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ए एटलुं स्पष्ट अने वेधक होय के मने मारी भूल देखाय. फरी मारुं मंथन चाले. वांचन चाले. फरी लखुं ने ए वांचुं त्यारे कहे : 'हवे बराबर छे.' मने त्यारे 'सारुं छे' अने 'बराबर छे.' बच्चेनो भेद समजाय.
अभ्यास लेखनकक्षाए पहोंचतां ज हवे मारा नामने अने विषयने नोंधवानो समय पाक्यो. त्यां कोथळामांथी बिलाडुं नीकळ्युं - डॉ. भायाणीने युनिवर्सिटीए भाषाशास्त्रना विषय माटे मान्य कर्या छे, साहित्याना विषय माटे नहीं !
हुं धुंधवायो. निराश थयो. भायाणीसाहेब तो एमनी मजाकभरी रीते हळवाशथी कहे : 'एनो य रस्तो नीकळशे !' परंतु ए पहेलां ज विघ्न आव्युं. मध्यकालीन भाषा साहित्यना एक जाणीता विद्वाने कह्युं : 'मारी पासे जोडाई जाव. हुं तमने मारा मार्गदर्शनना विद्यार्थी 'तरीके रजिस्टर करावी दईश. ' में एमनो आभार मान्यो अने कह्युं के आपनी विद्वता विशे मने मान छे, परंतु जे दृष्टिथी में अभ्यास कर्यो छे, ए भिन्न छे. कथा मात्र साहित्यथी विशेष छे अने साहित्यकीय दृष्टिनो ज विवेचन- रसदर्शन प्रकारनो, प्रवाहदर्शननो अभिगम नथी.
आ वखते गुजरात कॉलेजमां मारा हेड ओफ डिपार्टमेन्ट डॉ. बिपिन झवेरी. खूब उमदा सज्जन मारा तरफ पूरा मान- प्रेम. मने कहे: मार्गदर्शन भले डॉ. भायाणीनुं लो. मारा विद्यार्थी तरीके नोंधणी करावो. मने ए स्वीकार्य न हतुं. एक दिवस एक तंदुरस्त बहेन आव्यां. एमनी नोंधणी बिपिनभाईए मारा ज विषयमां करवानुं सूचव्युं में कह्युं : 'तमे जाणो छो के हुं केटला वखतथी आना पर काम करूं छु ने तमे आ बहेनने आ विषय आपो छो ?' ए तो स्थितप्रज्ञ कहे : 'तो तमे ज नोंधाई जाव. '
सांजे भायाणीसाहेबने वात करी तो एमने तो एटली गम्मत पडी के हसता हसता लालचोळ थई गया अने मने कहे : ' कन्या मागामां चेराई गई छे ! हवे क्यांक पाकुं करी लो. नहीं तो कन्याना झंखना ने मागां आवां कंईक खेल पाडशे !'
अंते हुं तात्कालिक प्रि हसित बूच पासे सौराष्ट्र युनि. मां नोंधायो.
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