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________________ ६३० श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड पार करता है, अधिक मास के वर्ष में ३८४ दिन होते हैं । इस मास में चन्द्र १४ चौदह बार समस्त राशि व नक्षत्रों को पार करता है। (३) जैन भूगोल के अनुसार मध्य लोक के मध्य में एक लाख योजन व्यास वाला थाली के आकार वाला जंबूद्वीप है। इसकी त्रिज्या पचास हजार योजन है। परिधि ३१४१६० योजन है । क्षेत्रफल ७८५४४१० वर्ग योजन है । इसमें भरतक्षेत्र दक्षिण में है। भरतक्षेत्र का विष्कम उत्तर दक्षिण ५२६ योजन है । उत्तरी मर्यादा १४४७११ योजन है । अत: भरतक्षेत्र का क्षेत्रफल ४६४६६०० वर्ग (प्रतर) योजन होता है । इसको ४०००२ से गुणा करने पर (१ योजन=४००० मील) क्षेत्रफल वर्गमील में आ जायेगा । इस जंबूद्वीप को दो लाख योजन विस्तार वाला कंकणाकृति लवण समुद्र घेरे हुए है । लवणसमुद्र का व्यास पांच लाख योजन है, जंबूद्वीप के मध्य में दस हजार योजन व्यास वाला सुदर्शन मेरु है। इसकी ऊँचाई १९००० हजार योजन है। इस ऊंचाई पर सुदर्शन मेरु क्रमशः घटकर १००० योजन रह जाता है । इस मेरू के ऊपर स्वर्ग लोक प्रारम्भ हो जाते हैं। सर्वोच्च भाग में (सात राजू पर) मोक्ष लोक है तथा मेरु के निचले भाग में व्यन्तर तथा भवनवासी देवों के भवन तथा उसके नीचे नरक लोक है। (४) सुदर्शन मेरु की दो सूर्य तथा दो चन्द्र नित्य प्रदक्षिणा देते रहते हैं । वे परस्पर विरुद्ध दिशा में ६६६४० योजन दूर रहने पर कर्क वृत्त में माने जाते हैं, उस समय सबसे बड़ा दिनमान १८ मुहूर्त अर्थात् १४ घण्टे २४ मिनिट का माना जाता है और रात्रिमान १२ मुहूर्त अर्थात ६ घण्टे ३६ मिनिट का माना जाता है। सूर्य और चन्द्र, दोनों अपने परिभ्रमण का व्यास बढ़ाते चले जाते हैं, दोनों सूर्य १८३ दिनों में १००६६० योजन परस्पर दूर हो जाते हैं, तब वे मकर वृत्त में माने जाते हैं, उस समय सबसे छोटा दिनमान १२ महतं अर्थात ६ घण्टे ३६ मिनिट का माना जाता है और रात्रिमान १८ मुहुर्त अर्थात् १४ घण्टे २४ मिनिट का माना जाता है, एक सूर्य एक तरफ ३० मुहूर्त अर्थात् २४ घण्ट में सुदर्शन मेरु की आधी परिक्रमा करता है । दोनों सूर्यों को एक पूर्ण परिक्रमा में ६० मुहूर्त अर्थात् ४८ घण्टे लगते हैं। विदेहक्षेत्र मे दिनमान तथा रात्रिमान कितने समय के होते हैं इसका विवरण शास्त्रों में नहीं है । फिर भी चूंकि अहोरात्र ३० मुहूर्त अर्थात् २४ घण्टे का होता है, तब विदेहक्षेत्र में जब यहाँ १८ मुहूर्त का दिनमान होता है ३०-१८ =१२ मुहूर्त का दिनमान होना चाहिए, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है। उसीतरह जब यहाँ १२ मुहूर्त का दिनमान हो तब विदेहक्षेत्र में ३०- १२=१८ मुहूर्त का दिनमान होना चाहिये । दोनों सूर्य १८३ दिनों में अपने परिभ्रमण का व्यास प्रतिदिन घटाते हुए मकरवृत्त से कर्कवृत्त में पहुंच जाते हैं । इस तरह सौर वर्ष १८३+१८३=३६६ दिन का माना जाता है । यह अंग्रेजी कैलेण्डर से ३६६-३६५१=३/४ दिन अधिक होता है। (५) दोनों चन्द्र परस्पर विरुद्ध दिशा में कर्कवृत्त से मकरवृत्त में आने में १४ दिन लगते हैं और मकरवृत्त से कर्कवृत्त को लौटने में १४ दिन लगते हैं इस तरह कर्क वृत्त से विस्तृत होकर फिर संकुचित होकर कर्क वृत्त में लौटने में २८ दिन लगते हैं। किन्तु २७ नक्षत्रों को पार करने के लिए उत्तरायण में १३४४ दिन तथा दक्षिणायन में १३४४ दिन कुल १३४४+१३३४२७13 दिन लगते हैं। (५अ) भारतीय पंचांगों के अनुसार चांद्र-मासों के दिन निम्न प्रकार हैं-(त्रिलोकसार गाथा ३७१ के अनुसार प्रत्येक मास ३०३ दिन का होता है) ईस्वी सन् १९७६-७७ ईस्वी सन् १९७७-७८ चैत्र--३० दिन चैत्र-३० दिन वैशाख--३०, वैशाख -३० , ज्येष्ठ-२६ ज्येष्ठ-२६, आषाढ़-३० आषाढ़-३० श्रावण-२६ अधिक श्रावण-२९, भाद्रपद-२६ श्रावण-३० आश्विन-३० भाद्रपद-२६ कार्तिक-२६ आश्विन-३० मार्गशीर्ष-३० कार्तिक-२६, पौष-२६ मार्गशीर्ष-३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210827
Book TitleJain Bhugol par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Singhi
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size705 KB
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