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एमां बे वात छे
हसु याज्ञिक
ईस्वीसन १९६७-६८नुं संभवतः ए वर्ष हतुं. हुं त्यारे रहेतो हतो जैन मर्चन्ट पासे ऋषभदेव सोसायटीमां. सवारना अगीआरेक वाग्या हता ने मुंबईनी मीठीबाई कोलेजना आचार्य अने कौटुंबिक संबंधे मारा काका श्री अमृतलाल याज्ञिक आवी चड्या ने आवतां का :
तारे घरे ज्ञाननी गंगा लाव्यो छु हसु !' । __ में जोयुं तो एमनी साथे अत्यंत गौर अने ताम्रवर्णा सोहामणा सज्जन ! एकदम श्वेत, इस्त्रीबद्ध, आर करेलो पहेरवेश. अमुकाका बोल्या :
'आ मारा मित्र डॉ. हरिवल्लभ भायाणी. खास आव्यो छु हुं एमने तने सोंपवा माटे !' अने भायाणी साहेबने उद्देशीने का : 'आ मारो भत्रीजो तमने सोंपुं छु भायाणी !'
में स्वीकार्यो...' भायाणीसाहेब एमना लाक्षणिक हास्य साथे बोल्या। मारा आनंद-आश्चर्यनो पार न हतो. में त्यारे 'वाग्व्यापार' अने कथासाहित्य परना डो. भायाणीना लेखो वांचेला. आवा मोटा विद्वान मारे घरे ? ने एमना विद्यार्थी तरीके स्वीकारे ? मारे माटे तो दोडबुं हतुं ने ढाळ मळ्यो ! बगासुं खातां पतासुं मळ्यु.
___ हकीकत एम हती मारी बदली वीसनगरथी अमदावाद थयेली, अने अमदावादमां मने गोठ्युं न हतुं, ए बाबत अमृतलाल याज्ञिकने लखेलं त्यारे जवाबमां लखेलुं : तारी कारकिर्दी माटे अमदावाद अने गुजरात कोलेज तारा हितमा छे. त्यांनां ग्रन्थालयो, विद्वानो अने वातावरणनो लाभ मळशे. पीएच.डी. करी लेवू. उत्तमगुरुनी व्यवस्था हुं गोठवीश.....
ए आटलुं झडपी ने आटलुं उत्तम थशे, एनी मने तो धारणा पण केम होय ? घरे तो बीजी ज वातो थई. प्रिन्सिपल प्रेमशंकर भट्ट पण आव्या. भावनगर शामलदास कॉलेजना त्रणे मित्रो-भायाणी, याज्ञिक अने फोझदार (प्रि. प्रेमशंकर भट्टना पिताश्री फोझदार होवाथी आ मित्रो भट्टसाहेबने
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209 ए हुलामणा नामे ज संबोधता) वातोमा जाम्या. बीजे दिवसे गुजरात कोलेजथी सीधो युनिवर्सिटी भाषाभवनमां गयो ने भायाणी साहेबने मळ्यो. एमणे पूज्यु :
"पिएच.डी. माटे क्यो विषय विचारो छो ?' 'नवलकथा पर काम कर छे. सुरेन्द्रनगरमां प्रि. वाय.डी.भावेना मार्गदर्शनमा नवलकथा परना केटलाक महत्त्वना अंग्रेजी ग्रन्थो हुँ वांची गयो
___ 'पण एमां संशोधन करवानो अवकाश केटलो? वळी तमे पोते पण वार्ताओ-नवलकथाओ लखो छो. ए लखता रहो. परंतु विशेष अभ्यास माटे मध्यकालीन साहित्यनो विषय लो. एमां संशोधनने अवकाश छे.' ।
'परंतु एना इतिहास सिवाय बीजुं में वांच्युं नथी, खास तो कृतिओ.'
'तो हवे वांचो.' भायाणीसाहेब बोल्या; 'हुं तो मारा मनमां निश्चित करेला छे, ते विषयो पर ज काम करावु छु. शामळ पर, रास पर, चंद्रचंद्रावळी पर जानी, भारती झवेरी, हीराबेन पाठक पासे काम कराव्यु. हवे मारा मनमा मध्यकालीन गुजराती प्रेमकथाओ पर ज कोईक पासे काम करवानुं नक्की थई गयुं छे. तमे एना पर काम करो. तमने ए काम गमशे. सर्जक तरीके तो तमे पोते ज प्रेमकथा पर काम कर्यु, कृतिना रूपमा. 'दग्धा' नवलकथामां तमे दग्ध एटले पूर्ण एवं व्यक्तित्व बंधायुं होय, एनुं दाम्पत्य दग्ध एटले असफळ कजळेलुं रहे छे, केमके, दरेक पुरुषने पोते घडी शके, टांक' पाडी शके पोतानुं एवी पत्नी जोईए छे, तेथी पूर्ण व्यक्तित्व साथे दाम्पत्यनो मेळ बेसतो नथी - आवा थीम पर काम कर्यु छे. आगळना काळना लेखकने पण ए रीते ज पोताना काळनी समस्याने वाचा आपवानी होय छे.'
'परंतु ए कथाओ तो चमत्कारपूर्ण बाह्य घटनाओमां राचती होय छे. एमां परंपरा अने रूढ माळखां होय....' ।
'ए आवे क्याथी ? तत्कालीन परिस्थिति अने चित्तमांथी के बीजेथी? शा माटे अमुक कथाओ ज वारंवार रचाई ? मात्र कथा तरीके रोचक हती माटे ? तो आगळनी कृति हती ज. भाषा ने समाज खास बदलाया न हतां
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तो पण एकना एक कथानक पर अनेक केम कृति करे छे ? शुं ए उतारी के मात्र पुनः कथन होय छे ? 'नंदबत्रीशी'नी भारतभरमां अनेक कृतिओ शाथी रचाई ? माधव अने कामकुंडलानी कथा संस्कृत, जूनी गुजराती बधे ज केम आवी ? सगा माबाप एक साधुनी हठ माटे ने व्रत माटे थईने ज पोताना पुत्रनुं माथु कापे, खांडे, एवी भयंकर दारुण घटना कथामा केम आवे ? ने आवी कथा लोको केम माणे ? कयुं कारण आवी कथाने जन्म आपे ? क्या कारणे आवी कथाओमां लोकोने रस पडे ? ए केवो समाज ? केवां एनां धोरणो ? आ बधा पाछळनो वास्तव कयो ? कई राई परना आ पहाडो ? 'पंचतंत्र' विश्वभरमां केम फेलाई गयुं ? बधी ज भिन्न प्रजाओ अने संस्कृतिओने एमां रस शाथी पड्यो ? विश्वसमग्रनी मानवचेतनाने जोडनारुं सूत्र कयुं ? प्राचीन अने मध्यकालीन कथाओ केवळ कल्पित मनोरंजनात्मक रसोत्पादक सामग्री ज नथी. युगोजूनी संस्कृतिनो ए दस्तावेज छे !'
ए ज घडीए में आ गुरुनी कंठी बांधी. अत्यार सुधी आ बधुं ज मात्र मनोरंजनात्मक लागतुं हतुं. संशोधकना स्टेथोस्कोपे कयो धबकार सांभळवानो छे, एनी पहेली ज मुलाकाते मने जाण थई.
पछी गुरु-शिष्य संवाद नियत अने नियमित बन्यो, हुं कॉलेजथी छूटी सायकल पर भाषाभवन पहोंचुं. त्यांथी भायाणीसाहेब साथे चालतां गोष्ठि करतां महादेवनगरना घर सुधी के अर्धे सुधी. ए दोडवानी झडपे चाले. मारे त्यारे ने पछी पण छेक सुधी एमनी साथे रहेवा मथवुं पडे, दोडवुं ज पडे, ढसडाता, चालवामां पण ! बच्चे एक दिवस कहे : ' चाल मारा गुरु बतावुं !' में त्यारे पहेलुं दर्शन कर्तुं जिनविजयजीनुं श्याम, ऊंचो प्रभावशाळी देह. सामे लाल वस्त्रोमां विंटेली पोथी. थोडुं बेठां वात करी. बहार नीकळतां कहे : 'केवा लाग्या मारा गुरु !' में कह्युं : 'भव्य योद्धा जेवा!' ए कहे : 'क्षात्रधर्मी विद्यापुरुष छे मारा गुरु !'
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पछी भायाणीसाहेब युनिवर्सिटी केम्पसना रोडर्स क्वार्टरमा आव्या ने पछी ज्ञाननी प्रथा जेवा हाईलेन्ड पार्कमां. मने पण क्वार्टर मळ्युं गुलबाई टेकरा परना पांच बंगलामां. पाछळनी वंडीनी झांपलीमांथी ज सीधा ते काळना सचिवालय अने पछीना काळे बनेला पोलिटेनिकना केम्पसमां. एनी
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पासेनी बीजी झांपलीमा प्रवेशी हाईलेन्ड पार्कमां भायाणीसाहेबने घरे. भाषाभवनमांथी आव्या होय ने अमारो वर्ग शरू थाय. मने क्षोभ थाय, थाक्या हशे, कंटाळ्या हशे हुं कहुं, सांजे आववानुं राखुं ? ए कहे ना, त्यारे बीजा लोको आवे ने आपणे काम छोड़वुं पडे. सांज पडतां जयंत कोठारी, चिमनभाई त्रिवेदी, भोळाभाई पटेल, जयेन्द्रभाई याज्ञिक, नटुभाई राजपरा कोई ने कोई अचूक होय ज. भाषाशास्त्र, व्याकरण, साहित्य शास्त्र अने एवी विविध चर्चाओ चाले. जयंतभाईनो व्याकरण - विचार सीमास्तंभ ते आ प्रपानी प्रसादी. बच्चे बच्चे संस्कृत - प्राकृत जूनी गुजरातीना मुक्तको दुहाओनी मधमीठी द्राक्ष अमे बे होईए तो अनेक कथाओना घटकोना खांखांखोळा चाले. आठ- दश वर्षनी वये सांभळेली होय एवी कथाओ, तेमां आवतां पद्यमय जोडकणां याद आवतां जाय.
भायाणीसाहेबनो स्मृतिकोश विशिष्ट प्रकारनो हतो. क्यारेय कशुं हेतुपूर्वक कंठस्थ न कर्तुं होय. वांच्यं होय एक ज वखत परंतु संदर्भ नीकले के तेमने याद आवे माधुं धुणावे ने एक शब्द नीकळे. बीजी वार धूणावे ने बीजो शब्द ने आम एक पूरी पंक्ति, बीजी पंक्ति ने एम पूरी रचना एमना स्मृतिकोषनो सोफ्टवेर अकबंध आपे. वांचता कोई पण सहेतुक प्रयत्न कंठस्थ करवानो न होय, परंतु चित्त पर एक ज वखत वांचेली वस्तुनी छाप एटली सचोट पडी होय के अल्प प्रयासे ज शब्दश: रूप आपी शके. मारा अनेक संशोधनमां जे मने विविध कथाओना घटको अने कथाबिंबो मळ्या एमां घणा बधा गुरुना आ अद्भुत स्मृतिकोषमांथी मने मळेला.
ज्यारे मारा विषय पर प्रकरणवार लखवानुं थयुं त्यारे प्रकरण लखीने भायाणीसाहेब पासे जाउं त्यारे हवामां ऊडतो होउं. पुष्कळ नवी सामग्री अने नवं दृष्टिबिंदु मध्यकालीन साहित्यने, कथासाहित्यने पण बधाए जोयेलुं मात्र साहित्यिक धोरणे, एथी एमां पंश्चिमना शास्त्रीय प्रकारना अभ्यासनी दृष्टिए घणुं खूटतुं हतुं, ते गुरुकृपाए मारा अभ्यासनी उणप नहीं रहे, एनो आनंद होय. भायाणीसाहेब आंखो मींचीने बेसे. हुं मारुं प्रकरण वांचुं. बच्चे न कई पूछे, न बोले. पूरुं वंचाय त्यारे कहे 'सारुं छे.' अने पछी क्यां, कई, केटली भूल छे, क्यां कचाश छे तेनी वात करवाने बदले, बे- चार मुद्दाओ पर बोले.
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ए एटलुं स्पष्ट अने वेधक होय के मने मारी भूल देखाय. फरी मारुं मंथन चाले. वांचन चाले. फरी लखुं ने ए वांचुं त्यारे कहे : 'हवे बराबर छे.' मने त्यारे 'सारुं छे' अने 'बराबर छे.' बच्चेनो भेद समजाय.
अभ्यास लेखनकक्षाए पहोंचतां ज हवे मारा नामने अने विषयने नोंधवानो समय पाक्यो. त्यां कोथळामांथी बिलाडुं नीकळ्युं - डॉ. भायाणीने युनिवर्सिटीए भाषाशास्त्रना विषय माटे मान्य कर्या छे, साहित्याना विषय माटे नहीं !
हुं धुंधवायो. निराश थयो. भायाणीसाहेब तो एमनी मजाकभरी रीते हळवाशथी कहे : 'एनो य रस्तो नीकळशे !' परंतु ए पहेलां ज विघ्न आव्युं. मध्यकालीन भाषा साहित्यना एक जाणीता विद्वाने कह्युं : 'मारी पासे जोडाई जाव. हुं तमने मारा मार्गदर्शनना विद्यार्थी 'तरीके रजिस्टर करावी दईश. ' में एमनो आभार मान्यो अने कह्युं के आपनी विद्वता विशे मने मान छे, परंतु जे दृष्टिथी में अभ्यास कर्यो छे, ए भिन्न छे. कथा मात्र साहित्यथी विशेष छे अने साहित्यकीय दृष्टिनो ज विवेचन- रसदर्शन प्रकारनो, प्रवाहदर्शननो अभिगम नथी.
आ वखते गुजरात कॉलेजमां मारा हेड ओफ डिपार्टमेन्ट डॉ. बिपिन झवेरी. खूब उमदा सज्जन मारा तरफ पूरा मान- प्रेम. मने कहे: मार्गदर्शन भले डॉ. भायाणीनुं लो. मारा विद्यार्थी तरीके नोंधणी करावो. मने ए स्वीकार्य न हतुं. एक दिवस एक तंदुरस्त बहेन आव्यां. एमनी नोंधणी बिपिनभाईए मारा ज विषयमां करवानुं सूचव्युं में कह्युं : 'तमे जाणो छो के हुं केटला वखतथी आना पर काम करूं छु ने तमे आ बहेनने आ विषय आपो छो ?' ए तो स्थितप्रज्ञ कहे : 'तो तमे ज नोंधाई जाव. '
सांजे भायाणीसाहेबने वात करी तो एमने तो एटली गम्मत पडी के हसता हसता लालचोळ थई गया अने मने कहे : ' कन्या मागामां चेराई गई छे ! हवे क्यांक पाकुं करी लो. नहीं तो कन्याना झंखना ने मागां आवां कंईक खेल पाडशे !'
अंते हुं तात्कालिक प्रि हसित बूच पासे सौराष्ट्र युनि. मां नोंधायो.
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ए दृष्टिसंपन्न विद्वान अने मारा प्रत्ये विशेष लागणी. बधुं ज शब्दश: वांचे, सुधारे, सरस आकार मळे, सौष्ठव मळे ए रीते गोठवे. अंते काम पूर्ण थयुं. वाईवा पूर्ण थतां भायाणीसाहेब कहे : 'लो लग्न करावी आप्यां. पण छोकरां थाय त्यारे जं लग्ननी पूर्णता. '
एमनी वात में वधावी अने अध्ययन-अध्यापन साथै अभ्यास आगळ वधारवानी नेम राखी नोंधरूपे पुष्कळ सामग्री हती. संदर्भ हता. तैयार इन्डेक्स हती. कामकथाना बे भाग प्रगट थया अने प्रो. जयंत कोठारीए जेने कलगी समो गणाव्यो ते अभ्यासनिबंध तैयार थयो. अन्य निमित्तो पण भायाणीसाहेबे पूरां पाड्यां ने काम सतत चालतुं ज रह्यं, एमना ज प्रत्यक्ष मार्गदर्शनमां.
परंतु गुजरात कॉलेज सरकारी. मोये हाउ बदलीनो. एमां डायरेक्टर बदलाय एटले कहे, बीजे तो त्रण के पांच वर्षे बदली थाय अहीं दशपंदर वर्षथी एक स्थळे ? डॉ. यशवंत गुलाब नायक, प्रो. जे. बी. शांडिल्य अने प्रि. बी. जे. त्रिवेदी जेवा आचार्य समजावे के अमदावादमां अनेक स्थानिक खानगी कॉलेजनी वच्चे गुजरात कॉलेजनां नामकाम टकाववानां छे. एने आम बदलीथी आवता अध्यापकोथी न चलावाय. खूब मथामणे पछी बदली अटके. परंतु माथे बदलीनी तलवार लटकती ज रहे. प्रो. नटुभाई राजपरा आ कारणे ज पाठ्यपुस्तक मंडळमां गुजराती विषयना निष्णात तरीके गयेला. एमने फरी धर्मेन्द्रसिंहजी कोलेज राजकोटमा जवानुं गोठवायुं मने थयुं के हुं पण पाठ्यपुस्तक मंडळमां डेप्यूटेशन पर जाउं तो अमदावादमां स्थिर रही शकाशे. परंतु भायाणीसाहेबने पूछ्या वगर आवो निर्णय केम थाय ? हुं नटुभाई राजपराने लईने मळवा गयो ने वात करी तो भायाणीसाहेब गुस्से थया ने नटुभाईने ज कह्युं : 'आ तमारो विद्यार्थी छे ने तमे एने सलाह आपता नथी ? तमे फरी अध्यापक रहेवानुं ज पसंद कर्तुं ने ! आने तो हजु लांबी कारकिर्दी छे. अध्ययन अने अध्यापन छोडीने आवा वहीवटी काममां पडवु छे ? त्यां तमारां ज्ञान - अनुभवनो शुं विकास थशे ?' में कह्युं : 'परंतु बदली...' 'तो शुं ?' ए बोल्या : 'भूज जवुं पडेने ? जाबुं. पण आ क्षेत्र न छोड़वं !'
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214 ताळं वसाई गयु ए वात पर. एक वार्ता अमारा बन्नेना मनमां घोळाती हती. प्राकृतमा हती घणकाघणकीनी वात. ए परसोत्तम मासनी कथामां में पण सांभळेली जेमां घणको व्रत-उपवास न करवाथी बकरा तरीके जन्म्यो अने घणकी व्रत-उपवासना पुण्ये राजकुमारी तरीके जन्मी. कोई न होय त्यारे दादर ऊतरती कुंजरीने बकरो कहेतो :
रुमझुमती राणी ने इच्छावर पाया !
परंतु एनो उत्तरार्ध अमने याद न आवे. एमां एक दिवस आ अमदावादना मे-जूनना काळा धोमधखता उनाळे मारा गुलबाई टेकराना क्वाटरनी बेल रणकी. थयुं अत्यारे कोण ? बारणुं खोल्युं तो भायाणी साहेब. तापथी लालचोळ. कंई पूर्छ ए पहेला ज आर्किमिडिझना शोधना उत्साहथी बोल्या :
'याद आवी गयुं बी पद ए कहेवा आव्यो छु. बकरो : रुमझुमती राणी ने ईच्छावर पारा
राजकुमारी : क्यो रे पिटिया तुने कुरमुर खाया ?' --आवं अनेक वखत बने. कंई याद न आव्युं तो कोयडो मननो छेडो न छोडे, ने जेवो एनो उकेल मळे तो तरत का पोस्टकार्ड तो क्यारेक फोन... छेक मिलेनियमना नवेम्बर सुधी आ उत्साह ! छेल्लु पोस्टकार्ड हतुं तेमां लखेलुं :
रांदल मावडी रे रणे चड्यां मा सोळ करी शणगार. रणे चडवू हतुं तो शणगार शा माटे ? आमां कई कई देवीओ अने तेना कया कया अश्वो ? कया रंगना? रूबरू मळ्या त्यारे एमणे कां : 'पाठ आम होवो जोईए रांदल मावडी रे रमणे चड्या मा, सोळ करी शणगार, गरबो रमणे चड्यो, एम कहीए छोए.
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संगीतनो पण एटलो ज शोख, एटली ज रुचि अने ज्ञान. सौराष्ट्रना शहेरोमां भावनगरने विशेष संस्कार छे ते शास्त्रीय संगीतना. शामळदासमां भणेला साक्षरोमां ज में शास्त्रीय संगीतनां प्रेम अने ज्ञान जोयां छे. सित्तेरना गाळामां अमदावादनी कुमारक्लब जेवी शास्त्रीय संगीतना गुणीजनोनी संस्था. एमा संख्या आजना मुकाबले ओछी, परंतु बधा ज ऊंडी साची परखवाळा. ए बेठको भायाणीसाहेब साथे माणी छे. किशोरी अमोणकरनी सवारनी बेठक साथे माणेली. अमीरखां साहेबने टागोर होलमां सांभळवा गयेला. अद्भुत कलाकार स्वरने श्रुतिने एक स्थाने स्थिर करी दे. दरबारी के मालकौंस गाय तो चेतनाने महाचेतना साथै ज सीधुं सद्य अनुसंधान थाय. मेघ गाय तो भर उनाळे वर्षाऋतुमां महालो. एमां न होय ताननी पटाबाजी, धमधमाटी के बीजी कारीगरी हैयुं अनुभवे ने सौन्दर्यनी उपज तरती जाय ने रसमहालय रचती जाय. सितार जेवा वाद्यनी द्रुत गतो आस्वादवा टेवायेलो वर्ग आथी अमीरखां साहेबने आस्वादी न शके एटले पहेले ज विरामे पोणा भागना श्रोतानुं गृहप्रयाण थयुं पच्चीस टका बच्या तेने नजीक बोलाव्या ने मालकस जाम्यो. भायाणीसाहेब धीमेथी कहे : 'अमीरखां साहेब सारेगम बोलता हता एटले लोकोने थयुं के संगीत भणाववा आव्या छे, ए भणी लीधुं ने वर्ग पूरो थयो मानी घरभेगा थया !'
भायाणीसाहेब घरे पण बेठक गोठवे मित्रोनी. डॉ. नारायण कंसारा गाय अने तबला पण वगाडे. एमणे 'जोगी मत जा !' गायुं ने अने छेल्ले तिहाई मारी तो भावाणीसाहेब कहे : 'ले, आ सांभळीने तो जोगीने रोकावुं होय तोय चाल्यो जाय !'
अंते १९७३मां मारी बदली डी. के. वी. कॉलेज जामनगरमा थई ज थई. परंतु मारो गुरुप्राप्ति योग प्रबळ जामनगरमा प्रज्ञाचक्षु, उत्तम दिलरुबावादक श्री प्रवीणसिंह जाडेजानो लाभ मळ्यो. मनना बधा ज बंध दरवाजा खूली गया. एटली अंडी सूक्ष्म समज के शास्त्रीय रागसंगीतना प्राणनी परख मळे. डो. भायाणी पण चाहक, ज्ञाता ज नहीं, एमणे पोते पण दिलरुबा पर हाथ अजमावेलो. एथी व्याख्यान निमित्ते जामनगर बोलाव्या. आव्या चंद्रकळाबहेन साथे घरमा बीजा साहित्यकारो के अध्यापको आवे
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त्यारे घरना बहारना जेवा बनी जाय ने कंटाळे. परंतु भायाणीदादानी वात जुदी. सहुने खूब आनंद थाय. क्यारेय फोन आवे तो मने कहे : 'हसुबेनने आपो.' ने एमने ऊकरडी विशे, कोई लग्नगीत के रांदलगीतना ढाळ विशे के कडी विशे पूछवानुं होय ! जामनगर आव्या के मारां संतानो युवा अने नयन नानां. एमने कहे चालो नवो चानो पाडो शीखवु :
चा एकु चा चा दुपारी
चा तेरी ओर मजा
चा चोका ते रंग लागे
चा पंचा ते जामती जाय !
हाईलेन्ड पार्कमां आवतां घणा साक्षरोए बाळको साथे किल्लोल करतां साक्षर भायाणीने जोया छे, आश्चर्यथी. पण ए एमनो हृदयनो मूळ रंग. माणसवला. घर, कुटुंब शुं छे तेनी पाकी समज ने स्नेह लेवा- आपवानी साहजिकता.
नवनिर्माणनुं आंदोलन थयुं ने कॉलेज बंध पडी. मने तो चौद - पंदर कलाक एक आसने काम करवानी अनुकूळता थई. बे ज काम, लखवुं ने एथी थाक्ये वगाडवुं. एमां ज फोर्वर्डबेन्डिगनी पोस्चरथी मणकानी गादी छटकी ! कराववुं पड्यं ऑपरेशन अने त्रण मास चत्तापाट सूई रहेवानी आसनकेदनी सजा ! भायाणीसाहेब मारी प्रकृति जाणे. पथारीमां नवरो पड्यो नहीं रही शकुं. एम डॉ. रमणलाल जोशीने वात करी ने मारे 'शामळ' परनी लघुपुस्तिका लखवानी आवी. ए काम पण गुरुकृपाए थयुं.
काळांतरे भाषानियामकनी जग्या माटे पब्लीक सर्विस कमिशनना श्रीदलपतभाई मुनीमे सरकारने कह्युं के आ जग्या माटे हसुभाई सक्षम एवा अध्यापक छे. बीजी बाजु १९८२मां गुजरात राज्यनी अकादमीनी स्थापना थई अने श्रीमोहम्मद मांकड एना प्रथम प्रमुख बन्या. ए समयना मुख्यमंत्रीना सचिव श्री कुलीनचंद्र याज्ञिके मने बोलावीने कह्युं : 'लो हसुभाई, हवे तो बे लाडवा छे, एक भाषानियामक तरीके आववानो अने बीजो अकादमीना महामात्र तरीके आववानो. तमारे क्यो खावो छे ?' में कह्युं : 'तमने योग्य
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लागे ने जे आपो ते !' याज्ञिकसाहेब कहे; 'तमने रस पड़े तेवुं काम हवे अकादमीमां छे. भाषानियामक कचेरीमां तो मुख्यत्वे भाषान्तर अने बिनगुजरातीने गुजरातीना शिक्षणनुं छे.'
अंते हुं सप्टेम्बर १९८२मां अकादमीना महामात्र तरीके जोडायो. भायाणीसाहेबने मारी ज नहीं, परिवारनी पण चिंता. ए खुश थया अने कहे : 'वर्षोथी मारा मनमां केटलाक प्रोजेक्टना विचार स्फूरे छे. ए विषे में बेॠण नोंध पण करी छे. एक तो गुजराती भाषानुं पोतानुं व्याकरण नथी. जे छे ते संस्कृतने आधारे घटाव्युं छे. हकीकते आ भाषाना ज प्रयोगो लक्षमां लई एनुं ऐतिहासिक व्याकरण तैयार करवुं जोईए. बीजुं आपणी पासे कथाओनो लिखितरूपमां अखूट भंडार छे. परंतु एवो एक पण कोश नथी जेने आधारे मुख्य कथाओनां कथानको जाणी शकाय त्रीजुं, हजु पण आपणी कंठपरंपरानां गीतोमां, विविध संस्कारनी विधिओमां आपणी संस्कृति धबके छे. परंतु नथी तो आपणे गवातां गीतोनां ध्वनिमुद्रणो कर्यां, नथी तो स्वरांकनो कर्यां के नथी तो कया केटला गीतो गुजराती जनजीवनना ऋतुचक्र अने जीवनचक्र साधे संकळायेला छे तेनो काचो पण अंदाझ काढ्यो. नरसिंह अने मीरांना नामे गवाती, कबीरना नामे गवाती परंपरामा केटली रचनाओ, पदभजन केटला छे तेनी कोई सूचि पण नथी. आ बधां अकादमीना माध्यमे करवा जेवां काम छे. '
में श्री मोहम्मद मांकड़ने वात करी. एमणे त्यानी स्थायी समितिमां रहेला सर्व श्री अनंतराय रावल, प्रवीण दरजी, इश्वर पेटलीकर साथे चर्चा करी. अने आ बधां ज प्रोजेक्ट तथा बत्रीश जेटली कायमी योजनाओ करी. भाषानियामकमांथी आ कामगीरी अने बजेट तबदील थयेलां तेमां तो मात्र २० लाखथी पण ओछ्रं हतुं. आ बधी ज चालु अने नवी योजनाओ तथा नवां पांच प्रकल्पो मूक्या अने तेनो प्लानमां समावेश थयो. ए साथे अकादमीने ५० लाखनी ग्रांट मळती थई, अकादमीनी योजनाना जे पाया नखाया तेना मूळमां पण आम भायाणीसाहेबना ज सूचनो, मार्गदर्शन, परिरूप उपयोगी बन्या.
ऐतिहासिक व्याकरण अने कथाकोशनं काम भायाणीसाहेबे संभाळयुं
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ने एनां परिणाम प्रगट छे. परंतु अकादमीमांथी एक पण राती पाई लीधा वगर एमणे पदभजन सूचिकरणनी योजनामां जे कार्य कर्यु एनी जाण बहु ओछाने छे ! महम्मदभाई पछी डॉ. सुरेश दलाल आव्या. एमणे लोकसाहित्य समितिमां पण डॉ. भायाणीनी सेवा लीधी अने लोकसाहित्य समितिए १४ मणकामां समये-समये मळेली सामग्री मळी तेनी ग्रन्थ श्रेणी प्रगट करी हती तेने एम मूळ क्रममां पुन:मुद्रित करवाने बदले विषयानुसारी संपादित करी अभ्यासभूमिका साथे प्रगट करवानुं नक्की थयु. पांच हजार रचनाओने विषयानुसारी गोठववी गंजावर काम हतुं. अकादमीना ग्रन्थपाल श्रीकिरीट शुक्ले ते बीडुं झडप्युं ने काम पूर्ण कर्यु. में विषयानुसारी अभ्यास भूमिका आपी. भायाणीसाहेब रजेरज वांची गया अने पूरकनोंध मूकता रह्या.
भायाणीसाहेबने एमनां दादीमा गातां हतां ते सो सवासो पद ढाळ साथे याद. क्यां स्वर उपरनो ने क्यां नीचेनो तेनुं पूरुं ज्ञान ए पोते गाय ए पछी पुत्री युवा गाय अने ते ढाळ ओ.के. थाय एटले हुं स्वरांकन करूं. परंतु एमां अनेक प्रश्नो, थाय. ताल कयो ? ए नक्की न थाय तो स्वरसमयमूल्य निश्चित न थाय. श्रीप्रवीणसिंह जाजोनी सहाय लीधी अने 'हरिवेण वाय छे', 'गोकुळमां टहूक्या मोर', अने 'झीणा झरमर वरसे मेह' संग्रहमां ९० जेटला पदभजन स्वरांकन तथा छंदबंध अने एना पृथक्करण साथे प्रकाशित थयां. डॉ. बलवंत जानी, डॉ. निरंजना शाह, श्रीप्रकाश वेगड अने श्रीकिरीट शुक्ल पासे कंठस्थ परंपरानां पद--भजन अने लोकगीतोना सूचिग्रन्थो प्रगट कराव्यां. डॉ. भगवानदास पटेलने आदिवासी साहित्य अने डॉ. निरंजन राज्यगुरुने संतवाणीना प्रोजेक्ट माटे प्रोत्साहन आप्युं, मार्गदर्शन आप्युं अने अकादमी तथा अन्य संस्था द्वारा प्रोजेक्ट माटेनी सहाय पण अपावी अने प्रकाशनोमां सहायभूत थया. डॉ. शांतिभाई आचार्य जेवा भाषाशास्त्रीए उत्तम शास्त्रीय संपादनरूप कंठप्रवाहनी कथाओ आपी तेमां पण केन्द्रमां भायाणी ज. विविध विधिविधानो अने कथाओने मूळभूत परिवेशमा रजू करीने तेनां निदर्शन योजीने परिसंवादो करवां अने ग्रन्थ प्रकाशन करवू, एनां प्रेरणा, सूचन, मार्गदर्शन पण एमनां. भावनगर, सुरेन्द्रनगर, डाकोर जेवा स्थळोए तो एमणे जाते आवीने ध्वनिमुद्रांकनो कराव्यां. आ योजनामां पंदर ग्रन्थ प्रकाशित
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थयां ध्वनिमुद्रणो थयां एना प्रोजेक्टनं आयोजन करो तो लाखोनुं अनुदान अने लांबो समय जाय. परंतु भायाणीपरिवार के भायाणीकुळना अभ्यासीओना जूथे आ कार्य खूब ज ओछा खर्चमां अने टूंका गाळामां कर्तुं छे. आ बधी ज कामगीरी अने जवाबदारी माटे डॉ. भायाणीने कोई विशेष आर्थिक रकम क्यारेय अपाई नथी ! भविष्यमां ज्यारे पण कोई अभ्यासी गुजरातना लोकसाहित्य अने कंठ परंपराना अध्ययन, संशोधन, संपादननी गतिनो आलेख दोरशे, त्यारे जोई शकशे के दोढ़-बे सदीथी आ प्रवृत्ति गुजरातमां चाले छे परंतु १९८४ थी १९९६ना बार - तेर वर्षमां जे काम थयुं छे, जेटलुं काम थयुं छे ते अगाउना कोई दशकामां नथी थयुं. आ पछी.... ए भविष्य पर छोडीए. परंतु आ ऊपर जता आलेखनुं मूळ बिंदु ते डॉ. भायाणी.
गुजराती लोकगीतोने कृष्णचरितना जीवनक्रमे गोठवी जे अभ्यास कर्यो तेनां तारणो डो. भायाणीए पेरीसनी आंतरराष्ट्रीय परिषदमां अंग्रेजी संशोधन-पत्ररूपे रजू कर्या ने एमां वात्सल्य - औदार्यथी मारुं नाम पण सहलेखक रूपे मूक्युं छे. रामकथानां लोकगीतोनो में जैन, बौद्ध तथा अन्य भारतीय ग्रामीण अने आदिवासी परंपरा साधेनो अभ्यासलेख मूक्यो ते भायाणीसाहेबने खूब गम्यो. एनुं मराठी भाषान्तर का.स. वाणी मराठी प्रगट अध्ययन संस्थाए १९९३मां, अंग्रेजी एशियन सोसायटी तथा शियाटल, अमेरिका खाते मळेली छड़ी इन्टरनेशनल कोन्फरन्स ओन अर्ली लिटरेचर इन न्यू इन्डोआर्यन लेन्ग्वेजीझमां प्रगट थयुं. ७मी कोन्फरन्समां वेनिस- इटालीखाते मारो सरजू परनो लेख वंचायो अने प्रगट थयो. आ बधानो यश भायाणीसाहेबने. आ कोन्फरन्समां गयो, बधां मळ्यां ने मानप्रेमथी जोता आवकारतां थयां त्यारे ज जाण्युं के ए बधुं ज भायाणीना विद्यार्थी होवाने कारणे ! साठपांसठ जेटला विदेशी विद्वानोनुं भाग्ये ज कोई एवं पेपर हशे, जेमां भायाणीनो उल्लेख न होय. कोई पण प्रश्न पर चर्चा उग्र बने, परंतु एमां कोई डो. भायाणीनो आधार टांके तो बधां ज शांत अने संमत आ बधामा कोई एवो विद्वान नथी जेणे रूबरू के पत्रथी भायाणीसाहेबनी सलाह न लीधी होय. एमना मार्गदर्शननो लाभ न लीधो होय. भारतनो आ एक मात्र एवो ऋषि, जेने कोई पण देशी-विदेशी कंई पण पूछे के लखे के धोमधखता तडकामां
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220 पण झेरोक्ष कराववा ने पोस्ट करवा दोडी जाय. विदेशीओने पोताना अंगत स्वजननी जेम राखे. छेल्ले तो गळामांथी अवाज पण नहोतो नीकळी शकतो त्यारे सूरतथी डॉ. जगदीश शाहनो छंदना रेकोडिंग बाबतनो पत्र आवेलो तो मने आपीने कहे : आने जवाब लखी आपजो ने वीगत मागी छे ते जणावीने लखजो के हुं साजो थईश त्यारे पत्र लखीश ! एमनी सारवार करवा रहेलो माणस कोई यद-भजन गाय तो एनेय रेकमांथी अमुक पुस्तक लाववानुं कहीने एना रसनु पद बतावे. गवडावे, सांभळे, संभळावे, देहाध्यास भूलवो एटले शुं, हे ?
भायाणीसाहेब मोटुं स्वप्न संशोधन संस्थाने जीवती-धबकती राखवायूँ. १९८४ आसपास श्रीभूखणवाळाने, फार्बस-मुंबईने अनुदान मळे, ते माटे मारी पासे मोकलेला. अकादमीए खूब प्रयत्न कर्यो. परंतु महाराष्ट्रनी संस्था एटले कायदानो बाध. ए वखतना शिक्षणमंत्री प्रबोधभाई रावल. एमने वात करी. एमने पण लाग्युं के गुजरात, ज काम करती नामांकित संस्था छे अने एने सहायभूत थवा गुजराते पण ग्रान्टेबल करवी जोईए. मने फाईल तैयार करवा सूचना आपी. पोते भलामण करी. परंतु लीगल डिपार्टमेन्टनी ना थई एथी नाणाखाताए नकार्यु. डो. भायाणीसाहेब एना प्रमुख बन्या. अकादमीनी सहायथी शामळनी 'सिंहासन-बत्रीशी'नुं पुनःमुद्रण कराव्यु. डॉ. कनुभाई शेठ अने कल्पनाबहेनना माध्यमे सक्रिय बनाव्युं. फार्बसनी गुजरातनी शाखा खूली. एना कार्यनी रजुआत थई अने वर्षोथी जेना माटे प्रयत्नो थयेला ते स्वप्न साकार थयुं अने गुजरात सरकारे फार्बसनी गुजरातनी शाखाने ग्रान्टेबल गणी. परंतु मुंबईना ट्रस्टीओए मळेली ग्रान्ट पण परत करी अने गुजरातनी शाखा बंध करी. कारण ? अगाउना वर्षांनी कामगीरीनी खोटी रजुआत करेली ने ग्रांट मेळवेली ! ऊंटना ढेंका परना काठामां वास्तविक के नैतिक शुं अनुचित हतुं ? वैधानिक रीते गुजरातनी शाखा अस्तित्वमां आवी ए पहेला शुं कामगीरी नहोती थई ? एमां कई एवी गोलमाल ने अनीति ? - अंगत ज मित्रो अने साथीओ, परंतु कोई एमने समजवा न मथ्थु ने गुजरातमां आमेय ते संशोधननी संस्थाओ ज ओछी, एमां सक्रिय पण नहिवत् अने सक्रिय होय एनी कियामां संशोधन सिवायर्नु बधुं ने सरकारी ग्रान्ट वगर संस्था चाले ज
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नहीं, ने ग्रान्ट मेळववी एटले नेवाना पाणी मोभे चडाववां आ माटेनां फार्बसनी ज मुंबईशाखाना प्रयत्नो छेक ई. १९८४ थी, ने ए मळ्युं त्यारे एनो नकार ? ए ग्रान्ट परत ? शाखा बंध ? - भायाणीसाहेबने एनो जेटलो आघात लाग्यो हतो एटलो क्यारेय बीजो नहोतो लाग्यो. आ विभूति पोते ज संस्था हती एटले ए संस्थाने के संस्था अने अनुकूळ ज न हतां. परंतु क्यारेय ओमणे भारतीय विद्याभवन, गुजरात युनिवर्सिटी के एल.डी. इन्स्टिट्यूट जेवी संस्था छोडवानां कोई कारण कह्यां न हतां. कोई छूपो के जाहेर विवाद न कर्यो. परंतु आ आघात.......
कारण, संस्था एमनुं स्वप्न, संशोधननी. हाइलेन्ड पार्कनुं मोटुं मकान वेच्युं, 'आटलुं मोटुं कोण संभाळे, आटलुं पूरतुं छे !' कही वीमानगरमां आव्या. परंतु मनमां शुं हतुं ? मोटुं मकान वेंची नानुं मकान ले तो जे पैसा मळे वधे एमांथी प्राकृत माटेनी संस्था करवी. प्राकृत टेक्स्ट सोसायटीने पगभर अने गतिशील करवी. परंतु आ युगमां बधो ज सोदो चेकथी कोण करे ? केटलो करे ? अने उपरना ब्लेकना ले ए भायाणी नहीं ! आ वात मनोमन बधां ज जाणे अंगत. चंद्रकळाबहेन के उत्पल उपरांत डॉ. सुरेश दलाल अने हुं. परंतु एमने आवुं शक्य नथी एम कोण समजावे ? ने एमने समजाय पण केम ? ए तो तरत कहे : आमां बे वानां छे, एक तो....
गुजरातमां सिंधी, उर्दू, संस्कृत बधी नवी नवी स्वायत्त अकादमीओ थई, तेमां प्राकृत नहीं ! एनो कौंस थयो संस्कृतमां ज ! भायाणीसाहेबे अनेकने वात करी, जगाड्या, लखाव्यं परंतु......
संस्था एमनो प्राण. पू. श्री विजयशीलचंद्रजीए प्राकृतनी संस्था प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी माटे सुविधा करी एथी एमनुं मन ठर्यु जे आघात हतो मनमां ते झिरवायो ! ने तेमां पण 'अनुसंधाने' एमने विशेष उत्साहित कर्या. ए जो न होत तो फार्बस गुजराती संस्थानो घात एमना माटे...... बीजो आघात अकादमीनां कार्योंनी नोंध लेवाने बदले एने आधारे चालतो बनेलो प्रचार ! एमां पण निमित्त फार्बसने सहाय अपावी ते. अकादमीमां मध्यकाळनुं अने लोकसाहित्यनुं ज काम थयुं छे ने बीजुं गौण बनी रह्युं छे आवां निमित्ते मारा टीका-टिप्पण थाय तेथी दर्शकने व्यथा
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थाय. एकवार कहे : 'भायाणीसाहेब बहु मोटा विद्वान अने तमारा गुरु ए खरं, पण तमे ए कारणे टीकानो भोग शुं काम बनो छो ?'
मारे कहेवुं पडे : 'दादा ? आवां काम बदल में के भायाणी साहेबे कोई ज वेतन लीधुं नथी. ने फार्बसने पुनः मुद्रण माटे आपवानुं तो अकादमीए आगळ ज विचारीने नक्की कर्तुं छे एम.... '
परंतु अपप्रचार एटली हदे चाल्यो के अकादमीए बे-चार निश्चित एवा विद्वानाने प्रश्नोत्तरमां आ कामो विशे पूछ्धुं अने एनो जोईतो जवाब तो मेळव्यो ने एनुं पुस्तक पण कर्तुं ! में वीगते स्पष्टता करी तो आखी योजना दिशा चूकी गई एवी वातो लखाती थई. भायाणीसाहेब वारंवार कहे : आ काम अद्भुत छे ने तमारां समयशक्ति अपायां एनुं रेकग्निशन थाय एने बदले दोषारोपण ?
में कह्युं : तमारो संतोष अने अभिप्राय ज एथी विशेष छे. अने समय तो बोलशे, पांच- पचास वर्षे जेने पण मध्यकालीन कथासाहित्य के लोकसाहित्य विशे, संगीत विशे जाणवुं हशे, अभ्यास करवो हशे ए तो....
छेल्ले मांदगी विशेष गंभीर अने चिंताजनक बनी. दवाखाने दाखल कर्या. परंतु एवा अकळाया अने मन्यु जाग्यो के नाक गळानी नळीओ काढी नाखी अने बळवो करीने घरे पाछा आव्या. हुं सपरिवार घरे गयो. मारुं क्यारेक सांभळे ते स्वीकारे परंतु मारी पण एमनो मन्यु जागे त्यारे हिंमत न चाले. परंतु मारी दीकरी युवा अय्यरनी वात सांभळे अने ए जे सारवार सूचवे तेनो अचूक अमल करे. आश्चर्य थाय एटला झडपथी साजा थई गया. थौडा दिवस पछी तो ए ज फाईलो, लेखो, माथा परनां काम ! ए जाणे केटलुंक पोते ज करी शकशे. अधूरुं रहेशे तो कायम माटे ! एटले फरी बधुं पूरुं कर्यु.
दिवाळी गई. वर्ष गयुं. काम चालतुं थयुं ने पछी फोन आव्यो : 'पुस्तको काढी राख्या छे. लई जजो. तमारे जोतां होय ए तमे राखजो. बीजां मेघाणी लोकविद्या संशोधन भवनने. '
मारी सेवानिवृत्ति पछीनी लोकसाहित्यनी ए संस्था एमनां ज प्रेरणा,
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________________ 223 मार्गदर्शन. छेल्ली मांदगीए श्रीकुलीनचंद्र याज्ञिक साथे आवेला. में घरमां प्रवेशता ज याज्ञिकसाहेबने कह्यु : 'जईए छीए आपणे तबियत जोवा, पण ए पूछशे 'आपणने खास तो...' खरे ज एमणे पूछ्यु : 'केम चाले छे मेघाणी संस्थान !' पछी फोन आव्यो केसेट लई जवानो. रेडियोना लाईव प्रोग्राम अने रेकोर्ड परथी उतारेली विविध रागनी, उत्तम गायक-वादकोनी ध्वनिमुद्रित केसेट ! दरेकना कार्डझ पण तैयार, कई चीझ, कई गत, चीज, कयो राग... आ मारो वारसो, मारा शेषजीवननी आंतर समृद्धिने वधारनारो. पछी तबियत वधारे कथळती गई. एमने खातरी थई गई. अमारे प्रगट वात ओछी थाय. त्रण दशकाथी पण दीर्घ एवो संबंध एटले वगर बोल्ये पण वात करी लईए, समजी पण लईए. हुं ऊभो थयो त्यारे मंद स्वरे कह्यु : 'उत्पलने कहीश, तमने फोन करशे ने....' - हजु पण मनमां कशंक नवं समानरसनु स्फुरे के कोई शंका जागे तो मन पहोंची जाय छे, बत्रीश-तेंत्रीश वर्षनी टेवथी एमनो संपर्क करवा, जणाववा के जुओ आ टुकडो..... परंतु तरत याद करवू पडे छे. ए भायाणीसाहेब नथी. खरेखर नथी ?- एमां बे वात छे : एक तो... मन समजे एवी, बीजूं हृदय के अंतरात्मा !