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________________ ++******* रेवती अश्विनी भरणी Jain Education International कृत्तिका रोहिणी मृगशीर्ष आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य पुष्य आपलेया मघा पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा स्वाती विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा मूल पूर्वाषाढ़ा उत्तराषाढ़ा २०१० २०१० १००५ २०१० ३०१५ २०१० १००५ ३०१५ ६६० १३२० १००५ २०१० २०१० ३०१५ २०१० २०१० १००५ ३०१५ २०१० १००५ २०१० २०१० ३०१५ २०१० परिधिखंड नक्षत्रों को २०१० ÷ ३०५ २ ३०५ २ ३०५ २ ३०५ ३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को ३०१५ : १३.४ १३.४ ६.७ १३.४ २०.१ १३.४ ६.७ २०.१ ४.६ दक्षिणायन प्रारंभ 5.5 ६.७ १३.४ १३.४ २०.१ १३.४ १३.४ ६.७ २०.१ १३.४ ६.७ १३.४ =१६ १३.४ २०.१ जैन भूगोल के अनुसार चन्द्र के साथ नक्षत्र प्रतिदिन ६७३० = २०१० परिधिखंड सह-गमन करते हैं । इस हिसाब से जिन नक्षत्रों के १००५ परिधि खंड हैं, उनको १००५÷२०१० दिन लगेगा २०१० परिधिलंड नक्षत्रों को २०१० २०१० १ दिन लगेगा, ३०१५ परिधिखंड नक्षत्रों को २०१५ २०१० १३ दिन लगेगा, २३ अभिजित नक्षत्र को ६३० ÷ २४१० ३७ दिन लगेगा और उत्तरायण में पुष्य नक्षत्र को ६६० ÷ २०१०= ६७ दिन तथा दक्षिणायन में पुष्य नक्षत्र को १३२० ÷ २०१०= दिन लगेगा। भारतीय पंचांगों के अनुसार चन्द्र-नक्षत्र सहगमन काल कम-से-कम ५२ घडी ४२ पल अर्थात् २६० मुहूर्तं तथा अधिक से अधिक ६७ घड़ी ४४ पल अर्थात् ३४ मुहूर्त होता है । अभिजित नक्षत्र को नहीं माना है । ६७ राहू-नक्षत्र सहगमन प्रतिदिन ६१ ३०__ X १२ १ १००५ परिधिखंड नक्षत्रों को १००५÷ जैन भूगोल पर एक दृष्टिपात ==१३. ६१ ४७ दिन, ६१ १३ १४ १४ १३ परिधिखंड होता है । इस हिसाब से ३६ ३. दिन, ६१ १४ १४ दक्षिणायन प्रारम्भ १४ १४ For Private & Personal Use Only } १४ १४ १४ १४ १३ १४ १३ १४ १३ १३ १३ १३ उत्तरायण प्रारम्भ १४ १३ ६३३ 2985 www.jainelibrary.org
SR No.210827
Book TitleJain Bhugol par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Singhi
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size705 KB
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