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________________ ६३२ श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड (६) सूर्य सुदर्शन मेरु की एक प्रदक्षिणा ६० मुहूर्त (४८ घण्टे) में करता है, एक परिधि में आधुनिक पद्धति में ३६० अंश है, अतः एक मुहूर्त में सूर्य ३६०६०=६ अंश परिधि पार करता है। इन ६ अंश के जैन भूगोल में गणित की सरलता के लिए १८३० खण्ड किये हैं, अर्थात् सूर्य एक मुहूर्त में १८३० परिधिखण्ड गमन करता है चन्द्र १७६८ परिधिखण्ड गमन करता है और नक्षत्र १८३१ परिधिखण्ड गमन करते हैं। राहू १८२६१३ परिधिखण्ड गमन करता है। पूर्ण परिधि में १८३०४६०=१०६८०० खण्ड होते हैं, अतः सूर्य पूर्ण परिधि १०६८००:१८३०=६० मुहूर्त में चन्द्र १०६८०० : १७६८=६२२३, मुहूर्त में, नक्षत्र १०६८०० : १८३५=५६ ३०७ मुहूर्त में तथा राहू १०६८०० १८२६ ११=१०६८०० : २१६५ ११ .२१६५६१०६८०० १२_१३१७६०० ६० १२ १ २१६५६२१७ ६ मुहूर्त में गमन करेंगे। इसका सीधा अर्थ यह है कि नक्षत्र, सूर्य, राहू और चन्द्र नित्य मेरु गिरि प्रदक्षिणा करते हैं। नक्षत्र सूर्य से प्रति मुहर्त १८३५-१८३०=५ परिधि खण्ड आगे रहते हैं, राहू से १८३५–१८२६५३ परिधि खण्ड आगे रहते हैं और चन्द्र से १८३५-१७६८=६७ परिधि खण्ड आगे रहते हैं। (६ अ) जंबूद्वीप के सुदर्शन मेरु गिरि की दो सूर्य, दो चन्द्र तथा ५६ नक्षत्र परस्पर विरोधी दिशा में प्रदक्षिणा करते हैं, अतः अर्ध परिधि में एक सूर्य, एक चन्द्र तथा २८ नक्षत्र होते हैं । जैन भूगोल में अभिजित नक्षत्र अधिक माना है और इसी नक्षत्र से उत्तरायण की शुरुआत मानी है । इस अर्घ परिधि में १०६८००:२=५४६०० परिधि खंड होते हैं । सूर्य उत्तरायण में अभिजित नक्ष में प्रवेश करता है । चूंकि नक्षत्र प्रति मुहूर्त सूर्य से ५ परिधि खंड आगे जाता है तो उसे पुन: उसी जगह आने को प्रतिदिन ५४३०=१५० परिधिखंड आगे आना पड़ता है, इस हिसाब से ५४६०० १५०= ३६६ दिन लगते हैं यह हुआ सौर वर्ष राहू से प्रति मुहूर्त नक्षत्र ६३ परिधिखंड आगे रहते हैं, प्रतिदिन १४३० = २०-परिधि आगे रहते हैं, अतः अभिजित नक्षत्र को पुनः अपनी जगह आने के लिए ५४६००-२०=३६० दिन लगते है, यह हुआ राहू वर्ष । चन्द्र से नक्षत्र प्रति मुहर्त ६७ परिधिखंड आगे रहते हैं, प्रतिदिन ६७४३०=२०१० परिधि खंड आगे रहते हैं, अत: अभिजित नक्षत्र को पुनः अपनी जगह आने के लिए ५४६०० : २०१० =२७ ६३ अर्थात् २०२१ दिन लगते हैं । चूंकि पूर्ण परिधि में दो सूर्य, दो चन्द्र, दो राहू और दो नक्षत्र समूह हैं, इसलिए इन प्रथम सूर्य का अग्रणी अभिजित नक्षत्र दूसरे सूर्य, राहू और चन्द्र को उपरोक्त दिनों में मिल जाता है। (७) जैन भूगोल में अभिजित नक्षत्र सहित २८ नक्षत्र हैं। भारतीय पंचांगों में २७ नक्षत्र ही माने हैं । अभिजित नक्षत्र का उल्लेख नहीं होता है । राहू ग्रह भी उलटी दिशा में गमन करता है और उसकी गति भी बहुत ही मन्द है । इन सभी का तुलनात्मक विवरण नीचे कोष्ठकों में दिया गया है। सूर्य नक्षत्र सह-गमन दिन प्रतिदिन १५० परिधिखंड नक्षत्र परिधिखंड भारतीय पंचांगों से ० सह-गमन दिन जैन भूगोल से उत्तरायण प्रारम्भ ४.२ १३.४ २०१० अभिजित श्रवण घनिष्ठा शतभिषा पूर्वाभाद्रपद उत्तराभाद्रपद २०१० १००५ २०१० ३०१५ १३.४ २०.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210827
Book TitleJain Bhugol par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Singhi
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size705 KB
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