Book Title: Yogshastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 15
________________ प्रथमप्रकाश. ३. + तलावमां, राजहंसनी पेठे यावी उपन्या, ते प्रभु ज्यारे गर्भमां श्राव्या, त्यारे त्रिशला देवियें, सिंह, हाथी, वृषज़, अनिषेकसहित लक्ष्मी, पुष्पमाला, चंद्र, सूर्य, महाध्वज, नरेलोकुंज, पद्मसरोवर, समुद्र, विमान, रत्नराशि, तथा धुमाडाविनानो अनि एवी रीतनां चौद स्वप्नां जोयां. पढी शुभ दिवसें, त्रणे लोकने उद्योत करनारा, तथा देव ने दानवोनासने कंपावनार, तथा क्षणवार नारकीना जीवोने पण सुख श्रापनार, एवा प्रजुनो सुखमयसमये जन्म थयो, तथा तेज वखते दिक्कुमारियो " सूतिकर्म" करवा लागियो, पढि सुधर्मेंदें, प्रभुनो जन्माभिषेकं करवा वास्ते ने मेरु पर्वतपर लइ जइ, सिंहासनपर बेसाड्या पढी जक्तिथी कोमल वे, चित्त जेतुं, एवा ते वें शंका करी के, घाटलो बधो पाणीनो जार, था प्रभु, केम सहन करी शकशे? एवी रीतनी इंडनी शंका दूरकरवाने, प्रभु लीलामात्रथी, डाबा पगना अंगुठाथी, मेरुने दवाव्यो. ते वखते ते पर्वतनां शिखरो, जाणे प्रजुने नमस्कार करवामाटेज नमतां होय नहीं, तेम नमी गयां, तथा कुलपर्वतो पण जाणे प्रभुपासे थाववामाटे ( प्रयत्न करता होय नहीं, तेम चलायमान थया; तथा समुद्रो जाणे स्नात्र करवामाटेज उबलता होय नहीं, तेम अत्यंत उबलवा लाग्या, तथा पृथ्वी जाणे नाचवानी तैयारी करती होय नहीं, तेम कंपवा लागी.' "आ शुं थयुं ?” एम विचारि वें अवधिज्ञानना उपयोगथी, जगवाननुं लीलायित जाण्युं (ते जोइ) इंद्र, प्रभुने नस्कार करी कड़ेवा लाग्यो के, देखामि ! मारा जेवो सामान्य माणस, आपनां श्रावां अतुल्य माहात्म्यने केम जाणी शके ? माटे मने जे शंका थइ हती, ते " मिथ्या दुःकृत" बे ( हुं ते विषे क्षमा मागुं तुं.) पढी इंडोए वाजां वागते, प्रजुनो, तीथनां सुगंधि तथा पवित्र पाणीटंधी अनिषेक कर्यो पढी देव, दानव, तथा भुवनपति ते निषेकनां जलने वंदन करी, शरीरे बांट्युं वली प्रजुना स्नात्र जलथी स्पर्श थयेली माटी पण वंदनीय थइ, कारणके, मोटार्जनी संगतिथी दलका माणसनुं पण गौरव थाय बे. पठी सुधर्मेंद्र, प्रभुने ईशानेंद्रना खोलामां वेसाडीने, स्नान करावीने, तथा पूजिने स्तुति करवा लाग्यो हे अरिहंत, जगवंत! स्वयंवुद्ध, ब्रह्मा, तीर्थंकर, श्रादिकरनार, पुरुषोत्तम, लोकमां दीपक समान, लोकने प्रद्योत करनारा, लाकमां · ·

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