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________________ .636 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड 222 तथा 221 207) व्यन्तर तथा भवनवासी देवों के आवास 208 260 245) नारकियों के आवास 346 260 जंबूद्वीप सम्बन्धी दो सूर्य तथा दो चन्द्र 378 324) ज्योतिर्लोकाधिकार सम्बन्धी 406 370) समस्त विवरण इस ग्रन्थ में एक योजन 4000 मील के बराबर लिया है / इसके लिए प्रस्तावना-त्रिलोकसार के गणित की विशेषताएँ पृष्ठ 34 देखें 2 मील=१ कोश, 4 कोश=१ योजन, 500 योजन=एक महायोजन / भरत क्षेत्र का क्षेत्रफल आधुनिक गणित पद्धति से निकाला है। (AREA OF SEGMENT=AREA OF SECTOR-AREA OF TRIANGLE OVER ITS CMORD) M-0--0-पुष्कर संस्म रण-6--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0----0--0--0--0--0--0---- चरणामृत नहीं, वचनामृत एक वृद्ध सज्जन अपने पौत्र को लेकर आये / उनके हाथ में एक गरम पानी का जल पात्र था और चांदी की कटोरी थी। उन्होंने गुरुदेव को नमस्कार कर / कहा-गुरुदेव मेरा पौत्र कई दिनों से अस्वस्थ है / मैंने अनेकों उपचार करवाये; किन्तु कुछ भी लाभ नहीं हुआ। मेरा आत्म-विश्वास है कि आप अध्यात्मयोगी हैं जरा 1 1 आपका चरणामृत मिल जाय तो यह पूर्ण स्वस्थ हो जाएगा / गुरुदेव ने कहा-चरणा मृत नहीं, मंगल-पाठ जो वचनामृत है उसी का पान करा दो जिससे इसे लाभ होगा / गुरुदेव ने मंगल-पाठ सुनाया। दूसरे दिन वह वृद्ध नाचता हुआ आया और बोलागुरुदेव | आपके वचनामृत में अद्भुत चमत्कार है जिससे मेरा पौत्र स्वस्थ हो गया। ------------------ ---- e-o-Ho-oh-o-----0-- -0---------------------------oh-oh-o--------o Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210827
Book TitleJain Bhugol par Ek Drushtipat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Singhi
PublisherZ_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf
Publication Year
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Geography
File Size705 KB
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