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श्री अंतकृद्दशांग सूत्र
॥ श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ॥ ।। श्री भागम-गुण-मंभूषा ।।
II Sri Agama Guna Manjusa II (सचित्र)
प्रेरक-संपादक
अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा.
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११ अंगसूत्र
४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय
४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय
१) श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है।
६)
२) श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान मे विद्यमान है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का मुख्य विषय रहा है।
३)
श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। ४) श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी संग्रहग्रंथ है। एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण मे उपलब्ध है।
५ ) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ( भगवती सूत्र ) :- यह सबसे बड़ा सूत्र है, इसमे ४२ शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ में प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान किया है । प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुई है। चारो अनुयोगो कि बाते अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। ७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको
जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है।
८)
श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यतः धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री शत्रुंजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हुए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है ।
९) श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है।
१०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम
में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र मे भी है । कुल मिला के इसके २०० श्लोक है।
११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है ।
१२ उपांग सूत्र
१)
श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है। इस मे चंपानगरी का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है।
२)
श्री राजप्रनीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है । २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है।
श्री आगमगुणमंजूषा GY
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२) त्रास
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KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के
दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि
श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह
के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन
श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है।
और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र :
श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००,
भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग
६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप
है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है।
श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का
समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे
इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है।
ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है।
८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका
में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे
अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है।
१०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम
आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है।
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१०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए
जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है।
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N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा
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१०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है।
३)
उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं।
श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं।
छह छेद सूत्र
श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं :
(१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण
(५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण
(१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र
(५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल
आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर
जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है।
दो चूलिकाए
१)
श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है।
चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है।
श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय
यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है।
॥ इति शम्॥
श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं।
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Introduction
45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas.
Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas.
Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas.
Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas.
Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas.
Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas.
Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct.
It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of
the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas.
Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of
the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of
the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to
transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first
part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas.
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(5)
(6)
(1)
II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas.
Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas.
(7)
(2)
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(3) Jivabhigama-sutra: It is a subservient text to Thaṇānga-sūtra. It deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambu continent and its areas, etc. and the detailed description of the veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, etc. published recently are composed on the line of the topics of this Sūtra and of the Pannavaṇa-sutra. It is of the size of 4700 slokas. (4) Pannāvaṇā-sūtra : It is a subservient text to the Samavāyāngasūtra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 Ślokas.
(5) Surya-prajñapti-sūtra and
(6) Candra-prajñapti-sutra: These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, northward and the southward solstices, etc. Each one of these Agamas are of the size of 2200 Ślokas.
(7) Jambudvipa-prajñapti-sūtra: It mainly deals with the teaching of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners (āra). It is available in the size of 4500 Slokas.
Nirayavali-pancaka:
(8) Nirayavali-sütra: It depicts the war between the grandfather and
the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death of king @renika's 10 sons who attained hell after death. This war is designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpiņi) age.
(9) Kalpavatamsaka-sutra: It deals with the life-sketches of Kalakumara and other 09 princes of king Śrenika, the life-sketch of Padamakumpra and others.
(10) Pupphiya-upanga-sutra: It consists of 10 lessons that covers the topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikă, Pūrṇabhadra, Manibhadra, Datta, Sila, Bala and Anaḍdhiya. (11) Pupphaculiya-upanga-sutra: It depicts previous births of the 10 queens like Sridevi and others.
(12) Vahnidaśā-upanga sutra: It contains 10 stories of Yadu king Andhakavṛṣṇi, his 10 princes named Samudra and others, the tenth Cain Education International 2010 03
JARNANAK
one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişaḍha.
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III Ten Payanna-sutras :
(1) Aurapaccakhāṇa-sūtra : It deals with the final religious practice and the way of improving (the life so that the) death (may be improved).
(2) Bhattaparinna-sūtra : It describes (1) three types of Pandita death, (2) knowledge, (3) Ingini devotee
(4) Padapopagamana, etc.
(4) Santharaga-payanna-sutra: It extols the Samstaraka.
** These four payannas can also be learnt and recited by the Jain householders. **
(5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It describes what amount of food an individual soul will eat in his life of 100 years, the human life can be justified by way of practising a religious life.
(6)
Candavijaya-payanna-sutra: It mainly deals with the religious practice that improves one's death.
(7) Devendrathui-payanna-sūtra : It presents the hymns to the Lord sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. (8) Maraṇasamadhi-payanna-sūtra : It describes at length the final religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing with death.
(9) Mahāpaccakhāṇa-payanna-sūtra : It deals specially with what a monk should practise at the time of death and gives various beneficial informations.
(10) Gaṇivijaya-payanna-sutra: It gives the summary of some treatise on astrology.
These 10 Payannās are of the size of 2500 Ślokas.
Besides about 22 Payannās are known and even for these above 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra is taken, by some, in place of the Candavijaya of the 10 Payannās.
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IV Six Cheda-sūtras
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(2) Nisitha-sūtra,
(4) Pancakalpa-sutra,
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(1) Vyavahara-sutra,
(3)
Mahānisitha-sutra,
(5) Daśāśruta-skandha-sūtra and (6) Bṛhatkalpa-sūtra. These Chedasûtras deal with the rules, exceptions and vows.
The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master.
V Four Malasitras
(1) Daśavaikalika-sutra: It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Cūlikäs called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthulabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahāvideha region and received four Culikās. Here are incorporated two of them.
(2) Uttaradhyayana-sutra: It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas.
(3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Pifaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. (4) Avasyaka-sutra: It is the most useful Agama for all the four groups
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of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are (1) Samayika, (2) Caturvimśatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kayotsarga and (6) Paccakhāṇa.
VI Two Culikäs
(1) Nandi-sütra: It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirthankaras and 11 Gaṇadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Ślokas.
(2) Anuyogadvara-sutra: Though it comes last in the serial order of the 45 Agamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion.
It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements.
It is of the size of 2000 Ślokas.
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આગમ - ૮
ધર્મસ્થાનુયોગમય અંતકૃદ્દશાંગસૂત્ર - ૮
અન્યનામ :- અંતગડદા
શ્રુતસ્કંધ
વર્ગ
અધ્યયન
પદ
ઉપલબ્ધ મૂલપાઠ ગદ્યસૂત્ર
પદ્યસૂત્ર
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૨૬ --૧૧
સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ
શ્લોક પ્રમાણ
પ્રથમ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : ગૌતમ
પ્રથમ વર્ગના આરંભમાં દસ અધ્યયનોના નામ પછી ગૌતમ નામના અધ્યયનમાં દ્વારિકા વર્ણન, રૈવતક પર્વત, નંઠનવન ઉદ્યાન, સુરપ્રિય યક્ષાયતન અને અશોક વૃક્ષના વર્ણન પછી વાસુદેવ કૃષ્ણનું વર્ણન તેમજ દ્વારિકા નગરીના વૈભવનું વર્ણન કરીને અંધકવૃષ્ણી રાજા અને ધારિણી રાણીના રાજકુમારપુત્ર ગૌતમનો આઠ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન અરિષ્ટનેમિનું સમવસરણ, ગૌતમકુમારના વૈરાગ્ય, દીક્ષા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, તપ આરાધન, પડિમા આરાધન, અંતિમ સાધના, શત્રુંજય પર્વતપર એક માસની સંલેખના, બાર વર્ષના શ્રમણજીવન અને નિર્વાણનું વર્ણન છે. (૨-૧૦) આ નવ અધ્યયનોમાં પિતા વૃષ્ણી અને માતા ધારિણીના સમુદ્ર, સાગર, ગંભીર, સ્તિમિત, અચલ, કપિલ, અક્ષોભ, પ્રસેનજિત્ અને વિષ્ણુ રાજકુમારોના વૈરાગ્ય, દીક્ષા, શ્રમણ જીવન અને નિર્વાણ વગેરે વર્ણનો છે.
દ્વિતીય વર્ગ
અધ્યયન : અક્ષોભ
(૧-૮) આ આઠ અધ્યયનોમાં પિતા વૃષ્ણી અને માતા ધારિણીના અનુક્રમે અક્ષોભ, સાગર, સમુદ્ર, હિમવંત, અચલ, ધરણ, પૂરણ અને અભિચંદ્ર રાજકુમારોના ગુણરત્ન તપ,
૧૬ વર્ષનું શ્રમણ જીવન, અંતિમ આરાધના, શત્રુંજય પર્વતપર એક માસની સંલેખના અને અંતે નિર્વાણનું વર્ણન છે.
તૃતીય વર્ગ
(૧) અધ્યયન : અનિયશ
આ વર્ગના આરંભે દસ અધ્યયનોના નામ પછી ભદ્દિલપુર નગર, શ્રીવન ઉદ્યાન નાગ અને સુલસાના અનિયાકુમારનો ૩૨ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન અરિષ્ટનેમિના સમવસરણ પછી વૈરાગ્ય અને પ્રવ્રજ્યાગ્રહણ, ચૌદ પૂર્વોનું અધ્યયન, ૨૦ વર્ષનું શ્રમણ જીવન, શત્રુંજય પર્વત પર અંતિમ સાધના, એક માસની સંલેખના અને અંતે નિર્વાણનું વર્ણન છે.
(૨-૬) આ પાંચ અધ્યયનોમાં નાગ અને સુલસાના કુમારો અનુક્રમે અનંતસેન, અનિહત, વિદુ, દેવયા અને રાત્રુંજયના દીક્ષાથી માંડીને નિર્વાણ સુધીનું વૃત્તાન્ત છે. (૭) અધ્યયન : સારણ
આ અધ્યયનમાં દ્વારિકા નગરીના વસુદેવરાજાના સારણકુમાર ના પ૦ કન્યાઓ સાથે એકસાથે વિવાહ, ચૌદ પૂર્વોનું અધ્યયન, ૨૦ વર્ષનો શ્રમણ પર્યાય, શત્રુંજય પર્વત પર અંતિમ આરાધના અને અંતે નિર્વાણનું વર્ણન છે. (૮) અધ્યયન : ગજસુકુમાર
આ અધ્યયનમાં ભગવાન અરિષ્ટનેમિનું સમવસરણ, ત્રણ સંઘાટક (બે શ્રમણોનું એક સંઘાટક)માં છ અણગારોનું દેવકીરાણી પાસે ગોચરી માટે આગમન, દેવકીની જિજ્ઞાસા, ભગવાન દ્વારા સમાધાન, દેવકીરાણીનું આર્તધ્યાન, શ્રીકૃષ્ણ દ્વારા આર્તધ્યાન તથા હરિણગમેષી દેવનું આરાધન, ગજસુકુમારનો જન્મ, વૈરાગ્ય વગેરેનું વિસ્તૃત વર્ણન છે. (૯) અધ્યયન : સુમુખ
આ અધ્યયનમાં દ્વારિકાનગરી, રાજા બળદેવ, રાણી ધારિણી, તેમનો સુમુખકુમાર, તેનો ૫૦ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન નેમિનાથનું સમવસરણ, પ્રવચન અને સુમુખકુમારની પ્રવ્રજ્યા, ૨૦ વર્ષનું સાધુજીવન, શત્રુંજય પર્વત પર અંતિમ સાધના અને મુક્તિગમનનું વર્ણન છે.
(૧૦-૧૨) આ ત્રણ અધ્યયનોમાં રાજા વાસુદેવ અને રાણી ધારિણીના દુમુખ, ફૂપહારક અને દારુક નામના કુમારોના આરાધન વગેરે પૂર્વવત્ વર્ણનો છે. (૧૩) અધ્યયન : અનાધૃષ્ટિ
આ અધ્યયનમાં રાજા વસુદેવ અને ધારિણીના અનાધૃષ્ટિ કુમારના જીવનવૃત્તાંત અને નિર્વાણનું વર્ણન છે.
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श्री आगमगुणमंजूषा २७
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* સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ
ચતુર્થ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : જાલી
આ વર્ગના આરંભે દસ અધ્યયનોના નામ પછી દ્વારિકા નગરીના રાજા વસુદેવ અને રાણી ધારિણીના જાલીકુમારનો ૫૦ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન અરિષ્ટનેમિનું સમવસરણ, પ્રવચનના અંતે જાલીકુમારને વૈરાગ્ય, પ્રવ્રજ્યા, ૧૨ અંગોનું અધ્યયન, ૧૬ વર્ષનું સાધુજીવન, શત્રુંજય પર્વત પર સંલેખના અને અંતે સિદ્ધિગતિનું વર્ણન છે. (૨-૬) આ પાંચ અધ્યયનોમાં પિતા શ્રીકૃષ્ણ અને માતારુક્મિણીના અનુક્રમે મયાલી, ઉવયાલી, પુરિસસેન, વારિસેન અને પ્રદ્યુમ્ન કુમારોના વિવાહ, પ્રવ્રજ્યા અને નિર્વાણના વર્ણનો છે.
(૭) અધ્યયન : સામ્બ
આ અધ્યયનમાં પિતા શ્રીકૃષ્ણ અને માતા જાંબવતીના સામ્બકુમારના વિવાહથી આરંભીને સિદ્ધપદની પ્રાપ્તિ સુધીનું વર્ણન છે. (૮-૯) આ બે અધ્યયનોમાં પિતા પ્રદ્યુમ્ન અને માતા વૈદર્ભીના બે રાજકુમારો અનિરુદ્ધ અને સત્યનેમિના વિવાહ, પ્રવ્રજ્યા, નિર્વાણ વગેરેનું વર્ણન છે. (૧૦) અધ્યયન : દૃઢનેમિ
ષષ્ઠ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : મકાઈ
આ વર્ગના આરંભે ૧૬ અધ્યયનોના નામ પછી આ અધ્યયનમાં રાજગૃહ નગર, ગુણશીલ ચૈત્ય અને રાજા શ્રેણિક્તા વર્ણન પછી મકાઈના વૈરાગ્ય, પ્રવ્રજ્યા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, ગુણરત્નતપ આરાધના, ૧૬ વર્ષનું સાધુ જીવન અને વિપુલગિરિ પર્વત પર
નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે.
(૨) અધ્યયન : મિકિમ
આ અધ્યયનમાં કિંકિમનું જીવનવૃત્તાંત અને નિર્વાણપ્રાપ્તિનું વર્ણન છે. (૩) અધ્યયન : મુગલપાણિ
આ અધ્યયનમાં રાજગૃહ, ગુણશીલ ચૈત્ય, રાજા શ્રેણિક, રાણી ચેલણા, માળી અર્જુન, તેની પત્ની બંધુમતી, ઉદ્યાન, મુગલપાણિયક્ષનું મંદિર, હજાર પલના વજનવાળું મુદ્ગલ, લલિતા ગોષ્ઠીના માળી અર્જુન અને બંધુમતી સાથે દુર્વ્યવહાર, અર્જુનની યક્ષને પ્રાર્થના, બંધનથી મુક્તિ, પણ અર્જુન દ્વારા છ માસસુધી પ્રતિદિન છ પુરુષો અને એક સ્ત્રીનો સંહાર, ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ, શ્રમણોપાસક સુદર્શન શેઠનું પ્રભુને લંડનમાં અર્જુન માળીનો ઉપસર્ગ, માળીનો વૈરાગ્ય, છ માસનો શ્રમણ પર્યાય, ૧૫ દિવસની સંલેખના અને સિદ્ધિપદની પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે. (૪) અધ્યયન : કાચપ
આમાં કાશ્યપના ૧૬ વર્ષના શ્રમણ પર્યાય અને વિપુલગિરિ પર મુક્તિગમન વગેરે
વર્ણન છે.
(૫) અધ્યયન : ક્ષેમક
આ અધ્યયનમાં કામંદી નગરીના ક્ષેમના વિપુલગિરિ પર મોક્ષગમન સુધીનું વર્ણન છે. ( ૬ - ૭) આ બે અધ્યયનોમાં અનુક્રમે ધૃતિધર અને સાકેત નગરના કૈલાસના ૧૨ વર્ષના શ્રમણ પર્યાય અને વિપુલગિરિ પર મુક્તિગમન વગેરે વર્ણન છે.
(૯) અધ્યયન : મૂલશ્રી
આ અધ્યયનમાં પિતા કૃષ્ણ વાસુદેવ અને માતા જાંબવતીના પુત્ર સામ્બકુમારની (૮-૯) આ બે અધ્યયનોમાં અનુક્રમે હરિચંદન અને રાજગૃહ નગરીના ખાસ્તકના ૧૨
श्री आगमगुणमंजूषा २८
આ અધ્યયનમાં પિતા સમુદ્રવિજય અને માતા શિવાના દઢનેમિ નામના કુમારના જીવનવૃત્તાંત અને નિર્વાણનું વર્ણન છે.
પંચમ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : પદ્માવતી
આ અધ્યયનમાં દ્વારિકાનગરીના શ્રીકૃષ્ણ વાસુદેવ અને પદ્માવતી રાણીના વર્ણન પછી, ભગવાન અરિષ્ટનેમિનું સમવસરણ, દેશના, શ્રીકૃષ્ણ દ્વારા દ્વારિકા વિષે પ્રશ્નોત્તરી, ભગવાન દ્વારા દ્વારિકા વિનાશનો ઉત્તર, શ્રીકૃષ્ણની ચિંતા, પદ્માવતીની પ્રવ્રજ્યા લેવાની ઘોષણા, યક્ષિણી આર્યા પાસે પ્રવ્રજ્યા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, ૨૦ વર્ષનું શ્રમણી જીવન, એક માસની સંલેખના અને અંતે શિવપદની પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે.
(૨-૮) આ સાત અધ્યયનોમાં તે તે નામ પ્રમાણે અનુક્રમે ગૌરી, ગંધારી, લક્ષણા, સુસીમા, જાંબવતી, સત્યભામા અને રુક્મિણીના પ્રવ્રજ્યાગ્રહણથી શિવપદ પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે.
出境 H I
પત્ની મૂલશ્રીના વિષે ભગવાન અરિષ્ટનેમિના સમવસરણથી માંડીને સિદ્ધપદ પ્રાપ્તિ સુધીનું વર્ણન છે.
(૧૦) અધ્યયન : મૂલદત્તા
આ અધ્યયનમાં રાણી મૂલદત્તાનું ભગવાનના સમવસરણ પછી પ્રવ્રજ્યાથી માંડીને સિદ્ધિપદ પ્રાપ્તિ સુધીનું વર્ણન છે.
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વર્ષના શ્રમણ પર્યાય અને વિપુલગિરિ પર મોક્ષગમનનું વર્ણન છે. (૧૦) અધ્યયન : સુદર્શન
આ અધ્યયનમાં વાણિજ્ય ગામના સુદર્શનનું પાંચ વર્ષ નિર્ગંય જીવન અને વિપુલગિરિ પર મોક્ષગમન વગેરે વર્ણન છે. (૧૧-૧૩) આ અધ્યયનમાં અનુક્રમે શ્રાવસ્તીનગરીના પૂર્ણભદ્ર, સુમનભદ્ર અને સુપ્રતિષ્ઠના ૨૭ વર્ષના શ્રમણજીવન અને વિપુલગિરિ પર નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે. (૧૪) અધ્યયન : મેઘ
સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ
આ અધ્યયનમાં રાજગૃહના મેઘનું વિપુલગિરિ પર નિર્વાણ સુધીનું વર્ણન છે. (૧૫) અધ્યયન : અતિમુક્ત
આ અધ્યયનમાં પોલાસપુર નગર, શ્રીવન ઉદ્યાન, રાજા વિજય અને રાણી શ્રીદેવીના વર્ણન પછી રાજકુમાર અતિમુક્ત, ભગવાન મહાવીરના સમવસરણ વખતે શ્રી ગૌતમ ગણધરનું ભિક્ષા માટે જવું, અતિમુક્તનું ધર્મશ્રવણ, દીક્ષા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, ગુણરત્ન તપની આરાધના, વિપુલગિરિ પર મોક્ષગમન વગેરે વર્ણન છે. (૧૬) અધ્યયન : અલક્ષ
આ અધ્યયનમાં વારાણસી નગરી, કામ મહાવન ચૈત્ય અને રાજા અલક્ષના વર્ણન પછી ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ, પ્રવચન, રાજાને વૈરાગ્ય, દીક્ષા ગ્રહણ, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, વિપુલગિરિ પર નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે.
સક્ષમ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : નંઠા
આ અધ્યયનમાં રાજગૃહ નગરી, ગુણશીલ ચૈત્ય, રાજા શ્રેણિક, રાણી નંદા અને ભગવાનના સમવસરણ વગેરે વર્ણન પછી રાણી નંદાને વૈરાગ્ય, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, ૨૦ વર્ષનું શ્રમણી જીવન અને નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે.
(૨-૧૩) આ ૧૨ અધ્યયનોમાં અનુક્રમે રાજા શ્રેણિકની ૧૨ રાણીઓ નંદમતી, નંદોત્તરા, નંદશ્રેણિકા, મહકા, સુમરુતા, મહામરુતા, મરુદેવા, ભદ્રા, સુભદ્રા, સુજાતા, સુમના અને ભૂતઠિન્નાના જીવન વૃત્તાંતનું વર્ણન છે.
અઠ્ઠમ વર્ગ
(૧) અધ્યયન : કાલી
આ અધ્યયનમાં ચંપા નગરી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય, રાજા કોણિક, માતા રાણી કાર્લીદવી,
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ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ, પ્રવચન વગેરે વર્ણન પછી કાર્લીદેવીની પ્રવ્રજ્યા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, આર્યો ચંદનબાલા પાસે આજ્ઞા અને રત્નાવલી તપ આરાધના, આઠ વર્ષનું શ્રમણી જીવન, એક મહિનાની સંલેખના અને નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે.
(૨) અધ્યયન : સુકાલી - ક્નકાવલી તપની આરાધના. (૩)અધ્યયન : મહાકાલી – ક્ષુદ્રસિંહ નિષ્ક્રીડિત તપની આરાધના. (૪) અધ્યયન ઃ કૃષ્ણા - મહાસિંહ નિષ્ક્રીડિત તપની આરાધના. (૫) અધ્યયન : સુકૃષ્ણા – સાત, આઠ, નવ, દસ ભિક્ષુપ્રતિમાની આરાધના. (૬) અધ્યયન : મહાકૃષ્ણા - ક્ષુદ્ર સર્વતોભદ્ર પ્રતિમાની આરાધના. (૭) અધ્યયન : વીરકૃષ્ણા – મહાસર્વતોભદ્ર પ્રતિમાની સાધના. (૮) અધ્યયન : રામકૃષ્ણા – ભદ્રોત્તર પ્રતિમાની સાધના. (૯) અધ્યયન : પિતૃસેનકૃષ્ણા – મુક્તાવલી તપની આરાધના.. (૧૦) અધ્યયન : મહાસેન કૃષ્ણા - આયંબિલ વર્ધમાન તપની આરાધના.
ઉપરના બધાને ૧૭ વર્ષનો દીક્ષા પર્યાય, એક માસની સંલેખના અને સિદ્ધિપદ પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે.
श्री आगमगुणमंजूषा २९ 新編編編編編卐R
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बजार
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(८) अतगडदसाओ पदमा वम्गो १० अन्झयण बीओ वग्गो ८ अज्झयण पिट्ठको (१) [१]5555
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सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरि गोडी - जिराउला - सव्वोदय यास णाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ - महइ - महावीर वद्धमाण सामिस्स | सिरि गोयम - सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो । सिरि सुगुरु - देवाणं णमो | श्री ऋषभस्वामिने नम: श्री गोडीजी - जिरावल्ली - सर्वोदय पार्श्वनाथेभ्यो नमः श्री महावीराय नमः श्री गौतम-सुधर्मादि सर्व गणधरेभ्योनमः श्रीमदन्तकृद्दशाङ्गम् तेणं कालेणं० चंपानाम नगरी पुन्नभद्दे चेतिए वन्नओ, तेणं कालेणं० अज्जसुहम्मे समोसरिए परिसा निग्गया जाव पडिगया, तेणं का० अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू जाव पज्जुवासति, एवं वदासी-जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमढे पं० अट्ठमस्सणं भंते ! अंगस्स अंतगडदसाणं० के अढे पं० १, एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पं० जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पं० पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पं०१, एवं खलु जंबू ! समणेणं० अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पं० तं०- 'गोयम समुद्द सागर गंभीरे चेव होइ थिमिते य। अयले कंपिले खलु अक्खोभ पसेणती विण्हू ।।१।। जति णं भंते ! समणेणं जाव संप० अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पं० पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पं०?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० बारवतीणामं नगरी होत्था, दवालसजोयणायामानवजोअणवित्थिण्णा धणवइमतिनिम्माया चामीकरपागारा नाणारामणिपंचवन्नकविसीसगमंडिया सुरम्मा अलकापुरिसंकासा पमुदितपक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया पासादीया०, तीसे णं बारवतीनयरीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभागे एत्थे णं रेवतते नाम पव्वते होत्था, तत्थ णं रेवतते पव्वते नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्था वन्नओ, सुरप्पिए नामं जक्खायतणे होत्था पोराणे०, से णं एगेणं वणसंडेणं०, असोगवरपायवे, तत्थ णं बारवतीनयरीए कण्हे वासुदेवे राया परिवसति महता० रायवन्नतो, सेणं तत्थ समुद्दविजयपामोक्खाणं दसण्हं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचण्हं महावीराणं पज्जुन्नपामोक्खाणं अद्भुट्ठाणं कुमारकोडीणं संबपामोक्खाणं सठ्ठीए दुइंतसाहस्सीणं महसेणपामोक्खाणं छप्पण्णाए बलवगसाहस्सीणं वीरसेणपामोक्खाणं एगवीसाते वीरसाहस्सीणं उग्गसेणपा० सोलसण्हं रायसाहस्सीणं रुप्पिणिपा० सोलसण्हं देवीसाहस्सीणं अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अन्नेसिं च बहूणं ईसरजावसत्थवाहाणं बारवतीए अद्धभरहस्स य समत्तस्स आहेवच्चं जाव विहरति, तत्थ णं बारवतीए नयरीए अंधगवण्ही णामं राया परिवसंति, महताहिमवंत० वन्नओ, तस्स णं अंधगवण्हिस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्ता वन्नाओ, तते णं सा धारिणी देवी अन्नदा कदाई तंसि तारिसगंसि सयणिज्नंसि एवं जहा महब्बले 'सुमिणदसण कहणा जम्मं बालत्तणं कलातो य । जोव्वण पाणिग्गहणं कंता पासाय भोगा य ||२|| नवरं गोयमो नामेणं, अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेति अट्ठट्ठओ दाओ, तेण कालेणं० अरहा अरिट्ठनेमी आदिकरे जाव विहरति, चउव्विहा देवा आगया कण्हेवि णिग्गए, तते णं तस्स गोयमस्स कुमारस्स जहा मेहे तहा णिग्गते धम्म सोच्चा जं नवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि देवाणुप्पियाणं० एवं जहा मेहे अणगारे जाते जाव इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरति, तते णं से गोयमे अन्नदा कयाई अरहतो अरिट्टनेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्करस अंगाइं अहिज्जति त्ता बहूहिं चउत्थ जाव भावेमाणे विहरति, तते णं अरिहा अरिट्ठनेमी अन्नदा कदाई बारवतीतो नंदणवणातो पडिनिक्खमति बहिया जणवयविहारं विहरति, तते णं से गोयमे अणगारे अन्नदा कदाई जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवा० त्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आदा० पदा० एवं व० - इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, एवं जहा खंदतो तहा बारस भिक्खुपडिमातो फासेति त्ता गुणरयणंपि तवोकम्मं तहेव फासेति निरवसेसं जहा खंदतो तहा चितेति तहा आपुच्छति तहा थेरेहिं सद्धिं सेत्तुऑ दुरूहति मासियाए संलेहणाए बारस वरिसाइं परिताते जाव सिद्धे०।१। एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं
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સૌજન્ય :- પ. પૂ. કવિન્દ્રસાગરજી મ.સા. પ.પૂ. વીરભદ્રસાગરજી મ.સા., પ.પૂ. મહોદયસાગરજી મ.સા.ની ગણિપદની ત્રીજી વાર્ષિક તિથિએ
મુમુક્ષુ દીપક રાયશી ગાલા પરિવાર (કચ્છ) ચાંગડાઈ
5
5555555555555 श्री आगमगुणमंजूपा - १४
॥
5॥5555555555॥
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(८) अंतगडदसाओ ३ वग्ग १३ अज्झयणं [२] पढमवग्गपढमअज्झयणस्स अयमट्ठे पं०, एवं जहा गोयमो तहा सेसा वण्ही पिया धारिणी माता समुद्दे सागरे गंभीरे थिमिए अयले कंपिल्ले अक्खोभे पणती विण्हुए एए, एगगमो [ पढमो वग्गो दस अज्झयणा ||२| [जति दोच्चस्स वग्गस्स | उक्खेवतो, तेणं कालेणं० बारवतीते णगरीए बण्ही पिया धारिणी माता'अक्खोभ सागरे खलु समुद्द हिमवंत अचलनामे य । धरणे य पूरणेवि य अभिचंदे चेव अट्ठमते | ३|| जहा पढमो वग्गो तहा सव्वे अट्ट अज्झयणा गुणरणतवोकमं सोलस वासइं परियाओ सेत्तुञ्जे मासियाए संलेहणाए सिद्धी । ३ । [ जति तच्चस्स उक्खेवतो ], एवं खलु जंबू ! तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अज्झयणा अणीयसे अणंतसेणे अणिहए विऊ देवजसे सत्तुसेणे सारणे गए सुमुहे दुम्मुहे कुवए दारुए अणाहिट्ठी १३, जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं तेरस अज्झयणा पं० तच्चस्स णं भंते! वग्गस्स पढमअज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पं० १, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० भद्दिलपुरे नामं नगरे होत्था वन्नओ, तस्स णं भद्दिलपुरस्स० उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए सिरिवणे नामं उज्जाणे होत्था वन्नओ, जितसत्तू राया, तत्थणं मद्दिलपुरे नयरे नागे नामं गाहावी होत्था अड्ढे, तस्स णं नागस्स गाहावतिस्स सुलसा नामं भारिया होत्था सूमाला जाव सुरुवा, तस्स णं नागस्स गाहावतिस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयजसे नामे कुमारे होत्था सूमाले जाव सुरुवे पंचधातीपरिक्खित्ते तं० खीरधाती जहा दढपइने जाव गिरि० सुहं० परिवड्ढति, तते णं तं अणीयजसं कुमारं सातिरेगअट्ठवासजायं अम्मापियरो कलायरिय जाव भोगसमत्थे जाते यावि होत्था, तते णं तं अणियजसं कुमारं उम्मुक्कवालभावं जाणेत्ता अम्मापियरो कलायरिय जावबत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसेण पाणिं गेण्हावेति, तते णं से नागे गाहावती अणीयजसस्स कुमारस्स इमं एयारुवं पीतिदाणं दलयति तं०- बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जहा महब्बलस्स जाव उप्पिं पासा० फुट्ट० विहरति, तेणं कालेणं० अरहा अरिट्ठ जाव समोसढे सिरिवणे उज्जाणे जहा जाव विहरति परिसा णिग्या, तते णं तस्स अणीयजसस्स तं महा० जहा गोयमे तहा नवरं सामाइयमातियाई चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जति वीसं वासातिं परिताओ सेसं तहेव जाव सेत्तुञ्जे पव्वते मासियाए संलेहणाए जाव सिद्धे०, एवं खलु जंबू ! समणेणं अट्टमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमअज्झयणस्स अयमट्ठे पं०, एवं जहा अणीयजसे, एवं सेसावि अनंतसेणे जाव सत्तुसेणे जाव सत्तुसेणे छ अज्झयणा एक्कगमा बत्तीसदो दाओ वीसं वासा परियातो चोद्दस० सेत्तुओ सिद्धा में छट्ठमज्झयणं समत्तं । ★ ★ ★ तेणं कालेणं० बारवतीए नयरीए जहा पढमे नवरं वसुदेवे राया धारिणी देवी सीहो सुमिणे सारणे कुमारे पन्नासतो दातो चोद्दस पुव्वा वीसं वासा परिताओ सेस जहा गोयमस्स जाव सेत्तुञ्जे सिद्धे० । जति० उक्खेओ अट्ठमस्स, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० बारवतीए नगरीए जहा पढमे जाव अरहा अरिनेमी सामी समोसढे, तेणं कालेणं० अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतेवासी छ अणगारा भायरो सहोदरा होत्था सरिसया सरित्तया सरिव्वया नीलुप्पलगुलियअयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकियवच्छा कुसुमकुंडलभद्दलया नलकुब्बरसमाणा, तते णं ते छ अणगारा जं चेव दिवस मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वतिया तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमीं वंदति णमंसंति त्ता एवं व० - इच्छामो णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा जावज्जीवाए छट्टंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्म संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरित्तते, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडि०, तते णं ते छ अणगारा अरहया अरिट्ठनेमिणा अब्भन्नाया समा जावज्जीवा छछट्टेणं जाव विहरंति, तते णं ते छ अणगारा अन्नया कयाई छट्ठक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करोति जहा गोयमो जाव इच्छामो छट्ठक्खमणस्स पारणाए तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा तीहिं संघाडएहिं बारवतीए नयरीए जाव अडित्तते, अहासुहं०, तते णं ते छ अणगारा अरया अरिट्ठनेमिणा अब्भणुन्नाया समाणा अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति णमंसंति त्ता अरहतो अरिट्टनेमिस्स अंतियात सहसंबवणातो पडिनिक्खमंति त्ता तीहिं संघाडएहिं अतुरियं जाव अडंति, तत्थ णं एगे संघाडए बारवतीए नयरीए उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाते अडमाणे २ वसुदेवस्स रन्नो देवतीए देवीते गे अणुपविट्ठे, ततेणं सा देवती देवी ते अणगारे एज्नमाणे पासति त्ता हट्ठजावहियया आसणातो अब्भुट्ठेति त्ता सत्तट्ठ पयाइं० तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति णमंसति त्ता जेणेव भत्तघरते तेणेन उवागया सीहकेरासाणं मोयगाणं थाल भरेति ते अणगारे पडिलाभेति वदति णमंसंति ता पडिविसज्जेतिं, तदाणंतरं चणं श्री आगमगुणमंजूषा ११५ LLLLLLL
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(८) अंतगडदसाओ ३ वग्ग १३ अज्झयणं [३]
दोच्चे संघाडते बारवतीते उच्च जाव विसज्जेति, तदाणंतरं च णं तच्चे संघाडते बारवतीए नगरीए उच्चनीय जाव पहिलाभेति त्ता एवं वदासी- किण्णं देवाणुप्पिया ! कणहस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवतीए नगरीते नवजोयण० पच्चक्खदेवलोगभूताए समणा निग्गंथा उच्चणीय जाव अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति जन्नं ताई चव कुलाई भत्तपाणाए भुज्जो २ अणुप्पविसंति ? तते णं ते अणगारा देवतीं देवीं एवं व०- नो खलु देवा० ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे बारवतीते नगरीते जाव देवलोगभूयाते समणा निग्गंथा उच्चनीय जाव अडमाणा भत्तपाणं णो लभंति नो चेव णं ताइं ताइं कुलाई दोच्चंपि तच्वंपि भत्तपाणाए अणुपविसंति, एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे भद्दिलपुरे नगरे नागस्स गाहावतिस्स पुत्ता सुलसाते भारियाए अत्तया छ भायरो सहोदरा सरिसया जाव नलकुब्बरसमाणा अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा संसारभउव्विग्गा भीया जम्मणमरणाणं मुंडा जाव पव्वइया, तते णं अम्हे जं चेव दिवसं पव्वतिता तं चेव दिवसं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदामो नम॑सामो त्ता इमं एयारुवं अभिग्गहं अभिगेण्हामो-इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा जाव अहासुहं०, तते णं अम्हे अरहता० अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवा छट्ठछद्वेणं जाव विहरामो तं अम्हे अज्ज छट्ठक्खमणपारणयंसि पढमाए पोरसीए जाव अडमाणा तव गेहं अणुप्पविट्ठा, तं नो खलु देवाणुप्पिए ! ते चेव णं अम्हे, अम्हे णं अन्ने, देवतीं देवीं एवं वदंति ता जामेव दिसं पाउ० तामेव दिसं पडिगता, तीसे देवतीते देवीए अयमेयारुवे अज्झ० समुप्पन्ने, एवं खलु अहं पोलासपुरे नगरे अतिमुत्तेणं कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिता तुमं णं देवाणु० अट्ठ पुत्ते पयातिस्ससि सतिसए जाव नलकुब्बरसमाणे नो चेव णं भारहे वासे अन्नातो अम्मयातो तारिस पुत्ते पयातिस्संति तं णं मिच्छा, इमं णं पच्चक्खमेव दिस्सति भारहे वासे अन्नातोवि अम्मताओ एरिसे जाव पुत्ते पयायाओ तं गच्छामि णं अरहं अरिट्ठनेमिं वंदामि त्ता इमं च णं एयारुवं वागरणं पुच्छिस्सामीतिकट्टु एवं संपेहेति त्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति त्ता एवं व०- लहुकरणप्पवर जाव उवट्ठवेंति, जहा देवाणंदा जाव पज्जुवासति, तते णं अरहा अरिट्ठनेमी देवतीं देवीं एवं व० से नूणं तव देवती ! इमे छ अणगारे पोसेत्ता अयमेयारुवे अब्भत्थि० एवं खलु अहं पोलासपुरे नगरे अइमुत्तेणं तं चेव णिग्गच्छसि त्ता जेणेव ममं अंतियं हव्वमागया से नूणं देवती ! अत्थे समट्ठे ?. हंता अत्थि एवं खलु देवा० ! तेणं कालेणं० भद्दिलपुरे नगरे नागे नामं गाहावती परिवसति अड्ढे० - तस्स णं नागस्स गाहा० सुलसा नामं भारिया होत्या. सा सुलसा गाहा० बालत्तणे चेव निमित्तिएणं वागरिता-एस णं दारिया जिंदू भविस्सति तते णं सा सुलसा बालप्पभितिं चेव हरिणेगमेसीभत्तया यावि होत्थाहरिणेगमेसिस्स पडिमं करेति त्ता कल्ला कल्लिं ण्हता जाव पायच्छित्ता उल्लपडसाडया महरिहं पुप्फच्वणं करेति त्ता जंनुपायडिया पणामं करेति ततो पच्छा आहारेति वा नीहारेति वा वरति वा. तते णं तीसे सुलसाए गाहा० भत्तिबहुमाणसुस्सूसाए हरिणेगमेसी देवे आराहिते यावि होत्या. तते णं से हरिणेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्टयाए सुलसं गाहावतिणिं तुमं च दोवि समउउयाओ करेति तते णं तुब्भे दोवि सममेव गब्भे गिण्हह सममेव गब्भे परिवहह सममेव दारए पयायह. तए णं सा सुलसा गाव विणिहायमावन्ने दारए पयायति तते णं से हरिणेगमेसी देवे सुलसाए अणुकंपणट्ठाते विणिहायमावण्णए दारए करतलसंपुडेणं गेण्हति त्ता तव अंतियं साहरति त्ता तंसमयं च णं तुमंपि णवण्हं मासाणं० सुकुमालदारए पसवसि. जेऽविय णं देवाणुप्पिए! तव पुत्ता तेऽविय तव अंतिताओ करयलसंपुडेणं गेण्हति त्ता सुलसाए गाहा० अंतिए साहरति. तं तव चेव णं देवइ ! एए पुत्ता णो चेव सुलसाते गाहाव० तते णं सा देवती देवी अरहओ अरिट्ठ० अंतिए एयमहं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठजावहियया अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति नम॑सति त्ता जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छति ते छप्पि अणगारा वंदति णमंसति त्ता आगतपुण्हुता पप्फुतलोयणा कंचुयपडित्या दरियवलयबाहा धाराहयकलंबपुप्फगंपिव समूससियरोमकूवा ते छप्पि अणगारे अणिमिसाते दिट्ठीए पेहमाणी २ सुचिरं निरिक्खति त्ता वंदति णमंसति त्ता जेणेव अरिहा अरिट्ठ० तेणेव उवाग० अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति णमंसति त्ता तमेव धम्मियं जाण० दूरूहति त्ता जेणेव बारवतीणगरी तेणेव उवा० त्ता बारवतिं नगरिं अणुप्पविसति त्ता जेणेव सते गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवाग० त्ता धम्मियातो जाणप्पवरातो पच्चोरुहति त्ता जेणेव सते वासघरे जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवाग० त्ता सयंसि सयणिज्जंसि निसीयति, तते णं तीसे देवतीते देवीए अयं अब्भत्थिते ० समुप्पण्णे. एवं खलु अहं
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श्री आगमगुणमंजूषा ७१६०
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(८) अंतगडदसाओ ३ वग्ग - १३ अज्झयणं [१]
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र सरिसते जाव नलकुब्बरसमाणे सत्त पुत्ते पयाता, नो चेव णं मए एगस्सवि बालत्तणते समणुभूते, एसवियं णं कण्हे वासुदेवे छण्हं छण्ह मासाणं मम अंतियं पायवंदते हव्वमागच्छति. तं धन्नातो णं ताओ अम्मयाओ जासि मण्णे णियगकुच्छिसंभूतयाइं थणदुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावयाई मंमणपजंपियाई थणमूलकक्खदेसभागं अभिसरमाणातिं मुद्धयाइं पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हऊण उच्छंगि णिवेसियाई देति समुल्लावते सुमहुरे पुणो २ मंजुलप्पभणिते, अहं णं अधन्ना अपुन्ना अकयपुन्ना एत्तो एक्कतरमपि न पत्ता, ओहय० जाव झियायति, इमं च णं कण्हे वासुदेवे हाते जाव विभूसिते देवतीए देवीए पायवंदते हव्वमागच्छति, ततेणं से कण्हे वासुदेवे देवई देवि० पासति त्ता देवतीए देवीए पायग्गहणं करेति त्ता देवती देवीं एवं व०- अन्नदा णं अम्मो! तुब्भे ममं पासेत्ता हट्ठ जाव भवह. किण्णं अम्मो! अज्ज तुम्मे ओहय जाव झियायह ?, तए णं सा देवती देवी कण्हं वासुदेवं एवं व० - एवं खलु अहं पुत्ता ! सरिसए जाव समाणे सत्त पुत्ते पयाया नो चेव णं मए एगस्सवि बालत्तणे अणुभूते तुमंपिय णं पुत्ता ! ममं छण्हं २ मासाणं अंतियं पादवंदते हव्वमागच्छसि तं धन्नाओ णं ताओ अम्मयातो जाव झियायामि, तएणं से कण्हे वासुदेवे देवतिं देवि एवं व०- मा णं तुन्भे अम्मो ! ओहय जाव झियायह अहण्णं तहा घत्तिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए भविस्सतीतिकटु देवतिं देवि ताहिं इट्टाहिं वग्गूहिं समासासेति त्ता ततो पडिनिक्खमति त्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवा०त्ता जहा अभओ नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हति जाव अंजलिं कटु एवं व०- इच्छामि णं देवाणु० ! सहोदरं कणीवसं भाउयं विदिण्णं, तते णं से हरिणेगमेसी कण्हं वासुदेवं एवं व०- होहिति णं अम्मो ! मम सहोदरे कणीयसे भाउएतिकट्ट देवतिं ताहिं इठ्ठाहिं जाव आसासेति जामेव दिसंपाउन्भूते तामेव दिसं पडिगते, तएणं सा देवती देवी अन्नदा कदाई तंसि तारिसगंसि जाव सीहं सुमिणे पासेत्ता पडिबुद्धा जाव पाढया हट्ठहियया परिवहति, तते णं सा देवती देवी नवण्हं मासाणं जासुमणारत्तबंधुजीवतलक्खारससरसपारिजातकतरुणदिवाकरसमप्पभं सव्वनयणकंतं सुकुमालं जाव सुरूवं गततालुयसमाणं दारयं पयाया जम्मणं जहा मेहकुमारे जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारते गततालुसमाणे तं होउ णं अम्ह एतस्स दारगस्स नामधेज्जे गयसुकुमाळे २, तते णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामं करेति गयसुकुमालोत्ति सेसं जहा मेहे जाव अलं भोगसमत्थे जाते यावि होत्था, तत्थणं (१२६) वारवतीए नगरीए सोमिले नाम माहणे परिवसति अड्ढे रिउव्वेद जाव सुपरिनिहिते यावि होत्था, तस्सणं सोमिलमाहणस्स सोमसिरी नाम माहणी होत्था सुमाल०, तस्सणं सोमिलस्स धूता सोमसिरीए माहणीए अत्तया सोमानामं दारिया होत्था सोभला जाव सुरूवा रूवेणं जाव लावण्णेणं उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा यावि होत्या. तते णं सा सोमा दारिया अन्नया कदाई पहाता जाव विभूसिया बहूहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ता सतातो गिहातो पडिनिक्खमति त्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवा० त्ता रायमगंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणी चिट्ठति, तेणं कालेणं० अरहा अरिट्ठिनेमी समोसढे परिसा निग्गया, तते णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धडे समाणे ण्हाते जाव विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारेणं सद्धिं हत्थिखंधवरगते सकोरंट० छत्तेणं धरेज्जमाणेणं सेअवरचामराहिं उधुव्वमाणीहिं बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं अरहतो अरिट्ठनेमिस्स पायवंदते णिग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासति त्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य जाव विम्हिए, तए णं कण्हे० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइत्ता एवं व०- गच्छह णं तुब्भे देवाणु० ! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेण्हह त्ता कन्नंतेउरंसि पक्खिवह, तते णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सति, तते णं कोडुंबिय जाव पक्खिवंति, ततेणं से कण्हे वासुदेवे बारवतीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जाव पज्जुवासति, तते णं अरहा अरिट्ठनेमि कण्हस्स वासुदेवस्स गयसुकुमालस्स कुमारस्स तीसे य० धम्मकहा, कण्हे पडिगते, तते णं से गयसकमाले अरहतो अरिट्ठ० अंतियं धम्म सोच्चा जं नवरं अम्मापियरं आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावजं जाव वडिढयकुले तते णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धडे समाणे जेणेव गयसुकुमाले तेणेव उवागच्छति त्ता गयसुकुमाजं आलिंगति त्ता उच्छंगे निवेसेति त्ता एवं व०- तुम ममं सहोदरे कणीयसे भाया तं मा णं तुमं देवाणु० ! .
इयाणिं अरहतो० मुंडे जाव पव्वयहि, अहण्णं बारवतीए नयरीए महया २ रायाभिसेएणं अभिसिचिस्सामि, तते णं से गयसुकुमाले कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे ॥ २ तसिणीए संचिट्ठति, तए णं से गयसुकुमाले कण्हं वासुदेवं अम्मापियरो य दोच्चंपि तच्चपि एवं व०- एवं खलु देवाणु० ! माणुस्सयाकामा खेलासवा जाव amerikavrewic mucwere pucceururcelect श्री भाITHAIमंजषा - 10.10 L ite terrrrrrrrrr------
MONC$$$$$FFFFFFFああ明FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFああああああFFFFFFTO
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IMALIS
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(८) अंतगडदसाओ ३ वग्ग १३ अज्झयणं [५]
विप्पजहियव्वा भविस्संति तं इच्छणं देवाणुप्पिया! तुब्भेहिं अब्भणुचण्णाये अरहतो अरिट्ठ० अंतिए जाव पव्वइत्तए, तते णं तं गयसुकुमालं कणहे वासु० अम्मापय य जाहे नो संचाएति बहुयाहिं अणुलोमाहिं जाव आघवित्तते० ताहे अकामाई चेव एवं वदासी-तं इच्छामो णं ते जाया ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पात्तिए निक्खणं जहा महाबलस्स जाव तमाणाते तहा० तहा जाव संजमित्तते, से गय० अणगारे जाते ईरिया० जाव गुत्तबंभयारी, तते णं से गयसुकुमारे जं चेव दिवसं पव्वतिते तस्सेव दिवसस्स पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवा० त्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिकखुत्तो आयाहिणपयाहिणं० वंदति णमंसति त्ता एवं वदासी - इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते समाणे महाकालंसि सुसाणंसि एगराइयं महापडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेत्तते, अहासुहं देवाणु० !, तते णं से गय० अण० अरहता अरिट्ठ० अब्भणुन्नाए समाणे अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति णमंसति त्ता अरहतो अरिट्ठ० अंति० सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमति जेणेव महाकाले सुसाणे तेणेव उवागते त्ता थंडिल्लं पडिलेहेति त्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेति त्ता ईसिंपब्भारगएणं काएणं जाव दोवि पाए साहट्टु एगराई महापडिमं उसंपज्जित्ताणं विहरति, इमे य णं सोमिले माडणे सामिधेयस्स अट्ठाते बारवतीओ नगरीओ बहिया पुव्वणिग्गते समिहातो य दब्भे य कुसे य पत्तामोडं च गेहति त्ता ततो पडिनियत्तति त्ता महाकालस्स कुमारस्स वेरनिज्जायणं करेत्तते, एवं संपेहेति त्ता दिसापडिलेहणं करेति त्ता सरसं मट्टियं गेण्हति त्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवा० ता गयसूमालस्स कुमारस्स मत्थए मट्टियाए पालिं बंधइ त्ता जलंतीओ चिययाओ फुल्लियकिंसुयसमाणे खयरंगारे कहल्ले गेहइ ता गयसूमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवति ता भीए० तओ खिप्पामेव अवक्कम त्ता जामेव दिसं पाउब्भूते ०, तते णं तस्स गयसूमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूता उज्जला जाव दुरहियासा, तते णं से गय० अणगारे सोमिलस्स माहणस्स मणसावि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव अहियासेति, तए णं तस्स गय० अण० तं उज्जलं जाव अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्झवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकर अव्वकरणं जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे, ततो पच्छा सिद्धे जावप्पहीणे, तत्थ णं अहासंनिहितेहिं देवेहिं सम्मं आराहितंतिकट्टु दिव्वे सुरभिगंधोदए वुट्टे दसद्धवन्ने कुसुमे निवाडिते चेलुक्खेवे कए दिव्वे य गीयगंधव्वनिनाये कए यावि होत्था, तते णं से कण्हे वासुदेवे कल्लं पाउप्पभायाते जाव जलंते पहाते जाव विभूसिएहत्थिखंधवरगते सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज्ज० सेयवरचामराहिं उद्ध्रुव्वमाणीहिं महयाभडचडगरपहकरवंदपरिक्खित्ते बारवतिं णगरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव अरहा अरिgo तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तते णं से कण्हे वासुदेवे बारवतीए नयरीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छमाणे एक्कं पुरिसं पासति जुन्नं जराज्ज्नरियदेहं जाव किलंतं, महातिमहालयाओ इट्टगरासीओ एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहातो अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासति. तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्ठाए हत्थिखंधवरगते चेव एगं इट्टगं गेण्हति त्ता बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेसेति तते णं कण्हेणं वासुदेवेणं एगाते इट्टगाते गहिताते समाणीते अणेगेहिं पुरिससतेहिं से महालए इट्टगस्स रासी बहिया रत्थापहातो अंतोघरंसि अणुप्पवेसिए. तते णं से कण्हे वासुदेवे बारवतीए नगरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छति त्ता जेणेव अरहा अरिट्ठनेमि तेणेव उवागते त्ता जाव वंदति णमंसति त्ता गयसुकुमालं अणगारं अपासमाणे अरहं अरिट्ठनेमि वंदति णमंसति त्ता एवं व० कहिं णं भंते ! से ममं सहोदरे कणीयसे भाया गयसुकुमाले अणगारे जा णं अहं वंदामि नम॑सामि ? तते णं अरहा अरिट्ठनेमि कणहं वासुदेवं एवं व० - साहिए णं कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं. अप्पणो अट्टे. तते णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमिं एवं वदासी कहण्णं भंते! गयसुकुमालेणं अणगारेणं साहिते अप्पणो अट्ठे ?. तते अरहा अरिट्ठनेमि कण्हं वासुदेवं एवं व० एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमाले णं अणगारे णं ममं कल्लं पुव्वावरण्हकालसमयंसि वंदइ णमंसति त्ता एवं व० - इच्छामि णं उवसंपज्जित्ताणं विहरति तए णं तं गयसुकुमालं अणगारं एगे पुरिसे पासत्ति त्ता आसुरूत्ते० जाव सिद्धे. तं एवं खलु कण्हा! गयसुकुमालेणं अणगारेणं साहिते अप्पण अट्ठे २. तते से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमिं एवं व०- केस णं भंते! से पुरिसे अप्पत्थियपत्थए जाव परिवज्जिते जे णं ममं सहोदरं कणीयसं भायरं गयसुकुमालं अणगारं अकाले चेव जीवियातो ववरोविते. तए णं अरहा अरिट्ठनेमि कण्हं वासुदेवं एवं० मा णं कण्हा ! तुमं तस्स पुरिसस्स पदोसमावज्जाहि. एवं श्री आगमगुणमंजूषा ७१८
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(८) अंतगडदसाओ . वग्ग, १० अज्झयणं, · वग्ग, १ - १० अज्झयणं (
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खलु कण्हा ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिन्ने. कहण्णं भंते ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्सणं साहेज्ने दिन्ने ? तए णं अरहा अरिट्ठनेमि कण्हं वासुदेवं एवं व०-से नूणं कण्हा ! ममं तुमं पायवंदए हव्वमागच्छमाणे बारवतीए नयरीए एगं पुरिसं पाससि जाव अणुपविसिते, जहा णं कण्हा ! तुम तस्स पुरिसस्स साहिजे दिन्ने एवमेव कण्हा! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स अणेगभवसयसहस्ससंचितं कम्म उदीरेमाणेणं बहुकम्मणिज्जरत्थं साहिज्जे दिन्ने. तते णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमि एवं व०-से णं भंते ! पुरिसे मते कह जाणियव्वे ?, तए णं अरहा अरिट्ठ० कण्हं वासुदेवं एवं व०-जे णं कण्हा ! तुम बारवतीए ववरीए अणुपविसमाणं पासेत्ता ठितए चेव ठितिभेएणं कालं करिस्सति तण्णं तुम जाणेज्जासि एस णं से पुरिसे. तते णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिठ्ठनेमि वंदति नमंसति त्ता जेणेव आभिसेयं हत्थिरयणं तेणेव उवा० त्ता हत्थिं दुरूहति त्ता जेणेव बारवती नगरी जेणेव सते गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तस्स सोभिलमाहणस्स कल्लं जाव जलते अयमेयारूवे अन्भत्थिए० समुप्पन्ने एवं खलु कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमि पायवंदए निग्गते तं नायमेयं अरहता विन्नायमेयं अरहता सुतमेयं अरहता सिट्ठमेयं अरहया भविस्सइ कण्हस्स वासुदेवस्सतं न नज्जतिणं कण्हे वासुदेवे ममं केणवि कुमारेणं मारिस्सतित्तिकटु भीते० सयातो गिहातो पडिनिक्खमति कण्हस्स वासुदेवस्स बारवतिं नगरिं अणुपविसमाणस्स पुरतो सपक्खिं सपडिदिसिंहव्वमागते. तते णं से सोमिले माहणे कण्हं वासुदेवं सहसा पासेत्ता भीते० ठिते य चेव ठितिभेयं कालं करेति धरणितलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति संनिवडिते. तते णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासति त्ता एवं व०-एस णं देवाणुप्पिया ! से सोमिले माहणे अप्पत्थियपत्थए जाव परिवज्जिते जेणं ममं सहोयरे कनीयसे भायरे गयसुकुमाले अणगारे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविएत्तिकटु सोमिलं माहणं पाणेहिं कड्ढावेति त्ता मूमिं पाणिएणं अब्भोक्खावेति त्ता जेणेव सते गिहे तेणेव उवागते सयं गिहं अणुपविढे. एवं खलु जंबू ! जाव स० अंत० तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमज्झयणस्स अयमढे पं०।६। नवमस्स उक्खेवओ. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० बारवतीए नयरीए जहा पढमए जाव विहरति. तत्थ णं बारवतीए बलदेवे नामं राया होत्था वन्नओ. तस्स णं बलदेवस्स रन्नो धारिणीनामं देवी होत्था वन्नओ. तते णं सा धारिणी सीहं सुमिणे जहा गोयमे नवरं सुमुहे नाम कुमारे पन्नासं कन्नाओ पन्नासओ दाओ चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जति वीसं वासाइं परियातो सेसं तं चेव सेत्तुओ सिद्धे. निक्खेवओ। एवं दुम्मुहेवि कूवदारएवि. तिन्निवि बलदेवधारिणीसुया, दारुएवि एवं चेव, नवरं वसुदेवधारिणिसुते. एवं अणाधिट्ठीवि वसुदेवधारिणीसुते. एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव सं० अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरसमस्स अज्झयणस्स अयढे पं० वग्गो३ | ७ | जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं तच्चस्स वग्गस्स अयमढे पं० चउत्थस्सके अट्ठे पं०?. एवं खलु जंबू ! सम० जाव सं० [चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा] पं० तं०- 'जालि मयालि उवयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य। पज्जुन्न संब अनिरुद्धे सच्चनेमी य दढनेमी॥४॥ जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पं० पढमस्सणं० अज्झयणस्स के अट्ठे पं०?, एवं खलु जंबू ! तेणं का० बारवती नगरी तीसे जहा पढमे कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव विहरति, तत्थ णं बारवतीए नगरीए वसुदेवे राया धारिणी वन्नतो जहा गोयमो नवरं जालिकुमारे पन्नासतो दातो बारसंगी सोलस वासा परिताओ सेसं जहा गोयमस्स' जाव सेत्तुळे सिद्धे । एवं मयाली उवयाली पुरिससेणे य वारिसेणे य एवं पज्जुन्नेवित्ति नवरं कण्हे पिया रुप्पिणी माता, एवं संबेऽवि, नवरं जंबवती माता, एवं अनिरुद्धेवि नवरं पज्जुन्ने पिया वेदब्भी माया, एवं सच्चनेमी. नवरं समुद्दविजये पिता सिवा माता, दढनेमीवि, सठ्ठ एगगमा. चउत्थवग्गस्स निक्खेवओ। वग्गो ४८ । जति णं भंते ! सम० जाव सं० चउत्थमस्स वग्गस्स अयमढे पन्नत्ते पंचमस्स वग्गस्स अंतगडदसाणं समरेणं जाव सं० के अट्टे पं० १. एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झ० पं० तं०. पउमावती य गोरी गंधारी लक्खणा सुसीमा य । जंबवइ सच्चभामा रूप्पिणि मूलसिरि मूलदत्तावि ॥५॥ जति णं भंते ![ पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा ] पं० पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अढे पं०?. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० बारवती नगरी जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहे. जाव विहरति. तस्सणं कण्हस्स वासु० पउमावती नाम देवी होत्था
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(८) अतगडदसाओ वग्ग, १० अज्झयण [19]
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वन्नओ. तेणं कालेणं० अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव विहरति कण्हे वासुदेवे णिग्गते जाव पज्जुवासति. तते णं सा परमावती देवी इमीसे कहाए लखट्ठा हट्ठ० जहा देवती जाव पज्जुवासति. तए णं अरिहा अरिट्ठ० कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावतीए य धम्मका परिसा पडिगता, तते णं कण्हे० अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति णमंसति त्ता एवं व०. इमीसे णं भंते ! बारवतीए नगरीए नवजोयणा जाव देवलोगभूताए किंमूलाते विणासे भविस्सति ?. कण्हाति ! अरहा अरिट्ठ० कण्हं वासु० एवं ०. एवं खलु कण्हा ! इमीसे बारवतीए नयरीए नवजोयणा जाव भूयाए सुरग्गिदीवायणमूलाए विणासे भविस्सति. कण्हस्स वासुदेवस्स अरहतो अरिट्ठ० अंतिए एवं सोच्चा निसम्म एवं अब्भत्थिए० धन्ना णं ते जालिमयालिपुरिससेणवारिसेणपज्जुन्नसंबअनिरूद्धदढने मिसच्चनेमिप्पभियतो कुमारा जेणं चइत्ता हिरण्णं जाव परिभात्ता अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतियं मुंडा जाव पव्वतिया, अहण्णं अधन्ने अकयपुन्ने रज्जे य जाव अंतेउरे य माणुस्सएस य कामभोगेसु मुच्छिते० नो संचाएमि अरहतो अरिट्ठ जाव पव्वतित्तए, कण्हाइ ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं व०. से नूणं कण्हा ! तव अयमब्भत्थिए० - धन्ना णं ते जाव पव्वतित्तते से नूणं कण्हा ! अट्ठे मट्ठे ?. हंता अस्थि. तं नो खलु कण्हा ! तंएवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जन्नं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति, से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-न एवं भूयं वा जाव पव्वतिस्संति ?. कण्हाति ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं व० एवं खलु कण्हा ! सव्वेवि य णं वासुदेवा पुव्वभवे निदाणकडा, से एतेणद्वेणं कण्हा ! एवं वुच्चति न एयं भूयं पव्वइस्संति, तते णं से कण्हे वासु० अरहं अरिट्ठ० एवं व०--अहं णं भंते ! इतो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि कहिं उववज्जिस्सामि ?, तते णं अरिहा अरिट्ठ० कण्हं वासु० एवं व० एवं खलु कण्हा ! बारवतीए नयरीए सुरदीवायणकोवनिद्दड्ढाए अम्मापिइनियगविप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धिं दाहिणवेयालिं अभिमुहे जोहिटिठल्लपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पासं पंडुमहुरं संपत्थिते कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स अहे पुढवीसिलापट्ठए पीतवत्थपच्छाइयसरीरे जरकुमारेणं तिक्खेणं कोदंडविप्पमुक्केणं इसुणा वामे पादे विद्धे समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्नलिए नरए इयत्ताए उववज्जिहिसि, तते णं कण्हे वासुदेवे अरहतो अरिट्ठ० अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म ओहय जाव झियाति. कण्हाति ! अरहा अरिट्ठ० कण्हं वासुदेवं एवं व० मा णं तुमं देवाणुप्पिया ! ओहय जाव झियाहि, एवं खलु तुमं देवाणु० ! तच्चातो पुढवीओ उज्जलियाओ अनंतरं उव्वद्वित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवतेसु सयदुवारे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि, तत्थ तुमं बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणेत्ता सिज्झिहिसि०. त णं से कण्हे वासुदेवे अरहतो अरिट्ठ० अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ० अप्फोडेति त्ता वग्गति त्ता तिवतिं छिंदति त्ता सीहनायं करेति त्ता अरहं अरिट्ठनेमिं वंदति णमंसति त्ता तमेव अभिसेक्कं हत्थिं दुरूहति त्ता जेणेव बारमती णगरी जेणेव सते गिहे तेणेव उवागते अभिसेयहत्थिरयणातो पच्चोरूहति जेणेव बाहरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सते सीहासणे तेणेव उवागच्छति त्ता सीहासणवरंसि पुरत्याभिमुहे निसीयति त्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेति त्ता एवं व०-गच्छहणं तुब्भे देवाणु० ! बारवतीए नयरीए सिंघाडग जाव उग्घोसेमारा २ एवं वयह एवं खलु देवाणुप्पिया ! बारवतीए नयरीए नवजोयणा जाव भूयाए सुरग्गिदीवायणमूलाते विणासे भविस्सति तं जो णं देवा० ! इच्छति बारवतीए नयरीए राया वा जुवराया वा ईसरे वा तलवरे वा माडंबियकोडुंबियइब्भसेट्ठी वा देवी वा कुमारो वा कुमारी वा अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे जाव पव्वइत्तए तं णं कण्हे वासुदेवे विसज्जेति, पच्छातुरस्सवि य से अहापवित्तं वित्तिं अणुजाणति महता इड्ढीसक्कारसमुदएण य से निक्खमणं करोति, दोच्चंपि तच्वंपि घोसणयं घोसेह त्ता मम एयं० पच्चप्पिणह, तए णं ते कोडुंबिय जाव पच्चप्पिणंति, तते णं सा पउमावती देवी अरहतो० अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जावहियया अरहं अरिट्ठनेमीं वंदति णमंसति त्ता एवं व०- सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं० से जहेतं तुब्भे वदह, जं नवरं देवाणु० कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि तते णं अहं देवा० ! अंतिए मुंडा जाव पव्वयामि, अहासुहं०, तए णं सा पउमावती देवी धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहति त्ता जेणे बारवती नगरी जेणेव सते गिहे तेणेव उवागच्छति त्ता धम्मियातो जाणातो पच्चोरूमति त्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे ते० उ० करयल० कट्टु एवं व० इच्छामि गं देवाणु० ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाता समाणी अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडा जाव पव्व०, अहासुहूं०, तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबिते सद्दावेति त्ता एवं व०श्री आगमगुणमंजूषा - ७२०
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_in_EttuCth International 2010/03
* અંતકૃત દશાંગસૂત્રઃ
મુક્તાવલી, રત્નાવલી, કનકાવલી વગેરે ૧૨ પ્રકારના તપ વિષે જણાવી અંતે તેરમ વર્ધમાન તપની ચર્ચા છે. વળી અંતસમયે તપશ્ચર્યા અને રાત્રુંજય મહાતીર્થ પર સંલેખના કરી મોક્ષ પામનારના જીવનચરિત્ર છે.
* અંતર્ વશાંગસૂત્ર :
मुक्तावली, रत्नावली, कनकावली इत्यादि १२ प्रकारके तपके बारे में बताकर तेरहवें वर्धमान तपका चित्रण है। अंतिम समयमे तपश्चर्या एवं शत्रुंजय महातीर्थ पर संलेखना कर के मोक्षको जानेवाले के जीवन चरित्र है।
Antakrd-daśāriga-Sutra :
After narrating 12 types of austerity like Muktävali, Ratnāvalī, Kanakāvali, cte. the 13th Vardhamāna penance is narrated. Besides these the Sutra gives life-sketches of the liberated ones who practised penance at the end of their life and performed Samlekhana on the Satrunjaya holyplace.
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रस) अंतगडदसाओ पु वन, १६ अज्झयणं ]
$ $ $ $ $ $ खिप्पामेव पउमावतीते० महत्थं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह त्ता एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणह० जाव पच्चप्पिणंति, तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावती देवीं पट्टयं दुरूहेति अट्ठसतेणं सोवण्ण कलस जाव महानिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचति त्ता सव्वालंकारविभूसियं करेति त्ता पुरिससहस्सवाहिणि सिबियं रदावेति
बारवतीणगरीमज्झंमज्झेणं निग्गच्छति त्ता जेणेव रेवतते पवए जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवा० त्ता सीयं ठवेति पउमावती देवी सीतातो पच्चोरूभति० ॥ म जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवा० त्ता अरहं अरिट्टनेमी तिक्खुत्तो आ० प० त्ता वं० न० त्ता एवं व०-एस णं भंते ! मम अग्गमहिसी पउमावतीनामं देवी इट्ठा कता पिया मणुन्ना मणामा अभिरामा जाव किमंग पुण पासणयाए ? तन्नं अहं देवाणु०? सिस्सिणिभिक्खं दलयामि पडिच्छंतु णं देवाणु० ! सिस्सिणिभिक्खं, अहासुहं०, त० सा पउमावती उत्तरपुरच्छिम दिसीभागं अवक्कमति त्ता सयमेव आभरणालंकारं ओमुयति त्ता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति त्ता जेणेव अरहा अरि० तेणेव उवा०त्ता अरहं अरिट्ठनेमि वंदति णमंसति त्ता एवं व०-आलित्ते जाव धम्ममाइक्खितं, तते णं अरहा अरिट्ठ० पउमावती देवी सयमेव पव्वावेति सय० मुंडा० सय० जकिखणीते अज्जाते सिस्सिणिं दलयति, त० सा जक्खिणी अज्जा पउमावई देवी सयं पव्वा० जाव सजमियव्वं, तते णं सा फउमावती जाव संजमइ, त० सा पउमावती अज्जा जाता ईरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी, त० सा पउमावती अज्जा जक्खिणीते अज्जाते अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजति, बहूहिं चउत्थछट्ठ० विविहतव० भा० विहरति, त० सा पउमावती अज्जा बहुपडिपुन्नाइं वीसं वासाइं सामनपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेति ता सढि भत्ताई अणसणाए छेदेति त्ता जस्सट्ठाते कीरइ नग्गभावे जाव तमढें आराहेति चरिमुस्सासेहिं सिद्धा०।९। तेणं कालेणं० बारवई रेवतए उज्जाणे नंदणवणे, तत्थ णं बारव० कण्हे वासु० तस्सणं कण्हवासुदेवस्स गोरी देवी वन्नतो अरहा० समोसढे कण्हे णिग्गते गोरी जहा पउमावती तहा णिग्गया धम्मकहा परिसा पडिगता कण्हेवि तए णं सा गोरी जहा पउमावती तहा णिक्खंता जाव सिद्धा० : एवं गंधारी लक्खणा सुमीसा जंबवई सच्चमामा रूप्पिणी अट्ठवि पउमावतीसरिसाओ, अट्ठ अज्झयणा ।१०। तेणं कालेणं० बारवतीनगरीए रेवतते नंदणवणे कण्हे०, तत्थ णं बारवतीए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवतीए देवीए अत्तते संबे नामं कुमारे होत्था, अहीण०, तस्स णं संवस्स कुमारस्स मूलसिरीनामं भारिया होत्था वन्नओ, अरहा० समोसढे कणहे णिग्गते मूलसिरीवि णिग्गया जहा पउमा० नवरं देवाणु० ! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि जाव सिद्धा, एवं मूलदत्तावि । पंचमो वग्गो।११। [जति० छट्ठस्स उक्खेवओ, नवरं सोलस अज्झयणा ] पं० त०'मंकाती किंकमे चेव, मोग्गरपाणी य कासवे । खेमते घितिधरे चेव, केलासे हरिचंदणे ॥६।। वारत्त सुदंसण पुन्नभद्द सुमणभद्द सुपइटे मेहे । अइमुत्ते अ अलक्खे अज्झयणाणं तु सोलसयं ॥७॥ जइ सोलस अज्झयणा पं० पढमस्स अज्झयणस्स के अटे पं०?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० रायगिहे नगरे गुणसीलए चेतिते सेणिए राया मंकातीनाम गाहावती परिवसति अड्ढे जाव अपरिभूते, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे आदिकरे गुणसीलए जाव विहरति परिसा निग्गया, तते णं से मंकाती गाहावती इमीसे कहाए लद्धढे जहा पन्नत्तीए गंगदत्ते तहेव इमोऽवि जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठवेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीए सीताते णिक्खंते जाव अणगारे जाते ईरियासमिते०, त० से मंकाती अणगारे समणस्स भगवतो० तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याई एक्कारस अंगाई अहिज्जति, सेसं जहा खंदगस्स, गुणरयणं तवोकम्म सोलस वासाइं परियाओ तहेव विपुलेसिद्धे ।अ०१। किंकमेवि एवं चेव जाव विपुले सिद्धे ।अ०२।१२। तेणं कालेणं० रायगिहे गुणसीलते सेणिए राया चेल्लणा देवी, तत्थ णं रायगिहे अज्जुणए नाम मालागारे परिवसति अड्ढे जाव अपरिभूते, तस्स णं अज्जुणयस्स मालायारस्स बंधुमतीणामं भारिया होत्था सूमा०, तस्स णं अज्जुणयस्स मालावारस्स रायगिहस्स नगरस्स बहिया एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था कण्हे जाव निउरंबभूते दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिते पासातीए०, तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते तत्थ णं अज्जुणयस्स मालायारस्स अज्जतपजज्जतपितिपज्जयागए अणेगकुलपुरिसपरंपरागते मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खायययणे होत्था, पोराणे दिव्वे सच्चे जहा पुण्णभद्दे, तत्थणं मोग्गरपाणिस्स पडिमा एगं महं पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं गहाय चिट्ठति, तं० से
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(ट) अंतगडदसाओ ६ वग्ग, १६ अज्झयण [२]
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अज्जुणते मालागारे बालप्पभितिं चेव मोग्गरपाणिजक्खभत्ते यावि होत्था, कल्लाकल्लिं पच्छियपिडगाइं गेण्हति त्ता रायगिहातो नगरातो पडिनिक्खमति त्ता ८ जेणेव पुप्फारामे तेणेव उ० त्ता पुप्फुच्चयं करेति त्ता अग्गाई वराइं पुप्फाइं गेण्हइत्ता जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खाययरे तेणेव उ० मुग्गरपाणिस्स जक्खस्समहरिहं पुप्फच्वणयं करेति त्ता जंनुपायवडिए पणामं करेति, ततो पच्छा रायमगंसि वित्तिं कप्पेमाणे विहरति, तत्थ णं रायगिहे नगरे ललिया नाम गोट्ठी परिवसति अड्ढा 5 जाव अपरिभूता जंकयसुकया यावि होत्या, त० रायगिहे णगरे अन्नदा कदाई पमोदे घुढे यावि होत्था, त० से अज्जुणते मालागारे कल्लं पभूयतराएहिं पुप्फेहि कज्जमितिकट्ठ पच्चूसकालसमयंसि बंधुमतीते भारियाते सद्धिं पच्छियपिडयातिंगेण्हतित्ता सयातो गिहातोपडिनिक्खमति त्ता रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छति त्ता जेणेव पुप्फारामे तेणेव उवा० त्ता बंधुमतीते भारियाए सद्धिं पुप्फुच्चयं करेति, त० तीसे (१२७) ललियाते गोट्ठीते छ गोहिल्ला पुरिसा जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागता त्ता अभिरममाणा चिट्ठति, त० से अज्जुणते मालागारे बंधुमतीए भारियाए सद्धिं पुप्फुच्चयं करेति अग्गातिं वराति पुप्फातिं गहाय जेणेव मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छति, तते णं छ गोहिल्ला पुरिसा अज्जुणयं माला० बंधुमतीए भारियाए सद्धिं एज्जमाणं पासंति त्ता अन्नमन्नं एवं व०-एस णं देवाणु० ! अज्जुणते मालागारे बंधुमतीते भारियाते सद्धिं इह हव्वमागच्छति तं सेयं खलु देवाणु० ! अम्हं अज्जुणयं मालागारं अवओडयबंधणयं करेत्ता बंधुमतीते भारियाए सद्धिं विपुलाइं भोगभोगाई भुंजमाणाणं विहरित्तएत्तिकट्ठ एयमढे अन्नमन्नस्स पडिसुणेति त्ता कवाडंतरेसु निलुक्कंति निच्चला निप्फंदा तुसिणीया पच्छण्णा चिटुंति, त० से अज्जुणते मालागारे बंधुमतीभारियाते सद्धिं जेणेव मोग्गरपारिजक्खाययणे तेणेव उवा० त्ता आलोए पणामं करेति महारिहं पुप्फच्चणं करेति जंनुपायपडिए पणामं करेति, तते णं ते छ गोटेल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहितो णिग्गच्छंति त्ता अज्जुणयं मालागारं गेण्हति त्ता अवओडगबंधणं करेंति. बंधुमतीए मालागारीए सद्धिं विपुलाई भोग० भुंजमाणा विहरंति, त० तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए०-एवं खलु अहं बालप्पभितिं चेव मोग्गरपाणिस्स भगवओ कल्लाकल्लिं जाव कप्पेमाणे विहरामि, तं जति णं मोग्गरपाणिजक्खे इह संनिहिते होते से णं किं ममं एयारूवं आवई पावेज्जमाणं पासते ?, तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह संनिहिते. सुव्वत्तं तं एस कटे, तते णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अब्भत्थियं जाव वियाणेत्ता अज्नुणयस्स मालागारस्स सरीरयं अणुपविसति त्तातडतडतडस्स बंधाई छिंदति, तं पलसहस्सणिप्फण्णं अयोमयं मोग्गरं गेण्हति त्ता ते इत्थिसत्तमे पुरिसे घातेति, त० से अज्जुणते मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्ठे समाणे रायगिहस्स नगरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लि छ इत्थिसत्तमे पुरिसे घातेमाणे विहरति, रायगिहे णगरे सिंघाडगजावमहापहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति०-एवं खलु देवाणु० ! अज्जुणते मालागारे मोग्गरपाणिणा अण्णाइवे समाणे रायगिहे णगरे बहिया छ इत्थिसत्तमे पुरिसे घायेमाणे विहरति, त० से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुंबिय० सद्दावेति त्ता एवं व०एवं खलु देवा० ! अज्जुणते मालागारे जाव घातेमाणे जाव विहरति तं मा णं तुम्भे केती कट्ठस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुप्फफलाणं वा अट्ठाते सतिरं निग्गच्छतु मा णं तस्स सरीरस्स वावत्ती भविस्सतित्तिकटु दोच्चपि तच्चपि घोसणयं घोसेह त्ता खिप्पामेव ममेयं० पच्चप्पिणह, तते णं ते कोडुंबिय जाव पच्च०, तत्थ णं रायगिहे नगरे सुदंसणे नामं सेट्टी परिवसति अड्ढे०, तते णं से सुदंसणे समणोवासते यावि होत्था अभिगयजीवाजीवे जाव विहरति, तेणं कालेणं० समणे भगवं जाव समोसढे० विहरति, त० रायगिहे नगरे सिंघाडग० बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खति जाव किमंग पुण विपुलस्स अट्ठस्स गहणयाए ?, एवं तस्स सुदंसणस्स बहुजणस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अब्भत्थिते०-एवं खलु समणे जाव विहरति तं गच्छामि णं वदामि०, एवं संपेहेति त्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छति त्ता करयल० एवं व०-एवं खलु अम्मताओ! समणे जाव विहरति तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वदामि नम० जाव पज्जुवासामि, तते णं सुदंसणं अम्मापियरो एवं व०-एवं खलु पुत्ता ! अज्जुणे मालागारे जाव घातेमाणे विहरति माणं तुमं पुत्ता ! समणं भगवं महावीरं वंदए णिग्गच्छाहि. माणं सरीरयस्स तुज्झं
वावत्ती भविस्सति, तुमण्णं इहगते चेव समणं भगवं महावीरं वंदाहि णमंसाहि, तते णं सुदंसणे सेट्ठी अम्मापियरं एवं व०-किण्णं अम्मयातो ! समणं भगवं० KOROS ### #
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(८) अंतगडदसाओ ६ वग्ग, १६ अन्झयणं [१०] इमागयं इहपत्तं इहसमोसढं इहगते चैव वंदिस्सामि ?, तं गच्छामि णं अहं अम्मताओ ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाते समाणे भगवं महा० वंदते, त० सुदंसणं सेट्ठि अम्मापयरो जाहे नो संचायंति बहूहिं आघवणाहिं० जाव परूवेत्तते ताहे एवं व० - अहासुहं० त० से सुदंसणे अम्मापितीहिं अब्भणुण्णाते समाणे पहाते सुद्धप्पावेसाई जाव सरीरे सयातो गिहातोपडिनिक्खमति त्ता पायविहारचारेण रायगिहं णगरं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छति त्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स अदूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलते चेतिते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तते णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासतं अदूरसामंतेणं वीतीवयमाणं पा० ता आसुरूत्ते, तं पलसहस्सनिप्पन्नं अयोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे २ जेणेव सुदंसणे समणोवासते तेणेव पहारेत्थ गमणाते, तते गं से सुदंसणे समणोवास मोग्रपाणि जक्खं एज्जमाणं पासति त्ता अभीते अतत्थे अणुव्विग्गे अक्खभिते अचलिए असंभयते वत्थंतेणं भूमीं पमज्जति त्ता करतल० एवं व० - नमोऽत्थु णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्यु णं समणस्स जाव संपाविउकामस्स, पुव्विं च णं मते समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए थूलते पाणातिवाते पच्चक्खाते जावज्जीवाते थूलते मुसावाते थूलते अदिन्नादाणे सदारसंतोसे कते जावज्जीवाते इच्छापरिमाणे कते जावज्जीवाते, तं इदाणिपि तस्सेव अंतियं सव्वं पाणातिवातं पच्चक्खामि जावज्जीवाए मुसावायं अदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए सव्वं कोहं जाव मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं असणं पाणं खाइमं साइमं चउव्विहंपि आहारं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, जति णं एत्तो उवसग्गातो मुच्चिस्सामि तो मे कप्पेति पारेत्तते अह णो एत्तो उवसग्गातो मुच्चिस्सामि ततो मे तहा पच्चक्खाते चेवत्तिकट्टु सागारं पडिमं पडिवज्जति, त० से मोग्गरपाणिजक्खे तं पलसहस्सनिप्पन्नं अयोमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे २ जेणेव सुदंसणे समणोवासते तेणेव उवा० त्ता नो चेव णं संचाएति सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तते, तते णं से मोग्गरपाणि जक्खे सुदंसणं समणोवासतं सव्वओ समंताओ परिघोलेमाणे २ जाहे नो (चेव णं) संचाएति सुदंसणं समणोवासयं तेयसा समभिपडित्तते ताहे सुदंसणस्स समणोवायसस्स पुरतो सपक्खिं सपडिदिसिं ठिच्चा सुदंसणं समणोवासयं अणिमिसाते दिट्ठीए सुचिरं निरिक्खतिं त्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरं विप्पजहति त्ता तं पलसहस्सनिप्पन्नं अयोमयं मोग्गरं • जामेव दिसं पाउब्भूते तामेव दिसं पडिगते, त० से अज्जुणते माला० मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे धसत्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं निवडिते, त० से सुदंसणे समणोवासते निरूवसग्गमितिकट्टु पडिमं पारेति, तते णं से अज्जुणते माला० तत्तो मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे उट्ठेति त्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं ao - तुभेदेवाणु ! के कहिं घा संपत्थिया ?, तते णं से सुदंसणे समरोवासते अज्जुणयं माला० एवं व० एवं खलु देवाणुप्पिया ! अहं सुंदंसणे नामं समणोवासते अमिगयजीवाजीवे गुणसिलते चेतिते समणं भगवं महावीरं वंदते संपत्थिते, त० से अज्जुणते माला० सुदंसणं समणोवासयं एवं व० तं इच्छामि णं देवाणु० ! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदेत्तए जाव पज्जुवासेत्तए, अहासुहं देवाणु० ?, त० से सुदंसणे समणोवासते अज्झुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेव
सिलए चेति जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उ० त्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धि समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव पज्जुवासति, तते णं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स समणो० अज्जुणयस्स मालागारसस्स तीसे य० धम्मकहा, सुदंसणे पडिगते, तए णं से अज्जुणते समणस्स० धम्मं सोच्चा हट्ट० सद्दहामि गं भंते! णिग्गेयं पावयणं जाव अब्भुट्ठेमि, अहासुहं, त० से अज्जुणते माला० उत्तर० सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति जाव अणगारे जाते जाव विहरति, तते णं से अज्जुणते अणगारे जं चेव दिवस मुंडे जाव पव्वइते तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदति त्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं उग्गिण्हति कप्पइ मे जावज्जीवाते छछट्टेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स विहरित्तएत्तिकट्टु अयमेयारूवं अभिग्गहं ओगेण्हति त्ता जावज्जीवाए जाव विहरति, तते णं से अज्जुणते अणगारे छट्ठक्खमणपारणयंसि पढमपोरिसीए सज्झायं करेति जहा गोयमसामी जाव अडति, तते णं ते अज्जुणयं अणगारं रायगिहे नगरे उच्च जाव अडमाणं बहवे इत्थीओ य पुरिसा य डहरा य महल्ला य जुवाणा य एवं व० इमे णं मे पितामारते भाया० भगिणी० भज्जा० पुत्त० धूया० सुण्हा० इमेण मे अन्नतरे सुयणसंबंधिपरियणे मारिएत्तिकट्टु अप्पेगतिया अक्कोसंति अप्पे० हीलंति निदंति खिसंति गरिहंति तज्जेति तालेति, तते णं से अज्जुणते अणगारे तेहिं बहूहिं इत्थीहि य पुरिसेहि य डहरेहि श्री आगमगुणमंजूषा- ७२३
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(८) अंतगडदसाओ ६ वग्ग, १६ अज्झयणं [११]
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य महल्लेहि य जुवाणएहिं य बातोसेज्जमाणे जाव तालेज्जमाणे तेसिं मणसावि अपउस्समाणे सम्मं सहति सम्म खमति तितिक्खति अहियासेति सम्म सहमाणे 卐 ग्वम तिति० अहि० रायगिहे णगरे उच्चणीयमज्झिमकुलाइ अडमाणे जति भत्तं लहति तो पाणं ण लभति जइ पाणं तो भत्तं न लभति, तते णं से अज्जुणते अदीणे
अविमणे अकलुसे अणाइले अविसादी अपरितंतजोगी अडति त्ता रायगिहातो नगरातो पडिनिक्खमति त्ता जेणेव गुणसिलए चेतिते जेणेव समणे भगवं महावीरे 5 जहा गोयमसामी जाव पडिदंसेति त्ता समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाते अमुच्छिते० बिलमिव पण्णगभूतेणं अप्पणेणं वतमाहारं आहारेति, तते णं समणे०
अन्नदा राय० पडि० बहिं जण विहरति, तते णं से अज्जुणते अणगारे तेणं ओरालेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपुण्णे ॥ छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणति, अद्धमासियाए संलेहणाए अप्पाणं झुसेति तीसं भत्ताइ अणसणाते छेदेति त्ता जस्ससट्ठाते कीरति जाव सिद्धे, अ०३।१३। तेणं कालेणं० रायगिहे नगरे गुणसिलए चेतिते तत्थ णं सेणिए राया कासवे णाम गाहावती परिवसति जहा मंकाती. सोलस वासा परियाओ विपुले सिद्धे, अ०४। एवं
खेमतेऽवि गाहावती, नवरं कागंदी नगरी सोलस परिताओ विपुलपव्वए सिद्धे, अ० ५। एवं धितिहरेवि गाहा० कागंदीए ण० सोलस वासा परियाओ जाव विपुले सिद्धे, अ०६ । एवं केलासेवि गा० नवरं सागेए नगरे बारस वासाइं परियाओ विपुले सिद्धे, अ०७। एवं हरिचंदणेवि गा० साएए बारस वासा परियाओ विपुले सिद्धे, अ० । एवं वारत्ततेवि गा० नवरं रायगिहे नगरे बारस वासा परियाओ विपुले सिद्धे, अ०९। एवं सुदंसणेऽवि गो० नवरं वाणियगामे नयरे दूतिपलासते चेइते पंच वासा परियाओ विपुले सिद्धे, अ० १० । एवं पुन्नभद्देवि गा० वाणियगामे नगरे पंच वासा विपुले सिद्धे, अ०।११ । एवं सुमणभद्देवि सावत्थीए नग० बहुवासपरि० सिद्धे, अ०१२। एवं सुपइटेवि गा० सावत्थीए नगरीए सत्तावीसं वासा परि० विपुले सिद्धे, अ०१३ । मेहे रायगिहे नगरे बहूइं वासातिं परिताओ, अ०१४। तेणं कालेणं० पोलासपुरे नगरे सिरिवरे उज्जाणे. तत्थ णं पोलासपुरे नगरे विजयेनामं राया होत्था, तस्सणं विजयस्स रन्नो सिरी नामं देवी होत्था वन्नतो, तस्स णं विजयस्स रन्नो पुत्ते सिरीए देवीते अत्तते अतिमुत्ते नाम कुमारे होत्था सूमाले०, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे जाव सिरिवणं० विहरति, तेणं का० समणस्स० जेढे अंतेवासी इंदभूती जहा पन्नत्तीए जाव पोलासपुरे नगरे उच्चा जाव अडइ, इमं च णं अइमुत्ते कुमारे प्रहाते जाव विभूसित्ते बहूहिं दारएहिं य दारियाहि य डिभएहि य डिभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे सतो गिहातो पडिनिक्खमति त्ता जेणेव इंदट्ठाणे तेणेव उवागते तेहिं बहूहिं दारएहि यई संपरिवुडे अभिरममाणे २ विहरति, तते णं भगवं गोयमे पोलासपुरे नगरे उच्चनीय जाव अडमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वितीवयति, तते णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीतीवयमाणं पासति जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागते भगवं गोयम एवं व०-के णं भंते ! तुब्भे किं वा अडइ ?, तते णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं व०-अम्हे णं देवाणुप्पिया ! समणा णिग्गंथा ईरियासमिया जाव बंभयारी उच्चनीय जाव अडामो, तते णं अतिमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं व०एह णं भंते ! तुब्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमीतिकटु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हति त्ता जेणेव सते० तेणेव उवागते, तते णं सा सिरीदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासति त्ता हट्ठ० आसणातो अब्भुट्टेति त्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं वंदति त्ता विउलेणं असण० पडिविसज्जेति, तते णं से अतिमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं व०-कहिं णं भंते ! तुब्भे परिवसह ?, त० भगव० अइमुत्तं कुमारं एवं व०-खलु देवाणुप्पिया ! मम धम्मायरिए धम्मोवतेसते समणे भगवं महावीरे आदिकरे जाव संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडि० उग्गह० संजमेणं जाव भावेमाणे विहरति तत्थ णं अम्हे परिवसामो, तते णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं व०-गच्छामि णं भंते ! अहं तुब्भेहिं सद्धिं समणं भगवं महावीरं पायवंदते ?, अहासुह०, तते णं से अतिमुत्ते कुमारे भगवया गोतमेणं सद्धिं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवा० ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति जाव पज्जुवासति, तते णं भगवं गोयमे जेणेव समणे भगवं महावीरें तेणेव उवागते जाव पडिदंसेति त्ता संजमे० तव० विहरति,
त० समणे० अतिमुत्तस्स कुमारस्स तीसे य धम्मकहा, त० से अतिमुत्ते समणस्स भ० म० अ० धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठ० जं नवरं देवाणु० ! अम्मापियरो Forch EFFFFF555555$$$$$$$$$$$$ श्री आगमगुणमजूषा - ७२४ # # # # # # # ##$$$$$$$$$$$$$$$5 FOOR
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(८) अंतगडदसाओ ७ वग्ग, १३ अज्झयणं, ८ वग्ग, १० अज्झयणं [23]
आपुच्छामि ततेणं अहं देवाणु० ! अंतिए जाव पव्वयामि, अहा० देवाणु० मा पडिबंध०, तते णं से अतिमुत्ते जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागते जाव पव्वतित्तए, अतिमुत्तं कुमारं अम्मापितरो एवं व० - बाले सि ताव तुमं पुत्ता ! असंबुद्धे सि० किं णं तुमं जाणसि धम्मं ?, तते णं से अतिमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं व० एवं खलु अम्मयातो ! जं चेव जाणामि तं चेव न याणामि जं चेव न याणामि तं चैव जाणामि, त० तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं व० कहं णं तुमं पुत्ता ! जं चेव जाणसि जावतं चेव जाणसि ?, त० से अतिमुत्ते कुमारे अम्मापितरो एवं ० - जाणामि अहं अम्मतातो ! जहा जाएणं अवस्समरियव्वं न जाणामि अहं अम्मतातो ! काहे वा कहिं वा कहं वा केचिरेणं वा ? न जाणामि अम्मयातो ! केहिं कम्मायाणेहिं जीवा नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्सदेवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयातो ! जहा सतेहिं जीवा रइय जाव उववज्नति, एवं खलु अहं अम्मतातो ! जं चेव जाणामि तं चैव न याणामि जं चेव न याणामि तं चेव जाणामि, इच्छामि णं अम्मतातो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाते जाव पव्वइत्तते, तते णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघव० तं इच्छामो ते जाता ! एगदिवसमवि रातसिरिं पासेत्तते, तo से अतिमुत्ते कुमारे अम्मापिउवयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठति अभिसेओ जहा महाबलस्स निक्खमणं जाव सामाइयमाइयाइं अहिज्जति बहूई वासाइं सामण्णपरियागं गुणरयणं जाव विपुले सिद्धे, अ० १५ । तेणं कालेणं० वाणारसीए नयरीए काममहावणे चेतिते, तत्थ णं वाणारसीइ अलक्खे णामं राया होत्था, तेणं कालेणं० समणे जाव विहरति परिसा०, तते णं. अलक्खे राया इमीसे कहाते लखट्टे हट्ठ जहा कूणिए जाव पज्जुवासति धम्मकहा, त० से अलक्खे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स जहा उदायणे तहा णिक्खंते णवरं जेट्ठपुत्तं रज्जे अहिसिंचति एक्कारस अंगा बहू वासा परियाओ जाव विपुले सिद्धे, अ० १६ । एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव छट्ठस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते ॥ १५॥ वग्गो ६ ॥ जति णं भंते ![ सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव तेरस अज्झयणा ] पं०- 'नंदा तहा नंदमती नंदोत्तर नंदसेणिया चेव । महया सुमरूत महमरुय, मरुदेवा य अट्ठमा ॥ ८ ॥ भद्दा सुभद्दा य, सुजाता सुमणातिया। भूयदित्ता य बोद्धव्वा, सेणियभज्जाण नामाई ॥९ ॥ जई णं भंते !० तेरस अज्झयणा पन्नत्ता पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं० के अट्ठे पन्नत्ते ?, एवं खलु जंबू ! तेणं का० रायगिहे गुणसिलते चेतिते सेणिते राया वन्नतो, तस्स णं सेणियस्स रण्णो नंदा नामं देवी होत्था वन्नओ, सामी समोसढे परिसा निग्गता, तते णं सा नंदादेवी इमीसे कहाते लद्धट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेति त्ता जा णं पउमावती जाव एक्कारस अंगाइ अहिज्जत्ता वीसं वासाइं परियातो जाव सिद्धा, अ० १ । एवं तेरसवि देवीओ णंदागमेण णेयव्वातो, अ० १३ ॥ वग्गो ७ । १६ । जति णं भंते ![ अट्ठमस्स वग्गस्स उक्खेवओ जाव दस अज्झयणा ] पं० तं०- 'काली सुकाली महाकाली कण्हा
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हा महाकहा । वीरकण्हा य बोद्धव्वा. रामकण्हा तहेव य। १० ॥ पिउसेणकण्हा नवमी दसमी महासेणकण्हा य ॥ जति० दस अज्झयणा० पढमस्स अज्झयणस्स के अट्ठे पं० १, एवं खलु जंबू ! तेणं का० चंपा नाम नगरी होत्था पुन्नभद्दे चेतिते, तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया वण्णतो, तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रन्नो
कोणि रणो चुल्लमाउया काली नाम देवी होत्था वण्णतो, जहा नंदा जाव सामातियमातियातिं एक्कारस अंगाइ अहिज्जति बहूहिं चउत्थ० जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरति, तते णं सा काली अण्णया कदाई जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागता त्ता एवं व०- इच्छामि णं अज्जाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाता समाणा रयणावलिं तवं उवसंपज्जेत्ताणं विहरेत्तते, अहासुहं० त० सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अब्भणुण्णाया समाणा रयणावलिं उवसंप० विहरति तं०- चउत्थं करेति त्ता सव्वकामगुणियं पारेति (प्र० पढमंमि सव्वकामगुणियं) पारेत्ता छटुं करेति त्ता सव्वकाम० पारेति त्ता अय्ठमं करेति त्ता सव्वकाम० त्ता अट्ठ छट्टाई करेति त्ता सव्वकामगुणियं पारेति त्ता चउत्थं० सव्वकामगुणियं पारेति त्ता छटुं करेति त्ता सव्वकामगुणियं पारेति त्ता अट्टमं करेति त्ता सव्वकामगु० दसमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकामगु० अट्ठररसमं० सव्वकाम० वरसइमं० सव्वकामगु० बावीसइमं० सव्वकाम० चउवीसइमं सव्वकाम० उव्वीसइ० सव्वकाम० अट्ठावीस० सव्वकाम० तीसइमं० सव्वकाम० बत्तीसइमं० सव्वकाम० चोत्तीसइमं० सव्वकाम० चोत्तीसं छट्टाइं० सव्वकाम०
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5 श्री आगमगुणमंजूषा - ७२५ FLE LELE LELE LECOOR
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(८) अंतगडदसाओ ८ वग्ग, १० अपर्ण [23]
चोत्तीसइमं० सव्वकाम० बत्तीस० सव्वकाम० तीस० सव्वकाम० अट्ठावीस० सव्वकाम छब्वीस० सव्वकाम० चउवीस० सव्वकाम० बावीस० सव्वकाम० वीस० सव्वकाम० अट्ठारसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम बारसमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० अट्ठम० सव्वकाम० छ० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० अट्ठ छट्ठाई० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० छट्ठ० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी एगेणं संवच्छरणं तीहिं मासेहिं बावीसाए य अहोरत्तेहिं अहासुत्ता जाव आराहिया भवति, तदाणंतरं च णं दोंच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेति विगतिवज्जं पारेति त्ता छुट्टं करेति त्ता विगतिवज्जं पारेति एवं जहा पढमाएवि नवरं सव्वपारणते विगतिवज्जं पारेति जाव आराहिया भवति, तयाणंतरं च णं तच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेति त्ता अलेवाडं पारेति सेसं तहेव, एवं चउत्था परिवाडी नवरं सव्वपारणते आयंबिलं पारेति सेसं तं चेव,- 'पढमंमि सव्वकामं पारणयं बितियते विगतिवज्जं । ततियंमि अलेवाडं आयंबिलमो चउत्थंमि ॥ ११ ॥ तते णं सा काली अज्जा रयणवलीतवोकम्मं पंचहिं संवच्छरेहिं दोहि य मासेहिं अट्ठावीसाए य दिवसेहिं अहासुतं जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवा० त्ता अज्जचंदणं अज्जं वंदति णमंसति त्ता बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरति, तणं सा काली अज्जा तेणं ओरालेणं जाव धमणिसंतया जाया यावि होत्या, से जहा इंगाल० सहुयहुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अतीव उवसोमाणी चिट्ठति, तते णं तीसे कालीए अज्जाए अन्नदा कदाई पुव्वरत्तावरत्तकाले अयं अन्मत्थिते जहा खंदयस्स चिंता जाव अत्थि उट्ठा० तावताव मे सेयं कल्लं० जाव जलते अज्जचंदणं अज्जं आपुच्छित्ता अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुन्नायाए समाणीए संलेहणाझूसणा० भत्तपाणपडि० कालं अणवकंख० विहरेत्तएत्तिकट्टु एवं संपेहेति त्ता कल्लं० जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उ० त्ता अज्जचंदणं वंदति णमंसति त्ता एवं व०- इच्छामि णं अज्जा ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाता समाणी संह० जाव विहरेत्तते, अहासुहं०, काली अज्जा अज्जचंदणाते अब्भणुण्णाता समाणी संलेहणाझूसिया जाव विहरति, सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अंतिते सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नाई अट्ठ संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेत्ता सद्वि भत्ताति अणसणाते छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरति जाव चरिमुस्सासनीसासेहिं सिद्धा० । णिक्खेवो, अ० १ । १७ । तेणं का० चंपानामं नगरी पुन्नभद्दे चेतिते कोणिए राया, तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकालीनाम देवी होत्था, जहा काली तहा सुकालीवि णिक्खंता जाव बहूहिं चउत्थ जाव भावे० विहरति, त० सा सुकाली अज्जा अन्नया कयाई जेणेव अज्जचंदणा अज्जा जाव इच्छामि णं अज्जो ! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाता समाणी कणगावलीतवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरेत्तते, एवं जहा रयणावली तहा कणगावलीवि, नवरं तिसु ठाणेसु अट्टमाई करेति जहा रयणावलीए छट्ठाई, एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता, चउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा सेसं तहेव, नव वासा परियातो जाव सिद्धा, अ० २ । १८ । एवं महाकालीवि, नवरं खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तं०- चउत्थं करेति त्ता सव्वकामगुणियं पारेति त्ता छटुं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० अट्टम० सव्वकाम० छट्ठ० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दुवालसं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० चोद्दसं० सव्वकाम० बारसमं० सव्वकाम० सोलस० सव्वकाम० चोद्दसं० सव्वकाम० अट्ठारसं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० वीस० सव्वकाम० अट्ठार० सव्वकाम० वीसइ० सव्वकाम० सोलसमं सव्वकाम० अट्ठार० सव्वकाम० चोद्दस० सव्वकाम० सोलस० सव्वकाम० बारस० सव्वकाम० चोद्दस० सव्व० दसमं० सव्वका० बारसमं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० तहेव चत्तारि परिवाडीओ, एक्काए परिवाडीए छम्मासा सत्त य दिवसा, चउण्हं दो वरिसा अट्ठावीसा य दिवसा जाव सिद्धा, अ० ३ । १९ । एवं कण्हावि नवरं महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं जहेव खुड्डागं नवरं चोत्तीसइमं जाव णेयव्वं तहेव ऊसारेयव्वं, एक्काए वरिसं छम्मासा अट्ठारस य दिवसा, चउण्हं छव्वरिसा दो मासा बारस य अहोरत्ता, सेसं जहा कालीए जाव सिद्धा, अ० ४ । २० । एवं सुकण्हावि णवरं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, पढमे सत्तए एक्क्कं भोयणस्स (१२८) दत्तिं पडिगाहेति एक्केक्कं पाणयस्स दोच्चे feron श्री आगमगुणमंजूषा ७२६
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(८) अंतगडदसाओ ८ वम्म, १० अज्झयणं [१४]
सत्तए दो दो भोयणस्स दो दो पाणयस्स पडिगाहेति तच्चे सत्तते तिन्नि भोयणस्स तिन्नि पाणयस्स च० छ० सत्तमे सत्तते सत्त दत्तीतो भोयणस्स पडिग्गाहेति सत्त पाणयस्स, एवं खलु एयं सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं एगूणपन्नाते रातिदिएहिं एगेण य छन्नउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्ता जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवागया अज्जचंदण अज्जं व० न० त्ता एवं वं०- इच्छामि णं अज्जातो ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाता समाणी अट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेत्तते, अहासुहं०, तते णं सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अब्भणुण्णाया समाणी अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, पढमे अट्टए एक्वेक्कं भोयणस्स दत्तिं पडि० एक्वेक्कं पाणगस्स जाव अट्ठमे अट्ठए अट्ठ भोयणस्स पडिगाहेति अट्ठ पाणगस्स. एवं खलु एयं अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं चउसट्ठीए रातिदिएहिं दोहिय अट्ठसीतेहिं भिक्खासतेहिं अहा जाव नवनवमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, पढमे नवए एक्क्कं भोयणस्स दत्तिं पडि० एक्वेक्कं पाणयस्स जाव नवमे नवए नव नव द० भो० पडि० नव नव पाणयस्स, एवं खलु नवनवमियं भिक्खुपडिमं एकासीतीराईदिएहिं चउहिं पंचोत्तरेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्ता०, दसदसमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, पढमे दसते एक्केक्कं भोय० पडि० एक्केक्कं पाण० जाव दसमे दसए दस दस भो० दत्ती पहिग्गाहेइ दस दस पाणस्स०, एवं खलु एयं दसदसमियं भिक्खुपडिमं एक्केणं राइंदियसतेणं अद्धछट्ठेहिं भिक्खासतेहिं अहासुत्तं जाव आराहेति त्ता बहूहिं चउत्थजावमाससद्धमासविविहतवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेाणी विहरति, तणं सा सुकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव सिद्धा० । अ०५, निक्खेवो । २१ । एवं महाकण्हावि णवरं खुड्डागं सव्वओभद्दं पडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, चउत्थं करेति त्ता सव्वकामगुणियं पारेति त्ता छडं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० दुवालस० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छट्ठ० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छट्टं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० एवं खलु एवं खुड्डागसव्वतोभद्दस्स तवोकम्मस्स पढमं परिवाडिं तिहिं मासेहिं दसहिं दिवसेहिं हासुतं जाव आहेत्ता दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं० विगतिवज्जं० जहा रयणावलीए तहाएत्थवि चत्तारि परिवाडीतो पारणा तहेव, चउण्हं कालो संवच्छरो एक्को मासो दस य दिवसा सेसं तहेव जाव सिद्धा० । निक्खेवो अ० ६ । २२ । एवं वीरकण्हावि नवरं महालयं सव्वतोभद्दं तवोकम्मं उवसंप० विहरति, तं०- चउत्थं० सव्वकामगुणियं० छटुं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० चोद्दस० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चउदसं० सव्वकाम० सोलसं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० अट्टमं० सव्वकाम० सोलसं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चोद्दस० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० दुवालसं सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० चोद्दस० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० दुवाल० सव्वकाम० छ० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० सव्व० दुवाल० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० छटुं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० दसमं० एक्केक्काए लयाए अट्ठ मासा पंच य दिवसा चउण्हं दो वासा अट्ठ मासा वीस दिवसा सेसं तहेव जाव सिद्धा०, अ०७ । २३ । एवं रामकण्हावि नवरं भद्दोत्तरपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तं०- दुवालसमं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० अट्ठार० सव्वकाम० वीसइमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० अट्ठार० सव्वकाम० वीसइमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० वीसतिमं० सव्वकाम० दुवालसं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० अट्ठारसं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० अट्ठारसमं० सव्वकाम० वीसइमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० अट्ठारसमं० सव्वकाम० वीसतिमं० सव्वकाम० दुवालसमं० सव्वकाम० चोद्दसमं० सव्वकाम० सोलसमं, एक्काये० कालो छम्मा
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श्री आगमगणमंजना - 1020
5
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________________ 0955岁5岁$555% (द) अंतगडदसाओ 8 वग्ग, 10 अन्झयणं [15] 5555555555555520 乐玩乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听玩玩乐乐CM य दिवसा, चउण्हं कालो दो वरिसा दो मासा वीस य दिवसा, सेसं तहेव जहा काली जाव सिद्धा, अ० 8 / 24 / एवं पितुसेणकण्हावि नवरं मुत्तावलीतवोकम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति० तं०- चउत्थं० सव्व० छटुं० सव्व० चउत्थं० सव्वकाम० अट्ठमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० दसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० दुवाल० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० चोइसमं० सव्वकाम० सोलसमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० अट्ठारसं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० वीसतिमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० बावीसइमं० सव्वकाम० छव्वीसइमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० अट्ठावीसं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० तीसइमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम० बत्तीसइमं० सव्वकाम० चउत्थं० सव्वकाम चोत्तीसइमं० एवं तहेव ओसारेति जाव चउत्थं करेति त्ता सव्वकामगणियं पारेति, एक्काए० कालो एक्कारस मासा पनरस य दिवसा चउण्हं तिण्णि वरिसा दस य मासा सेसं जाव सिद्धा, अ० 9 / 25 / एवं महासेणकण्हावि, नवरं आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तं० - आयंबिलं करेति० चउत्थं० बे आयंबिलाइं० चउत्थं तिन्नि आयंबिलाइं० चउत्थं चत्तारि आयंबिलाइं० चउत्थं० पंच आयंबिलाइं० चउत्थं० छ आयंबिलाइं० चउत्थं एवं एकोत्तरियाए वड्ढीए आयंबिलाई वड्ढेति चउत्थंतरियाई जाव आयंबिलसयं० चउत्थं०, तते णं सा महासेणकण्हा अज्जा आयंबिलवड्ढमाणं तवोकम्मं चोद्दसहिं वासेहिं तीरिय मासेहिं वीसहि य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव सम्मकाएणं फासेति जाव आराहेत्ता जेणेव अज्जचंदणा अज्जा तेणेव उवा० वं० न० त्ता बहूहिं चउत्थ. जाव भावेमाणी विहरति, तते णं सा महासेणकण्हा अज्जा तेणं ओरालेणं जाव उवसोभेमाणी चिट्ठइ, तएणं तीसे महासेणकण्हाए अज्जाए अन्नया कयाई पुव्वत्तावरत्तकाले चिंता जहा खंदयस्स जाव अज्जचंदणं पुच्छइ जाव संलेहणा, कालं अणवकंखमाणी विहरति, त० सा महासेणकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अं० सामाइयाइयाति एक्कारस अंगाइं अहिज्जित्ता बहुपडिपुन्नातिं सत्तरस वासातिं परियायं पालइत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसेत्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ जाव तम8 आराहेति चरिमउस्सासणीसासेहिं सिद्धा वुद्धा० / 'अट्ठ य वासा आदी एक्कोत्तरियाए जाव सत्तरस / एसो खलु परिताओ सेणियभज्जाण णायव्वो // 12 // एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवत्ता महावीरेणं आदिगरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमढे पं०।२६। / अन्तगडदसांगं समत्तं / अंतगडदसाणं अंगस्स एगो सुयखंधो अट्ठ वग्गा अट्ठसु चेव # दिवसेसु उद्दिसिजंति, तत्थ पढमबितियवग्गे दस दस उद्देसगा तइयवग्गे तेरस उद्देसगा चउत्थपंचमवग्गे दस दस उद्देसया छट्ठवग्गे सोलस उद्देसगा सत्तमवग्गे तेरस उद्देसगा अट्ठमवग्गे दस उद्देसगा सेसं जहा नायाधम्मकहाणं / 27 / SCF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明 N E श्री आगमगुणमंजूषा- 728 OR