Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

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Page 12
________________ ६/ साध्वी प्रीतिदर्शनाश्री यशोविजयजी म.सा. हुए हैं, जो अपने अध्यात्मपरक साहित्य के लिए प्रख्यात है। वैसे अध्यात्म पर अन्य अनेक आचार्यों ने लिखा है, किन्तु उपाध्याय श्री यशोविजय म.सा. ने जितना अधिकारपूर्वक लिखा उतना शायद किसी ने नहीं लिखा। अध्यात्म विषय पर उपाध्याय श्री यशोविजय जी म.सा. के अनेक ग्रन्थ हैं। उनमें से अध्यात्मसार, अध्यत्मोपनिषद् एवं ज्ञानसार अधिक प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण है। ममाज्ञानुवर्तिनी सुसाध्वी श्री प्रीतिदर्शनाश्रीजी म. ने इन्हीं तीन ग्रन्थों के सन्दर्भ में उपाध्याय यशोविजय का अध्यात्मवाद विषय पर कठोर अध्ययनसामपूर्वक अनुसन्धानकर शोध ग्रन्थ लिखा और उस आधार पर जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं (राज.) ने साध्वीजी को पी-एच. डी. की उपाधि से अलंकृत किया है, जो हमारे लिये गौरव की बात है। इतना ही नहीं साध्वीजी ने अपने अनुसन्धान की अवधि में अध्यात्मसार ग्रन्थ का हिन्दी में विवेचना सहित अनुवाद कार्य भी किया है, जिसका प्रकाशन भी हो चुका है। यह हिन्दी अध्यात्मसार जिज्ञासुओं एवं स्वाध्याय प्रेमियों के लिए अत्यन्त उपयोगी है। साध्वीजी का प्रस्तुत शोध प्रबन्ध अध्यात्म रसिकों के लिए उपयोगी प्रमाणित होगा, ऐसा विश्वास है। साध्वीजी ने जिस लगन, निष्ठा, उत्साह एवं परिश्रमपूर्वक उक्त शोध प्रबन्ध तैयार किया, उसके लिए वे अभिनन्दन की पात्र हैं और इससे उनके उज्ज्वल भविष्य की प्रतीति होती है। यही अपेक्षा है कि उनकी लेखनी इसी प्रकार सतत् प्रवहमान बनी रहे और वे इसी प्रकार का लेखन करते हुए ग्रन्थ जन-जन के लिए उपलब्ध कराती रहें। इसी आशा और विश्वास के साथ मैं उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। श्री राजेन्द्र नगर तीर्थ ( नेल्लोर) सप्तमी पर्व, २०६५ गुरु ३ जनवरी, २००६ Jain Education International आचार्य विजय जयन्तसेन सूरि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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