Book Title: Yogdrushti Samucchaya
Author(s): Haribhadrasuri, Devvijaygani
Publisher: Vijaykamal Keshar Granthmala Khambhat

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ (२५६) इति श्री सरिपुरंदरयाकिनीमहत्तरासुनुःश्रीमद हरिभद्र सूरीश्वर विरचितयोगदृष्टिसमुच्चयनामाऽयं ग्रंथ समाप्तः तत्समाप्तौ च श्रीतपगच्छीय गच्छाधिपति श्रीमन्मुक्ति विजयगणिनां शिष्य श्री श्रीमदाचार्यमहाराज बालब्रह्मचारि परमशांतमूर्ति श्री विनयकमल सूरीश्वराणां पूज्यपादाना मंतेवासिशिष्यरत्न योग नष्ठ शांतमूर्तिश्रीमदाचार्य महाराजश्री विजयकेशर सुरीश्वराणां कनियसा भ्रात्रा महोपाध्याय श्रीदेवविजय गणिना श्रीयोगहष्टयाख्यस्य, शुद्धात्म स्वरुप प्रबोधकस्य, आत्मोन्नति सिद्धयर्थ मूलभूतस्य, अपूर्व ग्रंथस्य टीका संलिता मूलग्रन्थस्य संक्षेपेण गुर्जर भाषया कृतोऽनुवादो विक्रमीय शताब्दी १९९१ वर्षे भाद्रशुक्लपक्षे पंचमी तिथौ भौमत्रासरे स्तंभन तिर्थ श्रेष्ठिरत्न श्रीमत्पानाचन्दात्मजाम्बा लालनिर्मापित धर्मशालायां कृत चातुर्मास्यायां समाप्तिमगमत्॥ समाप्तोऽयं ग्रंथ.श्रीमद् गुरुवर्य श्री विजयकमल ___ सूरीश्वर प्रसादात्. ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति, ॐ शांति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272