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थयां ध्वनिमुद्रणो थयां एना प्रोजेक्टनं आयोजन करो तो लाखोनुं अनुदान अने लांबो समय जाय. परंतु भायाणीपरिवार के भायाणीकुळना अभ्यासीओना जूथे आ कार्य खूब ज ओछा खर्चमां अने टूंका गाळामां कर्तुं छे. आ बधी ज कामगीरी अने जवाबदारी माटे डॉ. भायाणीने कोई विशेष आर्थिक रकम क्यारेय अपाई नथी ! भविष्यमां ज्यारे पण कोई अभ्यासी गुजरातना लोकसाहित्य अने कंठ परंपराना अध्ययन, संशोधन, संपादननी गतिनो आलेख दोरशे, त्यारे जोई शकशे के दोढ़-बे सदीथी आ प्रवृत्ति गुजरातमां चाले छे परंतु १९८४ थी १९९६ना बार - तेर वर्षमां जे काम थयुं छे, जेटलुं काम थयुं छे ते अगाउना कोई दशकामां नथी थयुं. आ पछी.... ए भविष्य पर छोडीए. परंतु आ ऊपर जता आलेखनुं मूळ बिंदु ते डॉ. भायाणी.
गुजराती लोकगीतोने कृष्णचरितना जीवनक्रमे गोठवी जे अभ्यास कर्यो तेनां तारणो डो. भायाणीए पेरीसनी आंतरराष्ट्रीय परिषदमां अंग्रेजी संशोधन-पत्ररूपे रजू कर्या ने एमां वात्सल्य - औदार्यथी मारुं नाम पण सहलेखक रूपे मूक्युं छे. रामकथानां लोकगीतोनो में जैन, बौद्ध तथा अन्य भारतीय ग्रामीण अने आदिवासी परंपरा साधेनो अभ्यासलेख मूक्यो ते भायाणीसाहेबने खूब गम्यो. एनुं मराठी भाषान्तर का.स. वाणी मराठी प्रगट अध्ययन संस्थाए १९९३मां, अंग्रेजी एशियन सोसायटी तथा शियाटल, अमेरिका खाते मळेली छड़ी इन्टरनेशनल कोन्फरन्स ओन अर्ली लिटरेचर इन न्यू इन्डोआर्यन लेन्ग्वेजीझमां प्रगट थयुं. ७मी कोन्फरन्समां वेनिस- इटालीखाते मारो सरजू परनो लेख वंचायो अने प्रगट थयो. आ बधानो यश भायाणीसाहेबने. आ कोन्फरन्समां गयो, बधां मळ्यां ने मानप्रेमथी जोता आवकारतां थयां त्यारे ज जाण्युं के ए बधुं ज भायाणीना विद्यार्थी होवाने कारणे ! साठपांसठ जेटला विदेशी विद्वानोनुं भाग्ये ज कोई एवं पेपर हशे, जेमां भायाणीनो उल्लेख न होय. कोई पण प्रश्न पर चर्चा उग्र बने, परंतु एमां कोई डो. भायाणीनो आधार टांके तो बधां ज शांत अने संमत आ बधामा कोई एवो विद्वान नथी जेणे रूबरू के पत्रथी भायाणीसाहेबनी सलाह न लीधी होय. एमना मार्गदर्शननो लाभ न लीधो होय. भारतनो आ एक मात्र एवो ऋषि, जेने कोई पण देशी-विदेशी कंई पण पूछे के लखे के धोमधखता तडकामां
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