Book Title: Yashovijayji ka Adhyatmavada
Author(s): Preetidarshanashreeji
Publisher: Rajendrasuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ उपाध्याय यशोविजयजी का अध्यात्मवाद / ११ आध्यात्मिक जीवन शैली अशांत से शांत, नीरस से सरस, दुःखद से सुखद, अपूर्ण से संपूर्ण तथा बिन्दु से सिन्धु बन जाने का चमत्कारी उपक्रम है। इस महत्प्रयास में विषय निर्वाचन की प्रारम्भिक अवस्था से लेकर शोध के मुद्रण के अंतिम पड़ाव तक विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में और इस शोध कार्य का कुशलता पूर्वक निर्देशन करने में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, आगम मर्मज्ञ मूर्धन्य विद्वान डॉ. सागरमलजी जैन का आत्मीय सहयोग विस्मरण नहीं किया जा सकता है। उनके कुशल मार्गदर्शन के बिना कृति का पूर्ण होना अंसभव था। उन्होने शोध विषय को अधिकाधिक प्रासंगिक एवं उपादेय बनाने हेतु सतत् मार्गदर्शन दिया । 'सादा जीवन उच्च विचार उक्ति को जीवन में चरितार्थ करते हुए डॉ. सागरमलजी जैन ने एक आदर्श स्थापित किया है। उन्होंने निरंतर हमारे आत्मबल और उत्साह को बढ़ाया है। मेरे परमआराध्य, चारित्रचूड़ामणि, प्रातः स्मरणीय, विश्वपूज्य राजेन्द्रसूरीश्वरजी गुरुदेव के चरणों में अनन्तशः वन्दना करती हूँ जिन की अदृश्य कृपादृष्टि निरन्तर बरसती रही और मेरे इस कार्य को निरंतर ऊर्जा प्रदान करती रही । मेरा अपना कोई सामर्थ्य नहीं था कि मैं इस कार्य को पूर्ण कर सकती परंतु कोई दिव्य शक्ति मुझे सदैव प्रेरित करती रही। वह दिव्य शक्ति और कोई नहीं मेरी गुरुदेव के प्रति अनंत श्रद्धा का ही प्रतिफल है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, मेरी अंनत आस्था के केन्द्र, मेरी जीवन धारा के दिशा निर्णायक, संयमप्रदाता राष्ट्रसंत आचार्य सम्राट प. पू. जयंतसेनसूरीश्वरजी ने प्रारंभ में ही गुरु गंभीर आशीर्वादों से मुझे आप्लावित किया और कार्यान्त तक उनकी सतत बरसती कृपा वृष्टि के कारण मुझे बल मिलता रहा। मैं उनकी सदा सदा के लिए ऋणी हूँ। साथ ही विश्वास रखती हूँ कि भविष्य में भी आपश्री की कृपा दृष्टि मेरे संयमपथ को सदैव प्रशस्त करती रहेगी । गुरुदेव के प्रति मेरे मन में कृतज्ञता के जितने भाव हैं, अभिव्यक्ति के लिए उतने शब्द नहीं है। उनके असीम उपकार को ससीम शब्दों. से अभिव्यक्त कर सीमित करना नहीं चाहती। मै शत शत वंदना के संग उनके चरणों में श्रद्धा के सुमन समर्पित करती हूँ । मेरे जन्म जन्म के संचित पुण्य का फल, मेरी आराध्या पूज्य गुरुवर्या सरल स्वभाविनी पू. महाप्रभाश्री सा. के चरणों में मेरी अंनत वंदना जिनकी दिव्यकृपा व तेजस्वी शक्ति से मुझे शोध कार्य निष्पादन की पात्रता प्राप्त हुई । Jain Education International. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 460