिमवनिष धनीलरुक्मि शिखरिणो वर्षधर पर्वताः ११ || कधीतकी १२ ॥ पुष्करार्धे व१शमाक्रमानुपोत्तरान्मनुष्याः १४ ॥ श्रार्याग्लिशश्व १५ ॥ भरतैरावतवि देहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरूत्तरकु रुभ्यः १६ ॥ नृस्थिती परापरे त्रिप ब्योपमांत १७ ॥ तिर्यग्योनीनां घ १८ ॥ ॥ इति तृतीयोऽध्यायः ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ॥अथ चतुर्थोऽध्यायः॥ . देवाश्चतुनिकायाः १॥ तृतीयःपी तलेश्यः ॥ दशाष्टपंच हादशविकस्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः३॥इंसा मानिकत्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरकलो क पालानीक प्रकीर्णकान्नि योग्यकि बिषिकाश्चैकशः॥त्रायस्त्रिंशलोक पालवर्जा व्यंतरज्योतिष्काः । पूर्व यो क्षः ६॥ पीतांतलेश्याः ॥ का यप्रवीचारा आऐशानात् ॥ शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचाराद्वयोईयो मा परेऽप्रवीचाराः १णानवनवासि नोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णा निवातस्तनि Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) तोदधिद्वीपदिक्कुमाराः ११ ॥ व्यंत राः किंनरकिंपुरुषमहोरग गांधर्वयक राक्षसनूतपिशाचाः १॥ज्योतिष्का सूर्याचंशमलोग्रहनक्षत्रप्रकीर्णताराश्च १३।। मेरुप्रदक्षिणानित्यगतयो नृलो के १४॥ तत्कृतः काल विनागः१५॥ वहिरवस्थिताः १६॥ वैमानिकाः १७ ॥ कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च १७॥ उपर्युपरिरणासौधर्मेशानसनत्कुमा रमाहेब्रह्मलोकलांतकमहा शुक्रस हस्रारेप्चानतप्राणतयोरारणाच्युतयो नवसुप्रैवेयकेषु विजयवैजयंतजयंताप राजितेषु सर्वार्थसिदे च २० ॥ स्थि Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) तिमन्नावसुखा तिलेश्याविशुदि घावधिविषयतोऽधिकाः २१॥ गतिश रीरपरिमहाधिमानतो हीनाः २२ ।। उचासाहारवेदनोए पात्तानुजावतश्च साध्याः २३॥ पीतपद्माक्क्लेश्यादि तिशेषेषु श्ाप्राग्वेयकेन्यःकल्पाः ब्रह्मलोकालयालोकांतिकाः२६।। सारस्वतादित्यवन्ह्यरुणमर्दतो यतुषि ताव्याबाशमरुतःश्वाविजयादिषुद्धि चरमाः श्ा औषपातिकमनुष्येन्यः शेषास्तिर्यग्योनयः श्एा रिश्रतिः३० नवतेषु दक्षिणार्धाधिपतीनांपल्यों पममध्यर्धम् ३१॥ शेषणां पादोने३५ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३९) } ॥ श्रसुरैइयोः सागरोपममधिकम ३३ ॥ सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ३४|| साग रोपमे ३५ ॥ अधिके च ॥ ३६ सप्त, सनत्कुमारे ३७ ॥ विशेष त्रिसप्तदशै कादशत्रयोदश पंचदशनिरधिकानि च ३० ॥ श्रारणाच्युतादूर्ध्वमेककेन नव सुयैवेयकेषु विजयादिषु सर्वार्थ सिद्धे च ३९ ॥ परापब्योपममधि कं च ४० ॥ सागरोपमे ४१ ॥ श्रधि के ४‍ च ४२ ॥ परतः परतः पूर्वपूर्वानं तरा ४३ || नारकाणां च द्वीतीयाहि पु ४४ || दशवर्षसहस्त्राणि प्रथमायाम् ४५ ॥ जवनेषु च ४६ ॥ व्यं Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राणां च ४७ ॥ परापल्योपमम् 4G ।। ज्योतिष्काणामधिकम् ४ ॥ हाणामेकम् ५० ॥ नदत्राणामाईम् ५१ ॥ तारकाणांचतुर्नागः ॥ज धन्यात्वष्टनागः ५३ ।। चतुर्नागःशे पाणाम् ॥४॥ ॥ नि चतुर्थोऽध्यायः ॥ Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रथ पञ्चमोऽध्यायः ।। अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुन साः १ ॥ व्याणि जीवाश्च ॥ नि त्यावस्थितान्यरूपीणि ३ ॥ रूपिणः पुजलाः ५ ॥ श्राकाशादेकळ्याणि निक्रियाणि च ६ ॥ असंख्येयाः प्र देशा धर्माधर्मयोः ॥ जीवस्य च ७॥आकाशस्यानंताःए ॥ संख्येया संख्येयाश्च पुनसानाम् १० ॥ नाणोः लोकाकाशेऽवगाहः १२॥ धर्माधर्म योः कृत्स्ने १३ । एकप्रदेशादिपु ना ज्यः पुजलानाम् १५ ॥ गादिषु जीवानाम् १५ ॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३२) हारविसर्गान्यां प्रदीपवत् १६ ॥ गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः १७ ।। आकाशस्थावगाहः १॥शरी रावाङ्मनःप्रासापानाः पुजलानाम् १ए । सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहा श्व श्णा परस्परोपग्रहोजीवानामश्? ॥ वर्तनापरिणामः कियापरत्वापरत्वे च कालस्य १२ ॥ स्पर्शरलगंधवर्णवं तः पुजलाः ३३ ॥ शब्दगंधसौम्य स्थौल्यसंस्थानन्नेदतमचायातपोयो तवंतश्च श्॥ अगवःस्कंधाश्च २५॥ संघातन्नेदेन्य उत्पाद्यते २६ ॥ नेदा पंः ॥नेदसंघातान्यांचाकुषा, Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २॥ नत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं तत् श ।। तनावाव्ययं नित्वम् ३० ॥ अर्पिता नर्पितसिः ३१ ॥ स्निग्धरुतात्वावः ३२॥ न जघन्यगुणानाम् ३३॥ गुण साम्ये सहशानाम् ३धा च्यधिकादि गुणानां तु ३५ वये समाधिको पा रिणामिको ३६॥ गुणपर्यायवदव्य म् ३॥ कालश्चेत्येके ३७॥ लोऽनंतन मयः याच्याश्रया निर्गुगामुगाः ४॥ तनावः परिणामः ४ ॥ अना दिरादिमांश्च ४२ ॥ पिप्याग्निान ५३॥ योगोपयोगी जीवेपु ४४ ॥ ॥ शने पञ्चमी व्यायः Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ (१३५) ॥ अथ पष्ठोऽध्यायः ॥ कायवाङ्मनःकर्म योगः १ ॥स श्राश्रवः ॥शुन्नः पुण्यस्य ३॥ अ शुनःपापस्य ।। (शेपंपापम् ) भास कायाकपाययोः सांपरायिकर्यापथ योः ए॥इंडियकपायाव्रतक्रियाः पं चचतुःपंचपंचविंशतिसंख्याः पूर्वस्य नेदाः ६॥ तीव्रमंदज्ञाताज्ञातनाववी र्याधिकरण विशेषज्यस्तविशेषः (वि शेषातहिशेषः) 3॥ अधिकरणं जी वाजीवाः॥ भायं संरंजसमारंजा रंनयोगकृतकारितानुमतिकषायविशे स्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः निर्वर्तना Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) निकेोपसंयोग निसर्गादच्चितुर्द्वित्रि मे दाः परं १०॥ तत्प्रदोषनिन्दवमात्सया तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावर गयोः ११॥ दुःखशोकतापाक्रंदनबध परिवेदनान्यात्म परोजयस्यान्य सठे यस्प १२|| नूनम्रत्यनुकंपादानसराग संयमादियोगक्षांतिशौचमिति तद्वेद्य स्य १३ || केवलित संघधर्मदेवावर्ण वादो दर्शन मोदस्य १४ ॥ कपायोद यानीव्रात्म परिणामचारित्र मोहस्य १५ || वहारंजपत्रित्वं च न क स्यायुषः १६॥ माया तैर्यग्यो ॥ व्यारंभपरिग्रहत्वं Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) ॥ अथ पष्ठोऽध्यायः ।। कायवाङ्मनःकर्म योगः१ ॥स आश्रवः ॥ शुन्नः पुण्यस्य ३॥ शुन्नःपापस्य ॥ (शेषपापम्) भास कषायाकषाययोः सांपरायिकर्यापथ योः ५॥ इंश्यकपायाव्रतक्रियाः पं चचतुःपंचपंचविंशतिसंख्याः पूर्वस्य नेदाः ६॥ तीव्रमंदज्ञाताज्ञातनाववी र्याधिकरण विशेषज्यस्तहिशेषः (वि शेषात्तविशेषः) ७॥अधिकरणं जी वाजीवाः ॥ प्राचं संरंनसमारंजा नियोगकृतकारितानुमतिकषायविशे पस्त्रिस्त्रिस्त्रिचतुश्चैकशः निर्वर्जना Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) निक्षेपसंयोगनिसर्गादहिचतुईित्रिने दाःपरं १॥ तत्प्रदोषनिन्दवमात्तयाँ तरायासादनोपघाता ज्ञानदर्शनावर गयोः ११॥ फुःखशोकतापानंदनवध परिवेदनान्यात्म परोनयस्थान्य सहे द्यस्य १॥ नूतव्रत्यनुकंपादानसराग संयमादियोगदांतिशौचमिति सवेद्य स्य १३॥ केवलिश्रतसंघधर्मदेवावर्ण वादो दर्शनमोहस्य १४ ॥ कषायोद याचीवात्म परिणामश्चारित्र मोहस्य २५।। बह्वारंपरिग्रहत्वं च,नारक स्यायुषः १६॥माया तैर्यग्योनस्य " । अल्पारंपरिग्रहत्वं Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ (१३६) वार्जवत्वं च मानुपस्य १०॥ निःशी लव्रतत्वं च सर्वेषां १ए । सरागसंय मसंयमासंयमाकामनिर्जरा बालतपां सि देवस्यश्णा योगवक्रताविसंवादनं चाशुन्नस्य नाम्नः २१॥ विपरीतं शु जस्य शशा दर्शनविशुद्धिविनयसंपन्न ताशीव्रतेष्वनतिचारोऽनीक्षण झा नोपयोगसंवेगौ शक्तितस्त्यागतपसी संघसाधुसमाधिवैयावृत्यकरणमर्हदा चार्यबहुश्रुतप्रवचनन्नक्तिरावश्यकाप रिहाणिर्मार्गप्रन्नावना प्रवचनवत्सल त्वमितितीर्थकृत्त्वस्य २३॥ परात्मनि दाप्रशंसेसदसद्गुणाबादनोनावनेच Page #157 --------------------------------------------------------------------------  Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) प्रमत्तयोगोत्याराव्यपरोपणं हिंसा ७ असदनिधानमनृतम् ए॥ अदत्तादा नं स्तेयम् १णा मैथुनमब्रह्म ११ ॥मू ो परिग्रहः १शानिःशल्यो व्रती १३ ॥गार्यनगारश्च १४॥अगुव्रतोऽगा री १५ ॥ दिग्देशानदंमविरतिसामायिकपौषधोपवासोपन्नोगपस्निोग परिमाणातिथितं विनागव्रतसंपन्नश्च १६ ॥ मारणांतिकी संलेखनां जोषि ता १७ ॥ शंकाकांकाविचिकित्सान्य दृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टे रति चाराः १७॥ व्रतशोलेषु पंच पंच ययाक्रमम् १५ ॥ बंधवधवविल्लेदाति Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५) नारारोपलान्नपाननिरोधाः १० ॥मि थ्योपदेश रहस्याभ्याख्यान कूटलेख क्रियान्यासापहार साकारमंत्र भेदाः २१ ।। स्तेनप्रयोगतदात्तादानविरु • इराज्यातिक्रमदीना धिकमानोन्मा नप्रतिरूपकंव्यवहाराः २२ ॥ परविवाहकरत्वर परिगृहीता गमनानंग क्रीमातीकामानिनिवेशाः २३ ॥ के वास्तु हिरण्यसुवर्ण धनधान्यदासी दासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः २४ ॥ नुर्ध्वा वस्तिर्यग्व्यतिक्रमः क्षेत्रवृदिस्मृत्यं तर्धानानि २५ ॥ श्रनवनप्रेष्यप्रयोग शब्दरूपानुपात पुऊजभक्षेपाः २६ ॥ कं Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) दपकौकुच्यमौखर्याप्तमीक्ष्याधिकरगोपनोगाधिकत्वानि २७ ॥ योगः प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थापनानि २॥ अपत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गा दाननिक्षेपसंस्तारोपक्रमणानादरस्ट त्यनुपस्थानानि श्ए । सचित्तसंबई संमिश्रानिषवःपकाहाराः ३०॥ स चित्तनिक्षेपपिधानपरव्यपदेश मात्स र्यकालातिमाः ३१॥ जीवितमरणा शंसामित्रानुरागसुखानुबंधनिदानक रणानि ३२॥ अनुग्रहार्थ स्वस्यातिस ो दानम् ३३ ॥ विधिव्यदातृपात्र विशेषात्तविशेषः ३४ ॥ ॥ इति सप्तमोऽध्यायः॥ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (787) || अथ अष्टमोऽध्यायः ॥ मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषा ययोगा वहतवः १ ॥ सकपायत्वा कोवः कर्मणो योग्यान्युफलानादते १ ॥ सर्वधः ३ ॥ प्रकृतिस्थित्यनुज्ञाव प्रदेशास्तद्वयः ४ ॥ श्राद्यो ज्ञानदईर्शनावरणवेदनीय मोहनीयायुष्कना मगोत्रांतरायाः ५॥ पंच नवघ्यष्टाविं शति चतुर्द्विचत्वारिंशदधि पंचनदा यथाक्रमम् ६|| मत्यादीनां ॥ चकुर चतुरवधिकेवलानां निशनिভাनिच प्रचलाप्रचला प्र ८ वेदनीयानिच॥ सदसद्वेद्येए Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नचारित्रमोदनीयषायनोकषायवेदक नीयाख्यास्त्रिहियोगशनवनेदाःसम्य तव मिथ्यात्वतबुनयानि कपायनो कषाया वनंतानुवंध्य प्रत्याख्यान प्रत्याख्याना वरण संज्वलन विकल्पा चैकशः क्रोध मान माया लोजाः दा स्य रत्यरति शोक नय जुगुप्लास्त्री पुनपुंसकवेदाः १० ॥ नारक तैर्यग्यो नमानुषदैवानि ११॥ गतिजातिशरी रागोपांगनिर्माणबंधनसंघात संस्थानसंहनन स्पर्शरसगंधवर्णानुपूर्व्यगुरुल धूपघातपराधाता तपोद्योतोबासविहायोगतयः प्रत्येकशरीरत्रस सु गसुस्वरशुन्नसूक्ष्मपर्याप्तस्थिरादेय Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) यशालिसेतराणितीर्थकत्वंचेति १शा नचैर्नीचैश्च १३॥दानादीनामंतरायः १४॥आदितस्तितृणां (अंतरायस्य) च त्रिंशत्लागरोपमकोटीकोटयः प. रा स्थितिः१५ ॥ सप्ततिर्मोहनीयस्य १६॥ नामगोत्रयाविशतिः १७ ॥त्र यस्त्रिंशत् सागरोपमाण्या युष्कस्य (त्रयस्त्रिंशत्सागराएयधिकान्यायुष्क स्य) १०॥ अपराधादशमुहूर्तावेदनीयस्य १५॥ नामगोत्रयोरष्टौ २०॥ शेषाणामंतर्मुहूर्तम् २१॥विपाकोऽनु लावः १२॥ स यथा नाम २३॥ तत श्व निर्जरा था नामप्रत्ययाःसर्वतो Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) योगविशेषात्सूक्ष्मैक केत्रावगाढस्थि ताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनंतानंत प्रदेशाः २५॥ सवेद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुपये दशुलायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् १६॥ ॥ इनि अष्टमोऽध्यायः । ॥अथ नवमोऽध्यायः॥ आश्रवनिरोधः संवरः १॥ सगु प्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरिषहजय चा रित्रः॥ तपसा निर्जरा च ३॥स म्यग्योगनिग्रहो गुप्ति ॥ ॥र्याना षणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितयः ५ ॥नत्तमःक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसं "पतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणिष Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) मः६॥अनित्याशरणसंसारकत्वान्य शुचित्वाश्रवसंवरनिर्जरालोकबोधि लनधर्मस्वतत्वानुचिंतनमनुप्रेक्षाः॥ मार्गाच्यवननिर्जरार्थ परिषोढव्याप रिषहाः ॥कुत्पिपासाशीतोष्पदंश मशकनारन्यारतिस्त्रीचर्या निषद्याश याक्रोशवधयाचनालालरोगतण स्पशमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाझान दर्श नानि ए॥ सूक्ष्मसंपरायबद्मस्पवीत रागयोश्चतुर्दश १० ॥ एकादश जिने ११ ॥ बादरसंपराये सर्वे ? वरणे प्रज्ञाझाने १३.॥ राययोरदर्शनालानौ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) इनागन्यारतिस्त्रोनियाकोशयाचना सत्कारपुरस्काराः १५ ॥ वेदनीये शे पाः १६ ।। एकादयो नाज्या युगपदे कोनविंशतः१७॥ सामायिकवेदोस्था प्यपरिहारविशक्ष्मिसंपराययमा ख्यातानि चारित्रम् १७ ।। अनशना वमोदर्थवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग विविक्तशय्यासनकायक्लेशा दाातपः १ए । प्रायश्चितविनयवैयावृत्यस्वाधायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् २० ॥न वचतुर्दशपंचदिन्नेद यथाक्रमं प्राग्ध्यानात् १॥आलोचनप्रतिक्रमण यविवेकव्युत्तर्ग तपश्छेद परि Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : ( १४७ ) हारोपस्थापनानि ५२ ॥ ज्ञानदर्शन चारित्रोपचाराः १३ ॥ श्राचार्योपाध्या यतपस्वि शिक्षकग्लानकुलगण संघला धुमनोज्ञानाम् २४॥ वाचनापृचनानु मेकाम्नायधर्मोपदेशाः २५ ॥ वाह्यास्तरोषध्योः २६ ॥ इत्तम संहननस्यै काप्रचिंता निरोधवध्यानम् २७ ॥ श्र मुहूर्त्तात् २८॥ श्रार्त्तरौइधर्म्यशुक्ला नि २७ ॥ परे मोक्षहेतू ३० ॥ प्रार्त्तमम नानां संप्रयोगे तद्दिप्रयोगायस्मृतिसमन्वाहारः ३१ || वेदनायाञ्च ३२ ॥विपरीतं मनोज्ञानाम् ३३॥ निदा च कामोपहतचित्तानां पुनः ३ द - Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) दविरतदेशविरतप्रमतनंयतानाम् ३५ ॥हिंसानूनस्तेय विषयसंरक्षरोच्योरौ इमविरतदेश विरतयोः ३६ ॥ प्राज्ञा पाय विपाकसंस्थान विचयाय धर्म्यम प्रमत्तसंयतस्य ३७ ॥ नपशांतकीण कषाययोश्च ३० ॥ शुक्ले चाये ३७॥ (शुक्लेचाये पूर्व विदः ए. ३॥)पू विदः ४०॥ परे केवलिनः ४१॥ पृथ स्ववितकैकत्वसूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति व्युपरतक्रियानिवृतीनि २ ॥ तत्रये ककाययोगायोगानाम् ५३॥ एकाश्र गेसवितर्के पूर्वे ५४ ॥ अविचारं वि. यम् ॥ वितर्कःश्रुतम् ६॥ वि Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१वए) चारोऽर्थव्यंजनयोर्योगसंक्रांतिः शाम सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानंतवियोजक दर्शनमोहदपकोपशमकोपशांतमोह क्षपकदीर मोहजिनाः क्रमशोऽसं ख्येयगुणनिर्जराः पापुलाकबकुश कुशीलनिग्रंथस्नातका निग्रंथाः एम संयमश्रुतप्रतिसेवनातीलिंग लेश्या पपातस्थानविकल्पतः साध्याः ए॥ ॥ ति नवमोऽध्यायः ।। ॥ अथ दशमोऽध्यायः॥ मोदकयाज्ञानदर्शना वरणांत रायदयाञ्च केवलम् ॥ बंधहेत्वन्नाव निर्जरान्याम् शाकस्लकर्मचयो । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) कः ३ ॥ औपशनिकादि नव्यत्वाना वाचान्यत्रकेवलसम्यक्त्वज्ञान दर्शन सित्वेन्यः । ॥ तदनंतरमूवं गड त्यालोकांतात् ५॥ पूर्वप्रयोगादसंग त्वाब्दंधछेदात्तथागतिपरिणामाच त जतिः६।। केत्रकालगतिलिंगतीचा रित्रप्रत्येकबुध्बोधितज्ञानावगाहनां तरसंख्याटपबहुत्वतः साध्याः । ॥ ति दशमोऽध्यायः॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- _