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वणुवयार सहाव-भाव करुणा रस सत्तम, सम सिम किं घणु-निय इ भुवि दाह समंतन, इय दि बंधव पास-नाह मइ पाल थुतन. ॥ २४ ॥ नय दीाह दीपयुं-मुयवि अन्तुवि किवि जुग्गय, जं जोइवि नवयार करहि नवयार समुज्जय; दीपाद दीगु निहीणु-जेल त ना दिस चचल, तो जुग्गन श्रहमेवपास पालहि मइ चंगन ॥ २५ ॥ यह अन्नुवि जुग्गय वि-सेसु किवि मन्नहि दीलह, जंपा सिवि नवयारुकरइ तुह नाद समग्गद; सुच्चिय किल कल्लागु जेा जिस तुम्ह प