Book Title: Yog Pradip
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Hemchand Savchand Shah
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पंक्ति
अशुद्धं मन्तृणां _ : मन्तृ णां तो तौ
२३६ मूत्तिमंत
स्वमूत्ति मन्तु, २४० स्यत् स्यात्
२४४ चेत्यं चैत्यं
२४५ त्वे
२४५ जिन बिम्बवन्ध विना वन्द्यबिम्बं विना नहि २४५
न्वे
२४५
पाठा. तच्चा
पाठाः तच्च
२४६ २४६ २५० २५१
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प्रात्ति शब्दत्कि, कि पाग्गा लोकेन सद्ध
२५१
प्राति शब्दाकि कि पाठा लोकेन सबु त्ति अन्यां
२५१ २५२ २५३
२५३
अन्या मूच्या पाश्वे
मूर्त्या पार्वे
२५४ २५५ २५५ २५५ २५६ २५८
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