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जंन भूगोल पर एक दृष्टिपात
६२६
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००
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जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात
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नेमीचन्द्र सिंघई रिटायर्ड चीफ ड्राफ्समन दक्षिण पूर्व रेलवे
सदर बाजार मैन रोड, नागपुर
चन्द्रमा पर अमेरिका के अपोलो चन्द्रयान तथा वाइकिंग मंगलयान मंगल ग्रह पर उतरने से जैनियों की दृष्टि जैन भूगोल पर जाना स्वाभाविक है । जैन भूगोल पर शोध करने के लिए भारत में दो संस्थान है । एक का नाम है भूभ्रमण शोधसंस्थान कपडवंज, गुजरात और दूसरे का नाम है दि. जैन त्रिलोक शोध-संस्थान हस्तिनापुर । ये दोनों संस्थान अभी तक जैन साहित्य के आधार पर ही कार्य कर रहे हैं ।
इस विषय पर जो तत्व मिल सके हैं, वे निम्न प्रकार हैं :
(१) आधुनिक विज्ञान के अनुसार हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, वह नारंगी के आकार की गोल है । इसकी त्रिज्या ३२६० मील है, व्यास ७६२० मील है, परिधि २४८५१ मील है, क्षेत्रफल १६,७०,६१,२५८ वर्ग (प्रतर) मील है, तथा घनफल २,६०,१२,०८,६०,८७६ घनमील है । मकर वृत्त तथा कर्कवृत्त का अन्तर ३२४८ मील है । पृथ्वी की परिक्रमा चन्द्र २,३६,००० मील की दूरी पर करता है, तथा सूर्य की परिक्रमा चन्द्रसहित पृथ्वी ६३४१० मील की दूरी पर करती है, सौरवर्ष ३६५ दिन का होता है तथा चन्द्रवर्ष ३५४ दिन का होता है । अहोरात्र २४ घण्टे की होती है । इस सिद्धान्त में एक ही सूर्य व एक ही चन्द्र हैं।
सूर्य का व्यास लगभग ८६५ हजार मील है, उसमें द्रव्य की मात्रा २२४१०२६ (यानी बाईस के बाद छब्बीस शून्य) टन है, अर्थात् सूर्य में पृथ्वी के मुकाबले ३३३४३४ गुनी अधिक मात्रा है । दस लाख से भी अधिक पृथ्वियां सूर्य के घेरे में ढूंसकर भरी जा सकती हैं। सूर्यतल पर का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वीतल के गुरुत्वाकर्षण से २८ गुना है यानी १८० पौंड वजन वाला मनुष्य यदि सूर्य की सतह पर खड़ा हो जाए तो उसका वजन ५०४० पौंड हो जाएगा।
सूर्य पृथ्वी से लगभग ६ नौ करोड़ ३० तीस लाख मील की दूरी पर है। प्रकाश की गति १ लाख ८६ हजार मील प्रति सेकण्ड है, इस चाल से चलकर सूर्य का प्रकाश लगभग ८ आठ मिनिट में पृथ्वी तलपर पहुंचता है । सूर्य की गरमी सूक्ष्म रूप में पृथ्वी के अंश अंश में व्याप्त हो जाती है । इसी से जीवनदायिनी वर्षा होती है। खेतों में अनाज पकता है । जीवन बनाए रखने के लिए एक के बाद दूसरी ऋतुएँ बदलती हैं । पृथ्वी पर जीवन का उद्भव व अस्तित्व सभी सूर्य पर निर्भर है। प्राणी सूर्य द्वारा दी गई शक्ति को अपने अन्दर प्राप्त करते हैं और उसी के उपयोग से जीते हैं।
पृथ्वी के चतुर्दिक घूमते हुए चन्द्रमा जब पृथ्वी और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाता है कि सूर्य थोड़ी देर के लिए दिखाई न दे तो उसे सूर्यग्रहण कहते हैं।
(२) भारतीय पंचांग के अनुसार सबसे बड़ा दिन १६१ मुहूर्त का होता है तथा सबसे छोटा दिन १३ मुहूर्तका होता है । सूर्य १३ अप्रेल को मेष राशि तथा अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है। १६ अगस्त को मघा नक्षत्र तथा सिंह राशि में प्रवेश करता है तथा १५ दिसम्बर को मूल नक्षत्र तथा धनुष्य राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रान्ति १४ जनवरी को होती है । चन्द्र १२ मास के ३५४ दिन में १३ तेरह बार १२ बारह राशि व २७ सत्ताईस नक्षत्रों को
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६३०
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
पार करता है, अधिक मास के वर्ष में ३८४ दिन होते हैं । इस मास में चन्द्र १४ चौदह बार समस्त राशि व नक्षत्रों को पार करता है।
(३) जैन भूगोल के अनुसार मध्य लोक के मध्य में एक लाख योजन व्यास वाला थाली के आकार वाला जंबूद्वीप है। इसकी त्रिज्या पचास हजार योजन है। परिधि ३१४१६० योजन है । क्षेत्रफल ७८५४४१० वर्ग योजन है । इसमें भरतक्षेत्र दक्षिण में है। भरतक्षेत्र का विष्कम उत्तर दक्षिण ५२६ योजन है । उत्तरी मर्यादा १४४७११ योजन है । अत: भरतक्षेत्र का क्षेत्रफल ४६४६६०० वर्ग (प्रतर) योजन होता है । इसको ४०००२ से गुणा करने पर (१ योजन=४००० मील) क्षेत्रफल वर्गमील में आ जायेगा । इस जंबूद्वीप को दो लाख योजन विस्तार वाला कंकणाकृति लवण समुद्र घेरे हुए है । लवणसमुद्र का व्यास पांच लाख योजन है, जंबूद्वीप के मध्य में दस हजार योजन व्यास वाला सुदर्शन मेरु है। इसकी ऊँचाई १९००० हजार योजन है। इस ऊंचाई पर सुदर्शन मेरु क्रमशः घटकर १००० योजन रह जाता है । इस मेरू के ऊपर स्वर्ग लोक प्रारम्भ हो जाते हैं। सर्वोच्च भाग में (सात राजू पर) मोक्ष लोक है तथा मेरु के निचले भाग में व्यन्तर तथा भवनवासी देवों के भवन तथा उसके नीचे नरक लोक है।
(४) सुदर्शन मेरु की दो सूर्य तथा दो चन्द्र नित्य प्रदक्षिणा देते रहते हैं । वे परस्पर विरुद्ध दिशा में ६६६४० योजन दूर रहने पर कर्क वृत्त में माने जाते हैं, उस समय सबसे बड़ा दिनमान १८ मुहूर्त अर्थात् १४ घण्टे २४ मिनिट का माना जाता है और रात्रिमान १२ मुहूर्त अर्थात ६ घण्टे ३६ मिनिट का माना जाता है। सूर्य और चन्द्र, दोनों अपने परिभ्रमण का व्यास बढ़ाते चले जाते हैं, दोनों सूर्य १८३ दिनों में १००६६० योजन परस्पर दूर हो जाते हैं, तब वे मकर वृत्त में माने जाते हैं, उस समय सबसे छोटा दिनमान १२ महतं अर्थात ६ घण्टे ३६ मिनिट का माना जाता है और रात्रिमान १८ मुहुर्त अर्थात् १४ घण्टे २४ मिनिट का माना जाता है, एक सूर्य एक तरफ ३० मुहूर्त अर्थात् २४ घण्ट में सुदर्शन मेरु की आधी परिक्रमा करता है । दोनों सूर्यों को एक पूर्ण परिक्रमा में ६० मुहूर्त अर्थात् ४८ घण्टे लगते हैं। विदेहक्षेत्र मे दिनमान तथा रात्रिमान कितने समय के होते हैं इसका विवरण शास्त्रों में नहीं है । फिर भी चूंकि अहोरात्र ३० मुहूर्त अर्थात् २४ घण्टे का होता है, तब विदेहक्षेत्र में जब यहाँ १८ मुहूर्त का दिनमान होता है ३०-१८
=१२ मुहूर्त का दिनमान होना चाहिए, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। उसीतरह जब यहाँ १२ मुहूर्त का दिनमान हो तब विदेहक्षेत्र में ३०- १२=१८ मुहूर्त का दिनमान होना चाहिये । दोनों सूर्य १८३ दिनों में अपने परिभ्रमण का व्यास प्रतिदिन घटाते हुए मकरवृत्त से कर्कवृत्त में पहुंच जाते हैं । इस तरह सौर वर्ष १८३+१८३=३६६ दिन का माना जाता है । यह अंग्रेजी कैलेण्डर से ३६६-३६५१=३/४ दिन अधिक होता है।
(५) दोनों चन्द्र परस्पर विरुद्ध दिशा में कर्कवृत्त से मकरवृत्त में आने में १४ दिन लगते हैं और मकरवृत्त से कर्कवृत्त को लौटने में १४ दिन लगते हैं इस तरह कर्क वृत्त से विस्तृत होकर फिर संकुचित होकर कर्क वृत्त में लौटने में २८ दिन लगते हैं। किन्तु २७ नक्षत्रों को पार करने के लिए उत्तरायण में १३४४ दिन तथा दक्षिणायन में १३४४ दिन कुल १३४४+१३३४२७13 दिन लगते हैं।
(५अ) भारतीय पंचांगों के अनुसार चांद्र-मासों के दिन निम्न प्रकार हैं-(त्रिलोकसार गाथा ३७१ के अनुसार प्रत्येक मास ३०३ दिन का होता है) ईस्वी सन् १९७६-७७
ईस्वी सन् १९७७-७८ चैत्र--३० दिन
चैत्र-३० दिन वैशाख--३०,
वैशाख -३० , ज्येष्ठ-२६
ज्येष्ठ-२६, आषाढ़-३०
आषाढ़-३० श्रावण-२६
अधिक श्रावण-२९, भाद्रपद-२६
श्रावण-३० आश्विन-३०
भाद्रपद-२६ कार्तिक-२६
आश्विन-३० मार्गशीर्ष-३०
कार्तिक-२६, पौष-२६
मार्गशीर्ष-३०
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माघ – ३०,, फाल्गुन – २६,,
(५) तारीख
३१. ३७६
२८. ४.७६
२५. ५.७६
कुल – ३५४ दिन
सरासरी - २६३ दिन प्रतिमाह
सरासरी २१३ दिन प्रतिमाह
(५) भारतीय पंचांगों के अनुसार चन्द्र, मेष राशि तथा अश्विनी नक्षत्र में कब प्रवेश करता है, उनकी तालिका निम्न प्रकार है :
२१. ६७६
१८. ७७६
१५. ८.७६
११. ६.७६
२१. ३.७७ १८. ४.७७
१५. ५.७७
११. ६.७७
८. ७.७७
५. ८.७७
१. ६.७७
२८. ६.७७
२६.१०७७
२२.११.७७
१६.१२.७७
१५.१.७८
१२.२.७८
११.३.७८
८.४.७८
मिती
२७ दिन लगते हैं ।
चैत्र
शुक्ल
प्रथमा
चैत्र कृष्ण चतुर्दशी
साख कृष्ण द्वादशी
ज्येष्ठ कृष्ण ववमी
८.१०.७६
५.११.७६
२. १२.७६ २६.१२.७६ २६. १७७
पौष शुक्ल नवमी
माघ शुक्ल सप्तमी फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी
२२. २.७७
यह विवरण सोलापुर की दाते बंधु द्वारा कृत पंचांग से उद्धृत है ।
आषाढ़ कृष्ण सप्तमी
श्रावण कृष्ण पंचमी
भाद्रपद कृष्ण तृतीया
आश्विन शुक्ल पूर्णिमा
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी
चैत्र शुक्ल द्वितीया
चैत्र कृष्ण अमावस्या
वैशाख कृष्ण त्रयोदशी
ज्येष्ठ कृष्ण दशमी
आषाढ़ कृष्ण अष्टमी
अधिक श्रावण कृष्ण षष्ठी
श्रावण कृष्ण चतुर्थी
भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा आविन शुक्ल पूर्णिमा
जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात
कार्तिक शुक्ल द्वादशी मार्गशीर्ष शुक्ल दशाथी
पौष शुक्ल सप्तमी
माघ शुक्ल पंचमी
फाल्गुन शुक्ल तृतीया चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अश्विनी नक्षत्र और मेघ राशि में प्रवेश कितने घड़ी पल बाद
२५ घडी २३ पल बाद
५८ २८ "
67
१४
२१
२६
१३
२०
२७
ε
पौष २६, माघ - ३०,,, फाल्गुन २६,,
१६
३१
४८
७
२६
५०
37
८
71
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11
11
27
11
21
11
१६
२३
०१ ०५ १० 11 १६ ४३
७
17
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कुल - ३८४
13
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२५
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२३
३७
५३
२५ ३८
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३७
४३ घडी १० पल बाद
१ २५
५८
२५
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६३१
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यह विवरण अकोला के राजदेकर कृत वैदर्भ पंचांग से उद्धृत है । उपरोक्त तालिका से यह जाना जा सकता है कि चन्द्र को १२ राशि अर्थात २७ नक्षत्र पार करने को
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६३२
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
(६) सूर्य सुदर्शन मेरु की एक प्रदक्षिणा ६० मुहूर्त (४८ घण्टे) में करता है, एक परिधि में आधुनिक पद्धति में ३६० अंश है, अतः एक मुहूर्त में सूर्य ३६०६०=६ अंश परिधि पार करता है। इन ६ अंश के जैन भूगोल में गणित की सरलता के लिए १८३० खण्ड किये हैं, अर्थात् सूर्य एक मुहूर्त में १८३० परिधिखण्ड गमन करता है चन्द्र १७६८ परिधिखण्ड गमन करता है और नक्षत्र १८३१ परिधिखण्ड गमन करते हैं। राहू १८२६१३ परिधिखण्ड गमन करता है। पूर्ण परिधि में १८३०४६०=१०६८०० खण्ड होते हैं, अतः सूर्य पूर्ण परिधि १०६८००:१८३०=६० मुहूर्त में चन्द्र १०६८०० : १७६८=६२२३, मुहूर्त में, नक्षत्र १०६८०० : १८३५=५६ ३०७ मुहूर्त में तथा राहू १०६८००
१८२६ ११=१०६८०० : २१६५
११
.२१६५६१०६८०० १२_१३१७६०० ६०
१२ १ २१६५६२१७ ६ मुहूर्त में गमन करेंगे। इसका सीधा अर्थ यह है कि नक्षत्र, सूर्य, राहू और चन्द्र नित्य मेरु गिरि प्रदक्षिणा करते हैं। नक्षत्र सूर्य से प्रति मुहर्त १८३५-१८३०=५ परिधि खण्ड आगे रहते हैं, राहू से १८३५–१८२६५३ परिधि खण्ड आगे रहते हैं और चन्द्र से १८३५-१७६८=६७ परिधि खण्ड आगे रहते हैं।
(६ अ) जंबूद्वीप के सुदर्शन मेरु गिरि की दो सूर्य, दो चन्द्र तथा ५६ नक्षत्र परस्पर विरोधी दिशा में प्रदक्षिणा करते हैं, अतः अर्ध परिधि में एक सूर्य, एक चन्द्र तथा २८ नक्षत्र होते हैं । जैन भूगोल में अभिजित नक्षत्र अधिक माना है और इसी नक्षत्र से उत्तरायण की शुरुआत मानी है । इस अर्घ परिधि में १०६८००:२=५४६०० परिधि खंड होते हैं । सूर्य उत्तरायण में अभिजित नक्ष में प्रवेश करता है । चूंकि नक्षत्र प्रति मुहूर्त सूर्य से ५ परिधि खंड आगे जाता है तो उसे पुन: उसी जगह आने को प्रतिदिन ५४३०=१५० परिधिखंड आगे आना पड़ता है, इस हिसाब से ५४६०० १५०= ३६६ दिन लगते हैं यह हुआ सौर वर्ष राहू से प्रति मुहूर्त नक्षत्र ६३ परिधिखंड आगे रहते हैं, प्रतिदिन १४३० = २०-परिधि आगे रहते हैं, अतः अभिजित नक्षत्र को पुनः अपनी जगह आने के लिए ५४६००-२०=३६० दिन लगते है, यह हुआ राहू वर्ष । चन्द्र से नक्षत्र प्रति मुहर्त ६७ परिधिखंड आगे रहते हैं, प्रतिदिन ६७४३०=२०१० परिधि खंड आगे रहते हैं, अत: अभिजित नक्षत्र को पुनः अपनी जगह आने के लिए ५४६०० : २०१० =२७ ६३ अर्थात् २०२१ दिन लगते हैं । चूंकि पूर्ण परिधि में दो सूर्य, दो चन्द्र, दो राहू और दो नक्षत्र समूह हैं, इसलिए इन प्रथम सूर्य का अग्रणी अभिजित नक्षत्र दूसरे सूर्य, राहू और चन्द्र को उपरोक्त दिनों में मिल जाता है।
(७) जैन भूगोल में अभिजित नक्षत्र सहित २८ नक्षत्र हैं। भारतीय पंचांगों में २७ नक्षत्र ही माने हैं । अभिजित नक्षत्र का उल्लेख नहीं होता है । राहू ग्रह भी उलटी दिशा में गमन करता है और उसकी गति भी बहुत ही मन्द है । इन सभी का तुलनात्मक विवरण नीचे कोष्ठकों में दिया गया है।
सूर्य नक्षत्र सह-गमन दिन प्रतिदिन १५० परिधिखंड
नक्षत्र
परिधिखंड
भारतीय पंचांगों से
०
सह-गमन दिन जैन भूगोल से उत्तरायण प्रारम्भ
४.२ १३.४
२०१०
अभिजित श्रवण घनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद
२०१० १००५ २०१० ३०१५
१३.४
२०.१
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++*******
रेवती
अश्विनी
भरणी
कृत्तिका
रोहिणी
मृगशीर्ष
आर्द्रा
पुनर्वसु
पुष्य
पुष्य आपलेया
मघा
पूर्वाफाल्गुनी
उत्तराफाल्गुनी
हस्त
चित्रा
स्वाती
विशाखा
अनुराधा
ज्येष्ठा
मूल
पूर्वाषाढ़ा
उत्तराषाढ़ा
२०१०
२०१०
१००५
२०१०
३०१५
२०१०
१००५
३०१५
६६०
१३२०
१००५
२०१०
२०१०
३०१५
२०१०
२०१०
१००५
३०१५
२०१०
१००५
२०१०
२०१०
३०१५
२०१० परिधिखंड नक्षत्रों को २०१० ÷
३०५ २ ३०५ २ ३०५ २
३०५
३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को ३०१५ :
१३.४
१३.४
६.७
१३.४
२०.१
१३.४
६.७
२०.१
४.६
दक्षिणायन प्रारंभ
5.5
६.७
१३.४
१३.४
२०.१
१३.४
१३.४
६.७
२०.१
१३.४
६.७
१३.४
=१६
१३.४
२०.१
जैन भूगोल के अनुसार चन्द्र के साथ नक्षत्र प्रतिदिन ६७३० = २०१० परिधिखंड सह-गमन करते हैं । इस हिसाब से जिन नक्षत्रों के १००५ परिधि खंड हैं, उनको १००५÷२०१० दिन लगेगा २०१० परिधिलंड नक्षत्रों को २०१० २०१० १ दिन लगेगा, ३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को २०१५ २०१० १३ दिन लगेगा, २३ अभिजित नक्षत्र को ६३० ÷ २४१० ३७ दिन लगेगा और उत्तरायण में पुष्य नक्षत्र को ६६० ÷ २०१०= ६७
दिन तथा दक्षिणायन में पुष्य नक्षत्र को १३२० ÷ २०१०= दिन लगेगा। भारतीय पंचांगों के अनुसार चन्द्र-नक्षत्र सहगमन काल कम-से-कम ५२ घडी ४२ पल अर्थात् २६० मुहूर्तं तथा अधिक से अधिक ६७ घड़ी ४४ पल अर्थात् ३४ मुहूर्त होता है । अभिजित नक्षत्र को नहीं माना है ।
६७
राहू-नक्षत्र सहगमन प्रतिदिन ६१ ३०__ X १२ १ १००५ परिधिखंड नक्षत्रों को १००५÷
जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात
==१३. ६१
४७ दिन,
६१
१३
१४
१४
१३
परिधिखंड होता है । इस हिसाब से
३६
३. दिन,
६१
१४
१४
दक्षिणायन प्रारम्भ
१४
१४
} १४
१४
१४
१४
१३
१४
१३
१४
१३
१३
१३
१३
उत्तरायण प्रारम्भ
१४ १३
६३३
2985
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. ६३४
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
अभिजित
नक्षत्र को
६३०: ३२५ =
दिन
तथा उत्तरायण के पुष्य नक्षत्र को ६६०
और दक्षिणायन के पुष्य नक्षत्र को १३२० : ३०५= ८४ दिन लगते हैं
(७) भारतीय पंचांगों के अनुसार राहू विरुद्ध दिशा में किस तरह चलता है, यह नीचे दर्शाते है : तारीख राहू-नक्षत्र व चरण
पंचांग १८-४-१९७६ स्वाती-चतुर्थ चरण
सोलापुर दाते पंचाग २०-६-१९७६
, तृतीय २२-८-१९७६
, द्वितीय ॥ २३-१०-१९७६
, प्रथम , २५-१२-१९७६ चित्रा-चतुर्थ २६-२-१९७७
, तृतीय ३०-४-१९७७ ,, द्वितीय
बंबई जन्मभूमि पंचांग २-७-१९७७
" प्रथम ३-६-१९७७
हस्त-चतुर्थ , ७-११-१९७७
" तृतीय , ७-१-१९७८
, द्वितीय , ११-३-१९७८
" प्रथम , इस तालिका से स्पष्ट है कि राहू दो वर्षों में स्वाती, चित्रा और हस्त ये तीन नक्षत्र पार कर सका है । दिशा भी जैन भूगोल से विपरीत रही है। (८) सूर्य प्रकाश की मर्यादा त्रिलोकसार गाथा ३९७ के अनुसार निम्न प्रकार है
मंदर गिरि मज्झादो जावय लवणुवहि छठ्ठ भागो दु।
हेवा अद्वरससया उरि सम जोयणा ताओ ॥३६७।। अर्थात् सूर्य का प्रकाश सुदर्शन मेरु के मध्य भाग से लेकर लवणसमुद्र के छठवें भाग पर्यंत फैलता है, तथा नीचे १८०० अठारह सौ योजन और ऊपर एक सौ (१००) योजन पर्यंत फैलता है । भावार्थ-सूर्य यदि ककं वृत्त पर हो तो मेरु मध्यपर्यंत ४६८२० योजन । लवणसमुद्र में विस्तार २ लाख योजन के छठवे भाग ३३३३३३ योजन तक तथा सूर्य के ऊपर ज्योतिर्लोक पर्यंत १०० योजन और सूर्य के नीचे पृथ्वी ८०० योजन व पृथ्वी की जड़ १००० योजन कुल १८०० योजनपर्यंत प्रकाश फैलता है। सूर्य प्रकाश की मर्यादा में असमानता क्यों है, इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।
(8) सूर्य मेरु मध्य से ४६८२० योजन से ५०३३० योजन तक ५१० योजन तक १८४ परिधियों में, जो २५६ योजन अंतराल में होती हैं, भ्रमण करता है । एक परिधि में भ्रमण करने को ६० मुहूर्त अर्थात दो दिन लगते हैं माना यह जाता है कि कर्कवृत्त की परिधि से मकरवृत्त की परिधि १८४वीं है, अतः प्रथम १८३ परिधियाँ कर्कवृत्त की हुई और १८४वीं परिधि मकरवृत्ति की पहिली परिधि हुई । इस प्रकार १८३ परिधियाँ कर्कवृत्त की हुई और लौटने पर १५३ परिधियाँ मकरवृत्त की हुई इस तरह १८३ दिन दक्षिणायन के और १८३ दिन उत्तरायन के हुए । मगर कठिनाई यह है कि यदि सूर्य को एक परिधि पार करने में दो दिन लगते हैं तो १८३ परिधियों को दक्षिणायन के समय १८३४२-३६६ दिन लग जावेंगे उसी तरह उत्तरायण के समय भी ३६६ दिन लगेंगे । यदि एक अयन में १८३ दिन होते है तो परिधियाँ १८३:२=६१३होंगी। इस शंका का समाधान कठिन जान पड़ता है । अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सौर वर्ष ३६५१ दिन का होता है, ३६६ दिन का नहीं।
(१०) त्रिलोकसार गाथा ३७६ में दिन रात्रि का परिमाण इस प्रकार है
.
.
* जम्पूद्वीप में दो सूर्य हैं । इसीलिए शंका का समाधान हो जाता है।
-सम्पादक
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जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात
६३५
सूरादो दिणरत्ती अट्ठारस बारसा मुहत्ताणं ।
अन्मंन्तरम्हि एवं विवरीयं बाहिरम्हि हवे ॥३७६॥ अर्थात् सूर्य अभ्यंतर परिधि अर्थात कर्कवृत्त में श्रमण करता है, तब दिन अठारह मुहूर्त का और रात्रि बारह मुहूर्त की होती है। सूर्य बाह्य परिधि अर्थात मकरवृत्त में भ्रमण करता है, तब अठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहूर्त का दिन होता है । भारतीय पंचांगों के अनुसार सबसे बड़ा दिन १६४ मुहूर्त का और सबसे छोटा दिन १३१ मुहूर्त का होता है।
(११) इस तरह यह निष्कर्ष निकलता है कि जैन भूगोल का मेल भारतीय पंचांगों से कतई नहीं बैठता है । जैन भूगोल में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि ग्रहों का भ्रमण कैसे होता है, यह नहीं बताया है । इसलिए जैन भूगोल से पंचांग नहीं बन सकता है । आधुनिक पंचांगकर्ताओं ने हर्षल, नेपच्यून तथा प्लूटो ग्रहों को भी शामिल कर अपना ज्योतिष-शास्त्र पूर्ण कर लिया है । भारत की जनता इन पंचांगों पर विश्वास करती है और अपने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी इन्हीं गणना के आधार पर होते हैं धार्मिक कार्यक्रम भी इन्हीं पंचांगों के तिथि अनुसार होते हैं ।
(१२) अन्त में निवेदन है कि जैन समाज एक संशोधन कमेटी बनावें, जिनमें करणानुयोगी शास्त्री हों, वैज्ञानिक हों, ज्योतिषी हों और गणितज्ञ भी हों। वे उपरोक्त प्रकरणों की सूक्ष्मता से जांच कर अपना निर्णय देवें कि सत्य क्या है और किसे मानना चाहिए।
(१३) कलकत्ता और बम्बई में प्लानेटेरियमों द्वारा जनता को आकाश के ग्रह-नक्षत्र-तारों की जानकारी प्रतिदिन अनेक बार दी जाती है । इनसे विषय को समझने में सहायता ली जा सकती है।
(१४) भारत के दो उपग्रह 'आर्यभट्ट" और "फखरुद्दीन अहमद" पृथ्वी के चक्कर लगाते रहते हैं, इनसे मी प्रेरणा मिल सकती है।
उपरोक्त लेख का मुख्य आधार श्रीमन्नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्ती विरचित तथा श्रीमन्माधवचन्द्र विद्यदेव कृत व्याख्या सहित “त्रिलोकसार" ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ ७० लाडमल जैन, अधिष्ठाता, शान्तिवीर गुरुकुल, श्री महावीरजी (राजस्थान) द्वारा बीर निर्वाण सं० २५०१ में प्रकाशित हुआ है । सम्बन्धित गाथाएँ निम्न प्रकार हैंगाथा नं. पृष्ठ नं.
विषय २५४ जंबूद्वीप का व्यास ३११
जंबूदीप की परिधि व क्षेत्रफल इनकी जगह आधुनिक फार्मूला का उपयोग किया है यथा(१) त्रिज्या=व्यास:२ (२) परिधि=IX व्यास (m=३.१४१६) (३) क्षेत्रफल=rxत्रिज्यारे (४) घनफल (गोल वस्तु का) =
(५) क्षेत्रफल (गोल वस्तु का)=xx xत्रिज्यारे
५०६ भरतक्षेत्र का विष्कंभ ५२६ योजन ७७१
६१०) ६११
भरतक्षेत्र की जीवा १४४७१११ योजन ६१७
लवणसमुद्र का विस्तार २५५१
वलयव्यास सूचीव्यास ३१०
२५६ ५१० मेरुगिरि का उदय, भू व्यास व मुख व्यास
स्वर्ग व मोक्ष का स्थान
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________________ .636 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड 222 तथा 221 207) व्यन्तर तथा भवनवासी देवों के आवास 208 260 245) नारकियों के आवास 346 260 जंबूद्वीप सम्बन्धी दो सूर्य तथा दो चन्द्र 378 324) ज्योतिर्लोकाधिकार सम्बन्धी 406 370) समस्त विवरण इस ग्रन्थ में एक योजन 4000 मील के बराबर लिया है / इसके लिए प्रस्तावना-त्रिलोकसार के गणित की विशेषताएँ पृष्ठ 34 देखें 2 मील=१ कोश, 4 कोश=१ योजन, 500 योजन=एक महायोजन / भरत क्षेत्र का क्षेत्रफल आधुनिक गणित पद्धति से निकाला है। (AREA OF SEGMENT=AREA OF SECTOR-AREA OF TRIANGLE OVER ITS CMORD) M-0--0-पुष्कर संस्म रण-6--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0----0--0--0--0--0--0---- चरणामृत नहीं, वचनामृत एक वृद्ध सज्जन अपने पौत्र को लेकर आये / उनके हाथ में एक गरम पानी का जल पात्र था और चांदी की कटोरी थी। उन्होंने गुरुदेव को नमस्कार कर / कहा-गुरुदेव मेरा पौत्र कई दिनों से अस्वस्थ है / मैंने अनेकों उपचार करवाये; किन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ। मेरा आत्म-विश्वास है कि आप अध्यात्मयोगी हैं जरा 1 1 आपका चरणामृत मिल जाय तो यह पूर्ण स्वस्थ हो जाएगा / गुरुदेव ने कहा-चरणा मृत नहीं, मंगल-पाठ जो वचनामृत है उसी का पान करा दो जिससे इसे लाभ होगा / गुरुदेव ने मंगल-पाठ सुनाया। दूसरे दिन वह वृद्ध नाचता हुआ आया और बोलागुरुदेव | आपके वचनामृत में अद्भुत चमत्कार है जिससे मेरा पौत्र स्वस्थ हो गया। ------------------ ---- e-o-Ho-oh-o-----0-- -0---------------------------oh-oh-o--------o