Book Title: Yuktiparkash Satic Syadwadkalika Ashtakani
Author(s): Padmasagar Gani, Rajshekharsuri, Haribhadrasuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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॥ ४१ ॥
अष्टक० नागो ऋदिरपायकः ॥ ५ ॥ किंचित्करकं ज्ञेयं, मोहानावापि ॥ तेषां कंकाय नावेन, दंत कंमू-यनादिव त् || ६ || अपरायत्तमौत्सुक्य-रहितं निष्पतिवियं ॥ सुख राजाविकं तत्र निसं जयविवर्जितं ॥ 9 ॥ परमानंदरूपं तद्, गीयतेऽन्यैर्विचक्ष्णैः ॥ इवं सकलकल्याण - रूपस्यात्मनं ह्यदः ॥ ८ ॥ संवेद्यं योगिनामेत- दन्येषां श्रुतिगोचरः !! उपमाजावतो व्यक्त-मनिधातुं न शक्यते ॥ ५ ॥ अष्टकाख्यं प्रकरणं कृत्वा यत्पुण्यमर्जितं ॥ विरहा तेन पापरूप, जवंतु सुखिनो जना ॥ १० ॥
॥ इति श्री हरिजसूरिकृतान्यष्टकानि समाप्तानि ॥
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मूलम्०
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